18वीं लोकसभा चुनाव में मनोज तिवारी, हेमामालिनी, शत्रुघ्न सिन्हा, कंगना रनोट, पवन कल्याण जैसे स्टार्स ने चुनाव जीतकर यह साबित कर दिया है कि इनके चेहरे किसी भी पौलिटिकल पार्टी की सीट में इजाफा करती है. मनोज तिवारी ने पूर्वी दिल्ली और हेमामािलनी ने मथुरा सीट से लगातार तीसरी बार जीत हासिल की वहीं तृणमूल कांग्रेस की ओर से पश्चिम बंगाल की आसनसोल लोकसभा सीट से चुनाव लड़ रहे शत्रुघ्न सिन्हा ने बीजेपी के एसएस अहलूवालिया को 59 हजार वोटों से हराया. मंडी से कंगना ने भारी मतों से जीत हासिल की.
फिल्मी चेहरों को राजनीति से जोड़ने का क्लियर फंडा है वोट बैंक को आकर्षित कर जीती हुई सीटों की संख्या को बढ़ाना. लगभग सभी राजनीतिक दल ने फिल्मी सुंदर चिकने चेहरों का पूरी तरह से दोहन किया हैं. वे इन्हें चुनावी सभाओं में स्टार प्रचारक के तौर पर खूब दौड़ाती हैं, महंगे सनस्क्रीन लगानेवाले स्टार्स को चुनावी दिनों में धूपधूल सबको बरदाश्त करना पड़ता है. हेमामालिनी जैसी ड्रीमगर्ल तेज धूप में मथुरा के खेत में नजर आती हैं, तो कंगना रनौत जैसे पूरी सिक्योिरटी में चलने वाले स्टार्स मामूली लोगों के साथ सेल्फी लेने पर मजबूर है.
भीड़ को चुंबक की तरह खींचते हैं स्टार्स
स्टार्स के चेहरे चुनावी सभाओं और रैलियों में भीड़ जुटाने और तालियां बटोरने का काम करती है. स्टार्स की पर्सनालिटी और डायलौगबाजी का अंदाजा 1991 में नई दिल्ली लोकसभा सीट के लिए हुए चुनाव से लगाया जा सकता है. उन दिनों रथयात्रा निकालने की वजह से लालकृष्ण आडवाणी का कद काफी बड़ा हो गया था. वहीं उनके विरुद्ध कांग्रेस की ओर से चुनाव लड़ रहे सुपर स्टार राजेश खन्ना का चार्म भी जनता के बीच कायम था. राजेश खन्ना की स्टार पर्सनालिटी का ही कमाल था कि अडवाणी मामूली वोटों के अंतर से ही अपनी सीट बचा पाए थे. दोनों की सीट का अंतर महज 1589 था.
फिल्मी चेहरों का फायदा नजर आता है वोट बैंक के अंतर में
मिमी चक्रवर्ती और नुसरत जहां जैसे चेहरों को ममता बनर्जी ने टीएमसी में शामिल किया. बंगाली एक्ट्रेस नुसरत जहां ने 17वीं लोकसभा में अपने प्रतिद्वन्द्वी को 3.5 लाख वोटों से हराया था. 2019 की लोकसभा चुनाव में बंगाली एक्ट्रेस मिमी चक्रवर्ती ने भी अपने करीबी प्रतिद्वन्द्वी को करीब 3 लाख वोटों से शिकस्त दी. ये आंकड़े बताते हैं कि स्टार्स होने की वजह से इनकी जीत का मार्जिन भी बहुत ज्यादा होता है. ऐसे में किसी बड़े प्रतिद्वंद्वी को हराने के लिए भी फिल्मी सेलिब्रेटीज की मदद ली जाती है.
चुनावों में स्टारडम का दबदबा
स्टारडम का तड़का लगाने का एक और बड़ा उदाहरण है 1984 में इलाहाबाद लोकसभा सीट का चुनाव . इस सीट पर कांग्रेस ने सदी के महानायक अमिताभ बच्चन को प्रत्याशी बनाया था. उनदिनों सीनियर बच्चन, गांधी फैमिली के बेहद करीबी माने जाते थे. तब छोरा गंगा किनारे वाला के नाम से मशहूर बिग बी ने अपने मित्र राजीव गांधी के कहने परर इलाहाबाद की सीट से जबरदस्त जीत हासिल की. उन्हें कुल वोटों का करीब 70 प्रतिशत वोट मिला था. मीडिया रिपार्ट्स के अनुसार, हेमंती नंदन बहुगुणा को करीब 25 प्रतिशत वोट मिले, वहीं बाकी 24 प्रत्याशियों को केवल 1 प्रतिशत के वोटों से संतोष करना पड़ा. इसे कहते हैं स्टारडम का दबदबा.
शत्रुघ्न सिन्हा रहे थोड़े लकी
वोटों को अपनी ओर खींचने के इस पावर के बावजूद पौलिटिक्स में मूवी स्टार्स को मंत्री बनाए जाने की बात न के बराबर हुई. मथुरा से जीतती रही हेमा मालिनी हो या ईस्ट दिल्ली में पूर्वांचलियों की वजह से 3 बार से जीतते रहे मनोज तिवारी, इन्हें कैबिनेट से बाहर ही रखा गया. शत्रुघ्न सिन्हा को एक बार जलमंत्री बनने का मौका जरूर मिला लेकिन वह पहला और आखिरी मौका था. बीजेपी से मोहभंग होने के बाद वे कांग्रेस में शामिल हुए, कांग्रेस से हताश होकर उन्होंने ममता बनर्जी की शरण ली और 18वीं लोकसभा में आसनसोल से जीत हासिल की. अब चूंकि अब सरकार एडीए की है, तो इस बार भी टीएमसी सांसद शत्रुघ्न सिन्हा के हाथ खाली रह जाएगा.
पवन कल्याण, कंगना नए फिल्मी चेहरे
इस बार बीजेपी की प्रत्याशी के रूप में एक्ट्रेस कंगना रनौत ने हिमाचल प्रदेश के मंडी लोकसभा सीट से जीत हासिल की. वहीं साउथ इंडियन एक्टर पॉलिटीशयन पवन कल्याण की पार्टी जनसेना ने भी 2 सीटों पर विजय पताका लहराया है. उधर एक्टर गोविंदा भी दोबारा पौलिटिक्स के गलियारों में नजर आ रहे हैं. साल 2004 में कांग्रेस ने गोविंदा को ईस्ट मुंबई लोकसभा सीट से उतारा और बीजेपी उम्मीदवार राम नाईक को हराकर वे जीत गए, हालांकि राम नाईक ने उन पर यह आरोप लगाया कि चुनाव में जीतने के लिए गोविंदा ने अंडरवर्ल्ड डौन दाउद इब्राहीम का सहारा लिया था, बाद में गोविंदा ने राजनीति छोड़ दी थी लेकिन हाल ही में उन्होंने शिवसेना का दामन थाम लिया है.
नाम के साथ साथ बदनाम भी होते हैं स्टार्स
अकसर पार्टियों को जीत दिलानेवाले ये स्टार्स को राजनीति में आने की भारी कीमत भी चुकानी पड़ती है. कुछ के स्कैंडल्स सामने आ जाते हैं तो कुछ को पब्लिक में थप्पड़ खाने पड़ते हैं. तृणमूल कांग्रेस की सांसद नुसरत जहां को 17वीं लोकसभा का सबसे खूबसूरत चेहरा कहा गया. लेकिन उन्हें भी एमपी बनने की कीमत चुकानी पड़ी. सांसद के रूप में अपने काम की बजाय उनका नाम केवल और केवल कौंट्रोवर्सी से जुड़ता रहा.आनेवाला समय ही बताएगा कि फिल्म स्टार्स को लेकर राजनीतिक दलों की सोच में कितना बदलाव आता है, वे अपनी कैबिनेट में इनको जगह देते हैं या केवल एमपी बनने का लौलीपोप थमाते रहते