Satire: सोसाइटी चुनाव में नवनिर्वाचित कुरसीधारी सोसाइटी के रखरखाव में फेरबदल न करें तो लोगों को बदलाव नजर कैसे आएगा भला, बस फिर क्या था, एक के बाद एक निर्णय लिए जाने लगे. ऐसे में सोसाइटी में हड़कंप तो मचना ही था.

बेचारेलाल की सोसाइटी में औनर्स एसोसिएशन का चुनाव हुआ और उस में कई वर्षों से विपक्ष में रह रहे दल को बहुमत मिला. बहुमत मिला मतलब सत्ता मिली. और कहते हैं कि सत्तासीन व्यक्ति के मस्तिष्क में दुर्योधन, रावण, कंस आदि की आत्माओं की फ्यूजन आत्मा का वास हो जाता है. परिणामस्वरूप, वे बड़े ही महत्त्वपूर्ण निर्णय लेने लगते हैं जो आमजन की निगाहों में अनापशनाप निर्णय माने जाते हैं.

बेचारेलाल की सोसाइटी के नवनिर्वाचित कुर्सीधारियों ने सब से पहले मंदिर के जीर्णोद्धार करने का निर्णय लिया. जीर्णोद्धार से पहले मंदिर के पुजारी को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. उन पर आरोप था कि पूर्व में जो सत्तासीन थे वे उन के पक्षपाती थे. जबकि, पुजारी को न पक्ष से मतलब था न विपक्ष से. उन्हें न तो पूरब से मतलब था न पश्चिम से न उत्तर से मतलब था न दक्षिण से. उन्हें मतलब था दक्षिणा से.

उन्हें जो कहा जाता था, करते थे. जितनी सामग्री दी जाती थी उस में से कुछ अपने लिए और अपनों के लिए बचा कर काम करते थे. बेचारेलाल को यह बात नहीं भायी. इसलिए नहीं कि वे नास्तिक थे. इसलिए भी नहीं कि वे प्रार्थनास्थल के सौंदर्यीकरण के विरुद्ध थे. इसलिए भी नहीं कि पुजारी से उन का कोई व्यक्तिगत संबंध था. बल्कि इसलिए कि पुजारी का जो काम था वह कर रहा था. जो वेतन ले रहा था, जितना वेतन ले रहा था उस के अनुसार काम कर रहा था. जहां तक मंदिर की बात है, वह बिलकुल अच्छी स्थिति में था और लोग पूरे भक्तिभाव से समुचित सुविधा के साथ पूजन कर रहे थे. ऐसे में मंदिर का जीर्णोद्धार करना उसी प्रकार था जैसे किसी स्वस्थ व्यक्ति को बीमार बना कर उस का इलाज करना.

उन्होंने माननीय अध्यक्ष और सचिव महोदय से कहा भी कि मंदिर पर जो खर्च हो रहा है उस खर्च को किसी कल्याणकारी काम के लिए किया जा सकता है. उदाहरण के लिए यदि मेंटिनैंस कम कर दिया जाए तो यह सभी फ्लैट औनर्स के लिए हितकर होगा. लेकिन पदासीनों को यह बात रास नहीं आई. उन का कहना था कि मेंटिनैंस कम होने से सोसाइटी की क्या इज्जत रह जाएगी. सोसाइटी जिन प्रमुख कारणों से पूरे इलाके में चर्चा में है उन में उच्च मेंटिनैंस भी एक है. चूंकि यह सोसाइटी की इज्जत का सवाल है, इसलिए मेंटिनैंस तो किसी हाल में कम नहीं किया जा सकता.

 

मंदिर का काम पूरा हुआ भी नहीं था कि नव सत्तासीन दल ने सभी टावरों के फ्लोर के टाइल्स को बदलने का निर्णय ले लिया. यहां भी स्थिति यह थी कि टाइल्स बिलकुल ठीक स्थिति में थे. उन का बदलना किसी लिहाज से उचित न था. पर दुर्योधन, कंस, रावण आदि की फ्यूजन आत्मा ने उन्हें यह निर्णय लेने के लिए प्रेरित किया और जब वे सत्ता में थे तो भला कौन रोक सकता था उन्हें. वे चाहे चमड़े का सिक्का चलाएं या राजधानी दिल्ली से बदल कर दौलताबाद ले जाएं. अपने देश में राइट टू रिकौल सिर्फ चर्चा करने के लिए होता है. एक बार जो कुरसी से चिपक जाता है वह तब तक उस के साथ सियामीज ट्विन बना रहता है जब तक दोबारा चुनाव नहीं होता और मतदाताओं का मोहभंग नहीं हो जाता.

बेचारेलाल ने फिर सु  झाव दिया कि इस कार्य के स्थान पर जो पैसे हैं उन से गरीबों के लिए लगातार भंडारा करवा दिया जाए ताकि जो भूखे सो रहे हैं उन्हें भरपेट भोजन मिल जाए पर सत्ताधीशों का तर्क था कि खाना खाने के चारपांच घंटों के बाद पच ही जाता है और पच जाने के बाद भूख फिर से हावी जो जाती है. ऐसे में कौन याद रखेगा कि उस ने खाना खाया था. सो, बेचारेलाल के इस प्रस्ताव को भी सत्ताधारियों ने ठुकरा दिया.

 

अभी भी एसोसिएशन के खाते में कुछ रकम बची हुई थी. सयाने पदाधिकारियों ने पढ़ा था कि ‘जल जो बाड़े नाव में घर में बाड़े दाम, दुओ हाथ उलीचिए यही सयानों काम’. तो फिर निर्णय लिया गया कि जिम में, स्विमिंग पूल में, लाइब्रेरी में और अन्य स्थानों में बायोमीट्रिक पद्धति स्थापित कर दी जाए.

बेचारेलाल ने फिर सु झाव दिया कि सिक्योरिटी गार्ड हर स्थान पर हैं ही, फिर बायोमीट्रिक पद्धति पर खर्च करने की क्या आवश्यकता है. इस के स्थान पर इस ठंड के मौसम में कंबल वितरण कर दिया जाए. गरीबों को सहारा मिल जाएगा. लेकिन उन के इस प्रस्ताव को भी ठुकरा दिया गया, यह कह कर कि आज के जमाने में कोई किसी का एहसान नहीं मानता, इसलिए किसी को सहारा देने की आवश्यकता नहीं है.

इस प्रकार बेचारेलाल के हर प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया गया. आज स्थिति यह है कि एसोसिएशन का फंड समाप्त होने की कगार पर है. मंदिर का काम पूरा नहीं हो पाया है. अब औनर्स से चंदा मांगा जा रहा है मंदिर के काम को पूरा करने के लिए. फ्लोर पर टाइल्स बदलने का काम तो पूरा हो गया है पर सभी का मत है कि पहले जो टाइल्स लगे हुए थे वे बेहतर थे. जो बायोमीट्रिक पद्धति स्थापित की गई थी उस की अधिकांश डिवाइस खराब हो गई हैं और कुछ खराब होने की कगार पर हैं.

अब निश्चित था कि मेंटिनैंस चार्ज बढ़ाया जाना था और ऐसा किया गया. मेंटिनैंस चार्ज बढ़ते ही पुराने सत्तासीनोंको और ईमानदारी से कमाने वालों को परेशानी होने लगी. ईमानदारी से काम करने वाले का क्या था, वे अन्य खर्चों में कटौती कर मेंटिनैंस चार्ज का भुगतान करने लगे पर सत्तासीनों का तो सत्ता से हटते ही सोसाइटी के खर्च से जो हिस्सा मिलता था वह बंद हो गया था. सो, उन्हें दोगुना कष्ट हो रहा था. वे इस ताक में थे कि किस प्रकार वर्तमान पदाधिकारियों को सबक सिखाया जाए.

इस का मौका उन्हें मिल भी गया. एक दिन किसी टावर के बाहरी दीवार का प्लास्टर टूट कर किसी रहवासी पर गिर गया. बहुत छोटा सा टुकड़ा गिरा था, सो, चोट न के बराबर थी पर विरोधियों के लिए इस छोटे से टुकड़े का गिरना एक बड़ा मौका बन गया. जिसे चोट लगी थी वह कहता रहा कि मामूली सी खरोंच आई है पर विरोधी दल उस की बात मानने के लिए तैयार न थे. उस के मना करने के बावजूद उसे डाक्टर के पास ले गए. डाक्टर के मना करने के बावजूद उस के हाथ पर प्लास्टर चढ़वाया गया. फिर थाना जा कर रपट लिखवाई गई.

फिर ‘औनर्स एसोसिएशन हायहाय’ के नारे लगाए गए. दोनों पक्षों में काफी कहासुनी हुई. सोसाइटी की वीरानी में मानो बहार आ गई. दिनरात एकदूसरे के खिलाफ नारेबाजी और चुगली होने लगी.

विरोधी पक्ष में सब से प्रबल विरोधी थे दुखीलाल. उन्हें वैसे तो हर बात पर दुखी रहने का शौक था पर जब से खजांची पद से हटे थे तब से विशेष रूप से दुखी रहने लगे थे. सत्तापक्ष को लगा कि यदि दुखीलाल को सुखी कर दिया जाए तो ये जो हंगामा बरपा हुआ है उसे शांत किया जा सकता है. सो, उन की दुखीलाल से गुप्त बैठक हुई. उस बैठक में क्या निर्णय लिया गया, यह तो नहीं पता पर उस के बाद से दुखीलाल काफी सुखी दिखने लगे और सोसाइटी में शांति बहाल हो गई.

 

 

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