USA : अमेरिकी प्रैसिडैंट डोनाल्ड ट्रंप ने ‘दोस्त’ नरेंद्र मोदी के ‘विश्वगुरु’ कहलवाने और विश्व की चौथीपांचवीं अर्थव्यवस्था होने का गुमान करने वाली उन की सरकार की पोल एक झटके में खोल दी जब 104 भारतीयों को चैनों में जकड़ व अपने मिलिटरी एरोप्लेन में ठूंस कर अमेरिका से भारत भेजा. प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी और उन के विदेश मंत्री सुब्रह्मण्यम जयशंकर ने यहां देश की संसद में जो पोपला बयान दिया कि, ‘ऐसा तो पहले भी होता रहा है,’ एक तरह से भारत सरकार की रीढ़ की हड्डी के न होने या बेहद ही कमजोर होने का सुबूत है.
ऐसा अगर पहले भी होता रहा था तो भारतीय जनता पार्टी ने आज तक क्यों नहीं कभी आपत्ति उठाई. अमेरिका ने जो आज किया है वह न केवल अमानवीय है बल्कि भारत, जो उस को दोस्त मानता है, का खुल्लमखुल्ला अपमान भी है. भारतीय नागरिक विदेश के लिए भारत से वैध तरीके से निकले थे. अमेरिका में वे अवैध ढंग से घुसे थे तो भी उन्होंने अमेरिकी लोगों के साथ कोई अपराध नहीं किया था. उन्हें गिरफ्तार करने पर ही वहां मौजूद भारतीय दूतावास को खड़े हो जाना चाहिए था.
बजाय इस के कि भारत अपनी महान शक्ति दिखाता, भारत सरकार के विदेश मंत्री मिमियाते दिखे कि वे उन एजेंटों के खिलाफ ऐक्शन लेंगे जिन्होंने इन युवाओं को धोखा दिया. उन की यह हिम्मत नहीं हुई कि वे अमेरिकी इमिग्रेशन अफसरों को भारतीयों को चैनों से जकड़ने पर फटकार लगा सकें कि यह भारतीय नागरिकों का नहीं, भारत का अपमान है.
नरेंद्र मोदी ने कोई ऐसा बयान नहीं दिया कि वे विरोध में डोनाल्ड ट्रंप से मुलाकात को टाल देंगे. मुलाकात के दौरान कोई ऐसा फैसला नहीं लिया गया कि आगे ऐसा नहीं होगा. उन्होंने इस कांड का जिम्मा उन लोगों के कर्मों पर डाल दिया जो बिना कानूनी कागजों के अमेरिका में घुसे थे.
भारतीय मूल के कई लोग डोनाल्ड ट्रंप के तलवे चाटते हुए उन के सहयोगी बने हुए हैं. वे उन भारतीय पुलिसवालों से कम नहीं हैं जिन्होंने ब्रिटिश ब्रिगेडियर रेजिनाल्ड डायर ने हुक्म के चलते जालियांवाला बाग में जमा भारतवासियों की भीड़ पर 13 अप्रैल, 1919 को गोलियां चलाई थीं.
काश पटेल अमेरिका की सैंट्रल इंटैलिजैंस एजेंसी (सीआईए) के मुखिया हैं जो भारतीय मूल के हैं. विवेक रामास्वामी एक राज्य के गवर्नर का चुनाव लड़ रहे हैं. सीताराम कृष्णन आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस यूनिट के अध्यक्ष हैं. बौबी जिंदल स्वास्थ्य व मानव सेवाओं के मुखिया हैं. अपने को हिंदू कहने वाली तुलसी गबार्ड नैशनल इंटैलिजैंस की मुखिया हैं. उपराष्ट्रपति जे डी वेंस की पत्नी उषा वेंस भारतीय मूल की हैं. ये सब जनरल डायर की पुलिसफोर्स की तरह के हैं जिन्होंने निहत्थे, शांति से घुसे युवाओं को चैनों में जकड़ने की अनुमति दी या ऐसा किए जाने पर कोई विरोध नहीं किया.
देश की ताकत उस की नीतियों में होती है, ढोल पीटने में नहीं. हम दिल्ली में बैठ कर ढोल पीटते रहें, नेहरू-इंदिरा को गालियां देते रहें तो ताकतवर नहीं बन जाएंगे. ताकतवर तो तब होंगे जब एक भी भारतीय पर आंच आए तो हम ऐसी जुर्रत करने वाले देश को लाल आंख दिखा सकें.