उत्तरकाशी की सिलक्यारा सुरंग में फंसे 41 मजदूरों को आखिरकार 17 दिन के अथक प्रयासों के बाद सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया. 28 नवम्बर की शाम 7 बजे से ही यह आशा जाग गयी थी कि आज वो खुशखबरी मिल ही जाएगी जिसका इंतज़ार में 41 परिवारों सहित पूरा देश और विश्व कर रहा है. और कुछ ही देर बाद यह सन्देश सुरंग के भीतर से आया कि रैट माइनिंग कर रहे श्रमिक सुरंग में फंसे श्रमिकों तक पहुंच गए हैं. फिर क्या था, चंद मिनटों में ही एक एक कर सारे मजदूर 800 MM के पाइप में स्क्रोल करते हुए बाहर आ गए.

हालांकि इस से कुछ ही देर पहले जब अधिकारी मीडिया को बाइट दे रहे थे तो उनका कहना था कि श्रमिकों को स्ट्रेचर पर एक एक कर बाहर निकाला जाएगा और हर श्रमिक को निकालने में पांच से सात मिनट का वक्त लगेगा. लेकिन जब सुरंग की खुदाई करने वाले उन तक पहुंचे तो उन्होंने झपट कर उन्हें गले लगा लिया और खुशी के मारे अपने पास मौजूद बादाम उन के मुंह में भर दिए. उस के बाद वे एक के पीछे एक उस पाइप में रेंगते हुए करीब आधे घंटे के अंदर बाहर निकल आये. सुरंग के बाहर उत्तराखंड में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और केंद्रीय मंत्री वीके सिंह ने उन्हें गले लगा कर उनका स्वागत किया और माला पहना कर एम्बुलेंस से डॉक्टरी चेकअप के लिए रवाना किया.

400 घंटे बाद सिल्क्यारा सुरंग में फंसे 41 मजदूरों को बाहर निकलता देख बाहर खड़े लोग और मजदूरों के परिजन जो देश के विभिन्न हिस्सों से आकर अपनों के ज़िंदा बाहर आने की आस लगाए पिछले 17 दिनों से वहां जमे हुए थे, भावुकता के अतिरेक में रो पड़े. उनकी ख़ुशी के इस क्षण का साक्षी वह पर्वत भी था जिसने मजदूरों की हिम्मत और धैर्य तथा उनको बाहर निकालने में जी-जान एक कर देने वालों के आगे अपना मस्तक झुका दिया. इन मजदूरों के इंतजार में जो दीवाली सूनी रह गई थी वह सिलक्यांरा में मनाई गयी. खूब मिठाइयां बंटीं, जोरदार आतिशबाजी हुई और तालियों की गड़गड़ाहट से वादियां गूंजने लगीं.

इस रेस्‍क्‍यू ऑपरेशन पर दो हफ्तों से ज्यादा समय से पूरा देश टकटकी लगाए बैठा था. 12 नवम्बर दिवाली के रोज सुबह अचानक यह सुरंग भारी मलबा गिरने की वजह से बंद हो गयी. अंदर 41 श्रमिक खुदाई कर रहे थे. ये मलबा इतना कठोर था कि तमाम देशी-विदेशी तकनीक और विदेशी मशीनें इसके आगे बार बार फेल हुई. विदेशी ऑगर मशीन कई बार टूटी और रुकी. आखिर में जब 10 मीटर खुदाई बची तो सारी तकनीकों ने हाथ खड़े कर दिए. मगर इस काम को संभव कर दिखाया उन रैट माइनिंग में माहिर श्रमिकों ने जो चूहे की तरह हाथ से खुदाई करने और सुरंगे बनाने में माहिर थे. 24 लोगों की इस टीम ने दो दिन लगातार खुदाई कर फंसे हुए मजदूरों के लिए बाहर निकलने का रास्ता तैयार कर दिया. गौरतलब है कि रैट माइनिंग देश में प्रतिबंधित है.

दरअसल रैट माइनिंग में पतली सुरंगों में भीतर घुस कर मजदूर हाथ के सहारे छोटे फावड़े से चूहे की तरह खुदाई करते हैं और हाथ से मलबा बाहर निकालते हैं. इसमें पतले से छेद से पहाड़ के किनारे से खुदाई शुरू की जाती है. पोल बनाकर धीरे-धीरे छोटी हैंड ड्रिलिंग मशीन से ड्रिल किया जाता है. ये तरीका बहुत थकाने वाला और जान जोखिम में डालने वाला होता है. इसका इस्तेमाल आमतौर पर कोयले की माइनिंग में खूब होता रहा है. झारखंड, छत्तीसगढ़ और उत्तर पूर्व में रैट होल माइनिंग जमकर होती है. लेकिन रैट होल माइनिंग चूंकि काफी खतरनाक काम है, इसलिए इसे NGT ने 2014 में बैन कर दिया था. लेकिन यह एक ऐसी स्किल है, जिसका इस्तेमाल कंस्ट्रक्शन साइट पर किया जाता है. ये प्रक्रिया हमेशा आसान नहीं होती है पर मुश्किल स्थितियों में इसका इस्तेमाल होता है. सिल्क्यारा में भी रैट माइनिंग के माहिर श्रमिकों ने अपने कौशल से अंततः 41 लोगों को नयी जिंदगी दी. इसलि इनकी जितनी तारीफ की जाए कम है.

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