आने वाले समय में अगर आप कैंसर, एड्स या ब्रेन ट्यूमर जैसी लाइलाज बीमारी के शिकार होंगे तो आप बेखौफ हो कर डाक्टर के पास जाएंगे और उसे अपनी बीमारी के बारे में बताएंगे. डाक्टर भी आप की बात शांति से सुनेगा और आप को कुछ दिनों के लिए अस्पताल में एडमिट हो जाने की सलाह देगा. आप बड़े सुकून से घर की ओर रवाना होंगे और घर वालों को डाक्टर के साथ हुई बातचीत के बारे में बताएंगे. घर वालों को आप की बीमारी के बारे में मालूम है लेकिन वे बिलकुल शांत हैं, उन्हें मालूम है कि यह कोई बड़ी बात नहीं. आप एक छोटे से औपरेशन के बाद पूरी तरह ठीक हो जाएंगे.
जी हां, यह सब शेखचिल्ली की खयाली बातें नहीं बल्कि आने वाले सालों में मैडिकल साइंस की तसवीर है, जिस में आज के दौर की लाइलाज बीमारियों को बेहद आसान इलाज से खत्म किया जा सकेगा. यह सब मुमकिन होगा और इसे मुमकिन बनाने में विशेष भूमिका होगी ‘स्टैम सैल’ की. जी हां, हम उन्हीं स्टैम सैल की बात कर रहे हैं जिन के बारे में पिछले कई सालों से कई किस्म के समाचार और उन से जुड़ी खोजों की खबरें सुनने और देखने को मिलती रही हैं.
स्टैम सैल का योगदान अब मैडिकल साइंस के क्षेत्र में सिर्फ खबरों तक ही सीमित नहीं रह गया है बल्कि इस से अंगों के प्रत्यारोपण संबंधी कामों को सफलतापूर्वक अंजाम दिया जाने लगा है.
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स्टैम सैल के जरिए मैडिकल साइंस के क्षेत्र में कई ऐसे कामों को अंजाम दिया जाने लगा है जिन के बारे में आज से तकरीबन 50 वर्ष पहले तक कल्पना भी नहीं की जा सकती थी. स्टैम सैल से अब कटे हुए अंगों को दोबारा विकसित किया जा रहा है.
अमेरिका में कई मैडिकल संस्थानों में ऐसे प्रयोग किए गए हैं जिस में किसी दुर्घटना में अपना हाथ या पैर खो चुके लोगों को स्टैम सैल के जरिए नया जीवन दिया गया. इन लोगों के हाथ और पैर दोबारा विकसित किए गए. सुनने में यह सब कहानी जैसा ही लगता है लेकिन इस में पूरी सचाई है. भारत में भले ही स्टैम सैल को ले कर इस स्तर पर काम न हो रहा हो लेकिन यहां भी स्टैम सैल से ऐसेऐसे प्रयोग हो रहे हैं जिन्हें मैडिकल साइंस की दुनिया में किसी चमत्कार से कम नहीं माना जा सकता है.
अब 35 वर्षीय अभिषेक शर्मा को ही ले लें. 24 वर्ष की उम्र में कंजेक्टिवाइटिस से पीडि़त हुए अभिषेक की दोनों आंखों की रोशनी चली गई. जवानी की राह पर आगे बढ़ रहे अभिषेक की तो जैसे पूरी दुनिया ही अंधकारमय हो गई. जीने की ख्वाहिश छोड़ चुके अभिषेक न जाने कितने बड़े और नामी नेत्र विशेषज्ञों के पास भटकते रहे लेकिन कहीं से भी उन्हें उम्मीद की किरण नजर नहीं आई. हर तरह से उम्मीद खो चुके अभिषेक से उन के किसी नजदीकी ने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, दिल्ली (एम्स) में भी दिखाने की सलाह दी. अभिषेक पहले तो निराशा के कारण कहीं भी जाने को राजी नहीं हुए लेकिन घर वालों के दबाव के चलते उन्हें एम्स जाना पड़ा. एम्स के डाक्टरों ने अभिषेक को स्टैम सैल डिपार्टमैंट में भेज दिया. अभिषेक के रेटिना की अच्छी तरह जांचपड़ताल के बाद उन्हें इस बात का भरोसा दिलाया गया कि वे एक बार फिर से देख सकेंगे और जल्द ही यह सच भी हो गया. स्टैम सैल के जरिए अभिषेक के कौर्निया को पुनर्जीवित किया गया. स्टैम सैल से पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुके कौर्निया को पुनर्जीवित करने की प्रक्रिया को अंजाम देना एम्स के लिए कोई नई बात नहीं थी.
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एम्स की ही तरह हैदराबाद के एलवी प्रसाद संस्थान ने इस तरह के सैकड़ों मामलों को सफलतापूर्वक हल किया है. स्टैम सैल के जरिए आंखों की रोशनी लौट आना तो बहुत छोटी बात है. देश में स्टैम सैल से हृदय प्रत्यारोपण जैसे जटिल काम को भी बड़ी आसानी से अंजाम दिया जा रहा है.
1960 में जब अर्नेस्ट ए मैक्यूलोच और जेम्स ई टिल ने टोरंटो यूनिवर्सिटी में अपने शोध के दौरान स्टैम सैल के गुणों की पहचान की, उस दौरान किसी ने यह सोचा भी नहीं होगा कि स्टैम सैल मैडिकल साइंस के लिए किसी वरदान से कम साबित नहीं होगी.
इस समय पूरी दुनिया में स्टैम सैल यानी कि वंश कोशिकाएं मानव शरीर के लिए किसी इंजीनियर की तरह काम करती हैं. ये न सिर्फ शरीर में हुई टूटफूट को दुरुस्त करने की क्षमता रखती हैं बल्कि इन से पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुके अंगों को सही करने के साथसाथ जरूरत पड़ने पर नए अंगों का निर्माण भी किया जा सकता है. इन्हें शरीर की गुप्त जैविक सुधार व्यवस्था का काम करने योग्य माना जाता है. ये ऐसी सुपर मैकेनिक हैं, जिन के पास हर वह चीज है जिस की जरूरत मानव शरीर को नया बनाने के लिए पड़ सकती है.
स्टैम सैल से इतनी बीमारियों का इलाज होने लगा है कि इसे मैडिकल साइंस के क्षेत्र में क्रांति के रूप में देखा जा रहा है.
इस समय भारत में मधुमेह, हृदय व स्नायु संबंधी विकार, जले हुए अंग, घाव, गठिया से ले कर आंख और लिवर संबंधी विकारों की चिकित्सा के लिए स्टैम सैल ट्रीटमैंट का प्रयोग किया जा रहा है. लेकिन दुनिया के अन्य देशों जैसे अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, चीन और आस्ट्रेलिया में शोधार्थी स्टैम सैल से कैंसर और ब्रेन ट्यूमर जैसी लाइलाज बीमारियों का इलाज खोज निकालने के बेहद करीब पहुंच चुके हैं.
कैंसर का इलाज करने के लिए हार्वर्ड मैडिकल स्कूल के शोधकर्ताओं ने कुत्ते पर प्रयोग किया. ब्रेन कैंसर से पीडि़त कुत्ते के दिमाग में वयस्क स्टैम सैल इंजैक्ट कराई गई. सैल के इंजैक्ट कराने के थोड़े ही समय बाद कुत्ते में ब्रेन कैंसर के लक्षणों में कमी नजर आने लगी.
ब्रेन कैंसर एक ऐसी बीमारी है जो बहुत तेजी से इंसान को अपनी चपेट में लेती है और थोड़े ही समय में उसे मौत की नींद सुला देती है. ब्रेन कैंसर पर अपने शोध के दौरान वैज्ञानिकों ने पाया कि प्रभावित हिस्से में ह्यूमन न्यूरल स्टैम सैल इंजैक्ट करने के कुछ ही दिनों बाद वंश कोशिकाएं प्रभावित हिस्से में फैल जाती हैं. कैंसर से पीडि़त हिस्से में स्टैम सैल ‘साइटोसाइन डीमाइनैस’ नाम का एंजाइम उत्पन्न करती हैं. यह एंजाइम नौन टौक्सिक प्रोड्रग का निर्माण करता है. यह ड्रग कैंसर वाले हिस्से को 81 प्रतिशत तक नष्ट कर देती है. यह स्टैम सैल कैंसर की कोशिकाओं को खत्म करने का काम करती है. अभी इस तरह के प्रयोग सिर्फ शोध का ही हिस्सा बने हुए हैं लेकिन उम्मीद की जा रही है कि कुछ ही सालों के भीतर हर प्रकार के कैंसर का सफल इलाज स्टैम सैल से संभव हो सकेगा.
ब्रेन स्ट्रोक और दिमाग से जुड़ी कई लाइलाज बीमारियों को जड़ से खत्म करने के लिए स्टैम सैल की मजबूत भूमिका जल्द ही हमारे सामने होगी. दिमागी बीमारियों की चपेट में आने के बाद व्यक्ति के दिमाग में मौजूद न्यूटोन को सब से ज्यादा नुकसान पहुंचता है. एक स्वस्थ दिमाग में न्यूरल स्टैम सैल होती हैं. ये सामान्य स्टैम सैल की संख्या को नियंत्रित करने के लिए कई हिस्सों में बंट जाती हैं. इस समय स्टैम सैल से पार्किंसन और अल्जाइमर जैसी बीमारियों का इलाज होना शुरू हो चुका है. ब्रेन स्ट्रोक के इलाज को सफल बनाने के लिए शोधकर्ता अभी बड़े स्तर के प्रयास में लगे हुए हैं.
स्पाइनल कौर्ड से जुड़ी बीमारियों के सफल इलाज के लिए कोरिया के वैज्ञानिकों ने इस बीमारी से पीडि़त एक व्यक्ति के अमबिलिकल कौर्ड ब्लड में मल्टीपोटैंट एडल्ट स्टैम सैल्स ट्रांसप्लांट की. यह मरीज पिछले 20 सालों से बिस्तर पर था और हिल भी नहीं पाता था. इस प्रयोग के कुछ ही समय बाद वह मरीज सहारा ले कर अपने पैरों पर खड़ा होने लगा और अब तो वह अच्छी तरह दौड़भाग भी कर सकता है.
यह तो कुछ भी नहीं, स्टैम सैल से जल्द ही लकवे का शिकार हो चुके लोगों को पूरी तरह ठीक किया जा सकेगा.
हृदय संबंधी बीमारियों के इलाज में स्टैम सैल की योग्यताओं ने कमाल कर दिखाया है. अब तो आलम यह है कि पूरा का पूरा हार्ट ट्रांसप्लांट हो जाता है. ऐसा स्टैम सैल के जरिए संभव हो सका है.
स्टैम सैल से अब रक्त कोशिकाओं का भी निर्माण किया जाने लगा है. शरीर के तंत्रिका तंत्र को मजबूत बनाने के लिए भी स्टैम सैल का इस्तेमाल हो रहा है. इस के अलावा पूरी तरह से विकसित लाल रक्त कणिकाओं को वैकल्पिक रूप से बनाने के लिए भी स्टैम सैल का इस्तेमाल किया जा रहा है. स्टैम सैल से तैयार खून को प्राकृतिक खून से कहीं ज्यादा बेहतर माना जा रहा है. इस का इस्तेमाल अभी बड़े स्तर पर नहीं हो रहा है लेकिन आने वाले समय में किसी भी रोगी की मृत्यु कम से कम खून न मिलने के कारण तो नहीं होगी.
स्टैम सैल से मैडिकल सिस्टम किस स्तर पर पहुंच जाएगा, इस की सीमा को जान पाना तो मुश्किल है. पर आने वाला समय मैडिकल टैक्नोलौजी में काफी कुछ बदलाव ले कर आएगा इस में जरा भी संदेह नहीं है. स्टैम सैल की दुनिया तेजी से विकसित हो रही है. इसे मैडिकल सिस्टम के अलावा सौंदर्य प्रसाधनों में भी इस्तेमाल किया जाने लगा है.
सौंदर्य प्रसाधनों के अलावा गंजेपन, गायब हो चुके दांत, बहरेपन, बांझपन जैसी समस्याओं को दूर करने के लिए भी अब स्टैम सैल का बड़े स्तर पर इस्तेमाल किया जाने लगा है. स्टैम सैल के प्रयोगों को सफल बनाने और जल्द से जल्द इस के परिणामों से अवगत होने के लिए दुनिया के कई देश युद्ध स्तर पर प्रयास कर रहे हैं. चीन इस मामले में बेहद तेजी से आगे बढ़ रहा है.
ज्यादातर देशों में मैडिकल से जुड़े किसी भी शोध के लिए जानवरों पर प्रयोग करने का नियम है. इंसानों पर शुरुआती स्तर का प्रयोग करने के लिए वैज्ञानिकों को सरकार से इजाजत लेनी होती है. लेकिन चीनी सरकार ने अपने वैज्ञानिकों को इस बात की खुली छूट दे रखी है कि अगर वे अपने शोध को ले कर आश्वस्त हैं तो मानव शरीर पर भी उस का परीक्षण कर सकते हैं. इस स्तर के प्रयासों से चीन के वैज्ञानिकों ने स्टैम सैल के क्षेत्र में काफी तरक्की कर ली है. चीन की तरह ही मैक्सिको में भी क्लीनिकल लेवल पर स्टैम सैल को ले कर काफी शोध किए जा रहे हैं. अमेरिका के वैज्ञानिकों में तो स्टैम सैल को ले कर इस कदर जनून है कि वे आएदिन इस क्षेत्र में कुछ न कुछ नया प्रयोग कर रहे हैं. यह बात तय है कि स्टैम सैल से मैडिकल सिस्टम की काया अवश्य पलट जाएगी.