Family Story : सुबहसुबह उठते ही आकाश के फोन पर मेल फ्लैश हुआ तो वह सकते में आ गया.
“क्या हुआ आकाश, आप इतने परेशान क्यों?”
“कुछ मत पूछो नीला, मेरा भाई मुसीबत में है. उसे मेरी जरूरत है.”
यह कह कर वह आननफानन टिकट बुक कर भारत के लिए रवाना हो गया और अपने पीछे नीला को चिंतित छोड़ गया. इस से पहले आकाश कभी अकेला नहीं जाता था. उस ने मेल खोला तो उस में ब्लडकैंसर की रिपोर्ट थी.
ओह, तभी आकाश कुछ बोल नहीं पा रहा था. वह उसे पिछले 35 वर्षों से जानती है. वह जितना ही ईमानदार है उतना ही भावुक और साथ ही साथ अंतर्मुखी भी. तभी तो उस ने अपने दुख खुद तक ही समेटे रखा, उस से खुल कर कहा तक नहीं. उसे एकएक कर सबकुछ याद आने लगा. पिछले दिनों वे कैसे भावुक हो कर देश पहुंचे और उन के साथ क्याकुछ घटा था.
‘नीला, जानती हो मैं और अमन हमेशा ही मां का पेट पकड़ कर सोते थे,’ एक रविवार जब आकाश उस से अपना बचपन साझा कर रहा था.
‘और वे तुम्हारी ओर अपना चेहरा रखती थीं.’
‘उन्हें बातों में फंसा कर अपनी ओर कर लेता. कितना अच्छा था न जब तक मांपिताजी थे.’
‘सच में, जब तक सिर पर मातापिता का साया रहता है, बचपन ज़िंदा रहता है.’ यह कहती हुई नीला मानो अपने बच्चों के बचपन में खो गई.
‘अब तुम कहां?’
‘मुझे तो रौनित और नैना के बच्चों संग खेलना है. जाने कैसी जनरेशन आ गई है, शादी के 2 साल हो गए मगर ये तो खुद के ही फोटो शूट करते नहीं थक रहे.’
‘कोई बात नहीं, उन्हें उन की जिंदगी जीने दो.’
‘अरे, हम 5 साल बाद ऐसे थोड़े ही रह जाएंगे, फिर कैसे बच्चों की मालिश होगी.’
‘जैसी तुम्हें तेलमालिश की इजाज़त होगी.’
‘अरे हां, इन के विदेशी पार्टनर हैं. यहां छठी-बरही थोड़े ही होती है.’
दोनों बिस्तर के अपने कोनों में सिमट कर सो गए. 60 साल की उम्र ही ऐसी होती है जब काम और परिवार दोनो ही ओर एकरसता आ चुकी होती है और जीवन में खालीपन भरने लगता है.
अगली सुबह जब नीला जागी तो सूर्य के प्रकाश से आकाश का चेहरा चमक रहा था. वह वौक से लौट आया था और भारत जाने का टिकट बुक कर रहा था.
‘मुझे तुम्हारा इरादा पहले ही समझ में आ गया था जब तुम बचपन याद कर रहे थे.’
‘हाहाहा, 35 वर्ष का साथ एकदूसरे को समझने के लिए काफ़ी होता है.’
चाय का कप होंठों पर लगाते ही उसे अपने संघर्ष के दिन याद आए जब वह नईनई शादी के बाद अटलांटा आई थी. तब सस्ता घर किराए पर लिया था जो सिटी से दूर था. बाज़ार से सामान उठा कर लाने में बर्फीली पहाड़ी पर खींचना पड़ता था. फिर घर के सारे काम अपने ही हाथों करना भी तो एक चैलेंज था.
विदेश में रहना जितना सुखद दिखता है उतना होता नहीं. एक तनख्वाह में मुश्किल से गुजारा होता है मगर उस ने भी कमर कस ली थी. छोटे से गांव से आए आकाश के बड़े सपने और उन्हें पूरा करने की लगन में उस ने अपनी पूरी ताक़त लगा दी.
पहले घर में रह कर बच्चों की देखभाल करती रही मगर जब वे स्कूल जाने लगे, उस ने बच्चों के स्कूल में ही नौकरी कर ली. घर,बाहर,बच्चे,स्कूल सबकुछ स्वयं संभाला तभी तो आकाश नामी डाक्टर बन सका और अपना अस्पताल चला रहा है. और तो और, बच्चे भी डाक्टर बन गए तो अस्पताल की जिम्मेदारी भी उन्होंने बखूबी संभाल ली.
अब अकसर दोनो फुरसत में रहते हैं और कहीं न कहीं घूमने निकल जाते हैं. उस ने चाय के खाली प्याले उठाए और रसोई में आ गई. फ्रिज में जो सब्जियां पड़ी थीं, पहले उन्हें ख़त्म करना था. अगले दिन से गांव की हरी सब्जियां खाने के लिए मिलेंगी, यह सोच कर ही मन झूम रहा था. रसोई निबटा कर उसे पैकिंग भी करनी थी.
‘परीक्षाएं शुरू हो गई हैं तो कोई बात नहीं, तुम हमें आखिरी परीक्षा की डेट बताओ, तब आ जाएंगे.’
आकाश फ़ोन पर था. कानों में यह बात पड़ते ही वह ठिठक गई तो आकाश कुछ झेंप गया,
‘अरे. पहले अमन ने ही कहा कि जब चाहो, आ जाओ और अब छोटे बेटे की परीक्षा की बात कह रहा है. लगता है उस की बीवी ने मना कर दिया होगा.’
‘मन छोटा न करो. हम होटल में रुक जाएंगे. घूमतेफिरते पहुंचेंगे, तब तक परीक्षाएं ख़त्म हो गई होंगी.’
‘यह सही रहेगा.’
आकाश के चेहरे पर वही शांत भाव वापस पा कर नीला की जान में जान आई. वे इस बार 4 साल बाद हिंदुस्तान जा रहे थे. पहले कोरोना, फिर देवर के बेटे की परिक्षाएं. अब तो हर तरह से निश्चिंत हो कर ही ससुराल आएगी.
पहले 15 दिन दक्षिण भारत की यात्रा में निकले, फिर मायके वालों से मिलने गई. वहां के बच्चों को देख काफी अचरज में थी. नब्बे के दशक में देश में इतने ब्रैंड्स नहीं थे, जो मिलता था, बच्चे वही पहनते थे. मगर इन दिनों सभी हाईफाई रहना एक स्टाइल स्टेटमैंट बना कर चल रहे थे, साथ ही, एनआरआई बूआ व फूफा पर इंप्रैशन भी जमाना चाह रहे थे.
ख़ैर, समाज में आए बदलाव के लिए वह किसकिस को जिम्मेदार ठहराती. परीक्षाएं ख़त्म होते ही अमन के परिवार से मिलने ससुराल आ गई. घर देख कर आश्चर्य से आंखें फटी की फटी रह गईं. ससुरजी के देहांत पर जब आई थी तो घर खंडहर सा दिख रहा था जो अब नवनिर्मित भवन चमचम चमक रहा था.
अच्छा तो वक्तबेवक्त जो पैसे मांगे जा रहे थे वे मकान में लग रहे थे. घर में काम करने वाली कई नौकरानियां थीं जो देवरानी के आगेपीछे डोल रही थीं. यह सब देख कर उसे चक्कर आने लगा.
वह तो चाहे अपने घर में रहे या बच्चों के पास जाए, सब्जियों को काटने-पकाने से ले कर रसोई का पूरा कार्य स्वयं संभालती थी. मगर देवरानी के पास घर की चाबी का छल्ला घुमाने के सिवा कोई काम न था.
‘ये सब कब बनाया, अमन, मुझे बताया तक नहीं?’ आकाश ने पूछा.
‘भैया, जब आप ने कोचिंग में दाखिले के पैसे दिए तो उसे मैं ने…’
‘कोचिंग के अलावा बड़ी के एनआरआई कोटा में एडमिशन के लिए भी तो तुम ने 15 लाख…’
‘भैया, बच्चे मेहनत कर रहे हैं, तीसरी बार परीक्षा दी है. सरकारी कालेज में एडमिशन दिलाऊंगा.’
‘फिर मुझ से मणिपाल मैडिकल कालेज में एडमिशन के नाम पर पैसे ऐंठना गलत है न. झू बोल कर तुम ने महल बना डाला?’
‘देखिए भैया, आप यहां रहते नहीं. लोग हंसते हैं कि बड़ा भाई अमेरिका में डाक्टर है और घर खंडहर बन गया है. मैं ने इज्ज़त बचाई है.’
‘भाई की कोई लौटरी थोड़े ही निकली है. बहुत मेहनत से कुछ कर पाया हूं. जो संघर्ष मैं ने किया है वह बच्चे न करें, इसलिए उन की शिक्षा के लिए मदद की. मगर तुम तो अलग ही किस्म के इंसान निकले. मैं यहां खुशीखुशी वक्त बिताने आया था मगर तुम ने तो मेरा दिल तोड़ कर रख दिया.’ आकाश की आंखों में आंसू थे, तभी अचानक रेखा कुछ कागज़ के पुलिंदे उठा लाई.
‘भैया, इस में दुखी होने की क्या बात है. आप लोग देशविदेश घूम रहे हैं मगर हम भी वेले नहीं बैठे. केयरटेकर रखते तो तनख्वाह देते न. समझ लीजिए वही दिया. अब आ ही गए हैं तो इन कागजों पर दस्तख़त कर के छुट्टी कीजिए.’
‘कैसा कागज़, कैसे दस्तख़त?’
आकाश की आंखें धुंधलाई थीं. भावुकतावश होंठ कांप रहे थे. जैसा भारत छोड़ कर गया था और जिसे देखनेमिलने वह आया था यहां, वैसा कुछ भी नहीं था. इस से अच्छा भारत तो उस ने अपने घर में बना रखा था जहां सभी मेहनती थे. एकदूसरे का सम्मान करते थे. छुट्टी के दिन एकसाथ बैठ कर फिल्म देखते और मिलजुल कर खाना खाया करते थे. कोई बेईमान या मुफ्तखोर न था.
पति की मनोदशा से वाकिफ नीला आगे बढ़ी. ऐसे भी स्त्रियों को जितना भावुक समझा जाता है वे उतनी होती नहीं हैं. कागजों को ठीक से देखा, तो पाया कि वे पावर औफ अटौर्नी के थे जिस पर हस्ताक्षर होते ही अमन उन का हकदार हो जाता. नीला की यह समझते देर नहीं लगी कि ये सब पतिपत्नी की मिलीजुली साज़िश थी. पहले तो घरनिर्माण की बात न खुल जाए, इस के लिए उन के आने पर रोक लगाना चाह रहे थे और जब आ ही गए तो पावर औफ अटौर्नी ले कर निश्चिंत होना चाहते थे. यही एक काम शेष था. उस के बाद अमन पूरी संपत्ति को बेचने का हकदार हो जाता.
‘देखो रेखा, अब तक जो भी तुम ने कहा, हम ने किया. हमें लगता था तुम लोग सासससुर की देखभाल कर रहे हो तो तुम्हारी हर मांग पूरी करना और बच्चों की जरूरतों का खयाल रखना हमारा फ़र्ज़ है मगर इस तरह से पुश्तैनी संपत्ति अपने नाम करने की साज़िश ठीक नहीं.’
‘हम आख़िर कब तक आप से मांग कर अपना काम चलाएंगे और पैसों का हिसाब देंगे. अब एक आखिरी काम करिए कि भैया से हस्ताक्षर करा दीजिए. हम जमीन बेच कर बच्चों की पढ़ाई और शादी करा लेंगे. आप भी खुश, हम भी खुश.’
‘इस घर में जो हम ने इतना कुछ लगाया, उस का क्या?’
‘वो हमारा मेहनताना था,’ रेखा चीखी.
नीला ने सुना था कि डौलर से रिश्ते खरीदे जाते हैं. यहां तो डौलर ने सारे रिश्ते छीन लिए थे. आकाश अभी भी हतप्रभ सब का चेहरा देख रहा था. वह अपने बचपन को जीने आया था. जिन संबंधों की मिठास की आस में आज तक जीतोड़ मेहनत करता रहा वह सब के सब अचानक मिथ्या लगने लगे. जब कुछ न सूझा तो मां का चेहरा आंखों में लिए भाई की ओर रुख कर बोला,
‘तू बता, तू क्या चाहता है?’
‘आप के पास बहुतकुछ है. यहां की संपत्ति मेरे लिए छोड़ दो.’
सहसा कानों में मां के वही शब्द गूंजे जो वह भाइयों के झगड़े सुलझाते वक्त अकसर कहा करतीं,
‘जगहुं न मिलिहें सहोदर भाई.’
उस ने आव देखा न ताव, सीधे हस्ताक्षर करने के लिए कलम उठा लिया. सबकुछ दे कर भी संबंध बचाना गवारा लगा.
‘एक मिनट, आकाश, मुझे कुछ कहना है,’ नीला की आवाज़ पर आकाश की उंगलियां थम गईं. उस ने आगे कहा, ‘आज तक के आप के सभी निर्णय शिरोधार्य थे. मगर आज मुझे एतराज है. यह पैतृक संपत्ति सिर्फ़ आप दोनों भाइयों की नहीं बल्कि इस के दावेदार और भी हैं.’
चारो ओर सन्नाटा सा पसर गया. रेखा और अमन तो फुल एंड फाइनल करने पर तुले थे. भाई के स्नेह में आकाश सर्वस्व त्याग करने को तत्पर था मगर नीला के कहने पर सबकुछ थम गया.
‘यहां बराबरी के हकदार होते हुए भी हमें यहां आने के पूर्व इजाज़त लेनी पड़ती है. भविष्य में हमारे बच्चे तो इस जगह को देखने के लिए तरस ही जाएंगे. अब तो सब बराबरी में ही बंटेगा. और हमारे हिस्से में हमारा केयरटेकर रहेगा.’
उस ने धीरे से आकाश से कहा, ‘जहां कमाने से ज्यादा गंवाने को तैयार हैं और सारी संपत्ति बेचने पर आमादा हैं तो कम से कम आधा तो बचा लें.’
नीला के इस व्यावहारिक रूप से अनभिज्ञ आकाश अवाक रह गया. मगर उस वक्त उसे इस विषय में कुछ भी कहनासुनना ठीक नहीं लगा. सो, वापस अटलांटा लौट गया. अब इस बात को 2 महीने बीते कि भतीजी के मेल ने उन को वस्तुस्थिति की जानकारी दी.
‘चाचाजी, पिताजी की मैडिकल रिपोर्ट आई है. उन्हें ब्लडकैंसर है. हर 2 दिन में खून बदलना पड़ता है जिस में डेढ़दो लाख रुपए का खर्चा आता है. उन के इलाज़ में सारी जमापूंजी निकल गई है, अब, आप का ही सहारा है.
‘आप की निधि.’
फास्टेस्ट फ्लाइट ले कर आकाश भाई के पास पहुंचा तो उस के चेहरे को देखते ही आंसुओं में डूब गया.
“इतना कुछ हो गया और तुम ने कहा तक नहीं?”
“किस मुंह से कहता, भैया.”
“मैं आ गया हूं, सब ठीक कर दूंगा.”
वाकई उस ने अमन के इलाज़ में जमीनआसमान एक कर दिया. अपने बैचमेट्स की मदद से एम्स में इलाज़ कराने लगा जहां एक से बढ़ कर एक कैंसर स्पैशलिस्ट थे. जब स्थिति थोड़ी संभल गई तो नीला को भी मदद के लिए बुला लिया. इस बार रेखा नज़रें नहीं मिला पा रही थी.
“दीदी, भैया, आप से बराबरी करने में मैं ने अमन की साझेदारी में न जाने कितने अपराध किए, फिर भी आप ने इस आपातकाल में हमारी सहायता की. आप का यह एहसान आजीवन नहीं भूलूंगी.”
“नहींनहीं, एहसान की क्या बात है. भाई तो भाई है. मेरा भाई ठीक हो जाए तो मुझे सब मिल जाएगा. भाई की अहमियत समझाते हुए मां क्या कहती थीं, याद है- ‘जगहुं न मिलिहें सहोदर भाई.’”
अमन के लब फड़फड़ाए तो आकाश ने उसे सीने से लगा लिया. मांबाप से छिप कर निधि ने जो मेल किया था उस से ही पूरे परिवार का मेल संभव हो सका, जिसे देख कर वह आत्मविभोर थी.
लेखिका : आर्या झा