3 स्टार
किसी सीक्वअल फिल्म के लिए पहली मूल फिल्म के बेंच मार्क को मात देना बहुत मुश्किल होता है लेकिन इस कसौटी पर निर्देशक सुकुमार सफल रहे हैं. वह 2021 की सफल फिल्म ‘पुष्पा द राइज’ का सीक्वअल ‘पुष्पा द रूल’ ले कर आए हैं. यह 3 घंटे 20 मिनट लंबी फिल्म मनोरंजन परोसने के साथ ही पुरुषप्रधान समाज पर कुठाराघात करने के साथ ही पारिवारिक मूल्यों की बात करती है. फिल्म में सिर्फ अच्छाइयां हों, ऐसा भी नहीं है.
फिल्म में गानों के अंदर नृत्य की जो कामुक भाव मुद्राएं हैं, उन्हें देख कर समाज का एक वर्ग परेशान है और आरोप लगा रहा है कि अजंता एलोरा की गुफाओं में मौजूद वल्गर मुर्तिकला को इस फिल्म में नृत्य में तब्दील किया गया है. इस तरह निर्देशक ने आम इंसान की सैक्स के प्रति जो ललक होती है, उसे भुनाने का प्रयास किया है. वहीं समाज का एक वर्ग इन नृत्य दृश्यों को देख कर आनंदित है. इतना ही नहीं पर्यावरण के मुद्दे पर फिल्म चुप रहती है. इस के अलावा समाज का एक वर्ग इस बात से नाराज है कि फिल्म सर्जक ने फिल्म में स्मगलर का महिमा मंडन किया है.
फिल्म की शुरूआत जापान में चंदन की लकड़ी के कंटेनर पहुंचने से मचे हंगामे और पुष्पा के एक्शन व जापानी भाषा में बात करने से होती है. जापानी सुरक्षा बलों से मुठभेड़ के दौरान पुष्पा के दिल में गोली लगती है और वह पानी में गिर जाता है और यह दृश्य अचानक खत्म हो जाता है. पता चलता है कि यह दृश्य पुष्पा के सपने का हिस्सा है.
इस के बाद कहानी वहीं से शुरू होती है, जहां पहले भाग की कहानी खत्म हुई थी. पुराने प्रतिद्वंदी श्रीनु (सुनील) और उस की गुस्सैल पत्नी दक्षा (अनसूया भारद्वाज) उस तस्करी सिंडिकेट पर फिर से नियंत्रण हासिल करना चाहते हैं जिसे पुष्पा अब नियंत्रित करता है. पुलिस इंस्पैक्टर से एसपी बन चुके भंवर सिंह शेखावत (फहद फाजिल) पुष्पाराज से बदला लेना चाहता है.
इस के लिए पुष्पा को नैतिक और पेशेवर रूप से हराने के लिए शेखावत, पुष्पा को उसी के अपने तस्करी के सिंडिकेट से बाहर करने की योजना पर काम कर रहा है लेकिन पुष्पाराज काम में प्रतिभाशाली है और वह हर बार शेखावत को पराजित और निशब्द कर देता है. उन की पत्नी श्रीवल्ली (रश्मिका मंदाना) और केशव (जगदीश प्रताप भंडारी) के नेतृत्व में उन के वफादार अनुयायी उन की पूजा करते हैं.
पुष्पा का अपने गले पर हाथ फिराने का इशारा अब एक नृत्य मुद्रा है. जब कहानी आगे बढ़ी है तो स्वाभाविक तौर पर पुष्पाराज का चरित्र विकसित होता है. अब उस के शरीर पर सोने के जेवर ही नजर आते हैं. उस के पास शक्ति है तो वह किसी की कहां सुनने वाला? उस की अहंकारी इच्छाएं और आत्मसम्मान की जिद उस के दुश्मनों के लिए बहुत परेशानी का कारण बनती है.
अब पुष्पा वह मजदूर नहीं रहा, वह तो बड़ा आदमी बन गया है. लेकिन आज भी श्रीवल्ली (रश्मिका मंदाना) उसे अपनी उंगलियों पर नचाती है. तभी तो एक तरफ पुष्पाराज अपनी पत्नी श्रीवल्ली की मुख्यमंत्री संग फोटो के लिए राज्य के मुख्यमंत्री को ही बदलवा देता है. तो वहीं श्रीवल्ली, पुष्पा की प्रतिष्ठा व मान सम्मान को बचाने के लिए पूरी दुनिया और यहां तक कि रिश्तेदारों से लड़ने के लिए तैयार है. भंवर सिंह शेखावत खुद ही अपनेआप को खत्म करने पर मजबूर हो जाता है तो दूसरी तरफ पुष्पाराज का सौतेला भाई मोहन (अजय) उस से माफी मांग कर उसे अपने परिवार, खानदान व गौत्र का हिस्सा स्वीकार कर लेता है.
माना कि यह कहानी एक तरफ पुष्पाराज व भंवर सिंह शेखावत के बीच बदले की है तो दूसरी तरफ पुष्पाराज द्वारा अपना हक व मान सम्मान पाने की लड़ाई है. मगर फिल्म की पटकथा इतनी कमाल की है, आप को इस बात का अहसास ही नहीं होगा कि इस में कहानी नहीं है. माना कि फिल्म में कई दृश्य एपीसोडिक हैं, मगर इन्हें जिस तरह से कहानी का हिस्सा बनाया गया है, वह कमाल का है.
लेखक व निर्देशक सुकुमार ने साबित कर दिया कि उन्हें भौगोलिक सीमाओं से परे अच्छे कंटैंट और दर्शकों की नब्ज की बेहतरीन समझ है. और वह लंबी फिल्म में भी दर्शक को बोर न होने देने की कूवत रखते हैं. फिल्म में पतिपत्नी के बीच प्यार व रिश्तों का गहराई से चित्रण है.
पुष्पाराज की अपनी असंगतियों व अंतर्विरोधों के साथ फिल्म आगे बढ़ती रहती है. पुष्पा के जीवन की समस्याओं में सब से बड़ी समस्या यही है कि वह वैधता चाहता है. वह अपने पिता का नाम, गौत्र व खानदान का नाम चाहता है. वह अपना हक, पहचान चाहता है. वह रिश्तों की भावुकता को भी समझता है इसीलिए वह हिंसक हो जाता है.
निर्देशक की सब से बड़ी खूबी यह है कि उन्होंने धन को रिश्तों के बीच नहीं आने दिया. अति महत्वाकांक्षी पुष्पाराज पत्नी से प्रेम, भतीजी से स्नेह, सैातेले भाई से रिश्ते सुधरने की उम्मीद, इन सभी चक्रव्यूहों में फंसा हुआ है. पहले भाग में ही पता चल गया था कि पुष्पाराज अपने पिता की नाजायज औलाद है, सौतेला भाई उसे अपने परिवार, गौत्र या खनदान का नहीं मानता तो पहचान ही उस का बहुत बड़ा संघर्ष है. अपनी मां को वह प्रतिष्ठा दिलाना चाहता है. वह पैसे से किसी को भी खरीदने की क्षमता रखता है. मगर वह रिश्तों को पैसे के बल पर खरीदने में यकीन नहीं रखता.
बौलीवुड के किसी अभिनेता में इतना दम नहीं है कि वह इस तरह की परफौर्मेंस दे सके या किसी निर्देशक में इतना दम नहीं है कि किसी कलाकार से इस तरह की उच्च गुणवत्ता वाली परफौर्मेंस निकलवा सके. फिल्म के सारे सीन डिजाइन किए गए हैं. भाषा व संवाद पर काफी मेहनत की गई है, तभी तो फिल्म देखते समय यह अहसास नहीं होता कि यह फिल्म डब है.
फिल्म की एडिटिंग अच्छी है. एपीसोडिक एक्शन सीन को एडिटर ने कहानी के मध्य गूंथा है. जात्रा वाला दृश्य शानदार है और दर्शकों के मन में कुछ अजीब सी बेचैनी भी पैदा करता है.
फिल्म की लंबी अवधि को कम कर यह एक क्लासिक फिल्म बन सकती थी. कुछ गाने तो बेवजह ठूंसे हुए नजर आते हैं. तो वहीं कुछ घरेलू दृश्य, खासकर श्रीवल्ली और पुष्पाराज के बीच छेड़खानी और अंतरंग क्षण अनावश्यक हैं. फिल्म के संवाद अच्छे हैं. और इन संवादों को सुन कर दर्शक ताली बजाने से बाज नहीं आ सकता. नदी के माध्यम से पुलिस का चंदन के लिए पीछा करना और पुष्पा और शेखावत के बीच मूक इशारा संचार जैसे क्षण प्रभावशाली हैं.
‘फ्लावर समझे क्या? फायर है मैं’ जैसे संवाद में अल्लू अर्जुन का स्वैग दर्शकों को ताली बजाने पर मजबूर करता है. बौलीवुड तो आम इंसान को पसंद आने वाला सिनेमा बनाना भूल ही चुका है. फिल्म में एक्शन व सैक्स दोनों हैं. मगर ‘एनिमल’ से लाख गुना बेहतर है. और हर सीन जायज नजर आता है.
दक्षिण की फिल्मों से शिकायत रहती है कि इन फिल्मों में महिलाओं का सम्मान नहीं किया जाता, लेकिन अल्लू अर्जुन और सुकुमार ने इस बार सरप्राइज किया है. इन दोनों ने इस फिल्म में कुछ ऐसा कर दिखाया है जिसे करना आसान नहीं होता. बौलीवुड का सुपर स्टार फिल्म में अपने किरदार की पत्नी के पैर छूते हुए या उस के पेर में मलहम लगाते नजर नहीं आ सकता. फिल्म में नारी सशक्तिकरण के साथ ही नारी सम्मान का बहुत बड़ा मुद्दा प्रभावशाली ढंग से उठाया गया है, मगर बिना किसी भाषणबाजी के.
20 मिनट का जात्रा वाला दृश्य भावनाओं और एक्शन से भरपूर, सावधानीपूर्वक कोरियोग्राफ किया गया है. फिल्म में एक सीन है, जहां पुष्पा के 200 से ज्यादा साथियों को शेखावत पकड़ लेता है. दर्शक सोचते हैं कि अब पुष्पाराज आएगा और पुलिस स्टेशन में तोड़फोड़ व मारधाड़ कर अपने साथियों को छुड़ा ले जाएगा. पुष्पाराज अपने सभी साथियों को इज्जत से अपने साथ ले जाता है, मगर बिना मारधाड़ किए. यहां पर पुष्पाराज पुलिस स्टेशन में मौजूद सभी पुलिसकर्मियों को उन के जीवनभर की तनख्वाह का नगद भुगतान कर सभी से त्यागपत्र लिखवा लेता है और अपने साथियों को ले कर चला जाता है.
कई लोग इस दृश्य पर आपत्ति जता रहे हैं. दक्षिण की फिल्मों की चिरपरिचत शैली में इस फिल्म में भी धर्म है. पूजापाठ है, मगर फिल्म सर्जक ने इन्हें सांस्कृति धरातल पर फिल्माया है, न कि धर्म को बेचा है.
निर्देशक ने चाहे जो मुद्दे उठाए हों, पर उस ने इस बात पर जोर दिया कि वह क्लासी नहीं बल्कि मासी फिल्म यानी कि आम दर्शकों की पसंद को ध्यान में रख कर फिल्म बनाई है.
फिल्म के कुछ दृश्यों पर यकीन करना भले मुश्किल हो, मगर फिल्मकारों के लिए यह सिनेमायी स्वतंत्रता है. मसलन-फिल्म के शुरूआती दृश्य में कंटेनर में 40 दिन बिना कुछ खाएपिए जापान पहुंचना कैसे संभव है? कंटेनर के अंधेरे में किसी किताब को पढ़ कर जापानी भाषा सीखना कैसे संभव है. जब आप के हाथ व पैर दोनों बंधे हों, तब आप कैसे उछल कर दांतों से किसी को काट या यूं कहें कि घायल कर सकते हैं?
फिल्म में जत्रा वाले दृश्य में जब पुष्पाराज को पता चलता है कि उस की पत्नी श्रीवल्ली गर्भवती है तो वह कामना करता है कि बेटी पैदा हो. इस के पीछे उस की सोच यह हे कि बेटी को शादी के बाद अपने आप गौत्र व खानदान मिल जाएगा. इस तरह यहां पर निर्देशक ने कहीं न कहीं पुरुष प्रधान समाज व पितृसत्तात्मक सोच पर चोट की है.
जहां तक तकनीकी पक्ष का सवाल है तो फिल्म के कैमरामैन पोलैंड के मूल निवासी सिनेमैटोग्राफर कुबा ब्रोजेक मिरोस्लोव बधाई के पात्र हैं. फिल्म का वीएफएक्स भी प्रभावशाली है. फिल्म का सर्वाधिक कमजोर पक्ष इस का संगीत है.
हक, मान सम्मान, पहचान हासिल करने के साथ ही सौतेले भाई के साथ बचपन से ही एक अजीब तरह की लड़ाई लड़ रहे पुष्पा राज के किरदार में अल्लू अर्जुन ने जानदार अभिनय किया है. श्रीवल्ली के किरदार में रश्मिका मंदाना ने भी ठीक काम किया है लेकिन अधिक नाटकीय उदाहरणों में कार्टून जैसा महसूस कराती है. यह उन की कमजोरी है.
मलयालम फिल्मों के सुपर स्टार हीरो फहाद फाजिल ने इस फिल्म में विलेन भंवर सिंह शेखावत के किरदार में कमाल का अभिनय किया है. फहाद फाजिल ने साबित कर दिखाया कि उन के अंदर हर तरह के किरदार को निभाने की क्षमता है.
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