लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को बजट का जवाब देते कहा कि केंद्र की सरकार चाहे युवा हो या किसान सभी को चक्रव्यूह में फंसाने का काम कर रही है. राहुल ने इसी के साथ जातीय जनगणना का मुद्दा भी उठाते हुए हलवा सेरेमनी का जिक्र कर दिया. राहुल गांधी ने बजट के हलवा सेरेमनी की फोटो दिखाते कहा, ‘इस फोटो में कोई पिछड़ा, दलित या आदिवासी अफसर नहीं दिख रहा है.’ यह सुन कर निर्मला हंस पड़ीं और तभी राहुल ने कहा कि देश का हलवा बंट रहा है और वित्त मंत्री हंस रही हैं.
राहुल ने आगे कहा कि 20 अफसरों ने हलवा बनाया और अपने 20 लोगों में बांट दिया. बजट कौन बना रहे हैं, वही दो या तीन प्रतिशत लोग. हम जातिगत जनगणना ला कर इस विषमता को खत्म करेंगे. राहुल गांधी ने महाभारत युद्ध में चक्रव्यूह बना कर अभिमन्यु की हत्या का जिक्र करते कहा कि 6 लोगों कर्ण, द्रोणाचार्य, दुशासन, अश्वत्थामा, कृपा, शकुनि, दुर्योधन ने मिल कर अभिमन्यु की हत्या की थी. आज भी 6 लोगों ने अपने चक्रव्यूह में देश को फंसा रखा है. ये 6 लोग हैं नरेंद्र मोदी, अमित शाह, अजीत डोभाल, मोहन भागवत, अंबानी और अडानी.
इस के बाद लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी और भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर एकदूसरे से जातीय जनगणना के मुद्दे पर भिड़ गए. इन दोनों की बहस में समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव भी कूद गए. राहुल गांधी ने कहा था कि देश का बजट बनाने वालों में दलित और ओबीसी जातियों को शामिल नहीं किया जाता. राहुल ने जाति जनगणना कराने की डिमांड भी रखी थी. अनुराग ठाकुर ने इस का जवाब देते कहा कि जिस को जाति का पता नहीं, वो गणना की बात करता है.
यह बात राहुल गांधी को आपत्तिजनक लगी, उन्होंने कहा कि उन का अपमान किया गया. अखिलेश यादव भी बहुत गुस्से में थे, उन्होंने कहा कि सदन में किसी की जाति कैसे पूछी जा सकती है. राहुल गांधी और अखिलेष की जोडी ने भाजपा को बैकफुट पर डाल दिया.
असल में राहुल गांधी केवल पिछड़ा, दलित या आदिवासी अफसरों की बात कर रहे थे. इस में एक सब से बडी जाति का जिक्र करना वे भूल गए, वह है सवर्ण महिलाएं. सवर्ण महिलाएं एक ऐसा वर्ग है जो संपन्न और शिक्षित होने के बाद भी बेचारा है.
अपर कास्ट विमेन की बात कौन करेगा?
राहुल गांधी ने केवल पिछड़ा, दलित या आदिवासी अफसरों की बात की. इस के पहले चुनावी भाषणों में भाजपा नेता और प्रधानमंत्री नरेंद्र ने 4 जातियों का जिक्र किया था. उन में महिला, युवा, किसान और गरीब का नाम लिया था. राहुल गांधी हों या नरेंद्र मोदी दोनों देश की आबादी का 10 फीसदी करीब 12 करोड अपर कास्ट महिलाओं के वर्ग को नहीं देख रहे हैं. यह वे महिलाएं है जो अब आत्मनिर्भर भी हैं. लखनऊ की रहने वाली अमृता सिंह पढीलिखी हैं, जौब करती हैं. उन्होंने अपने सोशल मीडिया पर लिखा कि- ‘औरत का घर न मायका है और न ससुराल’.
इस के जवाब में ढेर सारी महिलाओं के दर्द फूट पडे. सब ने करीबकरीब इस बात का समर्थन किया और कहा कि ‘इस कारण ही महिलाएं बेचारी हैं.’ ये महिलाएं सवर्ण वर्ग ही है. धर्म के शिकंजे में जकडी हुई हैं, संस्कारी हैं. धर्म के नाम पर इन को ऐसे कामों में लगाए रखा जाता है जिन का इन के जीवन में कोई लाभ नहीं है. ये पति के कल्याण के लिए व्रत रखती हैं, पुत्र के अच्छे भविष्य के लिए व्रत रखती हैं. ये कभी निर्जला व्रत रखती हैं तो कभी पैदल कलशयात्रा नंगेपांव करती हैं. धार्मिक हादसों में सब से ज्यादा मरने वाली महिलाएं ही होती हैं. उत्तर प्रदेश के हाथरस में मरने वाले 122 लोगों में से 116 महिलाएं थीं.
अपर कास्ट महिलाएं नौकरी कर रही हैं. ये राजनीति में भी हैं और बिजनैस भी कर रही हैं. इस के बाद भी इन की चर्चा कहीं नहीं हो रही है. महिलाओं को राजनीति में आरक्षण मिला है. निकाय और पंचायत चुनावों में 33 फीसदी का आरक्षण मिला है. इस की वजह से छिटपुट इन के चेहरे राजनीति में दिख जाते हैं. चुनावी आंकडो से देखें तो साफ पता चलता है कि इन के पास पैसा और लोग दोनो ही नहीं होते जो इन को चुनाव लडा सकें. ऐेसे में चुनाव जीतने के लिए पैसा घरपरिवार लगाता है.
चुनाव जीतने के बाद महिला की जगह उस का बेटा, पति या दूसरा कोई करीबी कुरसी संभालता है. प्रधानपति, सांसद पति, विधायक पति प्रतिनिधि बन कर इन का काम करते हैं. कभी पुरुष नेता के बारे में नहीं सुना होगा कि उस की जगह उस की पत्नी कामकाज देख रही है. सवर्ण औरतों की हालत यहां ज्यादा खराब है क्योंकि वह बंधन तोडने में सफल नहीं हो पाई है. सामाजिक बंधन, पारिवारिक बंधन और धार्मिक बंधन की यही सब से अधिक शिकार होती हैं. इन को ही सब से ज्यादा परदा करना होता है. किसी गैरमर्द के साथ इन का उठना, बैठना और बोलना खराब माना जाता है.
महिलाएं उठाएं जिम्मेदारी
आज सोशल मीडिया का दौर है. हर महिला के हाथ में स्मार्टफोन है. जिस पर फेसबुक, इंस्टाग्राम और कई साइटें हैं जिन पर महिलाओं ने अपने खाते खोल रखे हैं. ज्यादातर महिलाओं के पति, पिता इन पर नजर रखते हैं. महिलाएं अपने मनपंसद दोस्त से बात नहीं कर सकतीं. किसी पुरुष मित्र से मिलने जाती हैं तो पति साथ रहता है. फोन से ले कर मित्र से मिलने तक की आजादी नहीं है इन को. कई बार जब वे अपना टाइम पास करने के लिए किटी पार्टी में जाती हैं तो पति वहां छोडने और लेने जाते हैं. इस तरह उन को व्यक्तिगत आजादी नहीं है.
लखनऊ हाईकोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता राजेश तिवारी कहते हैं, ‘पारिवारिक विवादों में सब से अधिक विवाद का कारण मोबाइल फोन हो गया है. पति व पत्नी के बीच यह झगडे का सब से बडा कारण है. यह झगडा तलाक तक पहुंच जाता है. महिलाएं अब आजादी चाहती हैं लेकिन तमाम सोच बदलने के बाद भी महिलाओं को आजादी देने के मसले में झगडे बढ रहे हैं. इस वर्ग की परेशानियों को समझने की जरूरत है.’
सैंट्रल बैंक औफ इंडिया में सीनियर मैनेजर सुप्रिया वर्मा कहती हैं, ‘महिलाएं अपने कमाए पैसों पर भी अपना अधिकार नहीं रखतीं. बैक खाता खोलना, बचत योजनाओं में हिस्सा लेना, होम लोन लेना, आईटीआर दाखिल करने जैसे तमाम मुददों पर अपनी राय नहीं रखतीं, पति पर निर्भर होती हैं. अगर महिलाएं ये काम खुद कर लें तो पति को दूसरे उपयोगी काम करने का समय मिलेगा. दूसरे, वे खाली समय का सही उपयोग कर सकेंगी.’
घर, परिवार और समाज में आर्थिक फैसले करने में महिलाओं को पहल करनी चाहिए. तभी वे सही मानो में आत्मनिर्भर बन सकेंगी. केवल नौकरी करने या पैसे कमाने से आत्मनिर्भर नहीं बन पाएंगी. आर्थिक फैसले वे खुद लें. इस के लिए उन को पढना पडेगा, समझना पडेगा, जानकार लोगों से बात करनी पडेगी. जो समय वे किटी पार्टी या गपशप में लगाती हैं, उसे न कर के उन को अपनी जानकारी बढाने का प्रयास करना होगा.
सरकार को इस ‘अपर कास्ट विमेन’ को भी एक वर्ग मान कर देखना होगा. समाज में यह व्यवस्था करनी होगी कि ये महिलाएं धर्म के जाल से निकल कर उत्पादक कामों में लगें. जिस तरह से राहुल गांधी हर जगह दलित, पिछडा और ओबीसी को देखते हैं उसी तरह से ‘अपर कास्ट विमेन’ को भी अलग वर्ग में वे देखें. वे प्रधानमंत्री के 4 वर्गों- महिला, युवा, किसान और गरीब – में अपर कास्ट विमेन को अलग से देखें. तभी इस सब से बडे वर्ग की तरक्की हो सकती है.
अपर कास्ट महिलाओं को केवल महिला वर्ग में रखने से काम नहीं चलेगा. यह आर्थिक विकास की सब से बडी धुरी है. इन को मुख्यधारा में शामिल करना बेहद जरूरी है. तभी देश व समाज तरक्की करेगा.