Romantic Story : मालती और उस का परिवार संजय कालोनी की एक 8×8 फुट की झुग्गी में जबरदस्ती रहा करते थे. मालती से बड़ी और 2 बहनें थीं, जिन की शादी पिछले 2 सालों में हो चुकी थीं. अब उस पैर पसारने भर की झुग्गी में 3 लोग रह रहे थे, मालती और उस के मातापिता. मालती के पिता का भेलपुरी का ठेला था, जिस के सहारे उन की गुजरबसर हो जाती थी. कालोनी की हर औरत चार पैसे फालतू कमाने के लिए झुग्गियों से निकल कर बाहर पौश इलाकों में अमीर लोगों के घरों में झाड़ूपोंछे का काम कर लिया करती थीं,

पर मालती की मां ने पिछले कुछ सालों से बाहर काम पर जाना छोड़ दिया था. 17 साल की मालती के अंदर भी अब जवानी के रंगरूप दिखाई देने लगे थे. उस के शरीर की बनावट में भी काफी फर्क आने लगा था. मालती नगरनिगम के एक सरकारी स्कूल के पढ़ती थी, जो उस की झुग्गी से तकरीबन एक किलोमीटर की दूरी पर था. उस की कालोनी की बाकी लड़कियां भी उसी स्कूल में जाती थीं. मालती और उस की सहेलियां स्कूल से घर आते समय रास्ते में खूब मस्ती किया करतीं. कभी किसी राह चलते लड़के को छेड़ दिया या किसी इमली वाले से उधार में इमली ले कर खा ली. एक दिन स्कूल के बाहर जब मालती ने अपने ही पड़ोस की झुग्गी में नए रहने आए रघु को देखा, तो वह चौंक गई.

रघु अभी कुछ दिन पहले ही मालती के सामने वाली झुग्गी पर अपने मामा चरण दास के यहां आया था. उस का मामा भाड़े का टैंपो चलाता था और रघु के पास उस का अपना ईरिकशा था. रघु जवान था. 22 साल का रहा होगा. कंधे चौड़े, सीना बाहर, रंग साफ, लंबाई भी कुछ साढ़े 5 फुट, पर अनपढ़. सयानी मालती हमेशा रघु से बात करने के मौके तलाशती, पर मां के रहते ऐसा करना मुश्किल था. पर आज मालती अपनी सारी सहेलियों के साथ उस के ईरिकशा को आगे से घेर कर खड़ी हो गई, मानो उस रघु का अब सबकुछ छिनने वाला हो. पर उन लोगों ने तो सिर्फ मुफ्त में सवारी करने के लिए रघु के ईरिकशा को रोका था. मालती ने फटाफट सब को पीछे वाली सीट पर बैठा दिया. जो कोई बचा, उसे एकदूसरे की गोद में और खुद सारी सीटें भर जाने के बहाने से रघु के साथ वाली सीट पर जा बैठी.

बेचारे रघु ने अभी कुछ ही दिनों पहले ईरिकशा चलाना शुरू किया था. उस के साथ वाली सीट पर अभी तक कोई लेडीज सवारी नहीं बैठी थी. रघु थोड़ा हिचकिचाया, पर भला अपने पड़ोस की लड़की को घर छोड़ने से वह कैसे मना कर सकता था. मालती अपना बस्ता गोद में लिए उस के साथ वाली सीट पर जा बैठी. मालती के बदन की?छुअन से रघु थोड़ा घबराया. मालती ने रघु से पूछा, ‘‘आज स्कूल के बाहर कैसे?’’ ‘‘जी, वह मैं घर जा ही रहा था, तो सोचा कि खाली रिकशा ले जाने से अच्छा क्यों न जातेजाते थोड़ी और सवारी बैठा लूं. आखिर हमारी मंजिल भी तो एक ही हैं,’’ रघु ने बताया. ‘‘पर, मैं ने तो आप का नुकसान करवा दिया,’’ मालती ने भोली सूरत बना कर रघु से कहा. ‘‘वह कैसे?’’ रघु ने मालती से हैरानी से पूछा. ‘‘अरे, इन्हें लगा कि आप पड़ोसी हैं तो पैसे नहीं लेंगे,

’’ मालती ने पीछे बैठी अपनी सहेलियों की ओर इशारा करते हुए बताया. लड़कियों ने अपनी मरजी से ही रघु के ईरिकशा का रेडियो चालू कर लिया था, जिस की वजह से मालती और रघु की आवाज उन तक नहीं पहुंच रही थी. ‘‘तो क्या गलत सोचा इन्होंने? मैं वैसे भी आप लोगों से पैसे नहीं लेता,’’ रघु ने पड़ोसी धर्म निभाते हुए कहा. घर पहुंच कर रघु उस दिन सिर्फ मालती के बारे में ही सोचता रहा. अगले दिन फिर जब स्कूल से निकलते वक्त सामने रघु को ईरिकशा पर देखा तो मालती खिल उठी. आज रघु ने जानबूझ कर अपने साथ वाली सीट मालती के लिए बचा कर रखी थी. मालती ने अपनी सहेलियों से कहा, ‘‘तुम लोग जाओ, आज मुझे जल्दी जाना है. मैं ईरिकशा से चली जाऊंगी.’’ मालती आज फिर बस्ता अपनी गोद में रख कर रघु से सट कर बैठ गई. दोनों में काफी छेड़छाड़ भरी बातें हुईं. हालांकि शुरुआत मालती ने की थी, पर अब रघु भी काफी खुल चुका था. उन दोनों को अब एकदूसरे से प्यार होने लगा.

रघु अब सुबह भी मालती को ईरिकशा पर स्कूल छोड़ दिया करता और दोपहर को अपने साथ ले भी आता. एक दिन रघु मालती को लालकिला घुमाने ले गया. दोनों एकदूसरे का हाथ पकड़ कर लालकिला घूमने लगे. पूरे दिन दोनों में खूब रंगीन बातें हुईं आखिर में शाम को रघु थक कर दीवानेआम के नजदीक गार्डन में मालती की गोद में सिर रख कर उसे अपने भविष्य के सपने दिखाने लगा, तभी मालती ने कहा, ‘‘हमारी शादी ऐसे नहीं हो सकती रघु.’’ ‘‘क्यों?’’ रघु ने हैरानी से पूछा. ‘‘मेरे घर वालों और तुम्हारे मामा की वैसे भी नहीं बनती, ऊपर से यह लव मैरिज,’’ मालती ने अपनी दुविधा बताते हुए कहा. ‘‘तो चलो भाग चलें,’’ रघु ने बड़ी ही आसानी से मालती की ओर देखते हुए कहा. मंदमंद मुसकराते हुए मालती ने दुपट्टे से मुंह को ढकते हुए अपने होंठ रघु के होंठ पर रख दिए और एक खुश्क हंसी अपने होंठों पर बिखेरी. मालती की हंसी मानो कह रही हो कि वह रघु से सहमत है. अगले दिन मालती स्कूल जाने के लिए रघु के ईरिकशा पर बैठी, तो उस के स्कूल बैग में किताबों की जगह कुछ कपड़े और जरूरी दस्तावेज थे. दोनों ने भाग कर कोर्टमैरिज की और एक छोटा सा कमरा किराए पर ले कर रहने लगे. कुछ दिन तो दोनों के परिवार वालों ने उन की तलाश की, फिर हार कर अपनी पुरानी जिंदगी में लौट आए. मालती का पिता शर्मिंदा तो हुआ, पर उस के सिर से मालती की शादी का बहुत बड़ा बोझ कम हो गया था. मालती और रघु अपनी शादीशुदा जिंदगी से काफी खुश थे. देखते ही देखते मालती एक बच्ची की मां भी बन गई.

एक दिन रघु दोपहर को लंच करने के लिए अपने कमरे में आया. उस ने मालती को बताया, ‘‘कुछ दिनों में मेरा एक दोस्त उमेश गांव से आ जाएगा, तो उसे मैं अपना यह ईरिकशा किराए पर दे कर खुद नई ले लूंगा और ऐसे ही अपना धंधा बड़ा करता चला जाऊंगा.’’ पर बातबात पर बीड़ी पीने वाला रघु अकसर बीड़ी के पैकट पर दी हुई चेतावनी को नजरअंदाज कर जाता. रघु को कैंसर तो नहीं, पर टीबी की बीमारी ले डूबी. एक दिन बहुत ज्यादा तबीयत बिगड़ जाने के चलते रघु को अस्पताल में भरती होना पड़ा. दिनोंदिन नए ईरिकशे के लिए जमा किए हुए पैसे और रघु के दिन कम होते जा रहे थे. रघु सूख कर आधा हो चुका था. तकरीबन 3 दिन सरकारी अस्पताल में लेटे रहने के बाद चौथे दिन रघु को नींद आ ही गई. वह मर चुका था. रघु की निशानी के तौर पर सिर्फ एक ईरिकशा और उस की बेटी ही मालती के पास रह गई थी. मालती गहरे गम के आगोश में अपनी जिंदगी गुजार रही थी. कमाई का भी कोई साधन न था.

मालती को अपनी और बेटी की चिंता खाए जा रही थी. मालती के मन में अकसर यह खयाल उठते, अब गुजरबसर कैसे होगी? बेटी का भविष्य क्या होगा? अकेली बेवा औरत का इस समाज में क्या होगा? ऐसे में एक दिन रघु का एक दोस्त हसन रघु के घर आया. हसन की रघु से अभी कुछ ही दिन पहले दोस्ती हुई थी. मालती ने उसे चायनाश्ता करवाया. कुछ देर वह रघु की मौत पर मौन साधे बैठा रहा, फिर असली मुद्दे पर आ गया. उस ने मालती को दिलासा दिलाते हुए कहा, ‘‘भाभीजी, आप चिंता मत कीजिए, मैं चलाऊंगा रघु भाई का यह ईरिकशा और आप को रोज पूरे 300 रुपए किराया भी दूंगा.’’ मालती को भी आज नहीं तो कल यह करना ही था, इसलिए उस ने भी इस सौदे पर हामी भरते हुए सिर हिला दिया. हसन अपने वादे मुताबिक रोज समय से मालती के घर उस का किराया देने आ जाया करता था. मालती की जिंदगी भी बस कट ही रही थी. एक दिन हसन शराब के नशे में चूर हो कर मालती को किराया देने आया. चूल्हे की आग के सामने रोटी सेंकती मालती के माथे का पसीना उस के चेहरे और गालों से होता हुआ सीधा उस के उभारों पर जा कर ठहर रहा था. यह देख कर हसन मदहोश हो गया. वह विधवा मालती को बिन मांगे ही पति का सुख देने को उतावला हो गया.

मालती ने हसन को बैठने को कहा, तो वह मौकापसंद बिस्तर पर ही पसर गया. मालती जानती थी कि इस समय वह नशे में है, इसलिए मालती अपनी बेटी के साथ वहीं नीचे बिस्तर बिछा कर सो गई. तकरीबन आधी रात को हसन मौका देख कर मालती के साथ जा लेटा और अभी हसन ने उसे छूना शुरू ही किया था कि अचानक मालती की नींद टूट गई. अपने साथ गलत काम होते देख मालती की आंखें फटी की फटी रह गईं. मालती ने उसे खूब खरीखोटी सुनाई. उस रात के मंजर के बाद हसन भी अब मालती से नजरें चुराने लगा. कईकई दिनों तक किराया न देता और कभी देता भी तो 100 या 200. मालती के पूछने पर हसन कह देता, ‘‘अरे, रिकशा है, कभी टायर भी पंचर हो सकता है, कभी ब्रेक भी फेल हो सकते हैं, कभी मोटर भी खराब हो सकती है. भला है तो एक मशीन ही.’’ मालती ने कहा, ‘‘इतना कुछ पहले तो नहीं होता था वह भी रोजरोज. कुछ दिनों से ही सारी खराबियां होने लगी हैं क्या?’’ मालती के लहजे में ताना था. ‘‘अगर 300 रुपए किराया चाहिए, तो रिकशे की सारी मरम्मत खुद ही करवानी पड़ेगी.

कभी रिकशा खराब हुआ, तो तुम्हीं बनवा कर दोगी और अगर ऐसा नहीं कर सकती तो आगे से बिन बात मुंह भी मत चलाना, नहीं तो ढूंढ़ती रहना दूसरा ड्राइवर.’’ हसन को पता था कि मालती को दूसरा ड्राइवर मिलना मुश्किल था और यह बात भी जानता था कि उस ने तो उसे छोड़ दिया, पर कोई और मालती जैसी जवान विधवा को नोंचे बिना नहीं छोड़ेगा. मालती ने बिना सोचेसमझे हसन से कह दिया, ‘‘हां, छोड़ जाना रिकशा मेरे पास में, बनवा लूंगी खुद. देखती हूं कि कितने पैसे लगते हैं पंचर बनवाने में.’’ हसन अब नीचता पर उतर आया था. उस ने अगले ही दिन रिकशा के पिछले दोनों टायरों को कील से जानबूझ कर पंचर कर के चुपचाप मालती के घर के बाहर लगा दी और अंदर जा कर मालती से कहने लगा, ‘‘यह लो किराया पूरे 300 हैं. हां, और आज घर आते वक्त पिछले दोनों टायर पंचर हो गए, रिकशा बाहर खड़ा है, बनवा देना. मैं कल सुबह आ कर ले जाता हूं.’’ मालती समझ चुकी थी कि हसन अपनी उस दिन की सारी भड़ास निकाल रहा है. तभी मालती को याद आया कि शुरुआत में जब वह इस रिकशे पर रघु के साथ बैठा करती थी, तो उस ने रघु को अच्छी तरह से रिकशा चलाते हुए देखा था.

मालती ने खुद को तसल्ली देते हुए कहा, ‘‘रिकशा चलाना कोई बहुत बड़ी बात नहीं है और वह भी ईरिकशा. कल हसन भी देखेगा कि आखिर यह मालती भी एक रिकशे वाले की ही बीवी है.’’ मालती ने एक्सीलेटर ऐंठा और रिकशा आगे बढ़ा. मालती को पहले से ही मालूम था कि ईरिकशे में सिर्फ एक्सीलेटर और ब्रेक ही होते हैं. ईरिकशा चलाना कोई बहुत बड़ी बात नहीं. जिस काम के लिए हसन उस का पूरा किराया मार लिया करता था, मालती ने वही काम सिर्फ 50 रुपए में निबटा दिया. अपना ईरिकशा खुद चला कर मालती काफी आत्मनिर्भर महसूस करने लगी. उन ने अब ठान लिया कि वह किसी का एहसान नहीं लेगी, किसी के भरोसे नहीं रहेगी. वह अब खुद मेहनतमजदूरी कर के ईरिकशा चलाएगी और अपनी बेटी को खूब पढ़ाएगी. अगले दिन सुबह हसन अपने एक आदमी होने के घमंड में मालती के यहां चला आ रहा था. वह यह सोच कर काफी खुश हो रहा था कि मालती को अब उस के सामने झुकना पड़ेगा, पर मालती ने हसन के आते ही उस का हिसाबकिताब कर उसे चलता कर दिया. अब मालती ईरिकशा खुद ही चलाने लगी. अपनी 5 साल की बच्ची को भरोसेमंद पड़ोसन के यहां छोड़ कर मालती खूब मेहनत करती. मालती को शुरुआत में दिक्कतों का सामना तो करना पड़ा, पर धीरेधीरे मालती सभी रास्तों से वाकिफ हो गई. मालती बाकी सभी रिकशे वालों से ज्यादा कमाने लगी. मालती में कोई खास बात तो नहीं, पर फिर भी उस का रिकशा हर वक्त सवारियों से लबालब भरा रहता, पर शायद इस की वजह मालती जानती थी. मालती को पता था कि कुछ लोग तो सिर्फ उस के साथ वाली सीट पर बैठने के लिए या उस से बतियाने के लिए और कुछ तो मौके की तलाश में उस के रिकशे में बैठते थे. पर अब मालती को इन से कोई खतरा न था, क्योंकि वह ऐसे लोगों से निबटना खूब अच्छी तरह से सीख चुकी थी.

मालती की आमदनी अब हजारों में होने लगी. वजह कुछ भी हो, पर मालती का ईरिकशा एक पल के लिए भी खाली न रहता था. ऐसे ही एक दिन मालती के ईरिकशा पर एक आदमी बैठा. वह आदमी न जाने क्यों मालती के ईरिकशा को अजीब ढंग से घूरे जा रहा था. फिर उस ने मालती से पूछ ही लिया, ‘‘यह ईरिकशा तुम्हारा है?’’ ‘‘हां, क्यों?’’ मालती ने उस से पूछा. ‘‘कुछ नहीं, यह ईरिकशा जानापहचाना सा लगा तो पूछ लिया.’’ मालती को शक हुआ कि शायद यह रघु को जानता है, इसलिए मालती ने शक दूर करते हुए पूछ ही लिया, ‘‘क्यों आप ने कहीं किसी और के पास भी यह ईरिकशा देखा है क्या?’’ ‘‘नहीं, मेरे दोस्त रघु के पास भी ऐसा ही रिकशा था. मैं कई बार बैठ चुका हूं उस के ईरिकशे पर,’’ उस आदमी ने कहा. मालती को याद आया कि कहीं यह वही तो नहीं, जिस के बारे में उस दिन रघु ने मुझ से जिक्र किया था. मालती ने उस से उस का नाम पूछा. ‘‘उमेश नाम है मेरा. क्यों…?’’ ‘‘मैं रघु की विधवा हूं,’’ मालती की इस बात पर उमेश सन्न रह गया. एक पल को तो उसे लगा कि कहीं यह मजाक तो नहीं, पर फिर सोचा कि किसी की बीवी इतना भद्दा मजाक नहीं कर सकती. मालती उमेश को अपने घर ले कर गई. चूंकि वह रघु का दोस्त था, इसीलिए मालती से जो बन पड़ा उस से उस की मेहमाननवाजी की.

उमेश ने बताया, ‘‘रघु भैया तो मुझे अपना रिकशा किराए पर देने वाले थे, पर शायद अब मुझे कोई और काम तलाशना पड़ेगा,’’ उमेश निराश हो कर बोला. उमेश की इस बात पर मालती के मन में खिचड़ी पकी. उस ने रघु का सपना खुद पूरा करने की ठान ली. उस ने उमेश को अपने रिकशे की चाभी पकड़ाई और इस बार पूरे 400 रुपए दिन के हिसाब से ईरिकशा किराए पर दे दिया. मालती ने वैसे भी इतने दिन ईरिकशा चला कर ठीकठाक पैसे जोड़ लिए थे. वह कुछ दिनों में ही एक और रिकशे की मालकिन बन गई. मालती तरक्कीपसंद लोगों में से थी. शायद इसी वजह से महज 5 सालों में ही मालती पूरे 10 ईरिकशे की अकेली मालकिन बन चुकी थी. अब मालती की महीने की कमाई लाखों रुपए तक पहुंच गई थी. जिन मांबाप ने उन की तीसरी औलाद भी लड़की होने पर अपनी सारी उम्मीदें छोड़ दी थीं, जिस मालती के भाग जाने पर उन्हें शर्मिंदा होना पड़ा था, आज वही मातापिता मालती के साथ एक 3 बीएच के फ्लैट में ऐशोआराम की जिंदगी काट रहे थे. मालती की बेटी का दाखिला भी अब शहर के एक मशहूर ला कालेज में हो चुका था.

 

लेखक : हेमंत कुमार

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