राजनेताओं ने हमेशा से मतदाताओं से संवाद करने के लिए मीडिया का इस्तेमाल किया है. पहले अखबार, पत्रिकाओं, टीवी चैनलों और रेडियो के माध्यम से वे जनता तक अपनी पहुंच बनाते थे, लेकिन अब फेसबुक, व्हाट्सऐप, यूट्यूब जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्म ने उन की चाहत को उड़ान दी और इन माध्यमों से उन्हें अपनी बात हवा की तेजी से फैलाने का अवसर हाथ लगा.

सोशल मीडिया को जो चीज़ विशिष्ट बनाती है वह है उस का पैमाना, उस की गति और वह न्यूनतम लागत जिस का लाभ उठाते हुए नेता सोशल मीडिया के ज़रिए अपने मन की बात दुनियाभर में फैला सकते हैं. मौजूदा दौर की डिजिटल क्रांति के बीच ट्विटर और फेसबुक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफौर्म दुनिया के कई हिस्सों में राजनीतिक विमर्श की प्रकृति को स्थायी रूप से बदल रहे हैं. दुनियाभर में राजनीतिक लोग, बड़े निकायों की तरह, बड़ी आबादी तक पहुंचने के लिए नियमित रूप से इन माध्यमों का उपयोग कर रहे हैं.

भारतीय राजनीति में भी सोशल मीडिया बेहद अहम भूमिका निभा रहा है. आज सभी पार्टियों और नेताओं के सोशल मीडिया हैंडल हैं और वे लोगों के साथ निरंतर संपर्क बना कर रखते हैं. देश के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से ले कर गांव के प्रधान तक सोशल मीडिया पर ऐक्टिव है. पार्षदों के, विधायकों के, सांसदों के पास अपनेअपने मीडिया सैल हैं. उन में सोशल मीडिया प्लेटफौर्म की जानकारी रखने वालों की बड़ी टीम काम करती है. उस टीम का काम होता है दिनभर नेताजी से जुड़े कामों और बातों पर ट्वीट बना बना कर पोस्ट करना, उन को पैसे दे कर लाइक और रीट्वीट करवाना. ये रोज के अखबारों में पार्टी या उन के नेता से जुड़ी खबर छपने पर उस की कटिंग या फोटो सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हैं और व्यूअर्स की संख्या बढ़ाने के लिए तमाम हथकंडे अपनाते हैं. इस तरह की मीडिया टीम पर सारे नेता हर महीने लाखों रुपए खर्च करते हैं. कुछ प्राइवेट कंपनियां भी नेताओं के लिए यह काम करती हैं. सोशल मीडिया के बिना आज के वक्त में राजनीति अधूरी है.

ये प्रोफैशनल्स कोई और नहीं, बल्कि बड़ी मल्टीनेशनल कंपनियां हैं जो नेताओं की ‘सोशल’ छवि को दुनिया के सामने प्रस्तुत करती हैं. ये कंपनियां विभिन्न पैकेजों के आधार पर अपनी सेवाएं दे रही हैं, मसलन यदि नेताजी को मात्र सोशल मीडिया अकाउंट्स पर पोस्ट डलवानी हैं तो उस की कीमत एक लाख रुपए है. यदि दोतीन लोगों की टीम नेताजी की छवि सुधारने में लगाई जाती है तो पैकेज 3 से 5 लाख रुपए का हो जाता है. सब से बड़ा पैकेज 5 से 8 लाख रुपए का है जिस में नेताजी के साथ औडियोवीडियो प्रोफैशनल्स की 3 से 4 लोगों की टीम चलती है जिस में उन के वीडियोज लाइवस्ट्रीम किए जाते हैं.

साथ ही, कई कंपनियां नेताजी के भाषण भी लिख रही हैं जिस से उन की सोशल मीडिया रीच बढ़े. यह सारी कवायद इसलिए है ताकि नेताजी की छवि और उन का स्वरूप विस्तृत लगे. भाजपा से ले कर कांग्रेस की आईटी सैल में अलगअलग टीमें बनी हुई हैं जो प्रत्याशियों के सोशल मीडिया अकाउंट्स पर नजर रख रही हैं. जिस की जितनी रीच, उस को चुनावी टिकट मिलने की संम्भावना उतनी ही अधिक बन रही है.

मध्य प्रदेश में कांग्रेस मीडिया सैल के अनुसार, पार्टी के 70 हजार से अधिक व्हाट्सऐप समूह हैं जिन के माध्यम से 90 लाख लोगों तक पार्टी अपना एजेंडा एक क्लिक के माध्यम से पहुंचाती है. विधानसभा चुनाव के दौरान बूथ स्तर पर 60 हजार से अधिक मतदान केंद्रों पर कोऔर्डिनेटर बनाए गए जिन्होंने सोशल मीडिया के जरिए जनता तक अपनी बात पहुंचाई.

अयोध्या में रामलला के मंदिर निर्माण का शोर सोशल मीडिया पर आजकल खूब है. लोकसभा चुनाव सिर पर है, इसलिए रामलला को राजनीतिक हथियार बना कर बीजेपी सोशल मीडिया पर अपने महिमामंडल में जुटी है. बावजूद इस के, विपक्षी पार्टियों की आवाज भी खूब गूंज रही है. यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ की सोशल मीडिया पर फैनफौलोइंग लगातार बढ़ रही है, तो अखिलेश यादव भी पीछे नहीं हैं. वहीं, अगर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विपक्षी नेता राहुल गांधी की बात करें तो दोनों ही ट्विटर पर काफी ऐक्टिव हैं. ट्विटर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के फौलोअर्स की संख्या अगर 90 मिलियन (9 करोड़) है तो सत्ता में न होते हुए भी राहुल गांधी के 22.6 मिलियन यानी 2.25 करोड़ फौलोअर्स हैं. मोदी के फौलोअर्स की संख्या भले ज़्यादा हो मगर मोदी के मुकाबले राहुल दोगुने लाइक (Like) और रीट्वीट (Retweet) हासिल कर रहे हैं. ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के बाद से राहुल गांधी के फौलोअर्स की संख्या काफी तेजी से बढ़ी है. वहीं, प्रधानमंत्री के फौलोअर्स बढ़ने की गति कम हुई है.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...