सीता की लट…यही नाम था उस सांप का. कहने को यह जगह राजधानी की सीमा में था लेकिन वह इलाका बाहरी शहर का अविकसित गांव था, जहां के खेतताल से ले कर श्मशान भूमि तक छोटेछोटे प्लौटों में तबदील होती चली जा रही थी.

8 सौ स्क्वायर फीट प्लौट में 1 हौल, 2 कमरे और नाममात्र के गार्डन, बाऊंड्री शहरी मकान अभी बन कर पूरा ही हुआ था. किसी प्राइवेट कंपनी का एरिया सेल्स मैनेजर पंकज, उस की पत्नी काया और 2 नन्हें बच्चे सफल और प्रबल अभी हाल ही में वहां रहने आए थे.

पति सुबह लंच बौक्स ले कर काम पर रवाना हो चुका था. 5 साल के सफल को वह 8 मिनट स्कूटी चला कर स्कूल बस में चढ़ा आई है. अब दोपहर 1 बजे उसे लेने जाना होगा. यहां से सब जगहें दूरदूर हैं पर काया को विश्वास है कि जब खाली कालोनियां बस जाएंगी, यह मिटता हुआ गांव पूरी तरह मिट जाएगा, घर के आगे की पतली सड़क प्रस्तावित बाईपास 40 फुट रोड में बदल जाएगी. हां, तब सफल की स्कूल बस का रूट जरूर बदलेगा और वह बिलकुल घर के बाहर आ कर हौर्न बजा दिया करेगी. बस, 2-4 साल में ही इस गांव की जगह पूरी एक पौश कालोनी होगी, यह तय है.

‘तब हम कह सकेंगे कि इस कालोनी को बसाने वाले हम हैं. हम यहां तब से हैं जब कालोनी का कोई नामोनिशान न था और घर के पते में गांव मेंहदी खेड़ा लिखना पड़ता था,’ काया मन ही मन हंस कर कहती और मामूली प्राइवेट नौकरीदार मैनेजर पति होमलोन, पेंशन प्लान से ले कर कंपनी का इस मंथ का दिया बिक्री टारगेट पूरा कर पाने, न कर पाने की चिंताओं से दबा, भ्रम की तरह मुसकरा कर फिर उदास हो जाता.

पति का लंच बौक्स और बेटे की स्कूल बस सुबह के दोनों महान लक्ष्य पूरे हुए. बड़ा संयोग यह कि कुछ देर तंग करने के बाद अब छोटू प्रबल गहरी नींद सो गया है. काया जल्दीजल्दी घर के काम निबटाने में लगी है. बरतन मांज लिए हैं. पोंछा लगा रही है.

इस गंवई इलाके की गरीबनें अब तक महरी नहीं बनी हैं. यहां आते ही काया ने हफ्ते 2 हफ्ते बड़ी कोशिश की थी. सड़क से गुजरतीं 2-4 फटेहाल, निहायत गरीब दिखने वाली मजदूर औरतों से पूछा भी था और उन के जवाब थे कि गांव में किसी के जूठे बरतन मांजने जाना बड़ा बुरा माना जाता है. हां, गेहूं बीनने जैसा काम हो तो वे खुशीखुशी कर देंगी.

‘‘पर हम तो ब्रैंडेड आटा इस्तेमाल करती हैं,” काया के इस जवाब पर बकरियां चराने वाली एक औरत संतोष बहुत चौंकी थी. अब आटा बेचने की भी कंपनियां खुल गई हैं. क्या भाव पसेरी का? आटा बेचते हैं कि चांदी?

लब्बोलुआब यह कि यहां आ कर नन्हें बच्चों की मां काया को अपने घर में झाडूपोंछा, बरतन, कपड़े वगैरह सब कामों में खुद के ही हाथ घिसने पड़ते हैं तिस पर यह छोटू. इतना ज्यादा सक्रिय शैतान जैसे कोई जिन्न…उस दिन छत की रेलिंग पकड़ कर हवा में लटक गया था… उस दिन सड़क पर उतनी दूर अकेला घुटनों पर चलता मिला था. एक दिन अचानक गायब हो गया. मां ढूंढ़ती, घबराती, हलकान और वह मजे से सोफे के नीचे सरक कर सो गया था.

पोंछा लगा कर पानी बाहर फेंकने आई वह एक पल को ठिठक गई. बगल के श्मशान में, जो घर से बस इतने प्लौट्स के बाद है कि धुआं यहां नहीं लगता, धूप में दाह की ऊंची आग तेज गरम चमक के साथ झिलमिला रही है. इंसान जीवन में कितनेकितने दंभ और मिथ्या पालता है कि यह मेरा, यह मैं…

काया को सहसा याद आया कि उस की नानी और उस की मां भी हमेशा यही करती थीं कि घर के सामने से कभी अर्थी निकले तो मुट्ठी भर बारीक राई फेंक देती थीं ताकि मृतक की आत्मा इधर नहीं आने पाएं. इन सब ढकोसलों में पड़ने का वक्त किस के पास है. काया ने पोंछे का धूल फिनायल भरे पानी से दूसरी तरफ बहा दिया. मांनानी की किसी भी मान्यता को मानना उस डर को एक पहचान दे देना होगा जिसे वह भरसक झुठलाया करती है. पति अकसर टूर पर रहते हैं. श्मशान की तरफ कड़कती बिजली की खौफनाक रोशनी और हाहाकार सा पानी बरसाती अंधेरी रातों में, अपने दोनों बच्चों को चिपकाए काया दिल में लगातार दोहराती है,’मुझे डर नहीं लगता, मुझे डर नहीं लगता, मुझे डर नहीं लगता…’

निडर होना भी एक भयानक विवशता है और पीछे एक नया डर उस के इंतजार में है. पोंछे का पानी बाऊंड्री के बाहर फेंक लोहे का गेट बंद कर वह पलटी ही थी कि अचानक उस के मुंह से चीख निकल गई, “सांप…”

सामने एक सांप था. बाऊंड्री के बीचोंबीच पूरे रोबदार से रेंग कर आता हुआ.

‘अंदर मेरा बच्चा है,’ उस का पांव उठता है फिर ठिठक जाता है. सामने सांप है और अंदर मेरा बच्चा है. फिर किसी ने दोहराया उस के भीतर और वह सांप को लगभग फांदती हुई दौड़ गई. सोए बच्चे को समेटे वह वापस दौड़ आई. सांप ऐन बीच में कुंडली जमा चुका था.

चिल्लाना यहां कौन सुनता…खेत व प्लौटों का सूनापन उस ने पहली बार सच की रोशनी में देखा. सड़क पार 2 सौ कदम की दूरी पर गांव की किराने की दुकान है. बच्चे को चिपकाए वह भाग कर वहां पहुंची,”भैया, हमारे घर सांप निकला है. आप जल्दी चलिए प्लीज…’’

दुकान खुली ही छोड़ दुकानदार दौड़ आया, साथ में उस के दोनों ग्राहक भी. सहायता की यही सच्ची तत्परता उन्हें ग्रामीण साबित करती है. बाऊंड्री में बैठे सांप को देखते ही डंडों पर कसी उन की मुट्ठियां ढीली पड़ गईं,”अरे, जे तो सीता की लट है,’’ वे हलके हो कर बोले जैसे किसी गुंडे हत्यारे को ढूंढ़ते आए हों और मिला कोई नन्हा सा शरारती बच्चा.

‘‘सांप है…’’ काया उसी घबराहट के वशीभूत थी अब भी.

‘‘जे सांप कछू न करे…’’

‘‘यह जो भी है, है तो सांप ही न. आप इसे मार क्यों नहीं देते?’’

‘‘है तो जे सीता की लट ही. न होय तो भी आप जाने दो. कौन बड़ा सांप है… काहे हत्या का पाप सिर लेना.’’ वे जाने लगे. उस की घबराहट कुछ और गाढ़ी हो गई,”यह सिर्फ एक सांप है.’’

‘‘इसे न मारना, बहनजी. यदि सीता की एक लट को आप ने मार दओ तो ऐसी 7 निकलेंगी जहीं, आप के घर भीतर से.’’

वह रोकती रह गई. मददगार वापस लौट गए. अब बाऊंड्री में बची काया और वह सांप जो सरक कर गुलाब के गमले के पीछे जा छिपा था. काया को समझ नहीं आ रहा, करे तो करे क्या? पति को फोन करने का कोई अर्थ नहीं निकलेगा. अब क्या? धड़कते दिल से काया सांप से हरसंभव दूरी बनाए, चौकन्ने पंजों पर चलती निकली और इस पार आ कर दरवाजा झट बंद कर लिया. हरएक खिड़की की सिटकनी चढ़ा ली. दरवाजे के नीचे अखबार लगा दिया. अब हवा तक अंदर नहीं आ सकती. इस अकेलेपन में उस सांप का भय जैसे कालिया दह का राजा, जैसे शेषनाग, जैसे साक्षात मौत…

अभी तक तो छोटा बच्चा सो रहा है, अभी तक तो बड़ा बच्चा स्कूल में है लेकिन कितनी देर…कितना समय है उस के पास इन हालातों से अपने बच्चों को और अपनेआप को बचाने के लिए… दिमाग फिरकी की तरह घूम रहा है कि क्या करें…काया का सिर दुखने लगा. उस ने खिड़की से झांक कर देखा. वहीं है वह सांप…

बाहर से बकरियों का इक्कादुक्का स्वर आना शुरू हो गया है. संतोष बकरियां चरा कर आ गई है. काया उम्मीद और हिम्मत से दरवाजा खोली और बोली,”संतोष, ओ संतोष…’’ अपनी एकमात्र जानपहचानदारिन को वह भरसक ऊंची आवाज में पुकारती है.

संतोष लोहे के फाटक तक आ कर रुक जाती है, हमेशा की तरह. इधर घर के मुख्यद्वार पर काया है. उन दोनों के बीच रास्ते पर सांप है.

‘‘संतोष, इसे मार दो प्लीज,’’ डर भरी उंगली से आधुनिका ने जिस की ओर इंगित किया है, ग्रामीण युवती उसे देख सहजता से कहती है,”जे, सीता की लट. जाको भगा दीजिए. जे काटती नहीं है. जब रावण सीता मैया का हरण कर लिए जा रहो, तो मैया के कछू केस वन में गिर गए, वे ही लटें जे नागिनें होती हैं, बड़ी पवित्तर और निर्दोष. मारना नहीं, बाईजी. डंडा भी नहीं दिखाना. नहीं तो इत्ती निकलेंगी कि आप गिन नहीं पाओगी.”

“अनगिनत निकलेंगी या सिर्फ 7 और निकलेंगी? क्या बकवास है,” पूछतेपूछते ही साइंस पढ़ा हुआ काया का जेहन झुंझला उठा.

संतोष भी चली गई तो मदद की कहीं से कोई उम्मीद नहीं रही. दरवाजा बंद कर उस ने नीचे अखबार से रास्ता बंद किया और भीतरी कमरे में सोए बच्चे को एक नजर देखा. जब तक यह सोया है, तभी तक दरवाजा बंद रखा जा सकता है. न जाने वह कब जाग जाए. कुछ करना होगा उसे अभी.

वह परेशान हो कर शून्य दिमाग से सोफे पर बैठी है. अपनी हर परेशानी में हमेशा वह अकेली ही क्यों है? कभी जब बेटे की स्कूल बस समय पर नहीं आती है, तो वह बस स्टौप पर नन्हें प्रबल को चिपकाए धूपबारिश से बचतीजूझती बस, ड्राइवर से ले कर स्कूल के तय जिम्मेदारों तक को फोन करती परेशान होती है, अकेली ही. कभी जब उसे हरारत, बुखार जैसा कुछ हो जाता है तो उस पस्त हाल में भी तयशुदा रूटीन से घर के सब काम पूरे कर रही होती है अकेली. जानलेवा धूप में भी अपने दोनों बच्चों को स्कूटी पर संग लिए, एक को आगे खड़ा किए, दूसरे को कंगारू बैग में सीने से बांधे, वह भरे ट्रैफिक में चली जा रही होती है, कभी घर का राशन लाने, कभी पेरैंट्स मीट, कभी कोई बिल भरने अकेली ही.

पति नाम का जीव जैसे सिर्फ रुपए कमाने वाला और मूड के मुताबिक कुछेक और काम करने वाला रोबोट है कोई. और मन न होने पर भी करने वाले सारे काम तो पत्नी को ही करने पड़ते हैं. काया सोफे से उठ खड़ी हुई. कितनी ही बार उस ने साबित किया है कि अपने बच्चों की परवरिश व हिफाजत के लिए वह किसी मर्द के आसरे की मुहताज नहीं.

तब जब वे किराए के एक कमरे में रहते थे जो दूसरी मंजिल का कोना था, कोने पर घनी, ऊपर को जाती, फूलों लदी एक बेल थी जिस में एक विराट छत्ता छिपा था मधुमक्खियों का और यह बात उस ने तब जानी थी जब सामान वहां जल्दीजल्दी शिफ्ट करने के बाद पति को टूर पर जाना पड़ा था. इस से पहले कि कोई मधुमक्खी उस के बेटे को नुकसान पहुंचा पाती, उस ने कौकरोच मारने वाले स्प्रे से पूरा का पूरा छत्ता इस फुरती से नहला दिया था कि एक डंक भी हिल न सका था छत्तेभर मधुमक्खियों का.

तब जब वे उस घुप्प अंधेरे एलआईजी फ्लैट में रहते थे, जो नाले के पास था, नन्हा सफल मच्छरनाशक कौइल खा लिया था. बिना घबराए उस ने बच्चे को नमक का पानी इतना पिलाया था कि उस ने उलटी कर के पूरे जहर को बाहर निकाल दिया था.

तब जब वह दूसरी बार प्रैगनैंट थी और स्कूल बस मिस हो जाने पर बेटे के टेस्ट के दिन स्कूटी से उस को ले कर स्कूल जा रही थी, तो अचानक स्कूटी गिर गई थी. सारी खरोचें उसी को आई थीं, सफल साफ बच गया था. अपनी छिली कनपटी और रिसती कुहनी की परवाह किए बिना किस हौंसले से वह पलभर में फिर स्कूटी स्टार्ट कर रही थी. फुरती से, बिना घबराए.

गृहिणी ने सांप का सामना करने के लिए दिलदिमाग स्थिर किया, अपना कुल साहस बटोरा और दरवाजा खोल दिया.

सांप वहीं छिपा बैठा है, ऐन वहां जहां से वह उस के किसी भी बच्चे पर सरलता से हमला कर सकता है. लेकिन गांव के लोग अगर कह रहे हैं कि यह काटता नहीं तो क्या इसे सिर्फ भगाया नहीं जा सकता? निहत्थी काया बेआवाज पांवों से 2-4 कदम उस तरफ को बढ़ती है. सांप चौंक कर फन उठा लेता है. निर्णय हो चुका है. इस का नाम सीता की लट हो या गंगा की तट, यह सिर्फ एक सांप है और काया एक जिम्मेदार मां है… गांव माफ कर देता है, उसे जो नुकसान नहीं पहुंचाता, शहर नहीं कर पाता, उसे भी जो सीधा फायदा नहीं देता.

धड़कते दिल और पुख्ता हौंसले से उस ने 1 बालटीभर पानी जोर से फेंका. सांप सरसराता निकल आया. बला की फुरती है उस में. उस ने फन फैला लिया और फुफकारने लगा.
सांप में मौत सरीखी फुरती है और बच्चों की मां में सब हदों के पार आ चुका साहस. न जाने कितने ही वार किए उस ने हाथ के रैकेट से सांप पर, अंधाधुंध…

सांप सामने है पर अब भी उस के अंगों में हरकत बाकी है. एक पौलिथिन में सांप को डाल कर संतोष मन ही मन बोल पङी कि मरे सांप को अग्नि देनी चाहिए. अग्नि का पवित्र द्वार मिलता है तो अगली योनि मानव की पाता है सर्प. काया को यह मिथक नुकसानदेह नहीं लगता लेकिन सच में उस के पास बिलकुल समय नहीं है. यह जगह फिनायल से धोनी है, अपने हाथ और रैकेट ऐंटीसैप्टिक से साफ भी.बेटे को स्टौप पर लेने जाने का समय होने ही वाला है. सोए छोटू को जगा कर साथ लेना है. स्कूटी बाहर निकालनी है.

काया ने बंद पौलिथीन ताकत भर के उधर फेंकी जिधर प्रज्वलित श्मशान है. खाली पड़े खेतप्लौटों को देख विजयी मगर विवश हत्यारिन काया अपनेआप को तसल्ली दे रही है कि बस, कुछ ही सालों में यह गांव मिट जाएगा और यहां उस के मकान की तरह के सैंकड़ों शहरी मकान बन जाएंगे.

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