देश को पुरातन व पौराणिक सोच की ओर लगातार धकेला जा रहा है, इस का एक और सुबूत भारतीय जनता पार्टी की केंद्रीय सरकार द्वारा नियुक्त दिल्ली के उपराज्यपाल द्वारा लेखिका अरुंधति राय के खिलाफ 2010 की एक स्पीच पर मुकदमा चलाने की अनुमति देना है. वर्ष 2010 में अरुंधति राय ने एक सभा में एक भाषण दिया था.

दो समुदायों के बीच वैमनस्य पैदा करने और आम शांति को भंग करने के आरोप में वरिष्ठ व गंभीर लेखिका के खिलाफ मुकदमे दर्ज तो 2010 में हुए थे पर भारतीय जनता पार्टी ने सरकार में आने के बाद उन्हें कब्र खोद कर फिर से निकाला. इन मुकदमों को निचली अदालतों में महीनोंसालों घसीटा जा सकता है और वक्ता के तौर पर कहे अपने विचार 10वीं पास पुलिस कौंस्टेबलों द्वारा तय किए जाएंगे कि वे सही हैं या नहीं. कोई बड़ी बात नहीं कि इस दौरान निचली अदालत लेखिका को जमानत भी न दे कि कहीं अभियुक्त ‘तथाकथित अपराध’ करने के 13 साल बाद भाग न जाए.

भारत देश की चूलें किस तरह हिल चुकी हैं, यह इस तरह के मामलों से साफ है. कोई भी समाज तब ही उन्नति कर सकता है जब आम लोगों के पास बोलने की स्वतंत्रता और आजादी हो. वैचारिक स्वतंत्रता ही बहुत से नए प्रयोगों की जन्मदात्री होती है. जिन लोगों ने समाज, शासन, मुद्दों के बारे में नई सोच दी उन्होंने ही विज्ञान, भौतिकी, कैमिस्ट्री, ज्योग्राफी, एस्ट्रोनौमी में नई खोजों और आविष्कारों की जमीन तैयार की. आज हम पहले से ज्यादा सुखी हैं, तकनीक का सुख भोग रहे हैं तो इसलिए कि कभी कहीं किसी ने जो सोचा उस पर रिसर्च कर कामयाबी हासिल की. हालांकि, तब भी उन सोचों, आविष्कारों के खिलाफ विद्रोह किए गए.

हम कहने को चाहे 21वीं डिजिटल क्रांति वाली सदी में जी रहे हों पर असलीयत यह है कि हम में से अधिकांश आज भी पुराने रीतिरिवाजों को ढो रहे हैं और भारत की आर्थिक उन्नति में बड़ा रोड़ा बने हुए हैं. यह ऐसे ही नहीं है कि आर्थिक संपन्नता के तौर पर प्रति व्यक्ति आय के पैमाने पर भारत दुनिया के 180 देशों में से 132-135वां है.

यह इसलिए है कि हमें नया, परंपरा के खिलाफ सोचने की इजाजत नहीं है. इस में ‘राज्य गलत नहीं सोचता, सरकार हमेशा सही होती’ वाली पारंपरिक सोच है. अरुंधति राय जैसे लेखक सरकार व पुरातनवादियों को ?िं?ाड़ते हैं, उन्हें एहसास कराते हैं कि वे कैसे गलत हैं.

अगर औरतें आज भी दहेज की मारी हैं, छोटी लड़कियों के साथ बलात्कार हो रहे हैं, विधवाएं दोबारा विवाह नहीं कर पातीं, लड़कियों को संपत्ति में से हिस्सा ही नहीं मिल रहा, उन्हें अपनी संपत्ति नहीं बनाने दी जा रही तो इसलिए कि हम सब पर पुरानी सोच आज भी सवार है और उस की आलोचना करने वालों, पोल खोलने वालों को समाज व सरकार का दुश्मन मान लिया जाता है.

अरुंधति राय जैसों के खिलाफ 2010 के भाषण पर अब पुलिसिया कार्रवाई शुरू करने का अर्थ यह है कि सारी जनता को संदेश दिया जा रहा है कि कुछ अलग, कुछ नया कहने की कोशिश न करो.

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