चांदीलाल आरष्टी के एक कार्यक्रम से स्कूटी से वापस लौट रहे थे. उन्हें घर वापसी में देरी हो गई थी. जैसे ही ‘सदर चैराहे‘ पर पहुंचे, तो उन की नजर शराब की दुकान पर पड़ी. उन्हें तुरंत ध्यान आया कि घर पर शराब की बोतल खाली हो गई थी और शाम की खुराक के लिए कुछ नहीं है.

उन्होंने स्कूटी एक ओर खड़ी की और अंगरेजी शराब का एक पव्वा खरीद लिया, जो उन की 2-3 दिन की खुराक थी. जब वे स्कूटी से घर की ओर चले तो उन्हें ध्यान आया कि पुलिस विभाग में भरती होने से पहले वे शराब को हाथ तक नहीं लगाते थे. फिर अपने विभाग के साथियों के साथ उठतेबैठते उन्हें शराब पीने की लत लग गई थी. सिस्टम में कई चीजें अपनेआप होने लगती हैं और उन से हम कठोर प्रण कर के ही बच सकते हैं. अब तो पीने की आदत ऐसी हो गई है कि शाम को बिना पिए निवाला हलक से नीचे उतरता ही नहीं.

घर पहुंच कर चांदीलाल ने अपने खाली मकान का ताला खोला. रसोई से ताजा खाने की गंध सी आ रही थी. इस का मतलब था कि घर की नौकरानी स्वीटी खाना बना कर जा चुकी थी. आनंदी के गुजरने के बाद मुख्य दरवाजे और रसोई की चाबी स्वीटी को दे दी गई थी, जिस से वह समय से खाना बना कर अपने घर जा सके.

आनंदी के बिना घर वीरान सा हो गया था. यही घर, जिस में आनंदी के रहते कैसी चहलपहल सी रहती थी, रिश्तेदारों और जानपहचान वालों का आनाजाना लगा ही रहता था, अब कैसा खालीखाली सा रहता है. घर का खालीपन कैसा काटने को दौड़ता है. सबकुछ होते हुए भी, कुछ भी न होने का एहसास होता है. केवल और केवल अकेला आदमी ही इस एहसास को परिभाषित कर सकता है. किसी ने सच कहा है ‘घर घरवाली का‘. वह है तो घर है, नहीं तो मुरदाघाट.

चांदीलाल को अब शराब की खुराक लेने की जल्दी थी. उन्होंने पैंटशर्ट उतारी और नेकरबनियान पहने हुए ही पैग तैयार करने लगे. तभी उन्हें ध्यान आया कि वे जल्दबाजी में पानी लाना तो भूल ही गए हैं. पुरानी आदतें मुश्किल से ही मरती हैं. आदतन, उन्होंने आवाज लगाई, ‘‘आनंदी, जरा एक गिलास पानी तो लाना.‘‘

लेकिन जब कुछ देर तक पानी नहीं आया, तो चांदीलाल ने रसोई की तरफ देखा. वहां कोई नहीं था. अब उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ, फिर अफसोस हुआ और इस के बाद आनंदी को याद कर उन की आंखें भर आईं. वह उठे और पानी लेने के लिए खुद रसोई की तरफ गए.

एक पैग लेने के बाद, वे सोचने लगे कि अपनी मां की 13वीं के बाद मंझली बेटी रजनी ने उन से कितनी जिद की थी जयपुर चलने की. भला क्या कहा था उस ने, ”पापा, जयपुर में हमारे पास कितना बड़ा मकान है, एक कमरे में आप रह लेना. आप का अकेलापन भी दूर हो जाएगा और आप की देखभाल भी अच्छे से हो जाएगी.”

यही बात नागपुर में रहने वाली बड़ी बेटी सलोनी और इसी शहर में रहने वाली सब से छोटी बेटी तारा ने भी कही थी. फिर वे सोचने लगे, ‘‘मैं भी कितना दकियानूसी और रूढ़िवादी हूं. भला इस जमाने में बेटाबेटी में क्या फर्क है? कितने ही लोग हैं, जो बेटा न होने के कारण अपना बुढ़ापा बेटी और दामाद के घर गुजारते हैं और एक मैं हूं पुराने खयालातों का, जो अपनी बेटी के घर का पानी भी पीना पसंद नहीं करता, उन के यहां रहना तो बहुत दूर की बात.

चांदीलाल का दूसरा पैग बनाने का मन तो नहीं था, लेकिन अब शराब किसी दोस्त की संगति की तरह अच्छी लगती थी. शराब पीना और फिर नशे में बड़बड़ाना अकेलेपन को दूर करने का एक अच्छा जरीया भी तो था. शराब पी कर खाना खाने के बाद नींद भी तो अच्छी आती थी. फिर वह खाना खाने के बाद थकान और नशे की धुन में नींद के आगोश में चले गए.

चांदीलाल पूजापाठी थे. उन की सुबह स्नानध्यान से शुरू होती. नौकरी से रिटायर होने के बाद कोई खास काम तो था नहीं, अखबार पढ़ते, टीवी देखते और पौधों में पानी लगाते. कभी कोई मेहमान आ जाता तो उस के साथ गपशप कर लेते. लेकिन कुछ जानपहचान के लोग ऐसे थे, जो अब कुछ ज्यादा ही आने लगे थे. ये वे मेंढक थे, जो मौका पा कर बारिश का मजा लेना चाहते थे.

ऐसा ही एक मेहमान था चांदीलाल का दूर का भतीजा शक्ति सिंह. वह प्रोपर्टी डीलिंग का काम करता था. वह जब भी आता घुमाफरा कर चांदीलाल से उन के मकान की चर्चा करता, ‘‘चचा, आप का यह मकान 50 लाख रुपए से कम का नहीं है. बेटियां तो आप की बाहर रहती हैं, आप के बाद इस मकान का क्या होगा?‘‘

‘‘क्या होगा? मेरे मरने के बाद मेरी प्रोपर्टी पर मेरी बेटियों का अधिकार होगा,‘‘ चांदीलाल उसे समझाते.

‘‘लेकिन, जयपुर और नागपुर वाली बेटियां तो यहां लौट कर आने वाली नहीं. रही बात तारा की, तो उस के पास तो खुद इस शहर में इतना बड़ा मकान है, वह भी आधुनिक तरीके से बना हुआ. वह इस पुराने मकान का क्या करेगी?‘‘

‘‘कोई कुछ करे या न करे, शक्ति तुम से मतलब?‘‘ चांदीलाल कुछ तल्ख लहजे में बोले.

‘‘अरे, आप तो नाराज होने लगे. मैं तो आप की मदद करना चाहता था, आप के मकान की सही कीमत लगा कर.‘‘

‘‘फिर मैं कहां रहूंगा, शक्ति? क्या तुम ने यह कभी सोचा है?‘‘ चांदीलाल ने सवाल दागा.

‘‘चचा, अगर कुछ पैसे ले कर आप यह मकान मेरे नाम कर दो, तो आप मेरे ही पास रह लेना. आखिर मैं आप का भतीजा हूं, बिलकुल आप के बेटे जैसा. आप के बुढ़ापे में आप की सेवा मैं ही कर दूंगा.‘‘

चांदीलाल कोई दूध पीते बच्चे तो थे नहीं, जो शक्ति सिंह की बात का मतलब न समझ रहे हों. उन्होंने नहले पे दहला जड़ते हुए कहा, ”शक्ति, तुम्हें मेरी सेवा की इतनी ही चिंता है तो ऐसे ही मेरी सेवा कर दो, अपने नाम क्या मकान लिखवाना जरूरी है. और वैसे भी तुम को एक बात और बता दूं, तुम जैसों से ही बचने के लिए आनंदी पहले ही इस मकान की वसीयत मरने से बहुत पहले ही अपनी बेटियों के नाम कर चुकी थी, क्योंकि आनंदी को इस मामले में मुझ पर भी विश्वास नहीं था. वह सोचती थी कि शक्ति सिंह जैसा कोई व्यक्ति कहीं मुझे अध्धापव्वा पिला कर नशे की हालत में मुझ से यह प्रोपर्टी अपने नाम न करवा ले. शक्ति सिंह तुम्हें देख कर आज सोचता हूं कि आनंदी का फैसला कितना सही था?”

शक्ति सिंह समझ गया कि यहां उस की दाल गलने वाली नहीं. वह बहाना बना कर चलने के लिए उठा, तो चांदीलाल ने कटाक्ष करते हुए कहा, ”अरे बेटा, चाय तो पीता जा. अभी हमें सेवा का मौका दे, फिर तुम हमारी सेवा कर लेना.”

लेकिन इतनी देर में शक्ति सिंह अपनी कार में बैठ चुका था और उस दिन के बाद वह अपने इन चचा से मिलने फिर कभी नहीं आया.

कुछ ही देर बाद चांदीलाल का एक पुराना परिचित चंदन आ धमका. वह किसी पक्के इरादे से आया था, इसलिए चांदीलाल से लगभग सट कर बैठा. फिर बात को घुमाफिरा कर अपने इरादे पर ले आया.

‘‘भाईसाहब, अकेलापन भी बहुत बुरा होता है. खाली घर तो काटने को दौड़ता है,‘‘ चंदन ने भूमिका बनानी शुरू की.

‘‘हां चंदन, यह तो है. लेकिन क्या करें, किस ने सोचा था कि आनंदी इतनी जल्दी चली जाएगी. बस अब तो यों ही जिंदगी गुजारनी है. अब किया ही क्या जा सकता है?‘‘

‘‘नहीं भाईसाहब, यह जरूरी तो नहीं कि जिंदगी अकेले काटी जाए,‘‘ चंदन ने अपनी बात आगे बढ़ाई.

‘‘चंदन, और इस उम्र में करना क्या है? तीनों बेटियों का घर अच्छे से बसा हुआ है. वे सुखी हैं तो मैं भी सुखी हूं.‘‘

चंदन तो अपने मकसद से आया था. वह बोला, ”अरे भाईसाहब, क्या कहते हो? इस उम्र में क्या नहीं किया जा सकता? मर्द कभी बूढ़ा होता है क्या?”

उस की बात पर चांदीलाल ने हंसते हुए कहा, ‘‘चंदन, तुम भी अच्छा मजाक कर लेते हो. अब तो तुम कवियों और दार्शनिकों की तरह बात करने लगे हो. मैं कोई शायर नहीं कि कल्पना लोक में जिऊं. मैं ने पुलिस विभाग में नौकरी की है. मेरा वास्तविकताओं से पाला पड़ा है, मैं पक्का यथार्थवादी हूं. 60 साल की उम्र में सरकार रिटायर कर देती है और मैं 65 पार कर चुका हूं.‘‘

लेकिन चंदन हार मानने वालों में से नहीं था. उस ने कहा, ‘‘भाईसाहब, इस उम्र में तो न जाने कितने लोग शादी करते हैं. आप भी पीछे मत रहिए, शादी कर ही लीजिए. एक लड़की मतलब एक औरत मेरी नजर में है, यदि आप चाहो तो बात… ‘‘

‘मतलब चंदन, तुम्हें कोई शर्मलिहाज नहीं. भला, मैं इस उम्र में दूसरी शादी कर के समाज में क्या मुंह दिखलाऊंगा? मेरी बेटियां और दामाद क्या सोचेंगे?’

अब चंदन चांदीलाल के और निकट सरक आया और आगे बोला, ‘अरे भाईसाहब, यह जमाना तो न जाने क्याक्या कहता है? लेकिन यह जमाना यह नहीं जानता कि अकेले जीवन काटना कितना मुश्किल होता है?’

”कितना भी मुश्किल हो चंदन, लेकिन इस उम्र में दूसरा विवाह करना शोभा नहीं देता.”

‘‘भाईसाहब, अभी तो आप के हाथपैर चल रहे हैं, लेकिन उस दिन की तो सोचिए, जब बुढ़ापे और कमजोरी के कारण आप का चलनाफिरना भी मुश्किल हो जाएगा. अपनी रूढ़िवादी सोच के कारण आप अपनी बेटियों के पास तो जाओगे नहीं. अपने भाईभतीजों से भी आप की बनती नहीं. तब की सोचिए न, तब क्या होगा?‘‘ चंदन ने आंखें चौड़ी करते हुए प्रश्नवाचक दृष्टि से कहा.

यह सुन कर चांदीलाल सोचने को मजबूर हुए. उन्हें लगा कि चंदन कह तो सच ही रहा है, लेकिन वह अपनेआप को संभालते हुए बोले, ‘‘चंदन, तब की तब देखी जाएगी.”

‘‘देख लो भाईसाहब. जरूरी नहीं, आप को सरोज जैसी अच्छी और हसीन औरत फिर मिल जाए. अच्छा, एक काम करो, एक बार बस आप सरोज से मिल लो. मैं यह नहीं कह रहा कि आप उस से शादी ही करो. लेकिन, एक बार उस से मिलने में क्या हर्ज है?‘‘

‘‘मिलने में तो कोई हर्ज नहीं, लेकिन यदि मेरी बेटियों को यह सब पता चला तो…?‘‘ चांदीलाल ने प्रश्न किया.

‘‘उन्हें तो तब पता चलेगा, जब हम उन्हें पता चलने देंगे,‘‘ चंदन ने बड़े विश्वास के साथ कहा. तब तक स्वीटी उन के लिए चाय बना कर ले आई थी. चाय पी कर चंदन चला गया.

फिर चंदन एक दिन सरोज को चुपचाप कार में बैठा कर चांदीलाल के घर ले आया. चांदीलाल को सरोज पहली ही नजर में भा गई. वे सोचने लगे, ‘बुढ़ापे में इतना हसीन साथी मिल जाए तो बुढ़ापा आराम से गुजर जाए.‘

महिलाओं के आकर्षणपाश में बड़ेबड़े ऋषिमुनि फंस गए, चांदीलाल तो फिर भी एक साधारण से इनसान थे, आखिर किस खेत की मूली थे.
अब बात करवाने में चंदन तो पीछे रह गया, चांदीलाल खुद ही मोबाइल पर रोज सरोज से बतियाने लगे. जब चंदन और सरोज की सारी गोटियां फिट बैठ गईं, तो एक दिन चंदन ने चांदीलाल से कहा, ‘‘भाईसाहब, एक बार सलोनी, रजनी और तारा बिटिया से भी बात कर लेते.‘‘

लेकिन, अब तक तो चांदीलाल के सिर पर बुढ़ापे का इश्क सवार हो चुका था. वे किसी भी हाल में सरोज को नहीं खोना चाहते थे. चंदन की बात को सुन कर वे एकदम से बोले, ‘‘नहीं, नहीं, चंदन. मैं अपनी बेटियों को अच्छे से जानता हूं, वे सरोज को घर में घुसने भी नहीं देंगी. पहले सरोज से कोर्टमैरिज हो जाने दो, फिर देखा जाएगा.‘‘

चंदन समझ गया कि चांदीलाल के इश्क का तीर गहरा लगा है. उस की योजना पूरी तरह से सफल हो रही है.

फिर एक दिन चंदन योजनाबद्ध तरीके से सरोज को आमनेसामने की बातचीत कराने के बहाने चांदीलाल के घर ले कर पहुंचा. बातचीत पूरी होने के बाद चंदन ने कहा, ‘‘ठीक है भाईसाहब, मैं चलता हूं. रात भी बहुत हो चुकी है. आज रात सरोज यहीं रहेगी. आप दोनों एकदूसरे को अच्छे से समझ लो, मैं सुबह को सूरज उगने से पहले ही यहां से ले जाऊंगा.‘‘

चांदीलाल को भला इस में क्या एतराज हो सकता था, वह तो खुशी के मारे गदगद हो गए.

‘‘सुना है, आप शाम को ड्रिंक भी करते हैं.‘‘

‘‘हां सरोज, लेकिन तुम्हें कैसे पता?‘‘

‘‘चंदन ने हमें सबकुछ बता रखा है आप के बारे में,‘‘ सरोज ने चांदीलाल के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा.

‘‘अच्छा… तो फिर पानी ले आओ, मैं अपना पैग बना लेता हूं,‘‘ चांदीलाल ने सरोज का हाथ स्पर्श करते हुए कहा.

‘‘आप क्यों कष्ट उठाइएगा. पैग भी हम ही बना देंगे. लेकिन, एक बात पूछनी थी, पूछूं?‘‘

‘‘क्या बात करती हो, सरोज? एक नहीं दस पूछो,‘‘ चांदीलाल ने प्यारभरी नजरों से सरोज को निहारते हुए कहा.

‘‘आप हमारे लिए क्या करोगे?‘‘

‘‘सरोज, बड़ी बात तो नहीं. जो कुछ मेरा है, वह सब तुम्हारा ही तो है. बस, इस मकान को छोड़ कर, इस की वसीयत बेटियों के नाम है.‘‘

यह सुन कर सरोज कुछ निराश हुई और पानी लेने के बहाने रसोई में गई. वहां जा कर उस ने मोबाइल से चंदन से बात करते हुए कहा, ‘‘चंदन, यह मकान बुड्ढे के नाम नहीं है.‘‘

उधर से आवाज आई, ‘‘तो फिर अपना काम बना कर रफूचक्कर हो जा, नहीं तो बुड्ढा तेरे से कोर्टमैरिज कर के ही मानेगा.‘‘

उधर चांदीलाल बेचैन हो रहा था. सरोज के पानी लाते ही उन्होंने पूछा, ‘‘सरोज, अपना हाथ आगे बढ़ाओ.‘‘

सरोज ने अपना हाथ आगे बढ़ाया, तो उस की उंगली में सोने की अंगूठी पहनाते हुए चांदीलाल ने कहा, ‘‘सरोज, यह आनंदी की अंगूठी है. अब तुम ही मेरी आनंदी हो.‘‘

सरोज ने चांदीलाल का पैग बनाते हुए नशीली आंखों से कहा, ‘‘लीजिए, जनाब की लालपरी तैयार है. लेकिन पी कर बेसुध मत हो जाइएगा, कभी किसी काम के न रहिएगा.‘‘

चांदीलाल इन शब्दों का अर्थ अच्छे से समझते थे. लेकिन यह क्या? वह तो पहला पैग पीते ही बेसुध हो गए.

सुबह के समय जब उन की आंखें खुली तो वह अभी भी अपने को नशे की चपेट में महसूस कर रहे थे. टायलेट जाते समय भी उन के पैर लड़खड़ा रहे थे. उन्हें ध्यान आया कि शराब पी कर तो वे कभी ऐसे बेसुध नहीं हुए. टायलेट से आ कर वे सरोज को तलाशने लगे. लेकिन वह कहीं हो तो दिखाई दे. इधरउधर नजर डाली तो देखा, सेफ और अलमारियां खुली पड़ी हैं. उन्हें अब समझते देर न लगी कि उन के साथ क्या हुआ है. वे लुट गए. घर में रखी नकदी और जेवरात गायब थे. सरोज का फोन भी नहीं लग रहा था. चांदीलाल का सारा नशा और इश्क एक ही झटके में काफूर हो चुका था.

उन्होंने चंदन को फोन लगा कर सारी बात बताई. उस ने कहा, ‘‘चांदीलाल सुन, मेरा उस सरोज से कोई लेनादेना नहीं. मैं ने तो बस तुम दोनों की मुलाकात कराई थी. इस मसले पर कहीं जिक्र मत करना, नहीं तो बदनामी तुम्हारी होगी. कहो तो तुम्हारी नीच हरकत का जिक्र तुम्हारी बेटियों से करूं कि इस उम्र में तुम अनजानी औरतों को अंगूठी पहनाते फिर रहे हो.‘‘

‘‘नहीं, नहीं, ऐसा मत करना, चंदन. नहीं तो मेरी इज्जत खाक में मिल जाएगी,‘‘ चांदीलाल ने लगभग गिड़गिड़ाते हुए कहा.

‘‘तो फिर अपनी जबान बंद रखना, नहीं तो बेटियों और दामाद सब के सामने तुम्हारी पोल खोल कर रख दूंगा,‘‘ चंदन ने लगभग धमकी देते हुए कहा.

चांदीलाल के पास जबान बंद रखने के सिवा और कोई चारा न था.

कुछ दिनों के बाद चांदीलाल का जन्मदिन था. इस बार तीनों बहनें सलोनी, रजनी और तारा ने यह फैसला किया था कि वे तीनों मिल कर पापा का जन्मदिन उन के पास आ कर मनाएंगी.

जन्मदिन वाले दिन वे सभी बहनें पापा के पास पहुंच गईं. सलोनी अपने साथ एक अधेड़ उम्र की महिला को भी ले कर आई थी. तीनों बहनें उस महिला को आंटी कह कर पुकार रही थीं.चांदीलाल ने सलोनी से पूछा, ‘‘बिटिया सलोनी, यह तुम्हारी आंटी कौन है?‘‘

‘‘पापा, पहले ये आंटी वृद्धाश्रम में रहती थीं, लेकिन अब ये हमारे साथ रहती हैं. आप को पसंद हैं क्या, हमारी यह आंटी?‘‘

‘‘अरे सलोनी बेटी, कैसी बात करती हो? मैं ने तो बस यों ही पूछ लिया था. इस में पसंदनापसंद की क्या बात है?‘‘

‘‘नहीं पापा, देख लो. यदि आंटी आप को पसंद हो, तो हम इन को यहीं छोड़ जाएंगे. इन का भी यहां कोई नहीं है. इन के बच्चे इन्हें छोड़ कर विदेशों में जा बसे हैं. आप का घर ये अच्छे से संभाल लेंगी,‘‘ सलोनी ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘अरे सलोनी बेटा, ऐसे बातें कर के क्यों मेरे साथ मजाक कर रही हो?‘‘

तभी मंझली बेटी रजनी ने पापा के गले में हाथ डाल कर कहा, ‘‘पापा, सलोनी दीदी मजाक नहीं कर रही हैं. आप अकेले रहते हैं, आप के सहारे के लिए भी तो कोई न कोई चाहिए. क्यों पापा?‘‘

‘‘वह तो ठीक है, लेकिन बेटा…‘‘

‘‘लेकिनवेकिन कुछ नहीं पापा, हमें भी दूसरी मम्मी चाहिए, बस,‘‘ सब से छोटी बेटी तारा ने छोटे बच्चों की तरह मचलते हुए कहा.

‘‘नहीं बेटी, तारा. इस उम्र में ये सब बातें शोभा नहीं देतीं.‘‘

‘‘अच्छा पापा, फिर वो सरोज आंटी… जिन्हें आप मम्मी की यह अंगूठी पहनाए थे… और जो आप को धोखा दे कर लूट कर भाग गई… हमारी वाली ये सुमन आंटी ऐसी नहीं हैं.‘‘

तारा के यह कहते ही चांदीलाल को सांप सूंघ गया. उन्हें यह भी समझ में नहीं आ रहा था कि सरोज को पहनाई गई अंगूठी तारा के पास कहां से और कैसे आई?

पापा को अचंभित होता देख तारा बोली, ‘‘पापा, आप को अचंभित होने या फिर हम से कुछ भी छुपाने की कोई जरूरत नहीं है. स्वीटी हमें सब बातें बता देती थी. उस ने हमें सरोज को ले कर आगाह किया था. हम पूरी तरह से उस दिन चैकन्ने हो गए थे, जिस दिन सरोज यहां रुकी थी. हमें आप की दूसरी शादी से कोई एतराज नहीं था. लेकिन, हम इस बात से हैरान थे कि आप ने हम से इस बात का जिक्र तक नहीं किया.‘‘

‘‘इस का मतलब कि तुम सरोज को जानते हो?‘‘

‘‘पापा, मैं और आप के दामाद मुकेश आप से उस दिन मिलने ही आ रहे थे. जब हम आए तो सरोज लूटपाट कर भागने ही वाली थी कि हम ने उसे चोरी करते हुए रंगेहाथ पकड़ लिया. आप उस समय अचेत पड़े हुए थे. आप को पानी में घोल कर नशे की गोलियां दी गई थीं. हम ने उस से मम्मी की अंगूठी समेत सारा सामान वापस ले लिया था. थाने में इसलिए शिकायत नहीं की कि कहीं आप को कोर्टकचहरी के चक्कर न लगाने पड़ें. उस दिन सुबह आप का नशा उतरने तक हम घर में ही थे और सलोनी व रजनी के संपर्क में भी थे. उसी रात हम सब ने तुम्हारी दूसरी शादी करने की योजना बना ली थी, क्योंकि आप हमारे साथ तो रहने वाले हैं नहीं.‘‘

अभी चांदीलाल कुछ कहने वाले थे, लेकिन उस से पहले ही रजनी बोल पड़ी, ‘‘अब बताओ पापा, आप को सुमन आंटी पसंद हैं कि नहीं. अब आप यह भी नहीं कह सकते कि आप इस उम्र में विवाह नहीं करना चाहते.‘‘

चांदीलाल के पास रजनी की बात का कोई जवाब नहीं था. वह हलके से मुसकरा दिए. फिर गंभीर होते हुए वे बोले, ‘‘तुम्हारी आंटी से मैं शादी करने के लिए तैयार हूं, लेकिन मेरी एक शर्त है. मैं एक पुलिस वाला रहा हूं. मैं अपनी पुलिस की ड्यूटी अभी भी निभाऊंगा.‘‘

‘‘ मतलब, पापा?‘‘ तीनों बेटी एकसाथ बोलीं.

‘मतलब यह कि मैं चंदन और सरोज दोनों को जेल भिजवा कर ही रहूंगा, दोनों ही समाज के असामाजिक तत्व हैं.’

‘‘जैसे आप की मरजी, हमारे बहादुर पापा.‘‘तारा ने तभी अपनी मां आनंदी की अंगूठी पापा को पकड़ाई और चांदीलाल ने वह अंगूठी सुमन को पहना दी. अब पापा विधुर नहीं रह गए थे, बल्कि खुली सोच की बेटियों की वजह से एक विधवा सुमन भी सधवा बन गई थी.

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