क्या कभी आपने सोचा है कि हिंदी फिल्मों में गानों का होना इतना जरूरी क्यों होता है, जिस में हीरोहीरोइन एक खूबसूरत लोकेशन्स पर रोमांस और डांस करते हुए नजर आते हैं जबकि हौलिवुड की फिल्मों में शायद ही कोई गाना होता हो. असल में हिंदी सिनेमा में हमेशा से विविध प्रकार के गीत होते हैं, जिस में जीवन के विविध पक्षों को दिखाया जाता है, जो हमारे जीवन का महत्त्वपूर्ण अंग होता है. उन सभी पक्षों को इन गीतोंसंगीतों के माध्यम से उभारने का प्रयास गीतकारों एवं संगीतकारों ने सालोंसाल से किया है.
इस के अलावा बौलीवुड में गानों का अर्थ देश की संस्कृति को दिखाने के अलावा कमर्शियल वैल्यू को दिखाना होता है. फोक सोन्ग से ले कर पारंपरिक गाने सभी का महत्व अलग होता है. ये गाने फिल्म को एक म्यूज़िकल टच के साथसाथ पब्लिसिटी देने का भी काम करते हैं.
भावनाओं को व्यक्त करने का जरिया
ये भी सही है कि हमारे देश में भावना संगीत के माध्यम से उजागर होती है. फिर चाहे वो सुख हो या दुख, गाने ही उस से बयां करते हैं. यही वजह है कि बौलीवुड की फिल्म में एक नहीं, बल्कि कई गाने दर्शाए जाते हैं. जिन के बोल लोगों के जुबान पर हमेशा सुनने को मिलते हैं.
बौलीवुड में गानों के बगैर मूवी बनाना संभव नहीं. दोनों ही एकदूसरे के पूरक होते हैं. कई बार ऐसा भी देखा गया है कि फिल्म अच्छी न होने पर भी लोग गानों की वजह से हौल तक खीचे चले आते हैं. फिल्म की कहानी को दर्शक एक बार देखते हैं, लेकिन उन के गाने उन्हे सालोंसाल याद रहते हैं. यही वजह है कि पहले के निर्माता, निर्देशक, संगीतकार और गीतकार को अधिक महत्व देते रहे, क्योंकि तब कहानी के हिसाब से गाने लिखे और बनाए जाते थे, जो आज की फिल्मों में बहुत कम मिल रहे हैं और ये सोचने वाली बात हो चुकी है.
अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा ने एक इंटरव्यू में कहा है कि हिंदी फिल्मों में गाने कहानी को आगे ले जाने का काम करते हैं, जिस में प्यार, शादी और बच्चे सभी को संगीत के माध्यम से दिखाया जाता रहा है, लेकिन आजकल गानों का कहानी से कोई संबंध नहीं होता.
बन रही हैं अलग तरह की फिल्में
ये सही है कि आज भी कई फिल्में ऐसी हैं, जिसे सभी वर्ग के दर्शकों ने पसंद किया, मसलन संजय लीला भंसाली, राकेश रोशन या फिर महेश भट्ट की फिल्मों के गाने आज भी पोपुलर होते हैं. पिछले 30 सालों से भी अधिक समय तक हिंदी फिल्मों के लिए गाने लिख रहे, 4000 से अधिक गाने लिख चुके और गिनीज बुक में सब से अधिक गाने लिखने का रिकौर्ड बना चुके गीतकार समीर कहते हैं कि “पहले की फिल्मों में गानों की अधिकता थी और कहानी के हिसाब से गाने लिखे जाते थे. अब वैसी फिल्में नहीं बन रही हैं, आज की फिल्मों में मांबहन की गाली, नग्नता, सैक्स, वायलेंस आदि दिखाए जाते हैं. किरदार वही हैं पर कहानी अलग है. अर्थ कहीं नजर नहीं आ रहा है. न कहानी, न किरदार न ही समाज में. ऐसे में फिल्मों में अच्छे गानों तलाश भी बेकार है. साजन, दीवाना, आशिकी 2 जैसी फिल्में आज बनानी पड़ेंगी.”
गानों का है मार्केट
समीर आगे कहते है कि “देखा जाए तो आज के दौर में गानों के साथ आशिकी 2 जब बनी तो वह सुपर हिट फिल्म बनी. ऐसा नहीं है कि गानों का मार्केट नहीं है, जो डिजिटल राइट्स पहले 25, 50 लाख या एक करोड़ में बिकते थे वे आज 15 से 20 करोड़ में बिक रहे हैं. अगर ये बिक और खरीदा जा रहा है, तो ये कहां जा रहा है? कोई तो खरीद ही रहा है और ये नई पीढ़ी ही खरीद रही है.
“कुछ लोग ऐसे है, जिन्हे अर्थहीन गाने पसंद हैं क्योंकि उन्हें जंक फूड चाहिए. खाया, फेंक दिया और आगे बढ़ जाते हैं. फिल्मी गीतकार कहानी के हिसाब से गीत लिखता है. अब न उसे कहानी मिल रही है, न उस तरह के किरदार, तो वह शायरी लिखे कैसे? इस के अलावा पहले जो शिद्दत निर्माता, निर्देशक का कहानी को ले कर रहती थी, जिस में वे सही तरीके से बैठ कर चर्चा करते थे, वो अब नहीं है. अभी उन्होंने गाने को रिक्त स्थान की पूर्ति के हिसाब से रखा है, जहां उन्हें कुछ नहीं मिल रहा होता है, तो वहां वे गाने को डाल देते हैं. गाने के लेखक को कहानी और किरदार का कुछ पता नहीं होता, पहले से तैयार गानों को व्हाट्सऐप पर भेज दिए जाते हैं और निर्देशक अपनी मर्जी से उसे डाल देते हैं.”
नई पीढ़ी की नई सोच
समीर बताते हैं कि “मुश्किल ये हो रही है कि जब तक बदलाव ऊपर से नीचे तक नहीं होगा, तब तक अच्छे संगीत की उम्मीद नहीं की जा सकती. मैँ यह भी मानता हूं कि हर 20 साल बाद जब पीढ़ी जवान होती है, तो वह अपनी सोच और संगीत ले कर आती है. अब जो बच्चे स्कूल से ले कर कालेज तक जस्टिन बीबर और शकिरा को सुनती है, वैसे बच्चे जब कम्पोजर बनते हैं तो उन चीजों से अधिक प्रभावित होते हैं. इस के अलावा ओटीटी में जहां सेन्सर भी नहीं है, इस में संगीत की कोई गुंजाइश नहीं होती. कभी एक जमाना था जब हौरर मिस्ट्री में भी संगीत होता था. इस से इंडस्ट्री को नुकसान भी हो रहा है और ये बात सब को पता है, क्योंकि निर्माता, निर्देशक जानते हैं कि फिल्म की रिपीट वैल्यू केवल संगीत ही होता है. फिल्म लोग एक बार देखने जाते हैं जबकि गाने सालोंसाल चलते हैं.”
फिल्मों का व्यवसाय हो रहे हैं खत्म
ये बदलाव है, जिसे सभी को समझना पड़ेगा और समीर मानते हैं कि वह दौर फिर से आएगा, लेकिन तब तक सभी को इंतजार करना पड़ेगा. ऐसा नहीं है कि लेखक नहीं हैं या कम हैं. असल में उन्हें लिखने की आजादी नहीं मिल रही है. साथ ही आज के निर्देशक इतना समय बैठ कर चर्चा करने में लगाना नहीं चाहते. वे इसे झंझट मानते हैं. ऐसे में जो गाने तैयार हैं या पुराने गानों को रीमिक्स कर डाल देते हैं. उन्हें दुख इस बात का है कि बड़े बैनर जैसे यशराज फिल्म्स भी संगीत पर ध्यान नहीं देते. सब पैसा बनाने के चक्कर में लगे हैं और धीरेधीरे इस का असर हिंदी फिल्मों पर हो रहा है. फिल्मों का व्यवसाय खराब हो रहा है, थिएटर बंद हो रहे हैं, कंटेंट नहीं है. इस का असर समझ में अवश्य आएगा लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी होगी.
कुछ खास फिल्में जो गानों की वजह से चर्चित रहीं
इंद्रसभा
आजादी से पहले 1932 में रिलीज हुई फिल्म ‘इंद्रसभा’ को अब तक की सब से ज्यादा गानों वाली फिल्म माना जाता है. इस में 69 गाने थे. इसी तरह और भी कई फिल्में हैं, जो गानों की वजह से ही जानी जाती हैं.
सिलसिला (1981)
सिलसिला 1981 की एक रोमांटिक हिट ड्रामा फिल्म है, जो यश चोपड़ा द्वारा सहलिखित, निर्देशित और निर्मित है. इस में हरिवंश राय बच्चन के गीत थे. फिल्म में कुल 12 गाने हैं.
हम आप के हैं कौन (1994)
वर्ष 1994 में सूरज बड़जात्या की फिल्म ‘हम आप के है कौन’ में सलमान खान और इस फिल्म में माधुरी दीक्षित मुख्य भूमिका में हैं. फिल्म में 14 गाने हैं और सभी गाने हिट हैं.
हम साथसाथ हैं (1999)
हम साथसाथ हैं पारिवारिक ड्रामा फिल्म है, जिसे सूरज बड़जात्या ने लिखा और निर्देशित किया है. इस फैमिली ड्रामा फिल्म में 10 गाने हैं, जो काफी पोपुलर रहे.
ताल (1999)

ताल एक संगीतमय रोमांटिक ड्रामा फिल्म है, जिसे सुभाष घई द्वारा सहलिखित, संपादित, निर्मित और निर्देशित किया गया है. फिल्म में ऐश्वर्या राय, अक्षय खन्ना और अनिल कपूर मुख्य भूमिकाओं में है. इस में 12 गाने हैं.
हम दिल दे चुके सनम (1999)
निर्माता, निर्देशक संजय लीला भंसाली ड्रामा फिल्म ‘हम दिल दे चुके सनम’ है. इस फिल्म में 11 गाने हैं.
मोहब्बतें (2000)

यह एक हिंदी भाषा की संगीतमय रोमांटिक ड्रामा फिल्म है, जिसे आदित्य चोपड़ा द्वारा लिखा और निर्देशित किया गया था और यशराज फिल्म्स के यश चोपड़ा द्वारा निर्मित किया गया था. फिल्म में कुल मिला कर 8 गाने हैं.
देवदास (2002)
देवदास रोमांटिक ड्रामा फिल्म है, जिस का निर्देशन संजय लीला भंसाली ने किया है. इस में 10 गाने हैं, सभी क्लासिक हिट हैं.
तेरे नाम (2003)
तेरे नाम त्रासदीपूर्ण रोमांटिक ड्रामा फिल्म है, जो सतीश कौशिक द्वारा निर्देशित और जैनेंद्र जैन द्वारा लिखित हैं. इस फिल्म में सलमान खान और भूमिका चावला साथ आए. फिल्म में 12 गाने हैं.
रौकस्टार (2011)
रौकस्टार संगीतमय रोमांटिक ड्रामा फिल्म है, जो इम्तियाज अली द्वारा लिखित और निर्देशित है. इस में 14 गाने हैं और इन्हें काफी पसंद किया गया.
बाजीराव मस्तानी (2015)
यह संजय लीला भंसाली द्वारा निर्देशित 2015 की महाकाव्य ऐतिहासिक रोमांस फिल्म है. फिल्म में 10 गाने हैं, सभी आइकोनिक बन गए हैं.