भारत में मोमोज की शुरुआत 1960 के दशक में हुई थी. जब बहुत बड़ी संख्या में तिब्बतियों ने अपने देश से पलायन किया था. तिब्बत छोड़ कर वे रहने के लिए भारत आ गए थे. उन के साथ ही मोमोज भी भारत पहुंच गया था.

पहले मोमोज भारत के सिक्किम, मेघालय, पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग और कलिमपोंग के पहाड़ी इलाकों में पहुंचा. इस के बाद जैसेजैसे इस का स्वाद लोगों की जबान को पंसद आने लगा मोमोज सब से अधिक बिकने वाला फूड हो गया.

अब यह गांव, शहर, कसबो से ले कर मैट्रो शहरों तक बिक रहा है. यह रोजगार का सब से बडा साधन भी बन गया है.

उत्तराखंड में पौड़ी गढ़वाल जिले के नलाई तल्ली गांव में रहने वाले रणजीत सिंह अपने सपनों को पूरा करने लखनऊ आए थे. होटल और रेस्तरां में वेटर की जौब की। इस के बाद कचौङी का ठेला लगाना शुरू किया. इस में नुकसान उठाना पड़ा, तो इस के बाद रणजीत सिंह ने 2008 में लखनऊ के हजरतगंज इलाके में चाऊमीन का ठेला लगाना शुरू किया. नए साल की शुरुआत में रणजीत ने चाउमीन के साथ गिफ्ट के रूप में मोमोज देना शुरू किया.

मोमोज से बनाई अपनी पहचान

नौरमल मोमोज जहां स्टीम किए होते थे, वहीं रणजीत के मोमोज फ्राई किए होते थे. चटनी भी अलग थी. फ्राई मोमोज और चटनी का स्वाद लोगों को ऐसा पंसद आया कि रणजीत के ठेले से चाऊमीन से कहीं ज्यादा मोमोज बिकने लगा.

इस के बाद रणजीत ने अपने इस कारोबार को बढ़ाने का काम शुरू किया. 2013 में ‘नैनीताल मोमोज’ के नाम से लखनऊ के गोमतीनगर इलाके मे ढाबा खोल दिया. उस के बाद नैनीताल मोमोज रेस्तरां खोला.

आज नैनीताल मोमोज देश का सब से बडा मोमोज ब्रैंड बन गया है. 150 तरह के वेज और नौनवेज मोमोज उन के यहां मिलते हैं. अलगअलग शहरों में 30 आउटलेट्स हैं. इन में लखनऊ, नोएडा, गाजियाबाद, मुंबई, सीतापुर, गोरखपुर, कानपुर, वाराणसी, प्रयागराज, बाराबंकी, बुलंदशहर, अलीगढ़ जैसे शहर शामिल हैं.

नैनीताल मोमोज की सब से खास बात यह है कि इस को तैयार करने में मल्टीग्रेन आटा, हरी सब्जियों और खास किस्म के मसालों का प्रयोग किया जाता है. मैदा प्रयोग नहीं किया जाता है, जिस से खाने वाले को अलग टेस्ट मिलता है.

रणजीत कहते हैं,”मोमोज को बनाने में मैदा प्रयोग होेने से इस को हैल्दी फूड नहीं माना जाता था. ऐसे में हम ने अपने मोमोज को हैल्दी बनाने के लिए हरी सब्जी और मल्टीग्रेन आटा, रागी का प्रयोग करना शुरू किया. इसे लोगों ने पंसद किया. अब अलगअलग स्वाद वाले 150 किस्म के मोमोज हमारे यहां तैयार होते हैं. हम उत्तराखंड के रहने वाले हैं इसलिए हम ने अपनी पहचान के मुताबिक ‘नैनीताल’ को जोड़ कर नैनीताल मोमोज की शुरुआत की.”

अपनी मेहनत से रणजीत ने ठेले से अपना सफर शुरू कर के मोमोज चेन रेस्तरां बनाने का काम किया.

कहां का है मोमोज ?

मोमोज को अलगअलग नामों से जाना जाता है. चीन में जहां इस का नाम मोमो है, वहीं तिब्बत और अरुणाचल प्रदेश के इलाके में इस को मोमो के नाम से जाना जाता है.

असल में मोमो शब्द चाइनीज होने के कारण इस को चाइना का फूड मान लिया जाता है. मोमो एक चाइनीज शब्द है, जिस का मतलब होता है भाप में पकी हुई रोटी. मजेदार बात यह है कि मोमो चीन का माना जाता है पर यह नेपाल और तिब्बत की डिश है. इस का आकार देखने में पहाङ जैसा बनता है. यह अरुणाचल प्रदेश के मोनपा और शेरदुकपेन जनजाति के खानपान का एक अहम हिस्सा है. यह जगह तिब्बत बौर्डर से बिलकुल लगी हुई है. यहां के लोग मोमोज को पोर्क, सरसों की पत्तियों और हरी सब्जियों की फिलिंग से तैयार करते हैं.

मैदानी इलाकों में शुरुआत

मैदानी इलाको में इस की शुरुआत स्टीम से तैयार मोमोज के रूप में हुई. स्वाद के अनुसार इस के अंदर भरी जाने वाली चीजों में बदलाव होता गया. ₹30 में 6 पीस सब से कम कीमत ठेले पर है. होटल और रेस्तरां में यह कीमत अलगअलग है. वेजनौनवेज के हिसाब से कीमत घटतीबढ़ती रहती है.

अब इसे सब्जियों के अलावा चिकन, और पनीर की फिलिंग से भी तैयार किया जाता है. स्टीम के अलावा लोग मोमोज को फ्राई कर के, रोस्ट कर के इस का स्वाद लेते हैं। अब तो तंदूरी मोमोज, अफगानी मोमोज, कुरकुरे मोमोज और यहां तक चौकलेट मोमोज जैसी वाइड वैरायटी भी मिलने लगी है.

आसान है बनाना

खाने के सब से अधिक ठेले मोमोज के ही लगते हैं. इन को बनाना सरल होता है. सस्ते और टेस्टी होने के कारण खाने वालों को यह खूब पंसद आता है. शायद ही देश का कोई ऐसा क्षेत्र हो जहां मोमोज न खाया जाता हो.

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