Writer- साहिना टंडन
1996, अब से 25 साल पहले. सुबह के 9 बजने को थे. नाश्ते की मेज पर नवीन और पूनम मौजूद थे. नवीन
अखबार पढ़ रहे थे और पूनम चाय बना रही थी, तभी राजन वहां पहुंचा और तेजी से कुरसी खींच कर उस पर जम गया.
“गुड मौर्निंग मम्मीपापा,” राजन ने कहा.
“गुड मौर्निंग बेटा,” पूनम ने मुसकरा कर जवाब दिया और उस के लिए ब्रैड पर जैम लगाने लगी.
“मम्मी, सामने वाली कोठी में लोग आ गए क्या…? अभी मैं ने देखा कि लौन में एक अंकल कुरसीपर बैठे हैं.”
“हां, कल ही वे लोग यहां आए हैं. तीन ही लोगों का परिवार है. माता, पिता और एक बेटी है, देविका नाम हैउस का. कल जब सामने सामान उतर चुका था, तब मैं वहां जाने ही वाली थी उन से चायपानी पूछने के लिए कि तभी वह बच्ची देविका आ गई. वह पानी लेने आई थी. बड़ी प्यारी है. दिखने में बहुत सुंदर और बहुत मीठा बोलती है. उस ने बताया कि वे लोग इंदौर से यहां शिफ्ट हुए हैं.”
“ओके. अच्छा मम्मी मैं चलता हूं. रितेश मेरा इंतजार कर रहा होगा,” सेब खाता हुआ राजन लगभग वहां से भागा.
“अरे, नाश्ता तो ठीक से करता जा,” पूनम ने पीछे से आवाज दी.
“उस ने कभी सुनी है तुम्हारी कोई बात. उस के कानों तक पहुंचे तो बात ही क्या है,” नवीन चाय का घूंट भरते हुए बोले.
“आप भी हमेशा उस के पीछे पड़े रहते हैं. यही तो उम्र है उस की मौजमस्ती करने की.”
“कालेज खत्म हुए सालभर हो चला है और कितनी मौज करेगा. रितेश को देखो, आनंद के साथ अब उस ने उस का सारा काम संभाल लिया है.”
“आप का बिजनैस कहीं भागा नहीं जा रहा है, राजन ने ही संभालना है. देख लेना, एक बार जिम्मेदारियों में रम गया, तो फिर साथ बैठ कर बात करने को भी तरस जाएंगे.”
“चलो, देखते हैं, ऐसा कब होता है और आज कहां गए हैं तुम्हारे साहबजादे?”
“संडे है, बताया तो उस ने कि रितेश के साथ गया है,” पूनम बरतन समेटते हुए बोली.
रितेश राजन के घर से चंद ही घर छोड़ कर रहता था. उन के मातापिता आनंद और लता और राजन के मातापिता नवीन और पूनम, सभी का आपस में अच्छा व्यवहार था. सालों पहले आनंद दिल्ली में नवीन के महल्ले में आए थे.
रितेश के अलावा उन की एक बेटी भी थी, जिस का नाम अनु था. बचपन में ही रितेश की बूआ ने उसे गोद ले लिया था. हालांकि इस बात से कोई अनजान नहीं रहा कि असल में अनु
आनंद बाबू की बिटिया है. बेऔलाद और विधवा सीमा ने अनु को सगी मां से ज्यादा चाहा. मध्यमवर्गीय परिवार था आनंद बाबू का, पर चूंकि अब उन के पास केवल रितेश ही था, इसलिए ठीकठाक गुजारा हो जाता था सब का.
तत्पश्चात पार्क में, त्योहारों में एकदूसरे से मिलने पर लता और पूनम की भी अच्छी बनने लगी. रितेश का दाखिला भी राजन के स्कूल में ही हो गया था, फिर तो पहले स्कूल, फिर कालेज, दोनों की दोस्ती परवान चढ़ती ही गई.
हालांकि दोनों काफी विपरीत प्रवृत्ति के थे. जहां रितेश कुछ गंभीर और अंतर्मुखी था, वहीं राजन मस्तमौला किस्म का था. जीवनयात्रा के सफर को हंसतेगाते पार करना चाहता था. सभी से चुहलबाजी करना उस की आदत में
शुमार था. कुल मिला कर अलग स्वभाव होने पर भी दोनों में गहरी छनती थी.
रितेश के घर के बाहर राजन ने जोरजोर से हौर्न बजाना शुरू कर दिया, तो रितेश तेजी से सीढ़ियां उतरते हुए
और लता को बाय करता हुआ बाहर की ओर लपका.
“अरे, अब बंद भी कर. पूरे महल्ले को घर से बाहर निकालना है क्या…?”
“अरे, यह तो मेरे दोस्त के लिए है. तू मेरा मैं तेरा दुनिया से क्या लेना,” राजन गुनगुनाते हुए बोला. रितेश उसे देख कर हंस पड़ा.
“और बता, जन्मदिन की तैयारियां कैसी चल रही हैं.”
“वैसे ही जैसी हर साल होती है. पापा के दोस्त, मम्मी की सहेलियां, रिश्तेदार, पड़ोसी सभी होंगे, पर मेरी तरफ से
बस एक ही बंदा है, जो पार्टी में ना हो तो पूरी पार्टी कैंसिल कर दूं. समझा कि अभी और समझाऊं.”
“समझ गया यार. तेरा जन्मदिन हो और मैं ना आऊं, ऐसा कभी हो सकता है. अच्छा अभी यह तो बता की हम जा कहां रहे हैं?”
“इतनी देर से जन्मदिन की बात चल रही है तो क्या जन्मदिन का केक मैं नाइट सूट में काटूंगा. हम अपने
लिए कपड़े खरीदने जा रहे हैं.”
पार्टी राजन के घर पर ही थी. घर का हाल रोशनी से नहा चुका था. मेहमानों की चहलपहल जारी थी. राजन और रितेश भी अपने अन्य दोस्तों के साथ मशगूल थे. तभी पूनम राजन के पास आई.
चलो बेटा, केक नहीं काटना क्या, सब इंतजार कर रहे हैं.”
“चलो मम्मी, केक भी तो इंतजार कर रहा होगा. तू चल मैं आया,” राजन रितेश के कंधे पर हाथ रख कर गाता हुआ टेबल के पास पहुंच गया.
जैसे ही मोमबत्तियां बुझाने के लिए वो झुका, वैसे ही
सामने से एक खूबसूरत लड़की ने प्रवेश किया.
राजन की निगाहें जैसे उस पर थम गई हों. रितेश भी एकटक उसे ही देख रहा था. गुलाबी रंग के सूट में वह खिला हुआ गुलाबी प्रतीत हो रही थी. बड़ीबड़ी आंखें, नाजुक होंठ, कंधे पर बिखरे स्याहा काले बाल, सारी कायनात की खूबसूरती जैसे उस में समा गई थी.
“अरे देविका… आओ बेटा,”
देविका के साथ उस की मां आशा भी थी. पूनम ने उन का अभिवादन किया और उसे अपने पास ही बुला लिया.
“चलो बरखुरदार, मोमबत्तियां पिघल कर आधी हो चुकी हैं,” नवीन बोले.
“ओ हां,” राजन जैसे होश में आया हो. उस ने फूंक मार कर मोमबत्तियां बुझाईं, तो हाल तालियों की
गड़गड़ाहट से गूंज उठा.
केक काट कर सब से पहले उस ने पूनम और नवीन को खिलाया और फिर
रितेश को खिलाने लगा.
जवाब में रितेश ने भी केक का एक बड़ा सा टुकड़ा उस के मुंह में डाल दिया.
यह देख कर सभी जोर से हंस पड़े, पर राजन के कानों तक जो हंसी पहुंची, वह देविका की थी. चूड़ियों
की खनखनाहट जैसी हंसी उसे सीधे अपने दिल में उतरती लगी. जितनी देर पार्टी चलती रही, उतनी
देर राजन की निगाहें चोरीछुपे देविका को ही निहारती रहीं.
घर सामने ही होने की वजह से उस दिन के बाद से देविका कभीकभी राजन के घर आ जाती थी.।वहपाककला में काफी निपुण थी, तो अलगअलग तरह के व्यंजन पूनम को चखाने चली आती थी.
इस बीच राजन से कभी आमनासामना होता था, तो कुछ औपचारिक बातें ही होती थीं. पूनम को तो वह शुरू में ही पसंद थी. उस ने मन ही मन में उसे राजन के लिए पसंद भी कर लिया था, पर बापबेटे से बात करने के लिए वह देविका का मन भी टटोल लेना चाहती थी और उस के लिए वह किसी उपयुक्त मौके की तलाश में थी.
ऐसे ही लगभग 6 माह बीत गए. एक दिन राजन ने घर के बाहर अपनी गाड़ी स्टार्ट की तो देखा कि सामने देविका खड़ी थी. राजन गाड़ी ले कर उस के सामने पहुंचा.
“हेलो देविका, कैसे खड़ी हो, आज कालेज नहीं जाना क्या?”
“जाना तो है, पर आज पापा की कार नहीं है. उन्हें किसी जरूरी काम से कहीं जाना था, तो आज वे जल्दी ही निकल गए. अब टैक्सी का इंतजार है.”
“तो मैं छोड़ देता हूं. रास्ता तो वही है.”
“अरे, अभी मिल जाएगी कोई टैक्सी. तुम क्यों तकलीफ करते हो?”
“तो तुम भी यह तकल्लुफ रहने दो,” कह कर राजन ने गाड़ी का दरवाजा खोल दिया. देविका मुसकरा
के बैठ गई.
गाड़ी सड़क पर दौड़ने लगी थी कि कुछ ही दूरी पर एक रैड लाइट पर देविका की खिड़की के पास गुलाब के फूल बेचने वाला एक बच्चा आ कर खड़ा हो गया और उस से फूल खरीदने की गुहार सी लगाने लगा, तो देविका ने उस से फूल ले लिया.
“इस फूल का तुम क्या करोगी?” अचानक राजन के मुंह से निकल गया.
“क्या मतलब…?” देविका ने सवालिया नजरों से उस की ओर देख कर पूछा.
“मतलब… मतलब तो कुछ भी नहीं. लीजिए, आप फूल.”
“अरे यार, फूल को फूल की क्या जरूरत है?” राजन मुंह ही मुंह में बुदबुदाता हुआ बोला.
“कुछ कहा तुम ने?”
“ना… ना, कुछ भी तो नहीं.”
कुछ ही देर में राजन ने गाड़ी कालेज के गेट के सामने रोक दी.
“थैंक यू सो मच.”
“वेलकम.”
देविका मुसकराती हुई गेट की ओर चली गई. राजन उसे जाता हुआ देख ही रहा था कि अचानक उस की नजरें देविका की सीट के नीचे गिरे हुए एक कागज पर पड़ी. उस ने झट से कागज उठाया और सोचा कि देविका का ही कोई जरूरी कागज होगा. उस ने उसे आवाज लगानी चाहिए, पर तब तक देविका उस की आंखों से ओझल हो चुकी थी.
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‘है क्या यह…’ राजन ने खुद से ही सवाल किया और कागज खोल कर देखा. जैसे ही पहली पंक्ति पर राजन की नजर गई, वह आश्चर्य से भर उठा. वह एक खत था.
राजन ने तूफान की तेजी से वह खत पढ़ डाला. खत समाप्त होते ही वह खुशी के मारे चिल्ला सा उठा. उस ने गाड़ी स्टार्ट की और वापस घर की ओर दौड़ा दी. पूरे रास्ते उस के दिलोदिमाग में वह खत छाया रहा. घर पहुंचते ही उस ने पूनम को पुकारा.
“मम्मी, ओ मम्मी, तू कब सास बनेगी,” राजन पूरे जोशखरोश भरे स्वर में चिल्लाने लगा.
पूनम आई तो उस ने कानों पर हाथ रख लिए.
“पहले चिल्लाना तो बंद कर. और यह क्या कर रहा है, अच्छा है तेरे पापा घर पर नहीं हैं, वरना अभी
तूफान आ जाता.”
“तूफान ही तो आ गया है मम्मी. आप मेरी शादी की बात करती थीं तो अब करवा दीजिए.”
“ऐसे ही करवा दूं, शादी के लिए कोई लड़की भी चाहिए होती है मेरे बच्चे,” पूनम लाड़ भरे स्वर में बोली.
“लड़की तो है, देविका.”
“सच, देविका तुझे पसंद है,” पूनम खुशी से झूम सी उठी.
“बहुत पसंद है और आज ही पता चला कि मैं भी उसे पसंद हूं.”
“क्या कह रहा है, तुझे कैसे पता? क्या उस ने कहा है तुझ से?”
“ऐसा ही कुछ, अच्छा शादी की तैयारियां करो,” राजन कुछ उतावला सा हो रहा था और उस का उतावलापन देख कर पूनम हंसती जा रही थी.
“अरे पागल, ये काम क्या चुटकी बजाते ही हो जाता है, तेरे पापा से बात करनी है और देविका के घर वालों से भी तो…”
“अच्छा. काश, चुटकी बजाते ही हो जाता,” चुटकी बजातेबजाते राजन अपने कमरे में चला गया.
उसे जाता हुआ देख कर पूनम की आंखों में जैसे लाड़ का सागर हिलोरे लेने लगा.
कमरे में पहुंच कर राजन पलंग पर औंधा गिर पड़ा और जेब से खत निकाल कर फिर से पढ़ने लगा.
प्यारे “R”,
आज हमें मिले पूरे 6 महीने हो चुके हैं. वह पार्टी का ही दिन था, जब हम ने एकदूसरे को पहली बार देखा था. उस दिन ऐसा लगा था, जैसे तुम्हारी नजरों ने मेरी रूह तक को छू लिया हो. तब से आज तक हुई चंद मुलाकातें ही मेरे मौन प्रेम की साक्षी रही हैं. आधीअधूरी उन मुलाकातों में जो छोटीछोटी बातें हुईं, जैसे तुम ने मुझे देखा उन्हीं पर मेरा विश्वास टिका है. अब मुझे लगता है कि
इस पवित्र प्रेम को शब्दों की जरूरत नहीं है, बस अब हमारे मातापिता भी इस खूबसूरत रिश्ते को अपनी मंजूरी दे दें. घर पर मेरी शादी की बात चलने लगी है. तुम अपने मातापिता को इस बारे में बता दो, ताकि वह रिश्ते की बात करने घर आ सके.
दिल से सदा ही तुम्हारी,
“D”
न जाने वो खत राजन ने कितनी ही बार पढ़ डाला. पढ़तेपढ़ते ही उस की आंख लग गई. रात हो गई
थी. डाइनिंग टेबल पर नवीन ने राजन के बारे में पूछा, तो पूनम ने बताया कि “आज तो वह बिना
खाए ही सो गया है.”
“क्यों, ऐसा क्या हो गया?”
“वही, जो इस उम्र में हो जाया करता है.”
“पहेलियां ना बुझाओ. पहले पूरी बात बताओ.”
“हमें देविका के मातापिता से बात कर लेनी चाहिए. राजन और देविका एकदूसरे को चाहने लगे हैं.”
“यह कब हुआ…?”
“क्या आप भी… प्यार किया नहीं जाता हो जाता है.”
“जैसी मां वेसा ही बेटा. अरे, पहले कारोबार में मेरा हाथ बटाए, फिर प्यारमुहब्बत में पड़े. शादी तो दूर की बात है.”
“शादी होती है तो जिम्मेदारी का एहसास खुदबखुद जग जाता है और फिर राजन ने कौन सी नौकरी ढूंढ़नी है. अपना कारोबार ही तो संभालना है.”
वार्तालाप यहीं समाप्त हो गया.
इधर देविका बेहद परेशान हो रही थी. अपने कमरे की एकएक चीज… एकएक किताब… वह ढेरों बार छान चुकी थी. पर उस का खत उसे नहीं मिल रहा था. किताब में ही तो रखा था. अंत में थक कर वह पलंग पर बैठ गई. उस के सब्र का बांध टूट गया और वह फूटफूट कर रोने लगी. आखिर कहां गया खत. वह खत रितेश के लिए था.
रितेश और देविका की प्रेम कहानी राजन के जन्मदिन की पार्टी में आरंभ हुई थी. जब वे राजन के।घर पहुंची थी, तो सब से पहले उस की नजरें रितेश से ही मिली थीं. रितेश भी उसे ही देख रहा था.
फिर पूरी पार्टी में वह कभी खाना एकसाथ लेते हुए टकराते, तो कभी अपने परिजनों के साथ आपस
में हुए परिचय के दौरान एकदूजे को देखते रहे.
उस दिन शब्दों की सीमा चाहे “हैलो” में ही खत्म हो गई, पर दिल से दिल की बातें ऐसी थीं कि मानो लगता हो जैसे उन का अंत ही नहीं है.
पूनम के घर जब भी कोई महफिल जमती तो लता के साथ आशा भी शामिल होती थी. इस तरह आशा और लता की भी अच्छी बातचीत हो गई. पूनम सभी के सामने देविका की पाककला की खूब तारीफ करती थी. तो ऐसे में
लता एक दिन बोल उठी, “अरे तो कभी हमें भी खिलाओ ना.”
यह सुन कर आशा बोली, “क्यों नहीं, यह भी कोई कहने की बात है.”
फिर एक दिन देविका लता के घर पहुंची, तो शायद लता वहां नहीं थी. दरवाजा रितेश ने ही खोला था. दोनों एकदूसरे को देख कर मुसकरा दिए.
“आओ देविका.”
“आंटी नहीं हैं घर पर क्या?”
“नहीं, कहीं बाहर गई हैं. पर बस अभी आती ही होंगी.”
“यह मैं ने खीर बनाई थी. सो, मैं उन के लिए लाई हूं.”
“बस, आंटी के लिए, मेरे लिए नहीं.”
“नहीं, ऐसा नहीं है. तुम खा लो,” अचकचा कर बोल उठी वह.
उस की हालत देख और उस की बात सुन कर रितेश की हंसी छूट पड़ी.
“अरे, घबराओ मत. बैठो तो सही, मैं पानी लाता हूं.”
देविका ने कटोरा मेज पर रखा और सोफे पर बैठ गई. उस का दिल सीने में इस कदर धड़क रहा था, जैसे उछल कर बाहर आ जाएगा.
तभी रितेश पानी ले आया. देविका ने एक ही सांस में गिलास खाली कर दिया.
“अच्छा, मैं चलती हूं,” कह कर वे तेजी से वहां से निकलने को हुई.
“अरे देविका, सुनो तो… रुको देविका.”
देविका के कदम वहीं जम गए. मुश्किल से उस ने पीछे घूम कर देखा.
रितेश सधे कदमों से देविका के पास पहुंचा.
देविका की पलकें मानो टनों भरी हो उठीं. वे खामोश पर खूबसूरत पल शायद उन दोनों के लिए उन अनमोल मोतियों के समान हो चुके थे, जिन्हें वे सदा सहेज कर रखना चाहते थे. ऐसा लग रहा था जैसे वक्त वहीं थम गया हो.
तभी रितेश ने खुद को संभाला.
“ओ, हां, ठीक है देविका, मम्मी आएंगी तो मैं उन्हें बता दूंगा कि तुम आई थी.”
यह सुन कर देविका की नजरें ऊपर उठीं, तो फिर वह मुसकरा कर वापस लौट गई.
एक दिन रितेश को रास्ते में देविका के पिता मोहन मिल गए थे. रितेश ने उन्हें घर छोड़ने के लिए अपने स्कूटर पर बिठा लिया.
तब बातों ही बातों में उन्होंने रितेश से देविका की पढ़ाई में एक कठिन विषय का जिक्र किया, तो रितेश ने कहा कि वह एक दिन घर आ कर कुछ जरूरी नोट्स दे देगा, जिस से देविका की काफी मदद हो जाएगी.
तब 3-4 बार रितेश ने उस के घर जा कर उस की फाइल पूरी बनवा दी थी. इन्हीं कुछ मुलाकातों
में देविका उस के प्रति बहुत ज्यादा आकर्षित हो चुकी थी. एक दिन उस ने शरारत करते हुए रितेश की
चाय में नमक मिला दिया, सोचा था कि गुस्सा करेगा, पर वह बिना शिकायत करे जब पूरी चाय पी गया, तो देविका की आंखें भर आईं. अपने प्रति ग्लानि से और उस के प्रति प्यार से.
आज शाम को भी रितेश घर आने वाला था, इसलिए देविका ने अपने मनोभाव खत में उतार दिए थे और आज वह एक उपयुक्त मौका देख कर वह खत उसे देना चाहती थी.
शाम को रितेश घर आया, तो आशा ने उसे बिठा कर देविका को आवाज लगाई.
देविका का मुरझाया चेहरा देख कर रितेश असमंजस में पड़ गया.
“बेटा, सवेरे से अपनी फाइल ढूंढ़ रही है, मिल नहीं रही. तो देख कैसे रोरो कर अपनी आंखें सुजा ली हैं. तू जरा समझा, मैं चाय ले कर आती हूं,” आशा रसोई में गई तो रितेश ने पूछा, “कहां खो गई फाइल, क्या कालेज में?”
देविका की आंखों से फिर आंसू बहने लगे. तब धीरे से रितेश ने उस के हाथ पर हाथ रख कर बेहद आत्मीय स्वर में कहा, “रोओ मत, किताब ले आओ. कोशिश कर के दोबारा बना लेते हैं.”
अब देविका से रोका ना गया. उस ने धीमे स्वर में कहा, “आई लव यू. मैं तुम से प्यार करती हूं. तुम्हारे
बिना रह नहीं सकती. तुम भी मुझे चाहते हो ना…?”
रितेश उस की ओर हैरानपरेशान निगाहों से देख रहा था.
“तुम कुछ कहते क्यों नहीं. कुछ तो कहो?”
रितेश के मुंह से कोई बोल ना निकला.
देविका को जैसे उस का जवाब मिल गया. अपनी रुलाई रोकने के लिए उस ने दुपट्टा अपने मुंह में दबा लिया और तेज कदमों से वहां से चली गई.
रितेश अवाक खड़ा रह गया और कुछ पलों बाद वहां से चला गया.
अगले दिन उस ने देविका के घर फोन लगाया. ज्यादातर फोन आशा ही उठाती थी, पर उस दिन देविका ने उठाया.
“हैलो,” देविका की आवाज बेहद उदासीन थी.
“हैलो देविका,” रितेश की आवाज गंभीर थी.
“रितेश तुम…” देविका एक अनजानी सी खुशी से भर उठी.
“देविका, जानता हूं, जो कल तुम पर बीती, जो कल तुम ने महसूस किया, पर देविका, मैं मजबूर हूं या
शायद तुम्हारे निश्चल प्रेम का मैं हकदार नहीं. तुम सुन रही हो देविका?”
“हां, सुन रही हूं,” देविका को अपनी ही आवाज जैसे एक कुएं से आती प्रतीत हुई.
“पापा अब बेहद कमजोर हो चुके हैं. उन्हें उन की जिंदगी की शाम में अब आराम देना है. अनु दी की
जिम्मेदारी से भी मैं मुंह नहीं मोड़ सकता.
“देविका, इस वक्त अपने सुनहरे सपने साकार करने का माद्दा मुझ में नहीं है. मुझे माफ कर देना, शायद मैं ही बदनसीब हूं.कोई बहुत खुशनसीब होगा जिस की जिंदगी में तुम उजाला करोगी…”
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फोन कट चुका था. देविका जड़वत हो कर रह गई. शायद अर्धविक्षिप्त सी हो कर नीचे ही गिर पड़ती, अगर आशा ने उस के
पीछे आ कर उसे संभाला नहीं होता.
“क्या हुआ देविका? तू पथरा सी क्यों गई है?” आशा ने घबराए स्वर में पूछा.
“मम्मी, शायद मैं अब इम्तिहान पास ना कर पाऊं. रितेश के साथ अब दोबारा फाइल तैयार करना मुमकिन नहीं है,” देविका शून्य में देखती हुई बोली.
“अरे बेटे, इस समय इम्तिहान को भूल जा और एक खुशखबरी सुन. पूनम का फोन आया था सवेरे,
उन्होंने तुझे राजन के लिए मांगा है बेटी.”
आशा का स्वर खुशी से सराबोर था.
“फिर आप ने क्या जवाब दिया मम्मी?” यह सुन कर देविका कुछ सुन्न सी पड़ गई थी.
‘यह कोई समय ले कर सोचने की बात है. मैं ने झट से हां कर दी.”
“यह क्या किया आप ने? मैं और राजन हम दोनों बिलकुल अलग हैं. मैं राजन से प्यार नहीं करती. मैं
यह शादी नहीं कर सकती,” देविका ने भर्राए स्वर में कहा.
“अरे, यह प्यारमुहब्बत फिल्मी कहानियों में ही अच्छे लगते हैं, हकीकत में नहीं. और फिर आखिर
क्या कमी है लड़के में, अच्छा परिवार है, राजन उन का इकलौता बेटा है और फिर सब से बड़ी बात,
पहल उन की तरफ से हुई है, और क्या चाहिए.”
देविका जैसे कुछ भी सोचनेसमझने की ताकत खो चुकी थी. सबकुछ जैसे हाथ में सिमटी रेत की
तरह फिसलता जा रहा था.
“देविका, हम तेरे मांबाप हैं. कभी तेरा बुरा नहीं सोच सकते. मुझे पूरा विश्वास है तू वहां बहुत खुश रहेगी. वे लोग तुझे बहुत प्यार देंगे,” आशा उस के सिर पर हाथ फेरती हुई बोली.
उस के बाद कब रस्में निभाई गईं और कब वह दुलहन बन कर राजन के घर आई, यह सब जैसे उस के होशोहवास में नहीं था.
इस दौरान रितेश वहां उपस्थित नहीं था. वह सीधा राजन के घर पहुंचा था.
विदाई के बाद राजन के घर में हुई रस्मों में जब देविका ने रितेश को राजन के साथ हंसतेबोलते देखा, तो उस के दिल में एक हूंक सी उठी.
“क्या कोई एहसास नहीं है इसे मेरी भावनाओं का, मेरे
जज्बातों का, क्या कभी भी एक दिन के लिए, एक पल के लिए भी इस ने मुझे नहीं चाहा. मैं ने तो अपना सर्वस्व प्रेम इस पर अर्पित कर देना चाहा था, पर यह इस कदर निष्ठुर क्यों है, क्या मैं इस की जिम्मेदारियां निभाने में सहभागी नहीं बन सकती थी. इस ने मुझे इस काबिल भी नहीं समझा.
“उफ्फ, अगर यह मेरे सामने रहा तो मैं पागल हो जाऊंगी,” देविका और बरदाश्त ना कर सकी. संपूर्ण ब्रह्मांड जैसे उसे घूमता सा लग रहा था. अगले ही पल वह बेहोश हो चुकी थी.
आंखें खुलीं, तो एक सजेधजे कमरे में उस ने खुद को पाया. वह उठी तो चूड़ियों और पायलों की
आवाज से राजन भी जाग गया, जो उस के साथ ही अधलेटी अवस्था में था.
“अब कैसी हो? यह
रिश्तेदार भी ना, यह रस्में, वह रिवाज, ऐसा लगता है जैसे शादी इस जन्म में हुई है और साथ रहना अगले जन्म में नसीब होगा. सारी रस्में निभातेनिभाते तुम तो बेहोश हो गई थी.”
देविका बिलकुल मौन थी.
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“आराम से लेट जाओ. अभी सुबह होने में कुछ वक्त है. मैं लाइट बुझा देता हूं,” राजन ने प्यार से
कहा और लाइट बंद कर कमरे से बाहर चला गया.
सुबह तैयार हो कर देविका सीधे पूनम के पास रसोई में पहुंची.
“कैसी हो तुम? रात को थकावट की वजह से
तुम्हारी तबीयत ही बिगड़ गई थी,” पूनम ने लाड़ से कहा.
“जी, अब ठीक हूं,” देविका ने धीमे से जवाब दिया, “आप यह रहने दीजिए. मैं करती हूं.”
“अभी तो नाश्ता टेबल पर लग चुका है, तो अब बस यह चाय की ट्रे ले चलो.”
चाय ले कर देविका टेबल पर पहुंची. नवीन और राजन वहां बैठे थे. देविका ने नवीन के पैर छुए, तो
नवीन ने उस के सिर पर हाथ फेर दिया और मुसकराते हुए पूनम से बोले, ”बस उलझा दिया बहू को पहले ही दिन रसोई में. सास का रोल अच्छे से निभा रही हो.”
“अरे, ऐसा नहीं है. बहू नहीं यह तो बेटी है मेरी,” पूनम ने मुसकराते हुए कहा.
“देविका यह सब कहने की बातें हैं. अच्छा सुनो, अब सब से पहले अपने इम्तिहान की तैयारी करना.
मैं तो चाहता था, शादी परीक्षा होने के बाद ही हो, पर यह मांबेटी की जोड़ी कहां मानने वाली थी
भला,” नवीन सहज भाव से बोले.
“जी, पापा,” देविका हलके से मुसकरा के रह गई.
देविका ने पूरा ध्यान पढ़ाई में लगा दिया था. इम्तिहान भी हो गए और देविका अच्छे नंबरों से पास भी हो गई.
तब नवीन और पूनम ने उन दोनों के बाहर जाने का प्रोग्राम बना दिया. ऊंटी की मनमोहक वादियों में भी जब देविका का चेहरा ना खिला तो शाम को राजन ने उस से पूछ ही लिया, “देविका, क्या बात
है? तुम शादी के बाद इतनी चुपचुप क्यों रहती हो? क्या तुम्हें मुझ से कोई शिकायत है?” राजन ने भोलेपन से पूछा.
यह सुन कर देविका कुछ पल उसे देखती रही. इस सब में राजन का क्या दोष है, उस ने तो सच्चे मन
से मुझ से प्यार किया है. क्यों मैं इस के प्यार का जवाब प्यार से नहीं दे सकती. मैं क्यों इसे वही
एहसास करवाऊं, जो मुझे हुआ है. नहीं, मैं इस का दिल नहीं तोड़ सकती. इसे जरूर एक खुशहाल जिंदगी का हक है.
देविका का दिलोदिमाग अब पूरी तरह से स्पष्ट था. राजन का हाथ उस के हाथ पर ही था. उस ने भी राजन के हाथ की पकड़ को और मजबूत करते हुए कहा, “ऐसी कोई बात नहीं है. मैं बहुत खुश हूं.”
देविका के चेहरे पर आंतरिक चमक थी. राजन को काफी हद तक संतुष्टि महसूस हुई और उस के
चेहरे पर एक निश्चल मुसकराहट आ गई. इस के बाद देविका ने राजन के सीने में अपना चेहरा छुपा
लिया.
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अगली सुबह वह बहुत हलका महसूस कर रही थी. शावर के नीचे जिस्म पर पड़ती पानी की फुहारों ने
जैसे उस का रोमरोम खिला दिया था. उस के नए जीवन की शुरुआत हो चुकी थी.
हनीमून से राजन और देविका काफी खुशहाल वापस लौटे. कुछ दिनों बाद रितेश के साथ एक अनहोनी घटना घट गई. एक रात आनंद बाबू की तबीयत काफी खराब हो गई. अस्पताल पहुंचने से
पहले ही उन्होंने दम तोड़ दिया. लता अब वहां रहना नहीं चाहती थी क्योंकि कुछ दिनों से आनंद अनु को बहुत याद कर रहे थे, इसलिए अब वो अनु से मिलने के लिए बेचैन हो उठी थी. उसे अपने
पास बुलाना चाहती थी. इस पर रितेश की बूआ ने कहा कि अभी अनु के लिए माहौल बदलना सही
नहीं है, क्यों ना वे लोग ही अब मकान बेच कर उन के पास आ जाएं. ऐसे हालात में लता को भी यही सही लगा. जल्दी ही रितेश का परिवार वहां से चला गया.
देविका शांत भाव से यह सब घटित होते देखती रही.
इस के बाद राजन और रितेश की दोस्ती सिर्फ फोन पर हुई बातों पर चलती रही और समय के साथ
साथ एक दिन सिर्फ दिल में ही बस गई. शायद रितेश का फोन नंबर बदल चुका था जो राजन के पास नहीं था.
देविका को लगभग डेढ़ वर्ष बाद पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई. अपूर्व बहुत प्यारा था. राजन की जान बसती थी उस में. अपनी तोतली भाषा में जब वो राजन को ‘पापा’ पुकारता था, तो राजन का दिल बल्लियों उछलने लगता था. इस तरह 5 वर्ष बीत गए.
इस बीच बिजनैस की एक जरूरी मीटिंग के लिए एक बार राजन को एक हफ्ते के लिए शहर से बाहर जाना पड़ा.
उस दिन वह वापस आने ही वाला था कि दरवाजे की डोरबेल बजी. दरवाजा देविका ने ही खोला. सामने रितेश खड़ा था. देविका जैसे बुत समान हो गई.
“रितेश…” देविका के पीछे से उसे देख कर पूनम के मुख से तेज स्वर में उस का नाम गूंजा. देविका झट से संभली. वह दरवाजे से एक तरफ हट गई.
रितेश भीतर आते ही पूनम के पैरों में झुका. पूनम ने उसे गले से लगा लिया, दोनों की आंखें भर आईं. ड्राइंगरूम में बैठे दोनों देर तक बातें करते रहे. इस
दौरान देविका रसोई में ही रही. रितेश अपूर्व के साथ खेलने में व्यस्त रहा. नवीन घर आए तो वह भी उसे देख कर बहुत खुश हुए. आनंद बाबू को भी बेहद याद किया नवीन और पूनम ने. तभी दोबारा डोरबेल बजी.
“पापा आ गए, पापा आ गए,” कहता हुआ अपूर्व दरवाजे की ओर भागा. वह गिर ना पड़े, इस के लिए
रितेश उस के पीछे गया. अपूर्व को गोद में ले कर दरवाजा रितेश ने खोला. राजन ही था सामने. एकदूसरे को देखते ही दोनों मौन हो कर रह गए.
कुछ पल यों ही बीत गए. तभी अपूर्व “पापा… पापा…” पुकारने लगा. राजन ने उसे अपनी गोद में ले कर प्यार किया और फिर नीचे उतारा. उस के हाथ में खिलौना था, जिसे देखते ही अपूर्व ने लपक कर वह छीन लिया.
“दादी दादी. देखो, पापा क्या लाए हैं,” अपूर्व पूनम की ओर भाग गया.
राजन और रितेश गले मिल कर जैसे दुनियाजहान को भूल गए. खाने की मेज पर भी उन्हीं की बात चलती रही. देर रात उन दोनों को छोड़ कर सभी सोने चले गए.
“पर यार तू ने अब तक शादी क्यों नहीं की? मैं तो सोचता था कि अब तक तो तू 2-3 बच्चों का बाप बन चुका होगा. कोई पसंद नहीं आई क्या?”
बरतन समेटती देविका के गले में जैसे कुछ अटक सा गया हो.
“अरे, तेरे जैसी किस्मत नहीं है मेरी. हमें तो कोई पसंद ही नहीं करता.”
“क्या कमी है मेरे यार में, वैसे, देविका की कोई छोटी बहन नहीं है, वरना अपनी आधी घरवाली को
तेरी पूरी बनवा देता. क्यों देविका,” यह कह कर राजन खुद ही हंस पड़ा.
देविका बरतन समेट कर रसोई में चली गई.