हाल के वर्षों में खासतौर से युवाओं में दिल के दौरे के मामले चिंता का विषय रहे हैं. पहले दिल की बीमारियों के शिकार ज्यादातर बुजुर्ग होते थे लेकिन हाल ही में पीडि़तों के आयुवर्ग में अहम बदलाव देखा गया है. अमेरिकन कालेज औफ कार्डियोलौजी के एक अध्ययन के अनुसार, कम उम्र के लोगों में हर

साल दिल का दौरा पड़ने की दर

2 फीसदी बढ़ रही है. यह बदलाव मुख्य रूप से जीवनशैली में बदलाव के कारण है, जिस से लोगों में तनाव की मात्रा बढ़ गई है और यह युवाओं में दिल के दौरे की एक प्रमुख वजह बन गया है.

कैसे काम करता है हार्ट ?

दिल शरीर का इंजन है जो लगातार पंपिंग करते हुए शरीर के विभिन्न हिस्सों व टिशूज को रक्त पहुंचाने का काम करता है. दिल छाती में स्थित होता है, थोड़े से बाएं ओर, स्टर्नम के पीछे. दिल का आकार आमतौर पर बंद मुट्ठी के आकार के बराबर होता है और वयस्कों में आमतौर पर यह 250 से 350 ग्राम के बीच होता है. इस का मुख्य कार्य रक्त के परिपथ को प्रवाहित करना है, जिस से शरीर के विभिन्न ऊतकों को औक्सीजन और पोषण पहुंचता है और कार्बन डाइऔक्साइड जैसे कचरा हटता है.

हार्ट द्वारा रक्त का परिपथ एक यातायाती प्रक्रिया के रूप में काम करता है, जिसे कार्डिएक साइकिल कहा जाता है. सिस्टोल के दौरान हार्ट कांपता है और रक्त को धमनियों में धकेलता है. डायस्टोल के दौरान हार्ट आराम से खुल जाता है, जिस से इस के कमरों में रक्त भर जाता है. यह गति विविध भागों में रक्त के निरंतर प्रवाह को सुनिश्चित करने में मदद करती है.

अकसर यह माना जाता है कि हृदय संबंधी समस्याएं उम्र बढ़ने के साथ जुड़ी होती हैं लेकिन आजकल ऐसा नहीं रहा. हाल के आंकड़ों से पता चलता है कि युवा लोगों में दिल की समस्याओं में चिंताजनक वृद्धि हुई है. आजकल 5 में से 1 दिल का दौरा पड़ने वाला मरीज युवा है, खासतौर से 20 से 30 साल के बीच का युवा. युवाओं में हृदय संबंधी समस्याएं बढ़ने के कई कारण हैं :

तनाव का बढ़ना और जीवनशैली में बदलाव : बेहद तेज गति से आगे बढ़ते समाज में लोगों को रोजगार, रिश्तों, व्यक्तिगत पसंद और अन्य जिम्मेदारियों को ले कर छोटी उम्र से ही तनाव का सामना करना पड़ता है. यह तनाव बढ़ता है तो कार्डियोवैस्कुलर सिस्टम यानी कि हृदय प्रणाली पर प्रभाव डालता है. तनाव कोर्टिसोल और एड्रेनालाइन जैसे हार्मोंस के स्राव को ट्रिगर करता है, जो समय के साथ धमनियों को नुकसान पहुंचा सकता है और रक्तचाप को बढ़ा सकता है.

इस के अलावा, आधुनिक जीवन में आमतौर पर कई घंटे की बैठक शामिल है, खासतौर से स्क्रीन के सामने या लंबे सफर में. शारीरिक गतिविधियां कम होने की वजह से मोटापा आता है जो दिल की बीमारियों की एक प्रमुख वजह होता है.

अनहैल्दी खाना : आजकल युवा अपने काम में ज्यादा व्यस्त होने के कारण प्रोसैस्ड फूड, फास्ट फूड और मीठे पेय पदार्थों पर ज्यादा निर्भर होते जा रहे हैं, जिस से मोटापा, हाई ब्लडप्रैशर और हाई कोलैस्ट्रौल जैसी सेहत की समस्याएं पैदा होती हैं. ऐसी खाने की चीजों में कोलैस्ट्रौल और फैट की मात्रा ज्यादा होती है, जो रक्त वाहिकाओं में जमा हो कर उन्हें ब्लौक कर देती हैं. ठीक से काम करने के लिए शरीर को संतुलित आहार की जरूरत होती है.

नशीले पदार्थों का ज्यादा इस्तेमाल : लोग सम   झते हैं कि धूम्रपान और शराब पीने से तनाव कम होता है और छोटी उम्र से ही इन की आदत लगा लेते हैं. इन के ज्यादा इस्तेमाल से रक्त वाहिकाओं में रुकावट आ जाती है व हृदय तक पहुंचाई जाने वाली औक्सीजन में कमी हो जाती है, जिस से दिल की धड़कन अनियमित हो जाती है और दिल का दौरा पड़ने की संभावना बढ़ जाती है. इस से रक्त वाहिकाओं में रक्त भी रुक जाता है और गाढ़ा हो जाता है, जिस से रक्तप्रवाह कठिन हो जाता है.

मोटापा : मोटापा युवाओं में दिल के दौरे के जोखिम का एक प्रमुख कारण है. शरीर का अतिरिक्त वजन दिल पर अनावश्यक दबाव डालता है, जिस के कारण हाई ब्लडप्रैशर व कोलैस्ट्रौल का स्तर बढ़ जाता है और इंसुलिन की कमी हो जाती है. यह हृदय की नसों और धमनियों में भी रुकावट पैदा करता है, जिस के कारण हृदय में रक्त का प्रवाह कम हो जाता है, जिस से पंप करने में कठिनाई होती है.

मोटापा अनहैल्दी खानपान के कारण होता है, जो डायबिटीज यानी मधुमेह के प्रमुख कारणों में से एक है. आजकल युवाओं में मोटापा बहुत आम है और यह टाइप 2 डायबिटीज के खतरे को बढ़ाता है. मोटापा और डायबिटीज दोनों ही हृदय रोग के जोखिम को बढ़ाते हैं. इसलिए अच्छे पोषण और व्यायाम से हैल्दी बौडी वेट को बनाए रखना बहुत जरूरी है.

आज युवाओं में हृदय संबंधी समस्याओं के बढ़ते मामलों का इलाज एडवांस्ड टैक्नोलौजी की मदद से आसानी से किया जा सकता है. ट्रांसकैथेटर एओर्टिक वौल्व इम्प्लांटेशन यानी टीएवीआई एक बेहतरीन प्रक्रिया के रूप में सामने आया है, जो युवाओं में हृदय संबंधी समस्याओं के इलाज में बहुत लाभकारी है.

टीएवीआई इलाज

ट्रांसकैथेटर एओर्टिक वौल्व इम्प्लांटेशन मैडिकल टैक्नोलौजी के क्षेत्र में एक महान इनोवेशन के रूप में उभरा है. टीएवीआई को मूल रूप से महाधमनी स्टेनोसिस वाले बुजुर्ग रोगियों के लिए डिजाइन किया गया था, लेकिन यह दिल की बीमारी वाले युवाओं के लिए तेजी से एक बेहतरीन विकल्प साबित हो रहा है.

यह एक सर्जिकल प्रक्रिया है जिस का उपयोग उन लोगों के ब्लौक या संकुचित हो चुके महाधमनी वौल्व को बदलने के लिए किया जाता है जिन की बीमारी ओपन हार्ट सर्जरी की स्थिति तक पहुंच चुकी है. इस सर्जरी में कैथेटर का उपयोग कर के पुराने क्षतिग्रस्त वौल्व को हटाए बिना एक नया महाधमनी वौल्व लगा दिया जाता है.

यह महाधमनी वौल्व स्टेनोसिस के इलाज के लिए विकसित की गई एक प्रक्रिया है, यह एक ऐसी बीमारी है जिस में महाधमनी वौल्व सिकुड़ जाता है. इस का इलाज न किए जाने पर हृदय संबंधी अहम समस्याएं पैदा हो सकती हैं. आमतौर पर इस प्रक्रिया में मरीज को दर्द नहीं होता. एक कैथेटर को आप के पैर के ऊपरी हिस्से में या छाती के भीतर रक्तवाहिका में डाला जाता है और हृदय के महाधमनी वौल्व की ओर ले जाया जाता है. ट्यूब का उपयोग मौजूदा वौल्व के ऊपर नया वौल्व लगाने के लिए किया जाता है. जब युवा रोगियों में हृदय संबंधी समस्याओं के इलाज की बात आती है तो इस इनोवेटिव एप्रोच के कई फायदे सामने आते हैं.

कम समय में रिकवरी : टीएवीआई के लिए ओपन हार्ट सर्जरी की तुलना में अस्पताल में कम दिनों के लिए भरती होना पड़ता है और घाव कम समय में ठीक हो जाते हैं. टीएवीआई सर्जरी के मरीज आमतौर पर 48 घंटे या 3 से 5 दिनों के भीतर घर लौट सकते हैं, जो उन की रिकवरी दर पर निर्भर करता है. इस प्रक्रिया से इलाज के बाद काम पर जल्दी लौटने की इच्छा रखने वाले लोग जल्द ही अपने काम पर लौट सकते हैं और फिर से अपना सामान्य जीवन शुरू कर सकते हैं.

इस में छोटे चीरे लगाए जाते हैं : चूंकि युवाओं को सर्जरी से शरीर पर निशान पड़ने का डर होता है जो बदसूरत दिख सकते हैं, टीएवीआई में छाती को खोलने वाले बड़े कट के बजाय एक छोटा चीरा लगाया जाता है. इस से इन्फैक्शन की संभावना भी कम हो जाती है, मरीज को दर्द कम होता है, साथ ही, सांस लेने में आसानी रहती है. इस में निशान भी कम से कम पड़ते हैं जो पुरानी तकनीकों की तुलना में जल्दी ठीक हो जाते हैं.

मरीज लंबे समय तक ठीक रहता है : टीएवीआई युवाओं में दीर्घकालिक परिणाम दे सकता है. ट्रांसप्लांट किए गए वौल्व लंबे समय तक टिकाऊ और सफल साबित हुए हैं, जिस से युवा रोगियों को यह भरोसा हुआ है कि आने वाले सालों में उन की हृदय संबंधी समस्याओं की उचित रूप से देखभाल होती रहेगी.

कम मृत्यु दर : नियमित ओपन हार्ट सर्जरी की तुलना में टीएवीआई की एक सब से अहम उपलब्धि है मृत्यु दर में कमी. टीएवीआई की मृत्यु दर में कमी आई है, जिस से यह कई रोगियों के लिए एक सुरक्षित विकल्प बन गया है, खासतौर से उन लोगों के लिए जिन की ज्यादा उम्र या अन्य बीमारियों के कारण सर्जरी में काफी जोखिम होता है.

जटिलताओं में कमी : देखा गया है कि टीएवीआई में ओपन हार्ट सर्जरी की तुलना में बहुत कम समस्याएं पैदा होती हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि ओपन हार्ट सर्जरी ऐसी सर्जरी है जिस में छाती को खोलने के लिए चीरा लगाया जाता है और दिल की मांसपेशियों, वौल्वों या धमनियों की सर्जरी की जाती है. लेकिन टीएवीआई औपरेशन के दौरान मरीजों को कार्डियोपल्मोनरी बाईपास मशीन पर नहीं रखा जाता. उन के दिल की धड़कन जारी रहती है, जिस से जटिलताओं का खतरा कम हो जाता है. इन के कारण चीरा लगाने, चोट लगने, रक्त का थक्का जमने, धमनी की चोट, इन्फैक्शन, रक्तस्राव, गुर्दे फेल होना या दिल का दौरा पड़ने जैसी जटिलताएं पैदा नहीं होतीं. इस तरह आने वाले वर्षों में युवाओं के पास स्वस्थ रहने के लिए एक सुरक्षित विकल्प उपलब्ध है.

युवाओं में दिल के रोगों की बढ़ती घटनाएं चिंता का कारण हैं और इस समस्या के निदान के लिए इनोवेटिव सर्जरी की जरूरत है. ट्रांसकैथेटर एओर्टिक वौल्व इम्प्लांटेशन अपने जीवन के शुरुआती चरणों में ही कई तरह की हृदय समस्याओं से पीडि़त युवाओं के इलाज के लिए एक बेहतरीन विकल्प है. कम से कम चीरफाड़ व जटिलताओं का कम जोखिम और क्वालिटी लाइफ बनाए रखने की क्षमता इसे एक महत्त्वपूर्ण तकनीक बनाती है, जो युवाओं को हृदय रोगों का सामना करने में मदद करती है.

(लेखिका मणिपाल अस्पताल, गुरुग्राम में कार्डियोलौजिस्ट हैं.)

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