इतनी रात ढले…

हौलेहौले कदमों की आहट

दबीदबी खनकती हंसी

यौवनमंजरियों की गुनगुनाहट

वसंती सुगंध के मादक झोंके

इतनी रात ढले…

तंद्रिल अलकों का फैलाव

चमेली बांहों का उलझाव

लजीली पायलों की झंकार

पापी पपीहे की पुकार

इतनी रात ढले…

गहरी खुशबू चंदन की

मेहंदी रची हथेलियां गोरी

कुसुम ओस भीगा गात

सद्य:स्नाता गदराई रेशमी

इतनी रात ढले…

लेखक – सुभाष चंद्र झा

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