2017 में दिल्ली के प्राइवेट स्कूल सेंट मार्क्स ने एसी सुविधा देने के लिए फीस को 15 प्रतिशत बढ़ाया. इस के बाद महाराजा अग्रसेन स्कूल ने भी एसी के नाम पर हर महीने 2 हजार रुपए फीस से अलग चार्ज मांगना शुरू कर दिया. दिल्ली पेरैंट्स एसोसिएशन इस मसले को ले कर हाईकोर्ट गया. हाईकोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि एसी चार्ज देने का जिम्मा न ही इकलौते स्कूल मैनेजमैंट पर और न ही इकलौते पेरैंट्स पर है. दोनों को मिलजुल कर इस का बोझ उठाना होगा. ऐेसे में कई स्कूलों ने एसी का खर्च पेरैंट्स पर डालने का काम शुरू कर दिया.
हाईकोर्ट ने कहा है कि एसी चार्ज का जिम्मा सिर्फ स्कूल का नहीं होना चाहिए. स्कूल में एसी लगाने का जिम्मा स्कूल की सोसायटी का होना चाहिए. एसी के रखरखाव और बिजली खर्च के लिए पेरैंट्स से चार्ज लिए जा सकते हैं. यह भी ध्यान रखने की जरूरत है कि एसी साल में 3 से 4 महीने ही इस्तेमाल होता है, पूरे साल नहीं. यहां एक तर्क दूसरा भी है कि स्कूल 12 माह की फीस लेते हैं, जबकि स्कूल 11 माह ही चलता है. कई स्कूल वाले बस का किराया भी पूरे साल का लेते हैं.
महाराजा अग्रसेन स्कूल में जनवरी से मार्च तक पेरैंट्स से एसी इंस्टौलेशन के नाम पर 2 हजार रुपए प्रतिमहीना लिए गए. 3,500 बच्चे अगर 2,000 रुपए महीने का देंगे तो सोच सकते हैं कि स्कूल कितना मुनाफा कमाएगा.
दिल्ली स्टेट पब्लिक स्कूल्स मैनेजमैंट एसोसिएशन के प्रैसिडैंट आर सी जैन का कहना है कि 2004 में मौडर्न स्कूल के इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का एक आदेश है कि जो स्कूल जिस प्रकार की सुविधाएं देता है, वह उस हिसाब से फीस ले सकता है. एसी के मामले में भी यही होना चाहिए. मगर इस नाम पर स्कूल मुनाफा न कमाए. स्कूल एसी खरीदने के लिए पैसे न ले. यह डैवलपमैंट फंड से लिया जा सकता है जो स्टूडैंट्स से डैवलपमैंट फीस के नाम पर लिया जाता है.
मगर अगर स्कूल के पास यह फंड नहीं है तो पेरैंट्स से पैसे लिए जा सकते हैं. एसी वाले मामले में शिक्षा निदेशालय को पेरैंट्स की कई शिकायतें मिली हैं और कोर्ट ने भी इसे निदेशालय के जिम्मे छोड़ा है.
अकेला मामला यह दिल्ली का नहीं है. देश के बाकी स्कूलों में भी कुछ यही हाल है. इस की एक वजह और है. अब ज्यादातर बड़े स्कूलों के फ्रैंचाइजी दूसरे शहरों में खुले हैं, जिस से जो काम एक स्कूल करता है, दूसरा भी करने लगता है. कुछ स्कूल एसी का नाम न ले कर सीधे फीस बढ़ा दे रहे हैं. लखनऊ के गोमतीनगर स्थित सेठ एमआर जयपुरिया स्कूल में अचानक हुई भारी बढ़ोतरी से गुस्साए अभिभावकों ने विरोध किया.
अभिभावकों का आरोप है कि स्कूल प्रशासन ने इस साल अचानक 20 से 50 फीसदी तक फीस बढ़ा दी है. 2 या अधिक भाईबहनों के पढ़ने पर मिलने वाली 50 फीसदी छूट भी समाप्त कर दी है, जिस से कई अभिभावकों को पिछले साल के मुकाबले इस बार दोगुना फीस भरनी पड़ी है. स्कूल प्रशासन ने स्कूल को वातानुकूलित करने की वजह से फीस वृद्धि की बात स्वीकारी है और केवल 21 फीसदी बढ़ोतरी की बात कही है.
सेठ एमआर जयपुरिया स्कूल की प्रिंसिपल प्रोमिनी चोपड़ा का कहना है, ‘बच्चों की सुविधा के लिए इस साल पूरा स्कूल वातानुकूलित किया गया है. इंफ्रास्ट्रक्चर भी बढ़ाया गया है. इसलिए फीस बढ़ाई गई है. 50 फीसदी बढ़ोतरी की बात सही नहीं है. अधिकतम 21 फीसदी फीस बढ़ी है. एसी के बहाने पूरे देश में स्कूल फीस बढ़ाने पर हंगामा हो रहा है. इस का निदान क्या है?
वातावरण के अनुकूल बने स्कूल
आज के समय में स्कूल बहुत तेजी के साथ खुल रहे हैं. छोटी जगहों पर खुल रहे हैं. बस्ती के बीच भी स्कूल खुल रहे हैं. ऐसे में तमाम तरह की दिक्कतों का सामना भी करना पड़ता है. जगह की कमी को पूरा करने के लिए कईकई मंजिलों वाले स्कूल खुलने लगे हैं. 3 से 4 मंजिल के स्कूलों का निर्माण इस तरह का नहीं होता कि वहां सुविधाजनक माहौल हो. कमरे हवादार नहीं होते, एक मंजिल से दूसरी मंजिल पर जाने के लिए सीढ़ियां सुविधाजनक नहीं बनी होतीं. ऊपर की मंजिलों में गरमी बहुत होती है. बच्चे परेशान होते हैं.
हालांकि सरकार ने नियम बना रखे हैं लेकिन उन नियमों में भी इस बात का खयाल कम रखा जाता है कि कमरे, सीढ़ियां, मैदान कैसे हों? नियम स्कूल के कमरों, लैब और बाथरूम जैसी चीजों तक सीमित होते हैं. बड़ी परेशानी यह हो रही है कि कमरों की गरमी को कम करने के लिए एसी लगवाए जाने लगे हैं. इस का बोझ फीस के रूप में तो पेरैंट्स पर पड़ता ही है, बच्चे के स्वास्थ्य की नजर से यह खतरनाक भी होता है.
कैसा हो स्कूलों का डिजाइन?
स्कूल ऐसी जगह है जहां बच्चे के जीवन की नींव पड़ती है. ऐेसे में स्कूल का निर्माण बहुत महत्त्वपूर्ण होता है. यदि स्कूल का डिजाइन सही है तो बच्चों को आराम होगा और उन का स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा. छोटी उम्र के बच्चों के लिए भी स्कूल होते हैं. ऐसे में जिस तरह का शरीर अभी बनेगा, उस का जीवन में आगे वैसा ही प्रभाव होगा. घर के अलावा स्कूल ही एक ऐसी जगह होती है जहां पर बच्चे सब से ज्यादा समय तक रहते हैं. दुनियाभर में कई तरह के स्कूल मौजूद हैं. पेरैंट्स के लिए जरूरी है कि वे यह देखें कि स्कूल में पढ़ाई कैसी हो रही है. वे स्कूल की भौतिक सुविधाओं पर कम ध्यान दें.
लखनऊ में प्रतिष्ठा इनोवेंशस की डायरैक्टर आर्किटैक्ट प्रज्ञा सिंह ने कई स्कूलों की बिल्डिंग डिजाइन की है. उन का कहना है कि स्कूल की बिल्डिंग डिजाइन करते समय ग्रीन बिल्डिंग के कौन्सैप्ट को ध्यान में रखा जाए. हवा का प्रवाह बना रहे, इस तरह का डिजाइन हो. इस के लिए स्कूल गैलरी हो जिस से हवा एक तरफ से दूसरी तरफ आए. कमरों में खिड़की के सामने खिड़की रखी जाए. जिस दीवार पर सीधी धूप आ रही हो वहां दीवार डबल हो या धूप की गरमी को अंदर पहुंचने से रोकने का प्रयास हो.
प्रज्ञा सिंह कहती हैं, “स्कूल का डिजाइन तैयार करते समय सूरज की दिशा को ध्यान में रखें. कमरों में धूप न जाए, इस के लिए कमरों के आगे बरामदा बने. बरामदे पर छज्जे बनाए जाएं जिस से धूप सीधे अंदर न पहुंच सके. आजकल कमरों को तैयार करने में गिलास का उपयोग होने लगा है. ये सूरज की गरमी को रोकने में सफल नहीं होते हैं. पहले के स्कूल एक या दो मंजिल के बनते थे. कमरों की ऊंचाई 14 से 15 फुट तक होती थी. इस से गरमी नीचे तक नहीं आ पाती थी. आज ऊपर ज्यादा से ज्यादा मंजिल बनाने के लिए कमरों की ऊंचाई 8 से 11 फुट ही रखी जाने लगी है जिस से गरमी का प्रभाव बना रहता है.”
बिगड़ रही बच्चों की सेहत
अब स्कूल बनवाते समय आर्किट्रैक्ट से कहा जाता है कि ज्यादा से ज्यादा कमरे निकालने हैं. ऐसे में कमरों का सही डिजाइन नहीं बन पाता है. ज्यादातर लोग यह सोचते हैं कि हवा, धूप और पानी की क्या चिंता करनी, एसी तो है न? वे यह नहीं सोचते कि बच्चों को लगातार एसी में रहने से उन्हें स्वास्थ्य की दिक्कतें होने लगती है. सर्दी, जुकाम और हीटस्ट्रोक के अलावा बच्चों में विटामिन डी की कमी हो जाती है. जब स्कूल का डिजाइन सही नहीं होता तो बच्चों की सेहत पर असर पड़ता है.
स्कूल जितनी सुविधाएं देगा, उस के लिए फीस भी बढ़ती है. पेरैंट्स फीस देने के समय महंगाई का रोना रोते हैं. जबकि, वे सारी सुविधाएं स्कूल से चाहते हैं. असल में पेरैंट्स की इस सोच का लाभ स्कूल उठाते हैं. वे यह भूल जाते हैं कि बचपन ही ऐसा होता है जो शरीर को हर तरह से तैयार करता है. अगर शरीर प्राकृतिक चीजों का आदी नहीं होगा तो आगे बहुत दिक्कतें होंगी. इस का प्रभाव बच्चों पर पड़ेगा. बच्चों का शरीर प्राकृतिक वातावरण में पलने के बाद अलग तरह का होगा. वे बीमारियों से लड़ सकेंगे. धूप, गरमी, जाड़ा सहन करने की क्षमता होगी. मिट्टी और घास पर खेलने-चलने का अलग आनंद होगा. आज बचपन इन चीजों से दूर होता जा रहा है.
हमारे घर छोटे हुए, कालोनी में पार्क खेलने लायक नहीं रह गए. अब स्कूलों में भी खेलने लायक मैदान और बड़े क्लासरूम नहीं रह गए हैं. क्लासरूम में बच्चों की भीड़ बढ़ रही है. पेरैंट्स स्मार्ट क्लास रंगबिरंगे कमरे और बस एसी देख कर स्कूलों में अपने बच्चे भेज रहे हैं. यह बच्चों के भविष्य के लिए ठीक नहीं है. पेरैंट्स पर फीस का बोझ तो बढ़ ही रहा है.
एसी क्लासरूम की जगह पर वातावरण के अनुकूल वाले क्लासरूम बनें. जितना ज्यादा एसी का प्रयोग होगा, ग्लोबल वार्मिंग उतनी अधिक होगी. ऐेसे में एसी का जितना कम प्रयोग होगा, वातावरण उतना सुखद हो सकेगा. हम बच्चों को एक अच्छा वातावरण दे कर जाएं, तभी उन का जीवन सही तरह से गुजर सकेगा. सालदरसाल गरमी बढ़ती जा रही है. इस का मुकाबला प्राकृतिक वातावरण को तैयार करने से ही हो सकेगा. एसी के प्रयोग से समस्या हल नहीं होगी, बल्कि और बढ़ जाएगी.