‘गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु, गुरु देवो महेश्वरा गुरु साक्षात परब्रह्म, तस्मै श्री गुरुवे नमः’ अर्थात गुरु ही ब्रह्मा है. गुरु ही विष्णु है और गुरु ही भगवान शंकर है. गुरु ही साक्षात परब्रह्म है. ऐसे गुरु को मैं प्रणाम करता हूं. भारत में गुरुओं को ले कर इस नैतिकता की दुहाई हमेशा दी जाती रही है. इस के विपरीत आज गुरु कैसे बन रहे हैं, इस का उदाहरण यूजीसी-नेट परीक्षा की धांधली में नजर आता है. क्या हम ऐसे गुरु की कल्पना कर सकते हैं जो नकल और धांधली कर के परीक्षा में पास हो. इस के बाद यह गुरु स्कूलकालेजों में बच्चों को पढ़ाएंगे. बच्चों को परीक्षा में जब नकल करने से रोकेंगे तो उन को अपनी नकल याद नहीं आएगी.
क्या ऐसे गुरुओं को नकल से रोकने का अधिकार होना चाहिए? क्या ऐसे गुरुओं का सम्मान हमारी नजर में हो सकता है? क्या यही वे नकल कर के पास होने वाले गुरु हैं जिन के सहारे हम विश्वगुरु बनने की रातदिन दुहाई देते हैं? देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सुचिता और ईमानदारी की बात करते हैं? 10 साल में पेपर लीक जैसी धांधली को रोक नहीं पा रहे, ऐसे में हम विश्व की तीसरी ताकत बनने की बात करते हैं, जो सरकार अपने देश में बिना धांधली के परीक्षा नहीं करवा पाती वह विश्व की तीसरी ताकत कैसे बन सकती है?
यथा राजा तथा प्रजा
पढ़ाई का स्तर क्या है, इस की एक झलक नरेंद्र मोदी मंत्रिमंडल की केंद्रीय महिला बाल विकास राज्यमंत्री सावित्री ठाकुर के रूप में देखी जा सकती है. भारतीय जनता पार्टी का एक नारा था- ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’. मध्य प्रदेश में धार के ब्रह्मकुंडी स्कूल इलाके में स्कूल चलो अभियान कार्यक्रम का उदघाटन समारोह था. उस में केंद्रीय राज्यमंत्री सावित्री ठाकुर मुख्य अतिथि थीं. वहां हस्ताक्षर अभियान में उन को अपना संदेश लिख कर हस्ताक्षर करना था. सावित्री ठाकुर अपनी पार्टी के स्लोगन ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ की जगह ‘बेढी पड़ाओ बच्चाव’ लिख दिया. केंद्रीय मंत्री का गलत तरह से लिखना मीडिया से ले कर सोशल मीडिया में चर्चा का विषय बन गया.
लोकतंत्र का दुर्भाग्य है कि संवैधानिक पदों पर बैठे लोग और बड़े विभागों के लिए जिम्मेदार लोग अपनी मातृभाषा में भी सक्षम नहीं हैं. वे अपना मंत्रालय कैसे चला सकते हैं, यह सवाल लोगों के बीच घूम रहा है. एकतरफ देश की बेटियों को पढ़ाने की बात की जा रही है तो वहीं दूसरी तरफ जिम्मेदार लोगों में साक्षरता की कमी है. क्या इसी तरह से भारत देश विश्वगुरु बन पाएगा? सवाल उठता है कि सांसद और केंद्रीय मंत्री होने के बावजूद सावित्री ठाकुर दो शब्द भी ठीक से नहीं लिख पाईं. बच्चों ने जब उन्हें गलत लिखते देखा होगा तो उन्हें कैसा लगा होगा? केंद्र सरकार में वे किस तरह का नेतृत्व देंगी, इस की केवल कल्पना ही की जा सकती है?
सवाल यह भी उठ रहा है कि जब प्रधानमंत्री की अपनी डिग्री विवादों के घेरे में रही है, तब मंत्रियों से क्या उम्मीद की जा सकती है? ऐसे राज में शिक्षकों की भरती में धांधली कोई बड़ा काम नहीं है. इस व्यवस्था से यही उम्मीद की जा सकती है कि शिक्षक नकल कर के ही नौकरी पा सकता है. ऐसे में गुरुओं के सम्मान और नैतिककता की बात केवल किताबी है. इस की बातें केवल पौराणिक कथाओं भर में रह गई हैं. सचाई से ये कोसों दूर हैं. क्या छात्र ऐसे गुरु का सम्मान कर सकते हैं जो नकल कर के पास हुआ हो?
यूजीसी-नेट में धांधली
विश्वगुरु बनने वाले देश का हाल यह है कि 18 जून की परीक्षा हुई और 19 जून को कैंसिल हो गई. नीट परीक्षा में गड़बड़ी से चर्चा में आई एनटीए यूजीसी-नेट धांधली की भी जिम्मेदार मानी जा रही है. विश्वविद्यालय में असिस्टैंट प्रोफैसर बनने या फैलोशिप लेने के लिए कैंडिडेट्स को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा आयोजित नेट की परीक्षा को पास करना होता है.
18 जून, 2024 को 11 लाख छात्रों ने इस उम्मीद से परीक्षा दी थी कि अच्छे अंक लाने पर उन्हें अच्छे संस्थान में असिसटैंट प्रोफैसर का पद मिलेगा या सरकार की तरफ से जूनियर रिसर्च फैलोशिप की सुविधा मिलेगी. परीक्षा के अगले ही दिन पता चला कि परीक्षा रद्द कर दी गई है. इस से छात्रों का हौसला तो टूटा ही है, साथ ही, परीक्षा आयोजित कराने वाली एजेंसी एनटीए से भरोसा भी उठा है.
पहले नेट की परीक्षा सीबीटी मोड में होती थी, ऐसे में पेपर तुरंत लौक हो जाता था. एनटीए ने इस बार परीक्षा ओएमआर शीट पर कराई. परीक्षा में प्रयोग हुई ओएमआर शीट खराब और हलके पेपर पर थी. पैन और पेपर का प्रयोग करने से वह फट जा रही थी. लकड़ी की बैंच पर शीट रख कर स्टूडैंट्स ने उन्हें भरा था. विश्व की 5वी अर्थव्यवस्था का दावा करने वाला देश अपने छात्रों को परीक्षा में अच्छी क्वालिटी के पेपर वाली ओएमआर शीट तक नहीं दे पा रहा है.
नेट क्लीयर करने के लिए कैंडिडेट्स को पेपर 1 और पेपर 2 देना होता है. ये दोनों पेपर कंबाइन हो कर आते हैं, जिन्हें 3 घंटे में पूरा करना होता है. पेपर वन में 50 प्रश्न और पेपर 2 में 100 प्रश्न होते हैं. हर सवाल 2 अंकों का होता है. इसे पास करने के लिए कैंडिडेट्स को न्यूनतम 35 प्रतिशत अंक लाना जरूरी है. इस के बाद जूनियर रिसर्च फैलोशिप यानी जेआरएफ देना केंद्र सरकार के फंड पर निर्भर करता है. अगर केंद्र सरकार की तरफ से 10 लोगों को जेआरएफ दिया जा रहा है तो टौप 10 स्टूडैंट्स को फैलोशिप मिल जाएगी. इस के बाद बाकी स्टूडैंट्स के लिए यूनिवर्सिटीज फौर्म निकालती हैं, कैंडिडेट्स इन फौर्म को फिल कर के नेट स्कोर के आधार पर एडमिशन लेते हैं. जब पीएचडी शुरू हो जाती है तब जेआरएफ के छात्रों का पैसा आने लगता है.
बढ़ रही उम्र कैसे बनेगा कैरियर
यूजीसी-नेट परीक्षा देने वाले छात्रों की औसत उम्र 23 से 27 साल के बीच में होती है. इस का मतलब यह है कि इस उम्र तक छात्र अपने कैरियर के लिए परीक्षा दे रहे हैं. विश्वगुरु और 5वीं अर्थव्यवस्था का दावा करने वाला देश इस उम्र के छात्रों को नौकरी नहीं दे पा रहा है. इस उम्र में बच्चों को अपना घर बसा लेना चाहिए था. अभी ये नौकरी ही तलाश कर रहे हैं. उस में भी परीक्षा में पेपर लीक और दूसरे व्यवधान के चलते नौकरी मिलने की उम्र 35 साल हो जा रही है. 60 में रिटायरमैंट होने वाली जौब में 35 साल केवल नौकरी तलाश करने में निकल जा रहे हैं. केवल 25 साल ही नौकरी करने का मौका मिलेगा.
परीक्षा में व्यवधान होने पर छात्रों का अमूल्य समय खराब होता है. छात्रों में हताशा होती है. वे निराश होते हैं. डिप्रैशन का शिकार होते हैं. कई बार वे आत्महत्या करने जैसे कदम भी उठा लेते हैं. यूजीसी नेट परीक्षा में गड़बड़ी नहीं हुई होती तो छात्र समय पर अपना एग्जाम खत्म करते और समय पर उन का एडमिशन हो जाता. दिसंबर तक सभी एलिजिबल छात्रों की पीएचडी शुरू भी होती और कैंडिडेट्स का जेआरएफ भी आने लगता. अब यह पूरा चक्र पिछड़ गया है, जिस का प्रभाव छात्रों की उम्र पर पड़ेगा.
क्यों बनते हैं प्राइवेट सैंटर
इन परीक्षाओं की पहले विश्वविद्यालयों में निगरानी होती थी. एनटीए ने अब अलग सैंटर देने शुरू कर दिए हैं. असल में सैंटर बनवाने में ही पैसे का असल खेल होता है. प्राइवेट सैंटर भरोसेमंद नहीं होते. यहीं पेपर लीक और नकल कराने जैसे आरोप लगते हैं. एनटीए प्राइवेट सैंटर को परीक्षा केंद्र क्यों बनाता है, इस की जांच होनी चाहिए. कोई भी परीक्षक अपने पसंदीदा कैंडिडेट से यह भी कह सकता है कि ओएमआर शीट ब्लैंक छोड़ दो. अगर सारे सवाल पता हों तो कुछ ही देर में ओएमआर शीट भर कर पेपर भिजवाया जा सकता है. ओएमआर शीट की पेक्षा कंप्यूटर पर परीक्षा कराना ज्यादा सुरक्षित होता है.
यूजीसी नेट का एग्जाम दोबारा कराया जाएगा. सवाल उठता है कि क्या दोबारा परीक्षा कराने से छात्रों का जो नुकसान हुआ है उस की भरपाई हो जाएगी? जून का महीना ऐसा महीना है जब सभी स्टूडैंट्स के सैमेस्टर खत्म होते हैं. अगर आप एग्जाम फिर से करवाओगे तो वह अभ्यार्थियों की अन्य परीक्षाओं के साथ क्लैश करेगा. क्या दोबारा परीक्षा कराने का खर्च सरकार देगी?
पौराणिक कथाओं में गुरु का महत्त्व
पौराणिक कथाओें में गुरुओं का महत्त्व सब से अधिक बताया गया है. देश में हर साल 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है. इस दिन पूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्मदिन होता है. वे शिक्षक से राष्ट्रपति बने थे. ऐसे में छात्र उन के जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाते हैं. पौराणिक ग्रंथों में गुरु का दर्जा भगवान के समान बताया गया है. गुरु के बिना ज्ञान मिल ही नहीं सकता. अनंत काल से गुरु को लोग भगवान मानते आ रहे हैं. गुरु मिलते ही उन के चरण स्पर्श करना चाहिए.
आज के गुरुओं की हालत यह है कि वे नकल कर के परीक्षा पास करते हैं. ऐसे में गुरु अपना फर्ज निभाने में असफल साबित हो रहे हैं. हिंदू पंचांग के अनुसार, आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि पर गुरुपूर्णिमा का त्योहार मनाया जाता है. इस पर्व पर अपने गुरु के प्रति आस्था को प्रगट किया जाता है तथा विधिवत रूप से गुरुपूजन किया जाता है. पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, इस दिन को व्यास पूर्णिमा भी कहते हैं. इस दिन को चारों वेदों के रचयिता और महाभारत की रचना करने वाले वेद व्यास का जन्म हुआ था.
व्यास पूर्णिमा से रक्षाबंधन तक आरएसएस गुरुदक्षिणा का कार्यक्रम आयोजित करता है. इस में संघ के भगवा ध्वज के सामने गुरुदक्षिणा रखी जाती है. राशि और दक्षिणा देने वाले का नाम सार्वजनिक नहीं किया जाता है. आरएसएस की शुरुआत 1925 में हुई पर गुरुदक्षिणा का कार्यक्रम 1928 से गुरुपूजा के रूप में लगातार चल रहा है. गुरुओं का महत्त्व पूरे समाज को बताया जाता है. अब के गुरु तो नकल कर के, पेपर लीक कर के परीक्षा में पास हो रहे हैं. इन को आदर्श कैसे माना जा सकता है, यह बड़ा सवाल है.
गुरु की आड़ में जितनी भी नैतिकता की बातें होती हैं वे सब आज के समय में बेमानी हैं. गुरु और सरकारी मास्टर में फर्क है. वह नौकरी के लिए कुछ भी कर सकता है. ऐसे में उस की आदर्शवादी बातें छात्रों को मजाक लगती हैं. पैसा खर्च कर के नौकरी पाने वाला शिक्षक छात्रों को पढ़ाने के बजाय पैसे बनाने की सोचता रहता है. ऐसे में नकल कराने और पेपर लीक कराने वाले काम भी करता है. इस तरह ‘गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु, गुरु देवो महेश्वरा, गुरु साक्षात परब्रह्म, तस्मै श्री गुरुवे नमः’ वाली बात पूरी तरह से बेमानी है.