Lapata Ladies : आमिर खान की फिल्म ‘लापता लैडीज’ औस्कर से बाहर हो गई है. फिल्म औस्कर में भेजे जाने को ले कर पहले ही विवादों में थी. इस ने इंडस्ट्री में फेवरिज्म की बहस छेड़ी थी.

औस्कर की दौड़ से आमिर खान निर्मित और आमिर खान की पूर्व पत्नी किरण राव द्वारा निर्देशित फिल्म ‘लापता लैडीज’ ( Lapata Ladies) के बाहर होते ही एक बार फिर नई बहस छिड़ गई है. एक वर्ग सवाल उठा रहा है कि आखिर ‘फिल्म फेडरेशन औफ इंडिया’ हर साल क्यों गलत फिल्म ‘औस्कर’ यानी कि ‘अकादमी औफ मोशन पिक्चर आर्ट्स एंड साइंसेज’ में सर्वश्रेष्ठ अंतर्राष्ट्रीय फीचर श्रेणी के लिए भारत की तरफ से आधिकारिक प्रविष्टि के रूप में भेजने की गलती कर भारतीय सिनेमा को वैश्विक स्तर पर पहचान नहीं बनाने देना चाहता?

यह सवाल काफी गंभीर और चुनौतीपूर्ण होने के साथ ही इस बार की चयन समिति के अध्यक्ष व असमिया फिल्मकार जाहनु बारूआ को भी कटघरे में खड़ा करता है. आरोप तो यह भी लग रहा है कि इस बार ‘फिल्म फेडरेशन औफ इंडिया’ के अध्यक्ष व औस्कर के लिए भारतीय फिल्म की चयन समिति के अध्यक्ष जाहनु बरूआ सरकार के हाथ की कठपुतली बने होने के साथसाथ मिस्टर परफैक्शनिस्ट के रूप में मशहूर अति दंभी कलाकार व निर्माता आमिर खान के दबाव में थे.

अन्यथा वह ऐसी फिल्म यानी कि लापता लैडीज ( Lapata Ladies)  का चयन ही न करते जिस पर चोरी का आरोप लगने के साथ ही जिसे उन अंग्रेजीदां लोगों द्वारा बनाया गया हो, जिन्होंने कभी भारत के गांव देखे ही नहीं हैं.

औस्कर के लिए फिल्म के चयन की प्रक्रिया

औस्कर के लिए भारतीय फिल्म उद्योग की तरफ से फिल्म को भेजने का काम ‘फिल्म फेडरेशन औफ इंडिया’ की एक चयन समिति करती है. हर साल नई समिति का गठन एक अध्यक्ष के साथ किया जाता है. इस बार इस समिति के अध्यक्ष असमिया फिल्मकार जाहनु बरूआ थे. जिन फिल्मकारों को अपनी फिल्म औस्कर में भेजना होता है, उन्हें फिल्म फेडरेशन औफ इंडिया की इसी समिति के सामने आवेदन करना होता है.
उन में से एक फिल्म का चयन यह समिति करती है. हर साल इस समिति के कार्यकलापों पर उंगली उठती ही रहती हैं. इस बार समित के पास भारत में अवार्ड लेने से दूरी बना कर रखने वाले अति महत्वाकांक्षी व घमंडी आमिर खान लगभग हर साल अपनी फिल्म भेजने की प्रयास करते रहे हैं.

2001 में उन की फिल्म ‘लगान’ गई थी, जो कि बुरी तरह से मात खा गई थी. तो इस बार आमिर खान की फिल्म ‘लापता लैडीज’ के साथ ही कांस में पुरस्कृत पायल कपाड़िया की फिल्म ‘आल वी इमेजिन एज लाइट’, दक्षिण की फिल्म ‘महाराजा’ सहित 29 फिल्में थी.

इन में से सभी को उम्मीद थी कि इस बार भारत की तरफ से पायल कपाड़िया की फिल्म ‘आल वी इमेजिन एज लाइट’ को ही भेजा जाना चाहिए. लेकिन पिछले 40 साल से फिल्म पत्रकारिता करते हुए मेरे अपने जो अनुभव रहे हैं, उस आधार पर मुझे पता था कि पायल कपाड़िया की फिल्म औस्कर के लिए भारतीय प्रविष्टि नहीं बन सकती, हुआ भी वही. आमिर खान की फिल्म ‘लापता लैडीज’ को ही भेजा गया और जिस दिन फिल्म फेडरेशन औफ इंडिया की तरफ से यह ऐलान किया गया था, उसी दिन हम ने मान लिया था कि इस बार भी हम औस्कर से खाली हाथ ही लौटेंगे और वही हुआ.

आल वी इमेजिन एज लाइट को न चुनने के पीछे की वजहें

‘औस्कर’ के लिए भारतीय प्रविष्टि के रूप में पायल कपाड़िया की फिल्म ‘आल वी इमेजिन एज लाइट’ को न चुनने को ले कर कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं. लोगों का मानना है कि यह सरकार के दबाव में लिया गया निर्णय रहा. हम देखते रहे हैं कि देश का कोई भी खिलाड़ी जरा सी सफलता हासिल करता है या कोई दूसरा शख्स कोई छोटा सा अवार्ड जीतता है, तो देश के प्रधानमंत्री तुरंत उसे बधाई देते हैं.
लेकिन जब पायल कपाड़िया की फिल्म ‘आल वी इमेजन एज लाइट’ को कांस इंटरनैशनल फिल्म फैस्टिवल में पुरस्कृत किया गया, तो देश की सरकार को सांप सूंघ गया. सब चुप रहे. इस की मूल वजह 2015 में पायल कपाड़िया द्वारा सरकार के विरोध में खड़ा होना रहा. वास्तव में 2014 में केंद्र में भाजपा की सरकार बनते ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने धीरेधीरे हर संस्थान में नई नियुक्ति करनी शुरू कर दी.
9 जून 2015 में जब अभिनेता और भाजपा के सक्रिय सदस्य गजेंद्र चौहाण को ‘पुणे फिल्म संस्थान’ का अध्यक्ष चुना गया, तो कुछ दिन बाद ही छात्र संघ की तरफ से इस का विरोध शुरू हो गया.उस वक्त यह विरोध काफी लंबा चला था और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय तक बना गया था.
यहां तक कि ‘पुणे फिल्म संस्थान’ के अध्यक्ष के नाते गजेंद्र चौहाण की तरफ से उस वक्त ‘पुणे फिल्म संस्थान’ में पढ़ रहे 73 छात्रछात्राओं के खिलाफ पुलिस में एफआईआर भी दर्ज कराई गई थी.
इन 73 में दूसरा नाम पायल कपाड़िया का था. इस घटनाक्रम के बाद पायल कपाड़िया को ‘पुणे फिल्म संस्थान’ से मिलने वाली कई सुविधाओं से भी हाथ धोना पड़ा था. तो लोगों का मानना है कि ऐसे छात्र की उपलब्धि को सरकार कैसे मान लें.

क्यों औस्कर ने ‘लापता लैडीज’ के लौटा दिया

सब से पहले हम आमिर खान की फिल्म ‘लापता लैडीज’ की चर्चा करते हैं. इसे औस्कर की सर्वश्रेष्ठ विदेशी भाषा की 15 फिल्मों में भी नोमीनेट न होने की कई वजहें रही हैं. जिन से हर सिनेप्रेमी इस फिल्म के रिलीज होने के दिन से ही वाकिफ रहा है.
2024 में रिलीज फिल्म ‘लापता लैडीज’ पुरूष सत्तात्मक व पितृ सत्तातमक सोच की वकालत करने के साथ ही एक फेमनिस्ट फिल्म है, जिस की अंग्रेजीदां फिल्म क्रिटिक्स ने खूब प्रशंसा की थी, अन्यथा इस ने बौक्स औफिस पर कोई कमाई नहीं की और ओटीटी पर कितने दर्शक फिल्म देखते हैं, यह तो हमेशा रहस्य ही रहेगा.
इस फिल्म में जिस तरह की कहानी पेश की गई है, वह उन अंग्रेजीदां लोगों ने पेश की है जिन्होंने अपनी जिंदगी में कभी गांव ही नहीं देखा, इस वजह से इस फिल्म के साथ भारतीय रिलेट ही नहीं कर पाए, तो भला औस्कर की ज्यूरी कैसे रिलेट कर पाती? इस के अलावा ‘औस्कर’ हमेशा मौलिक कथानक वाली फिल्म को ही स्वीकार करता है, चोरी वाली फिल्मों को पसंद नहीं करता.
पर कटु सत्य यह है कि फिल्म ‘लापता लैडीज’ के रिलीज होते ही अभिनेता व फिल्म निर्देशक अनंत महादेवन ने आरोप लगाया था कि, ‘लापता लैडीज’ तो उन के द्वारा निर्देशित फिल्म ‘घूंघट के पट खोल’ की नकल है. जो कि लगभग 10 साल पहले दूरदर्शन पर आई थी और यह फिल्म यूट्यूब पर अभी भी मौजूद है.
जब अनंत ने यह आरोप लगाया तब उन की यह फिल्म यूट्यूब पर भी मौजूद थी, मगर अनंत के आरोप लगाते ही इस फिल्म को यूट्यूब से गायब कर दिया गया. पर आज तक अनंत महादेवन के इस आरोप पर आमिर खान या किरण राव ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की है.
अनंत महादेवन ने बाकायदा सोशल मीडिया पर वीडियो जारी कर आरोप लगाया था. तब भारतीय मीडिया में यह बात काफी उछली थी. ऐसे में आमिर खान और ‘फिल्म फेडरेशन औफ इंडिया’ ने यह कैसे मान लिया था कि चोरी के आरोप की भनक ‘औस्कर’ की कमेटी तक नहीं पहुंची होगी?

ऐसे में आप यदि उम्मीद कर रहे थे कि आप ‘औस्कर’ की ज्यूरी की आंखों मे धूल झोंक कर औस्कर ले आएंगे, तो आप को क्या कहा जाए. आमिर खान खुद ही इस का जवाब दे दें. हमें लगता है कि आमिर खान ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी भद्द पिटवा ली. इस से भी बड़ा दोषी तो ‘फिल्म फेडरेशन औफ इंडिया’ और ज्यूरी अध्यक्ष जाहनु बरूआ हैं, जिन्होंने इस बात को नजरंदाज कर दिया कि ‘लापता लैडीज’ पर चोरी का आरोप लगा है.

‘फिल्म फेडरेशन औफ इंडिया’ के अध्यक्ष रवि कोट्टाराकारा हमें याद दिलाते हैं कि औस्कर के लिए मानदंड अलगअलग हैं और ‘लापता लैडीज’ तदनुसार फिट बैठती है. क्योंकि यह भारतीय सभ्यता व संस्कृति से ओतप्रोत फेमनिस्ट फिल्म है.
कोट्टाराकारा ने कहा था, ‘’आप पश्चिमी लोगों को घूंघट पहने हुए नहीं पाते हैं. ऐसा दक्षिण भारत में नहीं, बल्कि उत्तर भारत में है. यह कितना अच्छा है कि एक छोटा सा घूंघट दो विवाहित जोड़ों की जिंदगी बदल सकता है. और यही भारत की संस्कृति है. आखिरी बात, वह, जया/पुष्पा रानी (प्रतिभा रांता), पढ़ाई करना पसंद करती है और एक निश्चित तरीके से अपना जीवन जीना चाहती है.’’

माना कि इस में नारी उत्थान का मुद्दा है. फिल्म में लड़कियों की शिक्षा का भी मुद्दा है. मगर यह फिल्म एक पाखंड के अलावा कुछ नहीं है. पहली बात तो फिल्म की कहानी 2001 की है, उस वक्त मोबाइल फोन नहीं थे. दूसरी बात एक जोड़ा शादी से पहले एक साथ घूमता रहा है और उस के पास मोबाइल है, तो उस वक्त उस ने सेल्फी क्यों नहीं खींची थी. अगर खींची होती तो उस के मोबाइल में उस की पत्नी की बिना घूंघट वाली फोटो होती.

तब उसे पुलिस इंस्पेक्टर को अपने मोबाइल पर घूंघट वाली तस्वीर दिखा कर उस की तलाश करने की याचना नहीं करनी पड़ती. ‘लापता लैडीज’ में जिस तरह का गांव दिखाया गया है, उस तरह के गांव अब कहीं नजर नहीं आते. यही वजह है कि भारतीय दर्शकों ने इस फिल्म को सिरे से खारिज कर दिया था. सिर्फ फिल्म आलोचकों ने ही इसे सराहा था.

आमिर खान को क्यों है विदेशी अवार्ड का मोह

देखिए, लगभग 23 साल पहले आमिर खान की फिल्म ‘लगान’ को भी औस्कर में भेजा गया था, तब भी आमिर खान मुंह के बल गिरे थे. लेकिन उस नाकामी से आमिर खान ने कुछ नहीं सीखा था. वास्तव में आमिर खान जैसे कलाकार हमेशा किसी से कुछ सीखने की बनिस्बत अपने आप से से ही मंत्रमुग्ध रहते हैं.

अगर पिछली नाकामी से आमिर खान ने कुछ सीखा होता तो वह ‘लापता लैडीज’ को औस्कर में भेजने के लिए ‘फिल्म फेडरेशन औफ इंडिया’ के समक्ष आवेदन ही न करते और जैसा कि अब आरोप लगाया जा रहा है, और अगर यह आरोप सच है कि आमिर खान ने इसे चयन करने के लिए फिल्म फेडरेशन औफ इंडिया’ की ज्यूरी पर अपने प्रभुत्व का उपयोग न करते.

आमिर खान इस बात को ‘लगान’ के समय ही समझ गए थे कि वह अपने महान कलाकार और परफैक्शनिस्ट कलाकार का बनावटी हौव्वा सिर्फ भारत के भोलेभाले लोगों पर ही थोप सकते हैं, विदेश में उन का हौव्वा चलने से रहा.

आमिर खान ने ‘लापता लैडीज’ के मसले को जिस तरह से संभाला उस से वह पूरी तरह से अपरिपक्व इंसान और अपरिपक्व कलाकार के रूप में ही उभर कर आते हैं. यूं भी आमिर खान प्रपोगंडा करने में माहिर हैं.

एक तरफ वह भारत में बंटने वाले पुरस्कारों से दूरी बनाते हुए यह जाहिर करते हैं कि उन्हें पुरस्कार की लालसा नहीं है, जब कि औस्कर के लिए वह कई बार असफल प्रयास कर चुके हैं, इस से पहले हौव्वा खड़ा किया था कि वह 2000 करोड़ की लागत में फिल्म ‘महाभारत’ बना रहे हैं, जिस में वह अभिनय करेंगे. यह फिल्म पांच भाग में होगी. हर भाग दोदो साल बाद आएगा, पर फिर सब कुछ गायब हो गया.

आमोल पालेकर के रूदन का अर्थ

आमिर खान की फिल्म ‘लापता लैडीज’ के औस्कर से बैरंग वापसी के बाद अब मशहूर अभिनेता व निर्देशक अमोल पालेकर ने भी एक वीडियो जारी कर 2015 की घटना का उल्लेख करते हुए अपरोक्ष रूप से आमिर खान पर ‘फिल्म फेडरेशन औफ इंडिया’ पर दबाव बनाने का आरोप लगाया है.

अमोल पालेकर ने जो वीडियो जारी किया है, उस में उन्होंने कहा है कि 2015 में वह औस्कर में भारत की तरफ से भेजे जाने वाली फिल्म का चयन करने वाली ज्यूरी में थे, तब बौलीवुड के एक बहुत बड़े व महान अभिनेता ने अपनी फिल्म को ले कर बहुत दबाव बनाया था, पर बतौर ज्यूरी अध्यक्ष वह किसी दबाव में नहीं आए थे. यहां याद दिलाना जरुरी है कि 2015 में आमिर खान की फिल्म ‘पीके’ भी औस्कर के लिए भेजे जाने के लिए आवेदित हुई थी, पर ज्यूरी ने रिजैक्ट कर दिया था.
अमोल पालेकर के इस वीडियो के आने के बाद बौलीवुड के कुछ दिग्गज फिल्मकारों ने औफ द रिकौर्ड बात करते हुए अहम सवाल उठाया है. सभी का कहना है कि भारत में यह आम बात है. हर प्रभावशाली इंसान हर निर्णय में अपना ‘वीटो’ लगाता है, इस में कोई दो राय नहीं. ऐसा सिर्फ बौलीवुड ही नहीं हर क्षेत्र में होता आया है. और आज भी हो रहा है. लेकिन अमोल पालेकर आज जिस तरह का आरोप लगा रहे हैं, 2015 में ही उन्होंने यह बात क्यों नहीं कही थी?

दूसरी बात वह 2005 को ले कर खामोश क्यों रहते हैं. यह तो वही बात हुई कि ‘मीठामीठा गप्प, कड़वाकड़वा थू.’ यह रवैया तो किसी को भी नहीं अपनाना चाहिए और उस वक्त तो कभी नहीं जब आप दूसरों पर उंगली उठा रहे हों. यहां याद दिला दें कि 2005 में अमोल पालेकर ने फिल्म ‘पहेली’ का निर्देशन किया था.

फिल्म ‘पहेली’ का निर्माण करने के साथसाथ इस में महान कलाकार शाहरुख खान ने रानी मुखर्जी, अमिताभ बच्चन व नसीरूद्दीन शाह के साथ अभिनय किया था. अफसोस अमोल पालेकर की फिल्म ‘पहेली’ भी औस्कर नहीं ला पाई थी. पर यह सवाल जरूर उठ गया है कि क्या शाहरुख खान ने भी ‘पहेली’ को औस्कर में भिजवाने के लिए उस वक्त की फिल्म फेडरेशन औफ इंडिया की ज्यूरी पर दबाव तो नहीं बनाया था? 2005 में अमोल पालेकर अपनेआप में महान व दिग्गज कलाकार थे.

जाहनु बरूआ की भी पिटी भद्द

लोगों की राय में औस्कर के लिए भारत की तरफ से फिल्मकार पायल कपाड़िया की फिल्म ‘आल वी इमेजिन इन द लाइट’ को भेजा जाना चाहिए था. जिसे ज्यूरी ने रिजैक्ट कर ‘लापता लैडीज’ को चुना था. ‘लापता लैडीज’ को जब औस्कर की कमेटी ने पहले दौर की छंटनी में ही वापस कर दिया, तो अब जाहनू बरूआ ने जो बयान दिया है, वह अपनेआप में हास्यास्पद होने के साथ ही बतौर फिल्मकार उन की अपनी महत्ता व प्रतिभा पर भी सवालिया निशान लगाता है.

ज्यूरी के अध्यक्ष बरूआ ने कहा है, “पायल कपाड़िया की फिल्म ‘औल वी इमेजिन इन द लाइट’ तकनीकी रूप से कमजोर फिल्म है, इसलिए उसे नहीं भेजा था.” उन के इस बयान के बाद सवाल उठ रहा है कि क्या कांस इंटरनैशनल फिल्म फैस्टिवल की ज्यूरी नासमझ है, जिस ने मई 2024 में ही पायल कपाड़िया की इसी फिल्म को ‘कांस पाल्मे डि ओर’ पुरस्कार से नवाजा.

अथवा अब ‘गोल्डन ग्लोब’ की कमेटी नासमझ है, जिस ने पायल कपाड़िया की इस फिल्म को फिलहाल नोमीनेट किया है. अब तो यह सवाल भी उठाया जा रहा है कि कहीं भारत में ही कोई लौबी तो नहीं है जो भारतीय सिनेमा को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समाप्त करने के प्रयासों में लगी हो. फिल्म फेडरेशन औफ इंडिया के साथ ही व चयन समिति के अध्यक्ष जाहनु बरूआ पर अब कई फिल्मकार तंज कस रहे हैं.

इस बीच फिल्म निर्माता हंसल मेहता और संगीतकार रिक्की केज जैसी नामचीन हस्तियों ने फिल्म फेडरेशन औफ इंडिया (एफएफआई) की निर्णय लेने की प्रक्रिया पर खुल कर सवाल उठाए हैं. हंसल मेहता ने ट्वीट कर के फिल्म फेडरेशन औफ इंडिया की कार्यशैली पर कटाक्ष करते हुए कहा कि, “समझ में नहीं आता कि इन का स्ट्राइक रेट इतना कम क्यों है? फिल्म फेडरेशन औफ इंडिया हर बार गलतियां करता है और असफल होता रहता है.”

पायल कपाड़िया की ‘आल वी इमेजिन एज लाइट’ जीत सकती है औस्कर

पायल कपाड़िया की पहली फीचर फिल्म ‘‘आल वी इमजिन एज लाइट’ मलयालम, हिंदी और मराठी में बनी एक अंतर्राष्ट्रीय सहउत्पादन फिल्म है. इस के निर्माण के साथ फ्रांस, भारत, नीदरलैंड, लक्जमबर्ग और इटली की फिल्म प्रौडक्शन कंपनियां जुड़ी हुई हैं. जबकि निर्देशक पायल कपाड़िया के साथ इस फिल्म में कनी कुश्रुति, दिव्यप्रभा व छाया कदम जैसे पुरस्कृत कलाकार भारतीय ही हैं. इस फिल्म ने इस साल कान्स में स्पैशल जूरी पुरस्कार भी जीता.
हम पहले ही चर्चा कर चुके हैं कि किस दबाव में भारत की तरफ से पायल कपाड़िया की इस फिल्म को भारतीय प्रतिनिधि फिल्म के रूप में औस्कर में नहीं भेजा गया. मगर हर देश की सरकार को याद रखना चाहिए कि कला व सिनेमा कभी किसी भाषा या भौगोलिक सीमा की बंदिश में नहीं रहता.
जब भारत की तरफ से इस फिल्म को औस्कर में नहीं भेजा गया, तो इस फिल्म को यूके ने एक अन्य श्रेणी में औस्कर के लिए भेजा है. |
लोग उम्मीद कर रहे हैं कि यह फिल्म विजेता बनेगी. जब कांस इंटरनैशनल फिल्म फैस्टिवल में पायल कपाड़िया को पुरस्कार दिया जा रहा था, तब पुरस्कार दिए जाने से पहले कहा गया ‘‘क्रिएटीविटी सुरक्षित जगहों से नहीं आती. कला सुरक्षित जगह से नहीं आती.’’

क्या है ‘आल वी इमेजिन एज लाइट’

‘‘लापता लैडीज’ की ही तरह फिल्म ‘आल वी इमेजिन एज लाइट’ भी एक फेमनिस्ट फिल्म है और इस की कहानी के केंद्र में भी गांव है. यह फिल्म मलयाली भाषी नर्सों के इर्दगिर्द घूमती है. फिल्म में विस्थापन, अकेलापन, दोस्ती व लव जिहाद के मुद्दों पर बात की गई है. मुंबई की भीड़भाड़ में कैसे फिल्म की 3 महिला किरदार मिलते हैं और छाया कदम अन्य दो को ले कर कैसे गांव जाती हैं. फिर कैसे उन की सोचसमझ व उन के आपसी रिश्ते बदलने शुरू होते हैं, उसी की कहानी है.
दो महिलाओं में से एक विवाहित है, जिस का पति जरमनी जा चुका है, पर इस महिला का अपने पति से कोई संपर्क नहीं है. दोनों लड़कियां एकदूसरे के हित की सोचती हैं. जब कि दोनों अपने आप में किसी न किसी मुद्दे से जूझ रही हैं. मसलन, अविवाहित लड़की कनी कुश्रुति का किरदार केरला से है और वह हिंदू है, पर उस का प्रेमी मुसलिम है, जिसे वह सभी के सामने जाहिर नहीं कर सकती.

हिंदी भाषा की फिल्म ‘संतोष’ भी है अभी तक औस्कर में

दिलचस्प बात यह है कि भारत की तरफ से न सही पर यूके द्वारा भेजी गई संध्या सूरी निर्देशित हिंदी शहाना गोस्वामी और सुनीता राजवार अभिनीत संतोष नामक हिंदी फिल्म ने सर्वश्रेष्ठ अंतर्राष्ट्रीय फीचर श्रेणी के तहत 15 फिल्मों की सूची में जगह बनाने में सफल रही है. इस का निर्माण व निर्देशन लंदन में रह रही मूलतः भारतीय मगर इंग्लैंड की नागरिक संध्या सूरी ने किया है, जिसे औस्कर में यूके की आधिकारिक प्रविष्टि के रूप में भेजा गया है.

यह फिल्म हिंदी में भारतीय कलाकारों के साथ लखनउ में फिल्माई गई है. जी हां! ‘अकादमी औफ मोशन पिक्चर आर्ट्स एंड साइंसेज (औस्कर) ने जिन फिल्मों के नामों का खुलासा किया, जो औस्कर 2025 की दौड़ के लिए पात्र हैं, उन में ग्रामीण उत्तर भारत में सेट हिंदी भाषा की अंतर्राष्ट्रीय सहनिर्माण फिल्म ‘संतोष’ को ‘सर्वश्रेष्ठ अंतर्राष्ट्रीय फीचर फिल्म’ श्रेणी में जगह मिली है.

अफसोस की बात इतनी है कि इस फिल्म को यूनाइटेड किंगडम द्वारा अकादमी पुरस्कार 2025 के लिए उन की आधिकारिक प्रस्तुति के रूप में भेजी गई थी. इस फिल्म का प्रीमियर मई 2024 में 77वें कान फिल्म समारोह में भी हुआ था और इसे आलोचकों द्वारा खूब सराहा गया था.

फिल्म ‘संतोष’ में संतोष का किरदार निभाने वाली अभिनेत्री शाहना गोस्वामी ने इंस्टाग्राम पर अपनी खुशी व्यक्त करते हुए लिखा, ‘’हमारी फिल्म संतोष को मिली इस छोटी सी उपलब्धि के लिए टीम के लिए बहुत खुश हूं, खास कर हमारी लेखिकानिर्देशक संध्या सूरी के लिए! 85 फिल्मों में से शौर्टलिस्ट होना कितना अविश्वसनीय है. इसे पसंद करने वाले, इस का समर्थन करने वाले और इस के लिए वोट करने वाले सभी लोगों का धन्यवाद.’’

संध्या सूरी द्वारा निर्देशित इस फिल्म में शहाना गोस्वामी एक युवा विधवा की भूमिका में हैं. उस का पति पुलिस विभाग में कार्यरत होता है, पर भीड़ द्वारा मार दिया जाता है, तब उसे उस के पति की जगह पर पुलिस विभाग में कांस्टेबल की नौकरी मिल जाती है. जब कि वह खुद को संस्थागत भ्रष्टाचार में फंसी हुई पाती है. वह निचली जाति की दलित समुदाय की एक किशोरी लड़की से जुड़े क्रूर हत्या के मामले में कठोर अनुभवी पुलिस इंस्पेक्टर शर्मा (सुनीता राजवार) के साथ काम करने के लिए उत्साहित होती है.

फिल्म में ग्रामीण भारत के सामाजिक तानेबाने पर एक सम्मोहक रूपक नजर आता है. फिल्म में एक महत्वपूर्ण दृश्य है. जिस में संतोष की वरिष्ठ गीता शर्मा (सुनीता राजवार) कड़वी सच्चाई का खुलासा करते हुए कहती हैं, ‘‘इस देश में, दो प्रकार के अछूत हैं, एक जिन्हें कोई नहीं छूना चाहता और दूसरे वह जिन्हें कोई छू नहीं सकता.’’

फिल्म में भारत की कुछ कमजोरियों को भी उजागर किया गया है, जिन से तथाकथित राष्ट्रवादी आगबबूला हो सकते हैं. यह फिल्म जातिवर्ग और जातीय विभाजन की भी पड़ताल करती है, कुछ क्षेत्रों में महिलाओं की सुरक्षा और लिंग पूर्वाग्रह पर वैध चिंताओं को संबोधित करती है, लेकिन सूरी ने इसे सामान्यीकरण नहीं किया है. फिर चाहे मामला रिश्ते में धोखा देने का हो या घूस का. फिल्म में लैगिक पूर्वाग्रहों का भी चित्रण है.

कुल मिला कर किसी भी साजिश के तहत भले ही आमिर खान की फिल्म ‘लापता लैडीज’ अनुपयुक्त होते हुए भी भेजा गया हो, जिस के चलते वह ‘औस्कर’ से पहली छंटनी में ही बैरंग वापस आ गई हो, पर अभी उम्मीदें हैं कि औस्कर में भारत का परचम लहरा सकता है. आखिर ‘कांस’ में कुछ माह पहले ही कहा गया था कि ‘कला और क्रिएटिविटी सुरक्षित जगह से नहीं आती.’
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