भेज रहे हैं नेह निमंत्रण प्रियवर तुम्हें बुलाने को
हे मानस के राजहंस तुम भूल न जाना आने को

आजकल के वैवाहिक आमंत्रण पंत्रों में आउट डेटेड बना दी गईं ये मधुर पंक्तियां कम ही दिखती हैं, क्यों ? इस सवाल का सीधा सा जबाब यह है कि अब बुलावे में पहली सी आत्मीयता और लगाव नहीं रह गए हैं. शादी में बुलाना कम से कम 80 फीसदी मामलों में बेहद व्यवहारिक व्यवसायिक और औपचारिक होता जा रहा है और लगभग से ज्यादा डिजिटल हो गया है. पहले वैवाहिक आमंत्रण पत्रिका जिन को दी या भेजी जाती थी वे सिलैक्टेड होते थे यानी उन्हें बुलाना ही होता था.

वैवाहिक आमंत्रण पत्रिका आते ही घर में हलचल सी मच जाती थी. वर वधू के मातापिता और दादादादी और दर्शानाभिलाशियों सहित स्वागत को उत्सुक लोगों के नाम पढ़ कर उन के पारिवारिक इतिहास और भूगोल के चीरफाड़ की रनिंग कमेंट्री होती थी, उन से खुद के रिश्ते संबंध या परिचय जो भी हो का बही खाता खुलता था और फिर तय होता था कि इस शादी में कौनकौन जाएगा और मेजबान के अपने यानी मेहमान के प्रति किए गए और दिए गए व्यवहार के हिसाब से क्या गिफ्ट दिया जाएगा.

यानी बात जैसे को तैसा या ले पपड़िया तो दे पपड़िया वाली कहावतों को फौलो करती हुई होती थी कि अगर उन के यहां से कोई हमारे यहां की शादी में आया था तो हमें भी जाना चाहिए और उन के यहां से जो व्यवहार या तोहफा आया था लगभग उसी मूल्य और हैसियत का हमें भी देना चाहिए.

बढ़ते शहरीकरण और सिमटती रिश्तेदारी के चलते अब और भी बहुत सी चीजें गुम हो गई हैं. उन की व्याख्या करने को यही एक पहलू पर्याप्त हैं कि 20 फीसदी अपवादों को छोड़ दिया जाए तो शादी का कोई भी इनविटेशन जाने की बाध्यता नहीं रह गया है. अब घर पर कार्ड देने वही आता है जो वाकई में आप की गरिमामयी उपस्थित्ति आशीर्वाद समारोह में चाहता है.

यह जाहिर है नजदीकी रिश्तेदार या अभिन्न मित्र होता है जिस से एक नियमित संपर्क भी आप का होता है. वह आप को डिजिटली तो कार्ड भेजेगा ही साथ में एक बार से ज्यादा फोन कर याद भी दिलाएगा और मुमकिन है कार्ड कुरियर से भी भेजे और उस के साथ में मिठाई का डब्बा भी हो यहां जाने आप को सोचना नहीं पड़ता.

लेकिन अगर डिजिटली बुलाने वाले चाहे वे नए हों या पुराने के निमंत्रण में न नेह हैं और न ही उस ने रूबरू हो कर मानस के राजहंस और प्रियवर जैसा कोई आत्मीय संबोधन देते भूल न जाना जैसा मार्मिक और भावनात्मक आग्रह किया हुआ होता है तो जाहिर है उस ने एक औपचारिकता भर निभा दी है. नया कोई ऐसा करे तो बात ज्यादा अखरती नहीं लेकिन कोई पुराना करे तो इगो आड़े आना स्वभाविक बात है.

बुलाने के साथसाथ जाने न जाने के पैमाने भी बदल रहे हैं. मसलन अब इनविटेशन कार्ड में सिर्फ वेन्यू गौर से देखा जाता है कि घर से कितने किलोमीटर दूर किस डायरैक्शन में जाना पड़ेगा. कार्ड के बाकी मसौदे से कोई खास मतलब जाने वाले को नहीं रहता. यानी यह उत्साहहीनता और औपचारिकता दो तरफा हैं जो एक उलझन तो मन में पैदा कर ही देते हैं कि जाएं या न जाएं. और जाएं तो गिफ्ट क्या ले जाएं. हालांकि जमाना नगदी वाले लिफाफों का है इसलिए यह सरदर्दी कम तो हुई है.

अहम सवाल जाएं या नहीं इस का फैसला इन पोइंट्स से तय करें –

1 – अगर सिर्फ व्हाट्सऐप पर कार्ड डाल दिया गया है तो जाना कतई जरुरी नहीं क्योंकि बुलाने वाले की मंशा अगर वाकई बुलाने की होती तो वह कार्ड पोस्ट करने के पहले या बाद में एक बार फोन करता या मैसेज में छोटा ही सही आग्रह जरुर करता.

2 – मुमकिन यह भी है वह वाकई बुलाना चाह रहा हो लेकिन भूल गया हो या इतनी समझ और व्यवहारिकता उस में न हो कि फोन भी कर ले.

3 – ऐसे में यह देखें कि आप के उस से संबंध कैसे हैं. कई बार संबंध बेहद औपचारिक और परिचय तक ही सीमित होते हैं और केवल इसी आधार पर बेटे या बेटी की शादी का इनविटेशन कार्ड दे दिया जाता है. मसलन बुलाने वाला आप की कालोनी या अपार्टमेंट का वाशिंदा हो सकता है जिस से कभीकभार चलतेफिरते दुआ सलाम या बातचीत हो जाती है जिस के बारे में आप यह तो जानते हैं कि ये थर्ड फ्लोर पर कहीं रहने वाले शर्माजी हैं लेकिन पीएन शर्मा हैं या एनपी शर्मा हैं इस में कन्फ्यूज हों तो ऐसी शादी में जाना जरुरी नहीं.

4 – औफिस कुलीग भी अकसर इसी तरह कार्ड देते हैं कि आप आएं न आएं इस से उस की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ता है. यहां आप को तय करना है कि आप उस से कैसे संबंध रखना चाहते हैं. अगर बढ़ाना चाहते हैं तो जाना हर्ज की बात नहीं. यह भी अहम है कि कार्ड देते वक्त उस ने आग्रह कैसे किया था और दोबारा कभी याद दिलाया या नहीं.

5 – जाने न जाने का एक पैमाना यह भी सटीक है कि पिछले एक साल में आप उस के घर कितनी दफा गए या वह कितनी बार आप के घर आया था. अगर इस का जबाब एक बार भी नहीं में है तो जाना बाध्यता नहीं.

6 – बुलाने बाले से आप की कितनी बार फोन पर बात हुई या होती है इस से भी जाने न जाने की उलझन हल हो सकती है. इस के अलावा इस बात से भी तय कर सकते हैं कि आप उस के घर में किस किस को जानते हैं और उस के अलावा किसी मेंबर को जानते भी हैं या नहीं. ठीक यही बात उस पर भी लागू होती है. पारिवारिक परिचय प्रगाढ़ हो यह भी आजकल जरुरी नहीं है लेकिन इतना तो हो कि जब आप जाएं तो असहज महसूस न करें कि घर के मुखिया के सिवाय किसी को जानते ही नहीं.

असल में नई दिक्कत यह खड़ी हो रही है कि जानपहचान और रिश्तेदारी का दायरा सिमट रहा है. शादी के आमंत्रण पहले की तरह थोक में और आत्मीयता से नहीं आते हैं लेकिन जैसे भी आएं, जब आ ही जाते हैं तो मन में जाने न जाने को ले कर दुविधा पैदा हो जाती है. यही कार्ड जब व्हाट्सऐप पर आते हैं तो तय करना मुश्किल हो जाता है कि मेजबान सचमुच आमंत्रित कर रहा है या सिर्फ सूचना दे रहा है जिस के कोई माने आपके लिए नहीं होते.

जमाना ज्यादा से ज्यादा शेयर और लाइक का है. अकसर फेसबुक और व्हाट्सऐप ग्रुप में कोई भी शादी का कार्ड डाल देता है कि आप सभी पधारना और वर वधू को आशीर्वाद देना. इस तरह के बुलावे पर हालांकि कोई ध्यान नहीं देता हां बधाई आशीर्वाद और शुभकामनाओं की झड़ी ऐसे लग जाती है मानो ग्रुप के सदस्यों न उस भतीजे या भतीजे को गोद में खिलाया हो. यह सब आभासी और बनावटी है. इस से बचना ही बेहतर होता है. लेकिन बुलाने वाला नया हो या पुराना उसे व्हाट्सऐप पर ही शुभकामनाएं देने की औपचारिकता और शिष्टाचार निभाना न भूलें.

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