‘आज तो आप बहुत ही सुंदर लग रही हैं,’ दर्पण में अपनेआप को निहारती, अपनी आवाज को अपने पति महीप जैसी भारी बना कर स्नेह रस उड़ेलती कामिनी खिलखिला कर हंस पड़ी. खुद पर वह न्योछावर हुई जा रही थी.

गुलाबी सीक्वैंस साड़ी के साथ डीप बैक-नैक का ब्लाउज शादी से पहले मां से छिप कर बनवाया था. महीप का कामिनी के प्रति रवैया किसी नवविवाहित पति सा क्यों नहीं है, यह सोचसोच कर व्यथित होने के स्थान पर पति को रिझाना उचित समझ था उस ने. आज अपनेआप को नख से शिख तक शृंगार में लिपटाए वह पति को खुद में डुबो देना चाहती थी.

कामिनी की शादी 2 माह पहले महीप से हुई थी. एक मध्यम श्रेणी का व्यापारी महीप कासगंज में रह रहा था. पास के एक गांव में पहले वह बड़े भाइयों, पिता, चाचाताऊ आदि के साथ खेतीबाड़ी का काम देखता था. गांव छोड़ कासगंज आने का कारण पास के एक आश्रम में रहने वाले स्वामी के प्रति आस्था के अतिरिक्त कुछ न था.

स्वामीजी ने एक बार गांव में प्रवचन क्या दिया कि महीप उन के विचारों को प्रतिदिन सुनने की आस लिए आश्रम के समीप जा बसा. पिता से पैसे ले कर गत्ते के डब्बे बनाने का एक छोटा सा धंधा शुरू किया. धीरेधीरे जीवनयापन योग्य कमाई होने लगी.

कामिनी उत्तर प्रदेश के रामनगर की थी. परिवार की सब से बड़ी संतान कामिनी से छोटे 2 भाई पढ़ रहे थे. पिता स्कूल मास्टर थे और मां घर संभालती थी. रामनगर के सरकारी कालेज से बीए करते ही कामिनी का हाथ महीप के हाथों में दे दिया गया. रिश्ता पिता के एक मित्र ने करवाया था. मध्यवर्गीय परिवार में पलीबढ़ी कामिनी की कामना रुपयापैसा नहीं केवल पति का प्रेम था, जो विवाह के 2 माह बीत जाने पर भी वह अनुभव नहीं कर पा रही थी. सखीसहेलियों से सुने तमाम किस्से ऐसी कहानियां लग रही थीं जिन का वास्तविकता से कोई संबंध नहीं. अब तक कुल 2 रातें ऐसी गुजरी थीं, जब पति के प्रेम में डूब स्वयं को वह किसी राजकुमारी से कम नहीं सम?ा रही थी, लेकिन बाकी के दिन महीप से हलका सा स्पर्श पाने को तरसते हुए बीते थे.

आज गुलाबी साड़ी के साथ गले में कुंदन का चोकर नैकलेस, कानों में मैचिंग लटकते झुमके, गुलाबी और सिल्वर रंग की खनखनाती चूडि़यों का सैट और गुलाब की हलकी रंगत व महक लिए शिमर लिपस्टिक लगा कर वह महीप को मोहपाश में जकड़ लेना चाहती थी. अपने चांद से रोशन चेहरे को आईने में देख मुसकराई ही थी कि याद आई परफ्यूम की वह शीशी जो पारिवारिक मित्र आकाश ने विवाह से 2 दिनों पहले कामिनी को देते हुए कहा था, ‘मैं नागचंपा की सुगंध वाला परफ्यूम उपहार में इसलिए दे रहा हूं ताकि तुम को याद रहे कि शादी के बाद नागचंपा के पेड़ सी बन कर रहना है. कोमल भी, कठोर भी. पता है न कि यह पेड़ खुशबूदार फूलों के साथसाथ लंबी व घनी पत्तियों से लद कर खूब छाया देता है, लेकिन इस की लकड़ी इतनी सख्त और मजबूत होती है कि काटने वालों की कुल्हाड़ी की धारें मुड़ जाती हैं.’

कामिनी ने अलमारी खोल कर गिफ्ट निकाला. शीशी का ढक्कन खोला तो उस की सुगंध में डूब गई, ‘आज तो महीप का मुझ में खो जाना निश्चित है.’ आकाश को मन ही मन धन्यवाद देते हुए कामिनी ने नागचंपा परफ्यूम लगा लिया.

नईनवेली ब्याहता कामिनी के पायल की रुझान से महीप का 2 कमरे वाला मकान पहले ही झनक रहा था, आज नागचंपा की खुशबू से पूरा घर महक उठा.

महीप का दुपहिया घर के सामने रुका तो कामिनी ठुमकते हुए दरवाजे तक पहुंची. महीप के भीतर दाखिल होते ही वह तिरछी मुसकराहट बिखरा कर प्रेमभरे नेत्रों से उसे देखने लगी. महीप माथे पर बल लिए उड़ती सी नजर कामिनी पर डाल आगे बढ़ गया.

कामिनी ने चाय बना ली. ट्रे में 2 कप चाय और नमकीन लिए मुसकराती सोफे पर बैठे महीप के पास जा कर खड़ी हो गई.

‘‘यहां क्यों खड़ी हो गईं? वहां रख दो न चाय,’’ टेबल की ओर इशारा कर रुखाई से महीप बोला.

ट्रे टेबल पर रख कामिनी महीप से सट कर बैठ गई. महीप मूर्ति सा बना बैठा रहा. कामिनी ने उस के बालों को सहलाते हुए कान को हौले से चूम लिया.

‘चटाक…’ की तेज आवाज कमरे में गूंजी, कामिनी गाल पर हाथ रख भयमिश्रित आश्चर्य से महीप को देखती रह गई. इस से पहले कि वह कुछ समझ पाती, महीप का कठोर स्वर सुनाई दिया, ‘‘शर्म नहीं आती, इस तरह सजधज कर पति के सामने कुलटाओं सी हरकतें कर रही हो?’’

‘‘आप मेरे पति हैं. शादी हुई है आप से. पतिपत्नी में कैसी शर्म? पिछले 2 महीनों में आप का रवैया पति जैसा तो बिलकुल भी नहीं है. ऐसा क्यों है? क्या कमी है मुझ में?’’

‘‘कमी यह है कि तुम पतिपत्नी के मिलन को मौजमस्ती सम?ाती हो. जानती भी हो कि क्या कारण होता है इस का?’’

‘‘मेरे विचार से तो दोनों के बीच इस संबंध से प्रेम पनपता है, वे इस मिलन के बहाने एकदूसरे के नजदीक आते हैं. भविष्य में सुखदुख बांट लेने से जीवन जीना आसान हो जाता है. बहुत जरूरी है यह संबंध. यह सच नहीं है क्या?’’ कामिनी एक सांस में बोल गई.

‘‘मुझे पता था कि तुम्हारी सोच भी बिगड़े लोगों जैसी ही होगी. आज जान लो कि पतिपत्नी संबंध का कारण केवल संतान उत्पत्ति है और वह एक बार संबंध बनाने के बाद ही हो जाना चाहिए. यदि ऐसा नहीं होता तो इस का अर्थ है कि पत्नी ने कुछ पाप किए हैं. मैं जान गया था कि तुम पापी हो. आज तुम्हारे निर्लज्ज रूप ने समझा दिया कि बदचलन भी हो.’’

‘‘पापी? बदचलन? ये कैसी बातें कर रहे हैं आप?’’

‘‘मेरे सामने इस तरह लुभावना स्वरूप बनाए क्यों चली आईं? तुम्हें लगा कि मैं इतना मूर्ख हूं जो तुम पर फिदा हो कर अभी संबंध बनाने लगूंगा? संतान के लिए पत्नी के पास मैं महीने में एक बार जाने वालों में से हूं. मु?ो अपने जैसा समझ लिया क्या?’’

कामिनी की रुलाई फूट पड़ी, सुबकते हुए बोली, ‘‘मैं ने तो ऐसा कभी नहीं सुना कि संबंध केवल बच्चे के लिए बनते हैं, न ही महीने में एक बार मिलन से गर्भवती होने की बात किसी ने मुझ से की है. आप को किस ने कहा यह सब?’’

‘‘कभी साधु लोगों की संगत में जाओ तो कुछ अच्छी बातें पता लगेंगी. घर बैठे कौन तुम्हें ज्ञान देने आएगा. होंगी 2-4 तुम्हारे जैसी मूर्ख सहेलियां जो स्त्रीपुरुष संबंधों को तुम्हारी तरह ही मजे की चीज सम?ाती हैं. उन से ही सीख ली होगी अब तक तुम ने. कल चलना मेरे साथ स्वामीजी के आश्रम में. बहुतकुछ जान पाओगी वहां. पास ही है अपने घर के,’’ स्वयं को ज्ञानी सम?ा अकड़ता हुआ महीप उठ खड़ा हुआ. कामिनी टूटे हुए मन के टुकड़ों को सहेज पीड़ा से भरी अंदर के कमरे में चली गई.

कामिनी को ले कर महीप अगले दिन सुबहसुबह स्वामीजी के आश्रम में चला गया. प्रवचन शुरू होने में समय था, इसलिए कुछ लोग ही थे वहां पर. कामिनी सब से आगे की पंक्ति में बैठ गई. महीप उन लोगों की लाइन में लग गया जो आज स्वामीजी का विशेष दर्शन करना चाहते थे. यह दर्शन प्रवचन के बाद स्वामीजी के कमरे में होते थे. कितना समय स्वामीजी के साथ व्यतीत करना है, उस के अनुसार पैसे दे कर परची काटी जाती थी.

प्रवचन शुरू होतेहोते बहुत लोगों के एकत्र हो जाने से वहां काफी भीड़ हो गई थी. नीचे मोटी दरी बिछी थी, जिस पर बैठे लोग बेसब्री से स्वामीजी के आने की प्रतीक्षा कर रहे थे. स्वामीजी जल्द ही आ गए. पीली धोती, पीला कुरता, माथे पर लंबा तिलक. भीड़ पर मुसकान फेंकते स्वामीजी सिंहासननुमा कुरसी पर विराजमान हो गए. व्याख्यान आरंभ करते हुए बोले, ‘‘आज मैं उन स्त्रियों के विषय में बताऊंगा जो पति की आज्ञा का पालन नहीं करतीं और उन की सेवा न करने पर उन्हें अगले जन्म में कैसेकैसे पाप भोगने पड़ते हैं.’’

सभी ध्यानपूर्वक उन को सुन रहे थे. कामिनी को आशा थी कि पत्नी के हित में भी स्वामीजी कुछ कहेंगे लेकिन उसे यह विचित्र लगा कि पति के एक भी कर्तव्य की बात स्वामीजी ने नहीं की. पत्नी के लिए अनेक उलटेसीधे नियम बताए जो कामिनी पहली बार सुन रही थी, फिर भी वह प्रवचन सुनने और समझने का पूरा प्रयास कर रही थी.

व्याख्यान पूरा हुआ तो महीप ने उसे बताया कि दर्शनों के लिए बनी आज की सूची में उस का व कामिनी दोनों के नाम हैं. जल्द ही उन को एक कमरे में बुला लिया गया, जहां स्वामीजी मखमली कुरसी पर विराजमान थे. सामने 4 प्लास्टिक की कुरसियां रखी थीं. एक सहायक हाथ में कागजपैन लिए आज्ञाकारी सा स्वामीजी की बगल में खड़ा था. महीप व कामिनी के पहुंचते ही सहायक ने उन का परिचय नपेतुले शब्दों में स्वामीजी को दे दिया.

दोनों स्वामीजी के सामने बैठ गए. स्वामीजी के ‘बोलो…’ कहते ही महीप ने एक बार में पत्नी के गर्भवती न होने का दुखड़ा सुनाया. कामिनी सिर झुकाए खड़ी थी.

उस पर ऊपर से नीचे भरपूर दृष्टि डालने के बाद स्वामीजी ने कहा, ‘‘कामिनी कुछ दिन आश्रम में बिताए तो अच्छा है. एक विशेष अनुष्ठान द्वारा

इस के पापों का नाश कर शुद्धीकरण कर दिया जाएगा. चाहो तो आज ही इसे यहां छोड़ दो.’’

‘‘लेकिन मैं तो कोई सामान नहीं लाया. कामिनी के कपड़े…’’ महीप की बात अधूरी रह गई.

स्वामीजी बीच में बोल उठे, ‘‘यहां आश्रम के दिए कपड़े पहनने होंगे, ले कर आते तो भी व्यर्थ ही रहता तुम्हारा लाना.’’

‘‘ठीक है, इसे आज यहीं छोड़ कर जा रहा हूं मैं,’’ महीप स्वामीजी की ओर देख हाथ जोड़ते हुए बोला. कामिनी क्या चाहती है, यह किसी ने जानना भी आवश्यक नहीं सम?ा. महीप वापस घर लौट गया. कामिनी को आश्रम के एक कमरे में भेज दिया गया जहां बैंच रखी थीं. कुछ अन्य लोग भी किसी प्रतीक्षा में वहां थे. सभी को शांत रहने व आपस में बातचीत न करने को कहा गया था. दोपहर को एक सेविका ने खाने की थाली ला कर दे दी.

धीरेधीरे सब लोग चले गए. कामिनी अकेले गुमसुम सी बैठी अपनी बीती जिंदगी में विचर रही थी. रहरह कर उसे आकाश की याद आ रही थी. आकाश उस के पिता का प्रिय शिष्य था. बचपन से ही उन के घर आताजाता था. साइकोलौजी में पीएचडी करने के बाद कामिनी के कालेज में पढ़ाने लगा था. वहां पढ़ने वाली लड़कियां आकाश सर का बहुत सम्मान करती थीं. वह उन सभी को कभी कमजोर न पड़ने और आंखें खोले रखने को कहा करता था.

कामिनी को भी वह विपत्ति में ढाढ़स बंधाते हुए हिम्मत बनाए रखने को कहता था. जब मां के बीमार हो जाने पर क्लास टैस्ट में कामिनी को बहुत कम अंक मिले थे तो आकाश ने उस से कहा था, ‘एक बेटी का फर्ज निभाते हुए पढ़ाई को समय न दे पाने का मतलब यह नहीं कि हाथ से सब फिसल गया. अब वार्षिक परीक्षा में अच्छे अंक पाने के लिए यह सोच कर मेहनत करना कि अपने लिए भी कुछ फर्ज निभाने हैं और खुद को अब समय देना है तुम्हें.’

‘काश, आकाश आज यहां होता तो बताता कि कहां कमी रह गई? क्या उस ने पत्नी का फर्ज नहीं निभाया? क्या सचमुच उस ने पाप किए हैं? शादी के बाद पतिपत्नी अपने रिश्ते को निभाते हुए आनंदित हों तो क्या यह गलत है? मन के साथ देह मिलन क्या बुरी सोच है? क्या संतान को जन्म देना ही उद्देश्य है विवाह का?’ सोचते हुए कामिनी उठ कर खिड़की से बाहर झांकने लगी.

शाम का झटपुटा रात की ओर चल दिया. वापस बैंच पर बैठ थकी कामिनी ने आंखें मूंद दीवार से सिर टिका लिया.

‘‘वहां चली जाओ,’’ कानों में आश्रम की एक सेविका का स्वर पड़ा तो कामिनी की तंद्रा भंग हो गई. चुपचाप उठ कर उस कमरे की ओर चल दी जहां सेविका ने इशारा किया था. बंद दरवाजा उस के जाते ही खुल गया. यह देख वह आश्चर्यचकित रह गई कि स्वामीजी ने उस के लिए स्वयं दरवाजा खोला है.

कमरा गुलाब की महक से गुलजार था. होता भी क्यों न? गुलाब ही गुलाब दिख रहे थे यहांवहां. स्वामीजी की मोटे कुशन वाली आराम कुरसी और बड़े से पलंग पर गुलाब की पंखुडि़यां बिखरी थीं. कांच की साइड टेबल पर गुलाब के फूल की छोटी सी टहनी एक पतले गुलदस्ते में सजी थी. कुछ दूरी पर दीवार से सटी लकड़ी की नक्काशी वाली डाइनिंग टेबल थी, लेकिन कुरसियां केवल 2 ही लगी थीं. टेबल पर एक गिलास में गुलाबी पेय पदार्थ रखा दिख रहा था.

‘‘बहुत थक गई होगी. यहां कुरसी पर बैठ जाओ, इसे पी लो. दूध है जिस में गुलाब का शरबत मिला है,’’ स्वामीजी ने कहा तो थकान से बेहाल कामिनी ने गिलास मुंह से लगा खाली कर दिया.

कुछ देर बाद एक सेवक खाना ले कर आ गया. 2 प्लेटें और कई व्यंजनों के डोंगे मेज पर सज गए. स्वामीजी कुछ देर चुप रहे, फिर होंठों पर मुसकान लिए बोले, ‘‘तुम जानती हो कि पत्नी के पापी होने पर गर्भधारण में समस्या आती है. कुछ दिन मेरे साथ रहो, मैं स्वयं अपने हाथों से शुद्धीकरण कर पापों से मुक्ति दिलवा दूंगा. अनुष्ठान आज से ही प्रारंभ हो जाएगा. तुम को केवल अपना ध्यान सब ओर से हटा लेना होगा. ये गुलाब के फूल भी इसी अनुष्ठान के कारण बिछे हैं बिस्तर पर. सुगंध से शांति मिलेगी. आज जो दूध तुम ने पिया है उस में भी विशेष भस्म डाली गई है जो तुम को सब चिंताओं से दूर कर चैन की नींद सुला देगी. खाना खा लो अब, नहीं तो नींद आने लगेगी.’’

कामिनी को सचमुच तेज नींद घेरने लगी. इस का कारण कामिनी की थकान थी या दूध में मिली भस्म, वह समझ नहीं पाई. पलपल गहराता नशा उस के सोचनेसम?ाने की शक्ति छीन रहा था. बैठेबैठे लुढ़कने लगी तो स्वामीजी ने उसे गोद में उठा कर बिस्तर पर लिटा दिया.

कुछ देर में खाना खा कर स्वामीजी कामिनी के पास आ कर बैठ गए. उसे हौले से सहलाते हुए वे कुछ बुदबुदा रहे थे. कामिनी ने आंखें खोल उन का हाथ हटा असहमति जताई. नींद से बो?िल कामिनी स्वयं को शक्तिहीन सा महसूस कर रही थी. अधखुले नेत्रों से अत्यंत व्याकुल हो उस ने स्वामीजी की ओर देखा तो मुसकराते हुए वे बोले, ‘‘डरो मत. मैं कुछ मंत्र पढ़ रहा हूं. तुम्हारी देह से पापमूलक तत्त्व मेरे स्पर्श के साथ बाहर निकलते जाएंगे. आराम से लेटी रहो तुम.’’

कामिनी का स्वयं पर नियंत्रण नहीं था. चाह कर भी उठ नहीं पा रही थी. उसे अच्छी तरह समझ में आ रहा था कि यह स्वामी भेड़ की खाल में भेडि़या है. स्वामी अपनी पिपासा शांत कर सो गया. कामिनी की नींद आधी रात को टूटी. सोच रही थी कि क्या करे अब? महीप तो स्वामी पर इतना विश्वास करता है कि कामिनी द्वारा सब सच बता देने के बाद भी वह स्वामी का ही पक्ष लेगा. शायद इस चक्रव्यूह से वह निकल नहीं पाएगी.

महीप 2 दिनों बाद आया तो स्वामी ने कामिनी को कुछ दिन और वहां रहने का परामर्श दिया. कामिनी वापस जाने की कल्पना करती तो महीप की अप्रसन्न भावभंगिमाएं और क्रूर व्यवहार ध्यान आ जाता. यहां स्वामी की लोलुपता कांटे सी चुभ रही थी.

आश्रम में बैठे हुए जब स्वामीजी की अनुपस्थिति में कामिनी को महीप से कुछ देर बात करने का अवसर मिला तो कामिनी ने स्वामीजी की नीयत को ले कर शंका जताई. जैसा उस ने सोचा था वही हुआ. महीप ने उसे आंखें तरेर कर देखते हुए धीमी आवाज में 2-4 भद्दी गालियां दे डालीं.

स्वामीजी की आज्ञा मान कामिनी को वहां कुछ और दिनों के लिए छोड़ महीप वापस चला गया. आश्रम में कामिनी को एक सेविका के सुपुर्द कर दिया गया. उस के खानेपीने, कपड़ों और दिन में क्याक्या करना है, इस का प्रबंध वह सेविका कर रही थी. पूरा दिन स्वामी प्रवचन व भक्तों से मिलनेजुलने में व्यतीत करता और रात कामिनी के अंक में. इस बार महीप आया तो कामिनी को वापस भेजने की अनुमति स्वामी ने दे दी.

दिन बीतते रहे, लेकिन महीप के व्यवहार में कामिनी को कोई बदलाव दिखाई नहीं दिया. बातबात पर उस का हाथ उठा देना और एक रात के अतिरिक्त बाकी समय कामिनी के सामने त्योरियां चढ़ाए रखना अनवरत जारी था. कामिनी दिनरात महीप को सही राह सुझाने का उपाय सोचती, अपरोक्ष रूप से स्वामी का विरोध भी करती लेकिन महीप पर तो स्वामी जैसे लोगों का जादू सिर चढ़ा रहता है जो अपना भलाबुरा भी नहीं सोचते.

कामिनी का प्रयास होता कि महीप जब उसे आश्रम चलने को कहे तो वह कोई बहाना बना कर टाल दे.आश्रम से अनुष्ठान पूरा न हो पाने के फोन महीप के पास लगातार आ रहे थे. कामिनी पर एक दिन जब उस ने आश्रम चलने के लिए जोर डाला तो कामिनी के मना करते ही उस का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. महीप द्वारा अनुष्ठान के बाद पाप धुल जाने और गर्भधारण करने की संभावना जतलाने का भी कामिनी पर कोई असर न दिखा तो आगबबूला हो उस ने कामिनी को तेज धक्का दे दिया. फर्श पर पेट के बल गिरी कामिनी का सिर दीवार से टकरातेटकराते बचा. हक्कीबक्की सी घबरा कर वह जल्दी से उठी. कुछ देर यों ही खड़ी रही, फिर दनदनाती हुई महीप के पास गई और उस के गाल पर एक तमाचा जड़ दिया. महीप के क्रोध की आग में इस थप्पड़ ने घी का काम किया.

‘‘अब तो तुम्हें स्वामीजी के आश्रम में चलना ही पड़ेगा. जाते ही तुम्हारी शिकायत लगाऊंगा उन से,’’ कामिनी का हाथ पकड़ उसे खींचता हुआ महीप दरवाजे की ओर चल दिया. कामिनी को कुछ नहीं सू?ा रहा था. चुपचाप आंखों में आंसू लिए महीप के साथ चल पड़ी.

आश्रम से सभी भक्त-श्रोता जा चुके थे. स्वामीजी के कक्ष में महीप ने कामिनी के साथ प्रवेश किया. कामिनी को देख स्वामीजी गदगद हो उठे. महीप ने समीप रखे दानपात्र में 100 के नोटों की गड्डी डाल प्रणाम में सिर ?ाका दिया. स्वामीजी का आशीर्वाद पा कर महीप ने कामिनी के हाथ उठाने की बात उन को बताई. स्वामीजी मुसकराए, महीप का मन खिला कि अब कामिनी से वे अवश्य क्षमा मंगवा कर रहेंगे.

स्वामीजी ने कामिनी के सिर पर स्नेह से हाथ फेरा, फिर बोले, ‘‘इस का मुखमंडल देख रहे हो? कैसा दपदप कर रहा है. अनुष्ठान के प्रथम चरण का प्रभाव है यह. कोई पुण्यात्मा ही जन्म लेगी भविष्य में इस के गर्भ से. इस की मार को तुम ईश्वर का प्रसाद सम?ा कर ग्रहण करो. यह कुपित हो गई तो तुम पर दुखों का पहाड़ टूट सकता है.’’

महीप मन ही मन सहमति, असहमति के बीच झूलता हुआ भीगी बिल्ली बना बैठा रहा. कामिनी को स्वामीजी अनुष्ठान के लिए अपने कमरे में ले गए. महीप उस के कमरे से बाहर आने की प्रतीक्षा में आश्रम में यहांवहां टहल रहा था कि उसे आश्रम के दानकक्ष में बुला लिया गया. स्टाफ ने विशेष चढ़ावे की मांग की क्योंकि उन का कहना था कि ऐसा अवसर कुछ ही लोगों को मिलता है, जिस के परिवार के किसी सदस्य का स्वामीजी स्वयं शुद्धीकरण करते हैं. महीप ने प्रसन्न हो कर सामर्थ्य से अधिक दान दे दिया.

3-4 बार आश्रम जाने के बाद कामिनी ने यह जान लिया था कि उसे स्वामीजी की विशेष अतिथि मान वहां खूब सत्कार होता है. पति की रुखाई और दुर्व्यवहार से आहत कामिनी अब वहां जाने के लिए मना नहीं करती थी. स्वामीजी अब उसे कुछ दिनों के लिए रोक लेते और महीप को वापस भेज देते. घर में कामिनी व स्वयं पर एक रुपया भी खर्च करना महीप को अखर जाता था, लेकिन आश्रम में दानदक्षिणा दे अपनी जेब ढीली करवा कर वह प्रसन्न था.

स्वामीजी ने जब से कामिनी की मार को प्रसाद सम?ा कर ग्रहण करने को कहा था, तब से महीप कामिनी की ओर आंख उठा कर देखने की हिम्मत भी नहीं जुटा पाता था. उस के बाद जब भी वह कामिनी के समीप गया तो कामिनी ने मुंह फेर लिया. महीप ने हाथ बढ़ा कर उस का मुंह अपनी ओर करना चाहा तो कामिनी ने हाथ ?ाटक दिया. महीप लाचार सा चुपचाप सो गया.

कामिनी को अपने इस व्यवहार पर खुद से शिकायत थी, लेकिन यह अचानक तो हुआ नहीं था. स्वामी के चक्रव्यूह में महीप भी फंसा था और कामिनी को भी फंसा दिया था उस ने. यद्यपि आश्रम में कामिनी को ऐशोआराम की जिंदगी मयस्सर थी, लेकिन उसे यह चाहिए ही कब था? वह तो महीप की अर्धांगिनी बन कर पति से वह सब चाहती थी जो जीवन बगिया महका दे.

कोई रास्ता न सूझाने पर कामिनी को उकताहट होने लगी. कुछ दिनों के लिए उस ने मायके जाने का कार्यक्रम बना लिया. मायके पहुंच कर भी अपनी पीड़ा मन में दबाए रही. 2 छोटे भाइयों के सामने एक खुशहाल दीदी बने रहना पड़ता और मातापिता के सम्मुख उन की समझदार, सहनशील बेटी. महीप को ले कर कुछ कहना शुरू भी करती तो उन से वही रटारटाया जवाब मिलता, ‘‘बेटियों को ससुराल में बहुतकुछ सहना पड़ता है, इस में कोई बड़ी बात नहीं है. बड़ी बात तब है जब रिश्ता टूट जाए, लड़की मायके वापस लौट आए और उस के मांबाप किसी को मुंह दिखाने के काबिल न रहें.’’

उस दिन आकाश से बाजार में भेंट हो जाना कामिनी के लिए सुखद संयोग था. साथसाथ चलते बातचीत होती रही. जीवन में घट रही घटनाओं को आकाश से सांझा किया तो वह चौंक उठा, ‘‘कैसे अजीबोगरीब आदमी हैं तुम्हारे पति. भूल गईं कि मैं ने तुम्हें नागचंपा इत्र भेंट करते हुए क्या कहा था? नागचंपा की पत्तियों के आकार जैसे नाग के फन क्यों नहीं दिखाए जब महीप तुम पर अत्याचार कर रहा था. फिर उस स्वामी को भी सह रही हो. क्यों? स्वामी ने छूने की जब पहली कोशिश की तो तुम नागचंपा पेड़ की लकड़ी सी क्यों नहीं बन गईं? वह गलीज तुम्हारी इच्छा, तुम्हारी इज्जत यहां तक कि तुम्हारी कोमल भावनाओं पर अपनी कुटिल कुल्हाड़ी चलाता रहा, क्यों नहीं तब नागचंपा की सख्त लकड़ी बन नीचता की उस कुल्हाड़ी की धार निस्तेज कर दी तुम ने? नागचंपा के फूलों सी तुम्हारी उजली देह की महक और पत्तियों की छाया लेता रहा वह. कितना सम?ाया था विवाह से पहले मैं ने. क्या लाभ हुआ उस का?’’ सब सुनने के बाद व्यग्र हो आकाश ने प्रश्न कर डाले.

‘‘तो क्या करूं?’’ आकाश के प्रश्न के उत्तर में कामिनी ने प्रतिप्रश्न कर कुछ क्षणों की चुप्पी साध ली फिर बोली, ‘‘महीप ने जीवन नर्क बना दिया. स्वामी के आश्रम में मन पक्का कर कुछ घंटों चुपचाप अपनी देह सामने रख देती हूं, उस के बाद तो शांति है. कोई कुछ कहता नहीं, उलटे स्वामी के नजदीक होने से वहां का हर कार्यकर्ता मुझे सम्मान देता है.’’

‘‘तुम शायद समझ नहीं पा रही स्वामी का खेल. तुम्हारे पति के दिमाग में यह ठूंस दिया कि महीने में एक बार ही बनाना है संबंध. नतीजतन महीप करीब ही नहीं आ पाया तुम्हारे. इस से न तो आपसी अंडरस्टैंडिंग बनी न दोनों को शरीर का सुख मिला. महीप को भी पत्नी सुख की चाह तो होती ही होगी. अपनी उस इच्छा को दबाने से कुंठित प्रवृत्ति का होता जा रहा है वह. गुस्सा उतरता है तुम पर. तुम्हें वह गर्भधारण न करने पर पापी समझ रहा है. इधर तुम महीप के बरताव से परेशान स्वामी के सामने समर्पण कर रही हो, उस के सामने जिस के कारण तुम पापी कहलाई जा रही हो. दान के नाम पर पैसा भी तुम्हारे घर से जा रहा है. कुछ सम?ा? असली गुनाहगार महीप नहीं, स्वामी है.’’

‘‘मैं ने तो बहुत कोशिश की महीप को स्वामी की असलियत बताने की, लेकिन वह उन के खिलाफ कुछ सुनना नहीं चाहता,’’ कामिनी बेबस दिख रही थी.

‘‘स्वामी बहुत शातिर है. पहले अपने प्रवचनों से पत्नियों का आत्मविश्वास तोड़ता है, फिर ऐक्सप्लौयट करता है. तुम पति के सामने स्वामी की पोल न खोलो, इस के लिए तुम्हारे गुस्से को प्रसाद का नाम दे कर एक तरफ तुम्हें अपनी ओर कर लिया तो दूसरी ओर तुम्हारे पति के मन में हीनभावना उत्पन्न कर उस की हिम्मत तोड़ रहा है. वह मूर्ख महीप मन ही मन व्याकुल हो कर भी स्वामी की कलाई नहीं छोड़ रहा.’’

‘‘मेरी जिंदगी यों ही चलेगी क्या अब?’’ कामिनी निराशा के गर्त में डूब रही थी.

‘‘महीप तुम्हारे नजदीक आ जाए तो स्वामी की पट्टी उस की आंखों से उतर जाएगी. कुछ सोचता हूं. कल मिलोगी?’’

‘‘ठीक है. मेरा मोबाइल नंबर ले लो और अपना दे दो. बता देना जहां मिलना हो. घर पर मम्मीपापा के सामने तो बात नहीं हो सकेगी.’’

घर पहुंच कर कामिनी सुकून महसूस कर रही थी, उधर आकाश समाधान खोजने में जुटा था. रात 10 बजे आकाश का मैसेज आया कि कामिनी उस से 2 दिनों बाद कालेज की कैंटीन में मिले, कल नहीं.

कामिनी निर्धारित दिन सहेलियों से मिलने का बहाना बना कर कैंटीन चली आई. आकाश भी नियत समय पर आ गया. कामिनी के पास ही कुरसी ले कर बैठते हुए बोला, ‘‘मैं ने तुम को 2 दिनों बाद आने को इसलिए कहा था कि अपने एक मित्र की सहायता से महीप के बारे में कुछ पता लगवाऊं. वह दोस्त महीप के गांव का रहने वाला है. उस ने कई बातें बताई हैं मु?ो. सब से पहले उस बात का जिक्र करूंगा जिस से मुझे यह सोचने में मदद मिली कि हमें क्या करना चाहिए.’’

‘‘बताओ न फिर जल्दी,’’ कामिनी अधीर हो रही थी.

‘‘कई वर्षों पहले महीप के गांव में एक महिला के अंदर देवी आया करती थी और महीप उस को बहुत सम्मान देता था. उस की हर बात मानता था.’’

‘‘अच्छा, तो क्या हुआ उस का बाद में?’’

‘‘होगा क्या, जब तक गांव में रही, देवी आने का नाटक कर खूब लूटा लोगों को. बाद में पति के साथ गांव छोड़ कर चली गई. खैर, असली मुद्दा यह नहीं है कि उस का क्या हुआ. मैं तो तुम्हें यह कहना चाह रहा था कि तुम्हें भी अपने पति के सामने देवी होने का ढोंग करना होगा.’’

‘‘लेकिन क्यों? यह कैसा समाधान है?’’

‘‘यही है समाधान. तुम्हारे पति को पाखंडी लोगों पर विश्वास है तो इस का फायदा उठाओ. वह देवी को अवश्य सम्मान देगा, तब देवी बनीं तुम अपनी बात मनवा लेना. मैं महीप के जीवन और परिवार से जुड़ी कुछ बातें बता दूंगा जो मेरे दोस्त ने मु?ो बताई हैं. वे सब किस्से तुम अपनी शक्ति से पता लगने का नाटक करना. महीप का ध्यान कहीं और किसी अन्य शक्ति में लगेगा तो स्वामी के बंधन से वह खुद ही आजाद हो जाएगा.’’

‘‘तुम कहते हो तो कोशिश कर लूंगी,’’ कामिनी सहमति में सिर हिला कुरसी से उठ खड़ी हो गई.

‘‘एक बात और,’’ आकाश कामिनी को रोकते हुए बोला, ‘‘याद है न तुम कैसे भारी सी आवाज निकालती थीं. उसी तरह बोलना देवी बन कर.’’
कामिनी की हंसी छूट गई, ‘‘हां, अच्छा याद दिलाया. एक दिन मैं खुद से बात करते हुए महीप की आवाज निकाल रही थी, लेकिन महीप को इस बारे में कुछ पता नहीं.’’

‘‘जब समय मिले फोन पर इस बारे में जानकारी देती रहना.’’

चलने से पहले आकाश ने उसी अंदाज में कामिनी को ‘औल द बैस्ट’ कहा जैसे परीक्षा से पहले कहा करता था.

कासगंज लौटने के बाद कामिनी योजनानुसार देवी बनने के अवसर की तलाश में रहने लगी. एक दिन वह नहा कर निकली तो आंगन में खड़े हो कर भारी आवाज में जोरजोर से चिल्लाने लगी, ‘‘मुझे मीठा चाहिए, कुछ गरमगरम. पूरी और आलू की सब्जी खाऊंगी और पान भी. मीठा पान. अभी…’’

कमरे से भागता हुआ महीप आंगन में आया और कामिनी को खींचता हुआ अंदर कमरे में ले गया. कामिनी आंखें निकाल गुर्रा कर बोली, ‘‘जो कहा है, करो जल्दी. जाओ, अभी चाहिए, जो मैं ने मांगा है.’’

महीप को उस महिला की याद आ गई जिस पर गांव में देवी आती थी. कामिनी में किसी दैवीय शक्ति का प्रवेश महीप को डरा रहा था. ‘देवी की इच्छा पूरी न की तो श्राप दें देंगी’ सोचते हुए महीप भागाभागा बाजार गया. गाजर का हलवा, पूरियां हलवाई से पैक करने को कहा तब तक पान खरीदा, फिर उलटे पांव दौड़ते हुए घर आ गया. कामिनी झूम रही थी. दोनों चीजें उस के सामने रख महीप चुपचाप खड़ा हो गया. एक पूरी और थोड़ा सा हलवा खा कर कामिनी ने बाकी उस की ओर बढ़ा दिया, ‘‘लो, खाओ तुम भी.’’ पान भी आधा उसे दे दिया.

महीप सब खा कर आनंदित तो हुआ लेकिन मुंह से कुछ नहीं बोला. अभी तक वह आश्रम में अधिक से अधिक दान देने के चक्कर में अपना मन मारे रहता था.

कुछ देर झूमने के बाद कामिनी बिस्तर पर जा कर लेट गई. 10 मिनट यों ही लेटे रहने के बाद धीरे से आंखें खोल कर देखा. महीप उस के पास ही बैठा था. कामिनी धीमी आवाज में बोली, ‘‘मुझे क्या हुआ था, अभी कुछ याद नहीं. थकान बहुत हो रही है. पानी पीती हूं.’’ महीप चुपचाप उठ कर उस के लिए पानी ले आया. कुछ देर बाद बिना कुछ कहे काम पर निकल गया. कामिनी को महीप का बदला हुआ रूप अच्छा लग रहा था.

2 दिन निकल गए. तीसरे दिन कामिनी फिर नहाने के बाद कमरे में नाश्ता कर रहे महीप के सामने आ कर खूब मोटी, भारी आवाज बना कर बोली, ‘‘मुझे साड़ी चाहिए, गुलाबी रंग की. ठीक वैसी ही जैसी तुम ने मालती को दी थी 5 वर्षों पहले. मालती तो तुम से फिर भी क्रोधित ही रही थी लेकिन मैं प्रसन्न हो जाऊंगी. अभी मैं जा रही हूं. तुम जल्दी ही सारा सामान एकत्र कर मेरी तसवीर के आगे रखने के बाद कामिनी को सजा देना. समझ गए न? उसे अपने हाथों से साड़ी पहनाना, बिंदी, सिंदूर लगाना,’’ बात पूरी करते ही कामिनी ?ामने लगी, फिर लेट गई.

महीप हतप्रभ था. मालती कई वर्ष उस की प्रेमिका रही थी. दोस्त की बहन मालती ने उस से अनेक उपहार लिए थे, फिर नाराजगी का ?ाठा नाटक कर किसी और से विवाह कर लिया था. महीप को डर था कि देवी द्वारा बताया मालती का किस्सा कहीं कामिनी को भी पता न लग गया हो. कामिनी अपने सामान्य रूप में आई तो मालती का नाम तक न लिया. चैन की सांस लेते हुए महीप ने देवी का बताया सामान खरीदा और कामिनी को सजाने के लिए छुट्टी का दिन चुना.

‘‘आप मुझे सजाएंगे? कोई खास बात है क्या?’’ कामिनी ने अनजान बनते हुए पूछा.

‘‘बस, यों ही. तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं रहती शायद. सजतीधजती नहीं हो आजकल,’’ महीप ने बात बना दी.

कामिनी के गोरे मखमली बदन पर साड़ी लपेटते हुए महीप को एक सुखद अनुभव हो रहा था. मेकअप किया तो लगा ऐसे स्पर्श की अनुभूति तो पहले हुई ही नहीं थी. उस का रोमरोम कामिनी के जिस्म को पाने की लालसा करने लगा.

आकाश ने महीप के विषय में जो जानकारी जुटाई थी उस में महीप के एक मित्र अजीत का विशेष उल्लेख था. महीप स्वामीजी का चेला बनने से पहले देवी वाली महिला का भक्त होने के साथसाथ बचपन के दोस्त अजीत के बहुत करीब था. अपनी समस्याएं, उलझनें, विचार वह अजीत के साथ सांझा किया करता था. इस बार देवी बनी कामिनी ने अजीत का नाम लिया और महीप के समक्ष यादें ताजा करवा दीं. उस दिन जब कामिनी सामान्य हुई तो महीप ने उसे अपने मित्र अजीत के विषय में बहुतकुछ बताया, ‘‘मेरा बहुत मन करता है अजीत से मिलने का,’’ कहते हुए महीप की आंखें नम हो गईं.

कामिनी ने आकाश को उस दिन मैसेज किया कि शायद समय आ रहा है, धीरेधीरे महीप स्वामी के पंजे से मुक्त हो सकता है.

2 दिनों बाद नहा कर जब कामिनी बाहर निकली तो जोरजोर से हंसने लगी. महीप हाथ जोड़ सिर ?ाकाए सामने खड़ा रहा. देवी ने भारीभरकम आवाज में कहा, ‘‘इस के बाद अब मैं कब आऊंगी, पता नहीं. जातेजाते इतना कहना चाहती हूं कि सुगंधित साबुन…’’ कामिनी ने अपनी बात पूरी नहीं की थी कि महीप को लगातार हाथ जोड़े अपनी ओर ताकते उसे हंसी आने लगी. किसी तरह अपनी हंसी दबा कर बात वहीं छोड़ वह चुपचाप बिस्तर पर जा कर लेट गई.

महीप ने अनुमान लगाया कि देवी चाहती हैं कि वह अच्छा सा खुशबूदार साबुन खरीद उस का प्रयोग कामिनी पर करे. उस दिन शाम को चंदन की खुशबू वाला साबुन ले कर वह घर आया. कामिनी को दिखाते हुए बोला, ‘‘जब तुम्हें मैं अपने हाथों से सजाता हूं तो अच्छा लगता है न? देखो यह नहाने का महकदार साबुन ले कर आया हूं तो कल सुबह… समझ गईं न?’’

कामिनी लाज से लाल हो गई. उस की ?ाकी पलकें और मुसकान लिए गुलाबी होंठ देख महीप का दिल फूल सा खिल उठा. रातभर वह यह सोच कर ही रोमांचित हुआ जा रहा था कि क्या सचमुच ऐसा हो सकेगा?

अगले दिन कामिनी उठी तो सिर चकरा रहा था. बोली, ‘‘अपच जैसा हो रहा है. महीना भी नहीं आया.’’

‘‘डाक्टर के पास चलते हैं,’’ महीप आज पहली बार कामिनी की चिंता करता दिख रहा था.

क्लिनिक पर गए तो खुशखबरी मिली, कामिनी के मां बनने के संकेत थे.

घर पहुंच कर कामिनी लेट गई. महीप उस के समीप बैठ कर भविष्य के सपने देख रहा था कि दरवाजे की घंटी बज गई. बेमन से महीप ने दरवाजा खोला तो आश्चर्यचकित रह गया. स्वामीजी आए थे. अंदर घुसते ही बोले, ‘‘बहुत दिनों से तुम लोग नहीं आए तो मैं ने सोचा, आज मैं ही कामिनी से मिलने चलता हूं.’’

महीप को स्वामीजी का केवल कामिनी से मिलने की इच्छा जताना बिलकुल अच्छा नहीं लगा, फिर भी उन को आदर से बैठाते हुए बोला, ‘‘कामिनी की तबीयत ठीक नहीं है. आप बैठिए, उसे बुलाता हूं.’’

अधीर स्वामीजी उठ कर बैडरूम तक पहुंच गए. उसे बेटी कहते हुए बाहुपाश में कस गालों को चूम लिया. महीप के लिए स्वामीजी का यह रूप बिलकुल नया था. दोनों को आश्रम में जल्द हाजिर होने की आज्ञा दे कर वे चले गए.

स्वामीजी के प्रति महीप का क्रोध देख कामिनी बोली, ‘‘मैं ने आप को कितनी बार समझने की कोशिश की इन के बारे में, लेकिन आप ने कभी सुनना ही नहीं चाहा. अनुष्ठान के बहाने न जाने कितनी लड़कियों का शोषण किया होगा इस स्वामी ने.’’

‘‘अब क्या होगा? यह तो तुम्हारा पीछा ही नहीं छोड़ेगा,’’ घबराया सा महीप बोला.

‘‘आप को डरने की जरूरत नहीं है. हम पुलिस के पास चलेंगे. इस के द्वारा शोषित कुछ लड़कियों के मोबाइल नंबर हैं मेरे पास, उन से भी बात करती हूं.’’

महीप अब तक आश्रम में दिए दान का मोटामोटा हिसाब लगा पश्चात्ताप की अग्नि में जल रहा था. कामिनी ने आकाश को मैसेज कर पूरी बात बताते हुए यह भी लिखा, ‘‘जब मु?ो विश्वास हो जाएगा कि महीप पूरी तरह बदल गए हैं तब अपने देवी बनने का सच बता दूंगी.’’

आकाश ने जवाब दिया, ‘‘अपने पति को फूलों की सुगंध और पत्तियों की छांव देते हुए सुधारने का काम काबिल ए तारीफ है. इस के अलावा तुम मजबूत लकड़ी बन कर स्वामी जैसे लोगों के होश ठिकाने लगवाने का काम भी कर रही हो. तो कामिनी आज फख्र से कहता हूं कि तुम हो नागचंपा.’’

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...