“राजकुमारी, वापस आ गई वर्क फ्रौम होम से? सुना तो था कि घर पर रह कर काम करते हैं पर मैडम के तो ठाठ ही अलग हैं, हिमाचल को चुना है इस काम के लिए.” बूआ आपे से बाहर हो गई थी मिट्ठी को अपनी आंखों के सामने देख कर.

“अपनाअपना समय है, बूआ. कोई अपनी पूरी ज़िंदगी उसी घर में बिता देता है जहां पैदा हुआ हो और किसी को काम करने के लिए अलगअलग औफिस मिल जाते हैं, वह भी मनपसंद जगह पर,” मिट्ठी ने इतराते हुए बूआ के ताने का ताना मान कर ही जवाब दिया.

बूआ पहले से ही गुस्से में थी, अब तो बिफर पड़ी, “सिर पर कुछ ज्यादा चढ़ा दिया है, तुझे. पर मुझे हलके में लेने की गलती मत करना. तेरी सारी पोलपट्टी खोल दूंगी भाई के सामने. नौकरी ख्वाब बन कर रह जाएगी. मुंह पे खुद ही पट्टी लग जाएगी.”

“आप से ऐसी ही उम्मीद है, बूआ. लेकिन कोई भी कदम उठाने से पहले सोच लेना कि मैं मां की तरह नहीं हूं, जो तुम्हारे टौर्चर से तंग आ कर अपनी जान से चली गई.”

बूआ मिट्ठी को मारने के लिए दौड़ी ही थी कि कुक्कू बीच में आ गया. उन्हें दोनों हाथों से पकड़ कर अंदर ले गया. तब तक गुरु भी आ गया था. वह मिट्ठी को उस के कमरे तक छोड़ कर आया. मिट्ठी आंख बंद कर के अपनी कुरसी पर बैठ गई. जो उस ने जाना था उस से भक्ति बूआ के लिए उस की नफ़रत और भी बढ़ गई थी. बचपन से ही उसे बूआ से नफ़रत थी. वजह, उन का दोगला व्यवहार. कुक्कू और गुरु को हमेशा प्राथमिकता देती. घर का कोई भी काम हो, मिट्ठी से करवाती और हर बात में उसे ही पीछे रखती. घर में खाना उन दोनों की पसंद का ही बनता था. मिट्ठी का कुछ मन भी होता तो उस में हज़ार कमियां बता कर बात को टाल दिया जाता. मिट्ठी को समझ नहीं आता था कि वह अपनी ससुराल में न रह कर उन के घर में क्यों रह रही है. सब के सामने उन का बस एक ही गाना था-

‘मां तो छोड़ कर चली गई अपने दोनों बच्चों को. वह तो मेरी ही हिम्मत है जो अपना घरबार छोड़ कर यहां पड़ी हुई हूं इन की परवरिश के लिए.’

‘अब तो हम बड़े हो गए हैं, अब तो अपना घर संभालो जा कर.’ मन ही मन मिट्ठी बुदबुदाती. घर में सबकुछ बूआ की मरजी से ही होता आ रहा था. मिट्ठी और उस का छोटा भाई कुक्कू उन की हर बात मानते आ रहे थे. बूआ का बेटा गुरु भी कुक्कू का हमउम्र था, इसलिए दोनों साथ ही रहते थे. लेकिन मिट्ठी को अब घर में रहना और बूआ के कायदेकानून से चलना बिलकुल पसंद नहीं आ रहा था. यही कारण था कि उस ने कालेज पूरा होते ही नौकरी ढूंढ ली थी. पैकेज ज्यादा नहीं था. नौकरी दूसरे शहर में थी. छह महीने होतेहोते कंपनी में उस की अच्छी साख बन गई थी. घर आने का उस का मन ही नहीं होता था. इस बार पापा से ज़िद कर के उस ने हिमाचल वाले फ्लैट में रहने का मन बनाया. वर्क फ्रौम होम ले लिया. कुक्कू को जैसे ही भनक लगी, तुरंत उस के पास आया.

“देखो दीदी, मैं जानता हूं, तू हिमाचल क्यों जा रही है. मां के बारे में जानने का मेरा भी उतना ही मन है जितना तुम्हारा. बस, मैं कभी दिखाता नहीं हूं. मेरी भी अब छुट्टियां हैं. मैं भी वहीं पर कोई इंटर्नशिप कर लूंगा.”

मिट्ठी को कुक्कू की बात सही लगी और उसे साथ ले जाने को तैयार हो गई. गुरु को उस के पापा ने अपने पास बुला लिया था, इसलिए दोनों भाईबहन अपनाअपना सामान ले कर रवाना हो गए. बूआ अपने बेटे गुरु को उन के साथ भेजना चाहती थी लेकिन पति को मना नहीं पाई. भौंहें तान कर मिट्ठी और कुक्कू को विदा किया.

“गगन, तूने भेज तो दिया हिमाचल पर कोई बीती बात बच्चों के सामने आ गई तो क्या होगा ? उसी फ्लैट में रुकने की क्या पड़ी थी, किसी होटल में भी तो रुक सकते थे. तुम तो सब कुछ भूल गए हो.” बूआ ने लगभग डांटते हुए अपने भाई गगन को अपनी बात समझाने की कोशिश की.

“दीदी, 20 साल बीत चुके हैं उस घटना को. हम ने कोई जुर्म नहीं किया है जो छिपे रहेंगे और बच्चों को उस फ्लैट से दूर रखेंगे. वे दोनों उसी फ्लैट में पैदा हुए थे. अपनी जन्मभूमि इंसान को अपनी ओर खींच कर बुला ही लेती है. आप डरिए मत. सब ठीक होगा.” गगन ने अपनी बड़ी बहन को समझाने की कोशिश की.

“मिट्ठी अब कब तक ऐसे ही बैठी रहेगी? चल उठ, नहा कर आ जा. नाश्ता ठंडा हो गया है. हम दोनों कब से तुम्हारा इंतज़ार कर रहे हैं? मुझे भी सुनना है तुम लोग कैसे बिता कर आए हो मेरे बिना पूरा एक महीना.” गुरु मिट्ठी को बाथरूम भेज कर ही कमरे से बाहर गया.

“पापा मेरी कंपनी का एक औफिस शिमला में भी है. मैं ने सोचा है वहीं पर ट्रांसफर ले लेती हूं. अपना फ्लैट तो है ही वहां पर,” शाम को पापा घर आए तो मिट्ठी ने प्रस्ताव रखा.

“देखो बेटा, कुछ दिन वहां जा कर रहना दूसरी बात है और वहीं ठहर जाना बिलकुल अलग. तुम जहां हो, अभी वहीं पर रह कर काम करो,” पापा की स्पष्ट न थी.

“पापा, आप ने भी तो सालों वहां पर नौकरी की है. अपना फ्लैट बंद पड़ा है, मैं रहूंगी तो उस का अच्छे से रखरखाव भी हो जाएगा. फिर मेरा मन है वहां जा कर रहने का. प्लीज, एक बार मेरी तरह सोच कर देखो न,” मिट्ठी ने डरतेडरते अपनी बात दोहराई.

“तुझे सीधी तरह से कोई बात क्यों नहीं समझ आती है, लड़की? गगन वैसे ही उन बातों को याद करके परेशान हो जाता है, तुम हो कि खुद के अलावा किसी के बारे में सोचती ही नहीं हो. जा कर अपना काम करो,” बूआ ने अपने लहजे में मिट्ठी को डांटा. पापा के सामने मिट्ठी चुप रह जाती थी लेकिन आज उसे गुस्सा आ गया.

“आप से कौन बात कर रहा है, बूआ? पापा को ही जवाब देने दो. हिमाचल के नाम से इतना डर क्यों जाती हो? कहीं आप के कहने से ही तो पापा वापस नहीं आए वहां से, आप को इसी घर में जो रहना था?” गुस्से में मिट्ठी बोलती चली गई.

गुरु और कुक्कू आ कर उसे अपने साथ ले गए. घर में क्लेश पसर गया. उस रात किसी ने भी खाना नहीं खाया. गगन का गुस्सा शांत हुआ तो बेटी पर प्यार उमड़ पड़ा और उस के कमरे में आ गए. मिट्ठी लैपटौप पर कुछ काम कर रही थी. उसे देख कर गगन जाने के लिए वापस मुड़े, तभी बेटी ने आवाज़ लगाई.

“आइए पापा, मेरा काम तो पूरा हो गया है. बस, कुछ फोटो देख रही थी हिमाचल की.” गगन मिट्ठी के पास दूसरी कुरसी पर बैठ कर फोटो देखने लगे.

“यह फोटो तुम्हे कहां से मिली?” गगन, मिट्ठी, कुक्कू और नीतू की फोटो थी. मिट्ठी ने आश्चर्य से पापा को देखा, बोली, “फ्लैट के स्टोररूम में कुछ सामान पड़ा हुआ था. यह फोटो उस समान में ही थी.” मिट्ठी ने बताया तो गगन ने आगे पूछा, “बाकी सामान कहां है?”

“इस में है, पापा. आपकी और मम्मी की बहुत सारी यादें. मैं अपने साथ उठा लाई. मिट्ठी ने एक थैला गगन के हाथ में थमा कर दरवाज़ा बंद कर दिया. उसे डर था कि पापा को उन के कमरे में नहीं पाएंगी, तो भक्ति बूआ यहीं धमक पड़ेंगी. पापा जितनी देर घर में रहते हैं, उन की नज़र उन्हीं पर रहती है बूआ की, विशेष रूप से जब मिट्ठी आसपास हो तब. पापा उदास हो गए थे उन फोटो को देख कर, मम्मी के छोटेमोटे सामान को देख कर.

“कितना समझाता था कि छोटीछोटी बातों को दिल से लगाना ठीक नहीं लेकिन उसे तो बात की तह तक जाना होता था. क्यों कही, किस ने कही, क्या जवाब देना चाहिए था, बस, इसी में घुलती रहती थी.”

मिट्ठी को अच्छा लगा. बड़े दिनों बाद पापा ने मम्मी के बारे में खुल कर कुछ बोला था. पर अचानक पापा खड़े हो गए. “बेटा, तुम अपना काम करो, मैं चलता हूं. तुम्हारी बूआ ने दूध बना कर रख दिया होगा. उस के भी सोने का टाइम हो गया है. दिनभर काम में लगी रहती है.” दरवाजा बंद कर के पापा मिट्ठी के कमरे से बाहर निकल गए.

बूआ के लिए पापा की चिंता नई बात न थी. उन के एहसान में दबे हुए थे, पापा. उन के बच्चों की परवरिश कर के बूआ ने उन पर बड़ा एहसान चढ़ा दिया था. मिट्ठी ने सामान वापस समेट कर रख दिया. किसी और को पता चल जाता तो बात का बतंगड़ बन जाता. मां के बारे में घर में कोई भी बात नहीं करता था. कुक्कू के ऊपर बूआ अपना अतिरिक्त प्यार लुटाती थी, इसलिए उसे मां की कमी बस तभी महसूस होती जब मिट्ठी को रोते हुए देखता. मिट्ठी जब भी घर में होती उसे मां की कमी हर पल महसूस होती. बचपन के दिन याद आ जाते. मां कैसे हर जगह उसे साथ रखती थीं.

‘लड़के की इतनी परवा नहीं है जितनी लड़की की है. दिनभर इसी के चोंचलों में लगी रहती है. पढ़लिख कर दिमाग खराब हो जाता है छोरियों का. आखिर वंश तो लड़के से ही चलेगा. लड़की को तो एक दिन अपने घर चली जाना है.’ बूआ के ऐसे ताने से मां आहत होती लेकिन हंस कर जवाब देती.

‘दीदी, आप और मैं भी तो लड़कियां ही हैं. और फिर आप के घर का तो रिवाज़ है. आप अपनी ससुराल नहीं गईं तो मिट्ठी को भी यहीं रख लेंगे.’ मां के जवाब से बूआ आपे से बाहर हो जाती.

‘मेरी क्या रीस करनी है? मेरी तो मां बचपन में ही मर गई थी. गगन को अपने हाथों से पाला है मैं ने. कोई बूआ, चाची या ताई भी नहीं थी जो संभाल लेती. गगन ही नहीं जाने देता है. रहो अपने घर और ससुर की भी रोटी सेंको. मैं तो कल ही चली जाऊंगी अपने घर.’

मां फिर हंस पड़ती. ‘नाराज़ क्यों होती हो, दीदी? आप के भाई ही मुझे साथ ले कर गए हैं. मेरा तो मन भी नहीं लगता वहां. यहां छोड़ेंगे तो ससुरजी को रोटी नहीं, सब्जी भी खिलाऊंगी. रिटायर हो गए हैं, खुद ही सब काम करते हैं फिर भी. मुझे अच्छा नहीं लगता है.’

बूआ बात को पकड़ कर अपने पक्ष में कर लेती. ‘तो इसीलिए तो अपना घरबार छोड़ कर पड़ी हूं यहां. तुम अपना घर संभाल लेती तो गगन क्यों मुझे रोके रखता?’ कुछ भी कर के मां के सिर पर हर बात पटक दिया करती थी, बूआ.

कई सालों बाद इस बार नाना मिट्ठी के सामने ही आए. मां के जाने के बाद हर साल नाना दोनों नातियों से मिलने बेटी की ससुराल आते थे. न कोई उन से बात करता था और न ही कोई उन के पास बैठता था. अकेले आते थे और दोनों बच्चों को उन के हिस्से का चैक दे कर चले जाते थे.

नाना ने अपनी वसीयत में अपने बेटे और बेटी को बराबर का हिस्सा दिया था. सालभर की कमाई का आधा हिस्सा बेटी के दोनों बच्चों को दे जाते थे उस के जाने के बाद.

‘कितना फजीता किया था हमारे परिवार का इस आदमी ने. अब लाड़ बिखेरने आता है, बच्चों पर. इस की बेटी गई तो पुलिस ले कर गया था फ्लैट पर. अखबार में भी खबर दी कि मार दिया मेरी बेटी को,’ नाना चले गए तो बूआ का बड़बड़ाना शुरू हो गया.

“वे हमारे नाना हैं, बूआ. उन के बारे में ऐसा सोचना ठीक नहीं,” कुक्कू ने बोला तो बूआ ऐसे शुरू हुई जैसे इंतज़ार ही कर रही थी.

“तेरे दादा और पापा को जेल की हवा खानी पड़ती. वह तो तेरी मां की मैडिकल जांच में नहीं निकला कि उस को मारा है किसी ने.” मिट्ठी चाहती थी कि बूआ और भी कुछ बोल दे. “आप तो तब फ्लैट पर ही थी बूआ. पूजा भी आप ने ही रखवाई थी और पंडित को भी आप ही ले कर गई थी. आप को तो सच पता था, फिर आप ने क्यों छिपाया यह सब.” बूआ आज़ पहली बार डर अपने चेहरे पर छिपा नहीं पाई.

“तुझे किस ने बताया यह सब?” मिट्ठी इसी सवाल का जवाब देना चाहती थी.

“आप के पंडित ने, उन सब लोगों ने जो पूजा में आए थे, पड़ोस वाले.” बूआ सीधे मिट्ठी के सामने आ कर खड़ी हो गई.

“इसीलिए मैं नहीं चाहती थी कि तू जाए वहां पर. यही सब कर के आई है वर्क फ्रौम होम के बहाने.” बूआ के हर शब्द से गुस्सा टपक रहा था.

“मम्मी, पापा आए हैं. थोड़ा ध्यान उन पर दो. अकेले बैठे हैं बैठक में.” गुरु बूआ को वहां से ले गया और मिट्ठी भी पीजी वापस जाने के लिए अपना सामान पैक करने चली गई. गुरु 2 साल से खाली घूम रहा था. छोटीमोटी नौकरी उसे समझ नहीं आती थी और बड़ी के लायक न तो उस में काबिलीयत थी और न ही उस ने कोशिश की. जैसेतैसे इंजीनियरिंग पास की थी.

“मां, मुझे उसी कंपनी में नौकरी मिल गई है जिस में मामा काम करते थे.” गुरु ने घोषणा की तो बूआ रसोई से लड्डू का डब्बा उठा कर ले आई. कुक्कू ने लड्डू खा कर डब्बा उन के हाथ से ले लिया.

“बूआ, तुम खा लो, फिर बैठक में ले जा रहा हूं और वहां से बच कर नहीं आएंगे.” बूआ रोकती रह गई पर कुक्कू डब्बा उठा कर भाग गया. मिट्ठी बिना कुछ कहे ही घर से निकल गई. बूआ ने रोकने की कोशिश नहीं की. पीजी में जाते ही बिस्तर पर लेट गई. हमेशा की तरह मां याद आ रही थी.

‘एक हफ्ता तुम्हारे बिना कैसे रहूंगी मां?’ मां पहली बार कुक्कू को ले कर नाना के घर गई तो मिट्ठी को पापा ने अपने पास ही रोक लिया था. रोतेरोते मुंह से निकल गया था मिट्ठी के. बाथरूम में चली गई मुंह धोने के लिए जिस से पीजी की बाकी लड़कियों को शक न हो. हर बार घर से आ कर एकदो दिन इसी तरह परेशान रहती थी मिट्ठी.

चार दिनों बाद ही पापा का फोन आया, देख कर मिट्ठी सोच में पड़ गई. पहली बार में तो फोन उठाना ही भूल गई. दूसरी बार जब आया तो उठाया, ‘बेटा, तुम्हारी भक्ति बूआ एक पूजा करवाना चाहती हैं. शिमला वाला फ्लैट तुम्हारी मां के जाने के बाद से बंद ही है. अब गुरु वहीं रहेगा, इसलिए पूजा कर के उसे पवित्र करवाना चाहती हैं. अगले रविवार को तुम भी थोड़ा समय निकाल लेना.”

“पापा, आप को पता है, मां जब से गई हैं, विश्वास उठ गया है मेरा पूजापाठ से.” मिट्ठी ने स्पष्ट किया.

“जानता हूं, बेटा. पर हो सकता है यह पूजा तुम्हारे टूटे विश्वास को जोड़ने में कामयाब हो जाए. ऐसा करते हैं, इस पूजा को तुम ही करवाओ. पंडितजी से तो मिल ही चुकी हो.” मिट्ठी समझ गई, वह मना नहीं कर पाएगी पापा को. तभी एक विचार उस के दिमाग में कौंधा.

“ठीक है पापा, कोशिश करती हूं. फ्राइडे तक आप को बताती हूं. भक्ति बूआ को बोलना अब उन के टैंशन के दिन गए. पंडितजी से मैं खुद ही बात कर लूंगी.”

पापा की खुशी फ़ोन पर ही फूट पड़ी. “अब उस का एहसान चुकाने का समय आ गया है. खुद को भुला कर उस ने हमारे घर को संभाला है. तुम ने यह ज़िम्मेदारी ले कर मेरे दिल का बोझ हलका कर दिया है.” पापा फ़ोन रखने ही वाले थे कि मिट्ठी ने कहा, “पापा, मैं चाहती हूं कि इस पूजा में नाना को भी बुलाऊं. मां के जाने के बाद नानी भी चली गईं. वे भी अकेले ही हैं. दादाजी भी गांव में चले गए हैं उस के बाद. प्लीज, उन दोनों को भी बुलाने दीजिए.”

कुछ देर तक पापा ने कुछ नहीं कहा लेकिन फ़ोन नहीं काटा. फिर यह कहते हुए फ़ोन रखा, “तुम कहती हो तो मना कैसे कर सकता हूं. बुला लो. भक्ति को मैं समझा लूंगा.”

मिट्ठी ने कमरे से बाहर आ कर आसमान की ओर देखा. उसे महसूस हुआ जैसे मां वहीं से मुसकरा कर कह रही है. “आखिर तुम ने रास्ता निकाल ही लिया सच से परदा उठाने का.” मिट्ठी केवल निर्देश दे रही थी और कुक्कू उस का पालन कर रहा था. पापा ने इस बार चौका लगाया था. “भक्ति दीदी, तुम इतने सालों से सब संभालती आ रही हो, अब मुझे भी कुछ करने का अवसर दो. इस बार पूजा की पूरी ज़िम्मेदारी मैं संभाल लूंगा. आजकल वैसे भी सब काम मोबाइल से हो जाते हैं. लंचटाइम में औफिस में बैठ कर सब प्रबंध कर दूंगा.”

भक्ति सकपका कर बोली, “गगन, क्या तू भी यही मानता है कि मेरी पूजा के कारण ही नीतू की जान गई?”

गगन ने दीदी का हाथ पकड़ लिया. “ऐसा कुछ नहीं है, दीदी. तुम ने मिट्ठी और कुक्कू के लिए कितनाकुछ किया है. मैं भी चाहता हूं कि गुरु को नौकरी मिलने और वहां सैट होने में मदद कर पाऊं. बस, इसीलिए आप को तनाव नहीं देना चाहता हूं.”

भक्ति का दिल भाई की बात मानने से इनकार कर रहा था लेकिन उसे मना भी नहीं कर सकती थी. “ठीक है, गगन. मुझे तो इस बात की खुशी है कि तू पूजा के लिए तैयार हो गया है. कितने साल हो गए, घर में कोई शुभ काम नहीं हुआ.”

“अब होगा दीदी और आप को परेशान भी नहीं होना पड़ेगा. बच्चे अब बड़े हो गए हैं. उन को भी ज़िम्मेदारी लेना सीखना चाहिए न. बस, इस बार उन की ही सहायता लूंगा.”

निश्चित तारीख पर सब लोग शिमला के उस फ्लैट में इकट्ठे हो गए. दादाजी और नाना को कुक्कू ने मना लिया. सब काम तैयार हो गया तो मिट्ठी भी आ गई. पूजा शुरू हुई. पंडितजी ने हवन और आरती करने के बाद जैसे ही जाने को कहा, भक्ति बूआ ने आदतन उन्हें रोक लिया.

“पंडितजी, गुरु की कुंडली देख कर बताइए कि क्या सावधानियां रखनी हैं और कुछ ऊंचनीच हो जाए तो क्या उपाय होगा?”

पंडितजी ने काफ़ी देर तक कुंडली को देख कर कुछ गणना की, फिर बोले, “गुरु मामा की छोड़ी हुई नौकरी पकड़ रहा है. उन्हीं के घर में रहेगा तो इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि बहूरानी की आत्मा इन से संपर्क करे.” भक्ति बूआ ने तुरंत गुरु की कुंडली पंडितजी के हाथ से ले ली. लेकिन उन्होंने अपनी बात जारी रखी. “आज़ की पूजा में ही अगर कुछ मंत्र और पढ़ लिए जाएं और सच्चे दिल से बहूरानी को याद कर के उन से माफ़ी मांगी जाए तो बला टल सकती है.”

सब भक्ति बूआ की ओर देख रहे थे.

“तो जो सही है वो करो, मैं कौन सा मना कर रही हूं. इन बातों का कुछ मतलब थोड़े ही है.” बूआ उठ कर जाना चाहती थी लेकिन फूफाजी ने बिठा दिया.

“पंडितजी, जो बाकी है उस को भी पूरा कीजिए. बेटे को मुश्किल से रोज़गार मिला है, उस में कोई अड़चन न आए, उस का उपाय आप शुरू कीजिए.”

पंडितजी ने मंत्र पढ़ने शुरू किए. सबसे पहले नानाजी बोले. “नीतू बेटा, अगर तू सुन रही है तो मुझे माफ़ करना. मैं समय से तुम्हारी चिट्ठी नहीं पढ़ सका. तुम बच्चों को ले कर मेरे पास आना चाहती थीं लेकिन तुम्हारा खत मुझे तुम्हारे जाने के बाद मिला.”

अब पापा भी चुप नहीं रहे. पहली बार उन्होंने बच्चों के सामने अपनी पत्नी को ले कर कुछ कहा. “मैं भी खतावार हूं, नीतू. तुम्हारे मना करने पर भी मैं ने अपने बिजनैस के जनून के कारण नौकरी छोड़ी और तुम्हें तुम्हारे घर भी नहीं जाने दिया. मुझे डर था कि ससुराल में मेरी साख कम हो जाएगी.”

अब पंडितजी ने बोल कर सब को चौंका दिया. “हो सके तो माफ़ कर देना, बहूरानी. मैं नहीं जानता था कि तुम पूरे महीने व्रत कर रही थी. मैं ने ही भक्तिजी के कहने पर यह घोषणा की थी कि तुम्हारे कुंडली दोष के कारण ही गगन की नौकरी गई है और व्यवसाय भी शुरू नहीं हो पा रहा है. मुझे पता होता तो तुम्हें लगातार 3 दिन निर्जल, निराहार व्रत का उपाय न बताता.” सब की नजर भक्ति की ओर थी.

फूफाजी ने उन्हें कुछ बोलने के लिए हाथ से इशारा किया. भक्ति बूआ रोते हुए बोली, “नीतू, हो सके तो मुझे भी माफ़ करना. पंडितजी से बात कर के मैं ने ही वह पूजा रखी थी. मेरे कहने पर ही उन्होंने कुंडली देखी थी. दूध पीते बच्चे की मां ऐसी कठिन विधि नहीं अपना पाएगी यह जानते हुए भी मैं ने तुम पर दबाव बनाया.” बूआ बोल ही रही थी कि मिट्ठी बीच में बोल पड़ी.

“मां को 3 दिनों से उलटीदस्त हो रहे थे, फिर भी वे पूजा के काम में लगी रहीं और अपनी दवाई भी नहीं ले पाईं व्रत करने के कारण. अगर दवा लेतीं तो उन को हार्टअटैक न आता.”

आज़ पहली बार भक्ति बूआ ने मिट्ठी को घूर कर नहीं देखा.

नाना उठ कर खड़े हो गए. “बस, यही जानने के लिए मैं बेचैन था. अगर सही बात पता चल जाती तो मैं पुलिस के पास कभी न जाता. मेरी बेटी अचानक चली गई, अपनी नातियों से रिश्ता क्यों तोड़ता.”

कुक्कू ने नाना को पकड़ कर बिठा दिया और खुद भी उन के पास ही बैठ गया. फूफाजी ने भक्ति बूआ को वहां से उठा दिया और सामान ले कर चलने लगे. आज़ गगन ने उन्हें नहीं रोका.

बूआ खुद ही गगन के पास आई. “हो सके तो माफ़ कर देना, मेरे भाई. इसी एक गलती को सुधारने के लिए अपने घर नहीं गई.”

“पर मुझे तो सच बता देतीं, दीदी. जीनामरना अपने हाथ में नहीं है लेकिन मेरे विश्वास का कुछ तो मान रखतीं आप.”

भक्ति बूआ साड़ी के पल्लू में मुंह छिपा कर रो रही थी. फूफाजी ने आ कर पापा को सांत्वना दी.

“इस गलती की सज़ा अब मिलेगी इस को. अब यह तब तक तुम्हारे घर नहीं आएगी जब तक तुम बुलाओगे नहीं.” दादाजी उठने की कोशिश कर रहे थे लेकिन मिट्ठी ने उन्हें रोक दिया.

“भक्ति को विदा कर देता हूं, बेटा. शादी के 26 साल बाद ससुराल जा रही है. अब तो तू सब संभाल लेगी. उस को जाने दो.”

कुक्कू पंडितजी की ओर देख कर मुसकरा दिया. उन के प्रायश्चित्त पाठ ने वह कर दिखाया था जो सालों से कोई नहीं कर पाया था.

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