कानपुर के बेगमपुरवा में 3 नाबालिग बच्चों ने कुत्ते के 4 नन्हे पिल्लों को ज़िंदा जला दिया. बच्चो की उम्र 8-9 साल के बीच थी. क्षेत्र के एक पार्क में एक फीमेल डौग ने 4 बच्चों को जन्म दिया था. स्थानीय लोगों ने पिल्लों को ठंड से बचाने के लिए जूट की बोरी और कार्ड बोर्ड आदि से एक छोटा सा घर उन के लिए बना दिया था, जिस में वे दुबके रहते थे. बच्चों ने उन के इस घर में भूसा भर कर उस में आग लगा दी, जिस में चारों पिल्ले तड़पतड़प कर मर गए. उन की दर्दनाक आवाज सुन कर स्थानीय लोग जमा होने लगे तो पिल्लों की मौत का मज़ा ले रहे बच्चे डर कर भागने लगे, लेकिन लोगों ने उन में से एक को पकड़ कर पुलिस के हवाले कर दिया.

जानवरों के लिए काम करने वाली सामाजिक संस्था ‘उम्मीद एक किरण’ ने किदवई नगर थाने में इस मामले में तहरीर दी. मामला पशु क्रूरता अधिनियम के तहत 428 और 429 की धारा का था. जिस में से धारा 428 में 2 साल की सजा का प्रावधान है, जबकि धारा 429 में 5 साल की सजा है. इस मामले में आरोपी को थाने से ही जमानत मिल जाती है, लेकिन इस मामले में चूंकि बच्चे माइनर थे इसलिए बच्चों को पुलिस ने अरेस्ट नहीं किया.

बच्चों में बढ़ती क्रूरता

गौरतलब है कि बचपन सब से संवेदनशील अवस्था है. जीवों के प्रति प्रेम सब से ज्यादा बचपन में ही उमड़ता है. बड़ों के मुकाबले बच्चे कुत्ते, बिल्ली, तोते आदि पालने में और उन के साथ खेलने में सब से ज्यादा खुशी महसूस करते हैं. उन से बिछोह भी उन को बर्दाश्त नहीं होता. मगर यह घटना संकेत करती है कि बच्चों की मानसिकता और संवेदनशीलता के स्तर में बहुत बड़ा परिवर्तन हो रहा है, जिस पर मातापिता, टीचर्स या अन्य लोगों का ध्यान नहीं जा रहा है. बच्चों में क्रूरता बढ़ रही है. अपराध की प्रवृत्ति बहुत कम उम्र में पैदा हो रही है. जिस को अगर अनदेखा किया गया तो आने वाला समय देश और समाज के लिए खतरनाक होगा.

बच्चों की ऐसी क्रूर और उग्र मानसिकता का जिम्मेदार कौन है? क्या सोशल मीडिया? आज हर बच्चे के हाथ में स्मार्ट फ़ोन है. यूट्यूब पर वह बहुत सी ऐसी चीज़ें देख रहा है जो उस के भोले मन पर बुरा प्रभाव छोड़ती हैं. क्या टीवी चैनल बच्चों के व्यवहार पर प्रभाव डाल रहे हैं? दो दशक पहले तक क्राइम सीरियल या पारिवारिक नोकझोंक वाले सीरियल देर रात दिखाए जाते थे जब बच्चे सो चुके होते थे. लेकिन अब सारे दिन ऐसे सीरियल टीवी चैनलों पर जारी रहे हैं. जो सीरियल चल रहे हैं उन में एकदूसरे की खिलाफ साजिश, मारधाड़, गालीगलौच और मौत का तांडव चल रहा है.

शक्तिमान, स्पाइडर मैन आदि सीरियल भी हिंसा को ही पोषित करते हैं और कुछ नहीं. इन के अलावा ऐतिहासिक सीरियल भी कमोबेश हिंसक विचारों को ही बढ़ाते हैं. उन्हें देख कर बच्चो के मन में भी ऐसे ही हीरो बनने की इच्छा बलवती हो जाती है. उन्हें यही लगता है कि कोई जरा सा भी सिर उठाए तो उसे खत्म कर दिया जाना चाहिए. इस तरह आराम से जिंदगी जी जा सकती है.

इस के अलावा न्यूज चैनलों में भी दुनिया में चल रही लड़ाइयों के दृश्य परोसे जा रहे हैं. रूस-यूक्रेन युद्ध, गाजा और इजराइल का भींषण युद्ध, बमों के धमाके, घायल चीखतेमरते लोग, गिरती इमारतों के भयावह दृश्य. कोई अच्छी खबर, कोई आशावादी बात, कोई अविष्कार, कोई सकारात्मक बात कहीं नहीं हो रही है. बच्चे इन न्यूज चैनलों और सीरियलों को देखते हैं. इन का बुरा प्रभाव भी उन के दिमाग पर पड़ रहा है.

कभीकभी घरपरिवार अथवा समाज से मिलने वाले तिरस्कार से बच्चे कुंठाग्रस्त हो कर भी इस प्रकार हिंसा के मार्ग पर चल पड़ते हैं. यहां बदले की भावना प्रमुख कारण होती है. ऐसे बच्चों को प्यार व दुलार की आवश्यकता होती है.

चिंता कि बात

डा. सुगंधा गुप्ता कहती हैं, “आमतौर पर, जो बच्चे जानवरों के साथ दुर्व्यवहार करते हैं, उन्होंने या तो खुद दुर्व्यवहार देखा है या अनुभव किया है. किसी जानवर के विरुद्ध की गई हिंसा का प्रत्येक कार्य इस बात का संकेत है कि व्यक्ति पाशविकता की तरफ बढ़ रहा है और वह भविष्य में अपराधी बन सकता है, समाज को बड़ा नुकसान भी पहुंचा सकता है. 1970 के दशक से अब तक क्राइम के क्षेत्र में जो अनुसंधान हुए हैं, उस में बचपन में जानवरों के प्रति क्रूरता को बाद में अपराध, हिंसा और आपराधिक व्यवहार में बदलते देखा गया है. पशुओं के प्रति क्रूरता को चेतावनी संकेत के रूप में रिपोर्ट किया गया है. ज्यादातर हिंसक अपराध में अपराधियों के प्रोफाइल में पशु क्रूरता का इतिहास है. आंकड़े बताते हैं कि घरेलू हिंसा देखने वाले 30 प्रतिशत बच्चे अपने छोटे भाईबहनों या पालतू जानवरों के साथ दुर्व्यवहार करते हैं.”

बच्चों की हिंसक वृत्ति पर लगाम लगाना बहुत आवश्यक है. घर में मातापिता को चाहिए कि हिंसा से भरपूर कार्टून के स्थान पर बच्चो को संस्कार देने वाले कार्यक्रम देखने के लिए प्रोत्साहित करें. मारधाड़ वाले सीरियल कम से कम समय के लिए देखने दें. उन्हें बारबार समझाएं कि हिंसा से किसी का भला नहीं होता बल्कि नुकसान होता है. मिलजुल कर भाईचारे से रहने के लिए शिक्षित करें. स्कूल या खेल के लिए जाते समय चौकस रहें कि बच्चे ऐसा कोई हिंसा करने वाला हथियार अपने साथ न ले जाएं.

विद्यालय में टीचर्स को भी चाहिए कि किसी बच्चे में हिंसक प्रवृत्ति पनपती दिखाई दे, तो फौरन उन के मितापिता तथा स्कूल अथौरिटी को सूचित करें ताकि इस मनोवृत्ति पर समय रहते लगाम लगाई जा सके. समयसमय पर बच्चों की काउंसलिंग कराने से भी उस के मन में आए कुंठा अथवा एग्रेसिव भावों को नियंत्रित किया जा सकता है.

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