दशहरा उत्सव में हमारे समाज में "शगुन अपशगुन" के अनेक मिथक है, जो भारतीय समाज की खामियों को ही रेखांकित करते है. चिंता की बात यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने विजयादशमी के पर्व पर जब अपने संबोधन में शगुन की बात की और यह जता दिया कि आज भी 21वीं शताब्दी में जब भारत चांद पर पहुंच चुका है देश का प्रधानमंत्री शगुन और अपशगुन के घेरे में फंसा हुआ हैं. ऐसे में आम

आदमी अगर अपनी अशिक्षा, अपने अज्ञान के कारण अगर शगुन अपशगुन की दुविधा में फंसा हुआ है तो उसे पर सिर्फ दया की जा सकती है.
मगर देश का प्रधानमंत्री अगर "शगुन अपशगुन" के आधार पर निर्णय लेने लगे और यही संदेश देने लगे तो देश एक बार फिर 16वीं शताब्दी में पहुंच गया समझना चाहिए.

दरअसल,प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विजयादशमी पर्व पर समाज में जातिवाद और क्षेत्रवाद जैसी विकृतियों को जड़ से खत्म करने का आह्वान तो किया. मगर प्रधानमंत्री स्वयं शगुन अपशगुन के फेर में उलझ गए. नरेन्द्र मोदी ने नई दिल्ली में द्वारका सेक्टर-10 में श्री चरका श्रीरामलीला में 101 फीट लंबे रावण पुतले का दहन किया और अपने लंबे संबोधन में शगुन के महत्व को बताने से नहीं चुके जब देश का प्रधानमंत्री शगुन अपशगुन में जीने लगे तो इसका मतलब यह है कि देश की जनता उनका अनुसरण करेगी और देश का विकास अवरूद्ध होना तय है.

वेशभूषा और आचार विचार

दुनिया देख रही है कि नरेंद्र मोदी की शख्सियत कैसी है. स्वयं को हमेशा समाज और दुनिया के आगे आगे रखने वाले नरेंद्र मोदी की कलाई शायद स्वयं खुल गई है.

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