Laws :  इस शृंखला में 1947 के बाद की सरकारों की नीतियों और उन के दैनिक कामकाज, राजनीति या विदेशी मामलों और भ्रष्टाचार की समीक्षा नहीं की जा रही है. इस शृंखला का उद्देश्य यह परखना है कि 1947 के बाद केंद्र सरकार ने जो कानून बनाए या संविधान संशोधन किए उन से समाज सुधार हुआ तो वह क्या है. केवल सरकार चलाने के उद्देश्य से बनाए गए किसी कानून की समीक्षा नहीं की जा रही है, इस में वे कानून हैं जिन का जनता और समाज पर व्यापक असर पड़ा.

 क्या कानून हमेशा समाज सुधार का रास्ता दिखाते हैं या कभीकभी सत्ता के इरादों का मुखौटा बन जाते हैं? 2014 से 2024 के बीच बने कानूनों की तह में झांकें तो भारतीय लोकतंत्र की तसवीर कुछ अलग ही नजर आती है.

संसद का सब से प्रमुख कार्य कानून बनाना होता है. दूसरा, यह कि जनता के दैनिक मुद्दों और सरकार के कामकाज पर बहस हो सके. कानूनों के जरिए समाज में उठने वाले मतभेद और संघर्ष दूर किए जा सकते हैं तो वहीं जनता को विभाजित भी किया जा सकता है. यह सत्ता में बैठे लोगों के हाथों और उन के विवेक पर निर्भर है.

1947 के बाद सत्ता में बैठे लोगों के हाथों उन के विवेक से बने कानूनों को देखने सम?ाने के बाद यह कहा जा सकता है कि 2014 के पहले बने बहुत से कानूनों के जरिए समाज सुधार की दिशा में काफी काम हुआ. इस की चर्चा पिछली किस्तों में इस शृंखला में की गई है. इस शृंखला में उन कानूनों की बात नहीं की गई जो सरकार चलाने के लिए बनाए जाते हैं, उन कानूनों में ऐसे कानून भी थे जिन्होंने जनता के हक छीने थे पर इस शृंखला में उन की बात नहीं की गई है.

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