कुत्ता घोषित तौर पर निकृष्ट प्राणी है, क्योंकि वह काटने का अपना खानदानी स्वभाव या फितरत नहीं छोड़ पाता, ऐसे कुत्तों को कटखना कुत्ता कहा जाता है. कुत्ते 2 तरीकों से काटते हैं. पहला, घात लगा कर, दूसरे खुलेआम, जो अपेक्षाकृत कम नुकसानदेह होते हैं.

पहली किस्म के कुत्ते ज्यादा खतरनाक होते हैं, जो न जाने से कहां से रामसे ब्रदर्स की फिल्मों की चुड़ैल जैसे प्रकट होते हैं और ख्वाबोंखयालों में डूबे राहगीर को संभलने का मौका भी नहीं देते.

वैसे तो कुत्ते शरीर में कहीं भी अपने पैनेनुकीले दांत गड़ा सकते हैं, लेकिन इन के काटने का पसंदीदा हिस्सा पिंडली होता है, क्योंकि वहां तक ये आसानी से पहुंच जाते हैं और ज्यादा मांस होने के चलते उन्हें भी सुखद या क्रूर कुछ भी कह लें, अनुभूति होती है.

11 सितंबर, 2023 को देश की राजधानी दिल्ली का माहौल ठीक वैसा ही सूनासूना सा था, जैसा बरात विदा होने के बाद लड़की वालों के घर का होता है. सब थकेमांदे सो रहे थे. इस दिन जी-20 का तमाशा खत्म हो चुका था. कोई 4,500 करोड़ रुपए खर्च करने के बाद भी सियासी और सरकारी हलकों में विश्वगुरु बनने का सपना सच होने का भ्रमनुमा जोश था, अफसोस इस बात का रहा होगा कि इस से ज्यादा फूंक कर अपनी और रईसी क्यों नहीं दिखा पाए.

कुत्तों का हालांकि इस अंतर्राष्ट्रीय जलसे से कोई सीधा ताल्लुक नहीं था, जिन्हें इस आयोजन की भव्यता के लिए गरीब दरिद्रों की तरह सड़कों से खदेड़ दिया गया था. हफ्तेभर इन कुत्तों और दरिद्रों ने कैसे गुजर की होगी, यह तो सरकार जाने, लेकिन इस दिन सब से बड़ी अदालत में कोई अर्जेंट हियरिंग नहीं हो रही थी. सो, जज साहबान और वकील साहबान हलकेफुलके मूड में थे.

इस दिन सुप्रीम कोर्ट में कुत्ते के काटने की देशव्यापी समस्या पर ख्वाहमख्वाह में सैमिनार हो गया, जिस में जजों, वकीलों, बाबुओं, पेशकारों और चकाचक वरदीधारी वाले दरबानों तक ने भी बतौर श्रोता और दर्शक ही सही उत्साहपूर्वक हिस्सा लिया. साबित हो गया कि हर किसी के पास कुत्ता काटने को ले कर कोई न कोई मौलिक, अप्रकाशित और अप्रसारित संस्मरण है, जिसे मीडिया ने प्रसारित भी किया और प्रकाशित भी किया. यह और बात है कि सर्वोत्तम संस्मरण पर कोई नकद या उधार पुरस्कार नहीं दिया गया.

अदालत की कार्रवाई शुरू की जाए का उद्घोष होने से पहले ही सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की नजर सामने खड़े एक वकील कुणाल कुलकर्णी पर पड़ी, जिन के हाथों पर पट्टियां बंधी हुई थीं. कैसे लगी यह सहज जिज्ञासा उन्होंने जाहिर है यूं ही व्यक्त की, तो कुणाल का दुख फूट पड़ा. वे बोले कि बीती रात घर के पास 5 कुत्तों ने घेर कर काट लिया. सीजेआई ने उन्हें रजिस्ट्रार के जरीए इलाज की पेशकश की, तो वे बोले कि इलाज करा लिया है.

यहीं से कुत्ता संगोष्टी का अनौपचारिक उद्घाटन हुआ. अब तक बिना दलीलों के यह साबित हो चुका था कि कुछ कुत्तों ने उक्त वकील साहब को घेरने की साजिशाना प्लानिंग पहले से ही कर रखी थी और कुत्ते अकसर रात में घूमने वालों या मौर्निंग वाक करने वालों को ज्यादा काटते हैं.

हालांकि साबित तो यह भी हो चुका था कि उक्त वकील साहब ने यह जानते हुए भी कि उन के घर के आसपास भी आवारा कुत्ते घूमते हैं और कभी भी किसी को भी काट सकते हैं अपनी तरफ से कोई एहतियात नहीं बरती थी, जो घोर लापरवाही थी.

कुत्तों का कोई वकील होता तो यही कहता कि हमें काटने के लिए जानबूझ कर उकसाया गया था, नहीं तो समझदार लोग छड़ी ले कर चलते हैं. वे हमें हड़काते हैं, तो हम शराफत से उन का रास्ता छोड़ देते हैं.

खैर, बात आईगई हो ही रही थी कि चीफ जस्टिस के साथ बैठे जस्टिस पीएस नरसिम्हा भी बोल उठे कि आवारा कुत्तों को ले कर इस तरह की समस्या एक गंभीर समस्या है. अदालतों का एक अलिखित कानून है कि जज साहबान जिस मसले पर जरा सी भी दिलचस्पी दिखाते हैं, तो मौजूद वकील सबकुछ भूलभाल कर उस मसले पर बोलना अपना फर्ज समझने लगते हैं. इस के पीछे उन का मकसद अदालत की खुशामद ही होता है और उस के सिवाय कुछ नहीं होता. इस तरह सत्य वचन महाराज की तर्ज पर समस्या को गंभीर साबित करने में सभी अपनेअपने तरीके से योगदान देते पूरा जोर भी लगा देते हैं.

बात अगर मौसम पर अदालत करती तो वकील लोग कहते कि जी सर, आज दिल्ली में उमस है, लेकिन थोड़ी बूंदाबांदी भी हुई. अब अदालत अगर अड़ जाती कि नहीं, उमस बहुत ज्यादा है, तो वकील कहते, ‘जी मी लौर्ड, इतनी सी बूंदाबांदी से कुछ नहीं होता, मारे उमस के बुरा हाल है. मुझे तो चक्कर से आने लगे हैं.’

अदालत संतुष्ट हो जाती और फिर गंभीर हो कर कहती, ‘हां तो कार्रवाई आगे बढ़ाई जाए.’

अदालत में मौजूद सौलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत का मूड देख बात को और विस्तार से यह कहते दिया कि आएदिन कुत्तों के काटने के गंभीर मामले सामने आ रहे हैं. यहां तक कि छोटे और अबोध बच्चों की मौत की खबरें काफी विचलित करती हैं. पिछले दिनों गाजियाबाद में एक 14 साल के बच्चे की रेबीज के संक्रमण से तड़प कर अपने पिता की गोद में ही दम तोड़ देने के मामले का हवाला उन्होंने दिया तो हर कोई भावुक हो उठा. बात थी भी भावुक होने वाली, क्योंकि यह मामला वाकई हृदय विदारक और संवेदनशील था.

माहौल को ज्यादा बोझिल होने से रोकने के लिए सीजेआई ने भी अपने ला क्लर्क पर कुत्तों द्वारा हमले का किस्सा सुनाया, तो मौजूद एक और वकील विजय हंसरिया ने उपयुक्त अवसर जानते सीजेआई से स्वतः संज्ञान लेने का अनुरोध कर डाला.

कुत्तों के काटने के मामले का टैक्निकल फाल्ट उजागर करते इन वकील साहब ने बताया कि ऐसे मामलों पर अलगअलग हाईकोर्ट के अलगअलग फैसलों से भ्रम की स्थिति बनी हुई है.

एक वकील के हाथ में पट्टी बंधी देख हमदर्दी क्या दिखाई, ये वकील तो घेरने ही लगे यह सोचते अदालत ने बात खत्म करने के अंदाज में कहा, ‘देखेंगे.’

हर कोई जानता है कि सब से बड़ी अदालत चाह कर भी कुछ नहीं कर पाएगी, क्योंकि बात यहां भी नफरत और मुहब्बत की है.

कुत्तों को चाहने वालों की देश क्या दुनिया में कहीं कमी नहीं है. लोग बच्चों की तरह कुत्तों को पालते हैं, अपने बिस्तर में उन्हें सुलाते हैं. उन के मुंह में मुंह डाल कर चूमाचाटी करते हैं, डाइनिंग टेबल पर साथ बैठा कर खाना खिलाते हैं, उन के स्मारक बनवाते हैं, उन के नाम पर करोड़ों की दौलत की वसीयत कर जाते हैं. और तो और छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले सहित उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र सहित कई जगह मंदिर भी बने हुए हैं, जिन में कुत्तों की पूजा होती है.

दुर्ग के धमधा में कुत्ते के मंदिर में कुत्ते की मूर्ति की पूरे विधिविधान से पूजा होती है. इस मंदिर के बारे में अंधविश्वासियों ने अफवाह फैला रखी है कि कुत्ता काट ले तो यहां आ कर पूजा करने से पीड़ित ठीक हो जाता है.

साबित होता है कि किसी एंटीरेबीज इंजैक्शन या दवाओं की जरूरत को नकारते इस देश में कुत्ते का मंदिर बना कर भी कमाई की जा सकती है. ऐसे में कोई क्या कर लेगा.

डौग बाइट्स के दिनोंदिन बढ़ते मामलों पर ऐसी मानसिकता और माहौल देख निराशा ही हाथ लगती है. ताजा आंकड़ों के मुताबिक, कोई 1 करोड़, 70 लाख हर साल डौग बाईट का शिकार होते हैं, जिन में से तकरीबन 20,000 दम तोड़ देते हैं.

सुप्रीम कोर्ट के सैमिनार के बाद मीडिया ने कार्रवाई के कच्चे चावलों को उबाला तो शाम तक सोशल मीडिया ने उस में दाल मिला कर खिचड़ी ही बना डाली. रात होतेहोते सुप्रीम कोर्ट की कार्रवाई के सम्मान में घरघर कुत्तों की चर्चा हुई. उस में भी समाधान कम संस्मरण ज्यादा थे.

किसी के अलीगढ़ वाले फूफाजी को कुत्ते ने काटा था, तो किसी की पूना वाली ननद पर सोसाइटी के कुत्ते का दिल आ गया था. हर जगह पड़ोस के मामले का भी उदाहरण जरूर दिया गया कि एक बार हमारे पड़ोस वाले टहलने जा रहे थे कि उन्हें कुत्ते ने काट खाया.

कुत्ता काटने के दर्जनों मामले सुप्रीम कोर्ट में और सैकड़ों हाईकोर्ट में चल चुके हैं, लेकिन हर बार मोहब्बतियों और नफरतियों के बीच तलवारें ऐसे खिचीं हैं कि अदालतें भी चकरा जाती हैं कि क्या फैसला या व्यवस्था दें, जिस से सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे. अदालतों में कुत्तों की नसबंदी, पुनर्वास और विस्थापन पर बड़ी ठोस दलीलें कुत्ता प्रेमियों ने दी हैं.

ताजा मामला जी-20 के आयोजन के दौरान का ही है. हुआ यों कि देशी कुत्तों को विदेशी मेहमानों की नजर से बचाने के लिए एमसीडी ने कुत्तों को पकड़ कर पशु नसबंदी केंद्रों में नजरबंद किया, तो पशु प्रेमी बिफर कर अदालत तक जा पहुंचे.

पीएफए की ट्रस्टी अंबिका शुक्ला ने कुत्तों को पकड़ने की कार्रवाई को क्रूर और अनावश्यक बताया, तो एनसीआर के एक कुत्ता प्रेमी संजय महापात्रा यह कहते बिफर पड़े थे कि कुत्तों को जबरन घसीट कर बेरहमी से ले जाना समाज के लिए ठीक नहीं है. कुत्तों को भी इज्जत से रहने का हक है. अगर जी-20 शिखर सम्मेलन के बाद कुत्तों को इज्जत से वापस उन की जगह नहीं छोड़ा गया, तो लंबी लड़ाई लड़ी जाएगी.

यहां दिलचस्प तर्क तथ्य सहित दिल्ली के डौग लवर्स ने यह कहते दिया था कि पशु क्रूरता निरोधक अधिनियम, 1960 और साल 2002 में हुए संशोधन के मुताबिक, कुत्तों को देश का मूल निवासी माना गया है. वे जहां चाहे रह सकते हैं. उन को हटाने और भगाने का अधिकार किसी के पास नहीं है. अगर कोई ऐसा करता पाया जाता है, तो उसे 5 साल तक की सजा हो सकती है.

लेकिन, असल बात कुछ और थी. घरघर चर्चा जी-20 की भी थी. लोग यह नहीं समझ पा रहे थे कि इस अश्वमेध यज्ञ से हमें क्या मिला. देशविदेश से गोरे, काले और सांवले राजामहाराजा आए और आहुतियां डाल कर चले गए. करोड़ों के पकवान भी उन्होंने डकारे और शाही तरीके से रहे.

हमारे पास इतना पैसा आया कहां से? नरेंद्र मोदी सरकार ने 10 साल से भी कम अरसे में 100 लाख करोड़ रुपए का जो कर्ज लिया, वह कहां गया. इस से भली तो मनमोहन सरकार थी, जिस ने 10 साल में महज 38 लाख करोड़ रुपए का कर्ज लिया था. मोदी सरकार का कर्ज मार्च, 2024 तक 155 से और बढ़ कर 172 लाख करोड़ रुपए हो जाएगा, जो आखिरकार चुकाना तो हम ही को है, फिर इतनी फिजूलखर्ची क्यों?

चूंकि आस्था, निष्ठा और भक्ति जो डर के ही पर्याय हैं के चलते वे इस का विरोध नहीं कर सकते थे, इसलिए कुत्तों की चर्चा के बहाने अपनी भड़ास निकाली, जिस का मौका इत्तिफाक से सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें दे दिया था. रही बात कुत्तों की, तो वे और उन का काटना शाश्वत है, था और रहेगा. कोई अदालत इस में कुछ नहीं कर सकती.

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