शाम के यही कोई 5 बजे अचानक रक्षा जोर से चिल्लाई तो उस की चीख सुन कर चचेरी भाभी रश्मि ही नहीं, आसपड़ोस वाले भी उस के पास आ गए थे. उस के पास आने वालों को उस से यह नहीं पूछना पड़ा था कि वह चिल्लाई क्यों थी? क्योंकि वह जिस कमरे में खड़ी थी, सामने ही पलंग पर 55 वर्षीया सुनीता की लाश पड़ी थी. उन के दोनों हाथ बंधे थे और मुंह में कपड़ा ठुंसा था. कमरे की अलमारी का सामान बिखरा हुआ था.

स्थिति देख कर ही लोग समझ गए कि यह लूट के लिए हत्या का मामला है. सभी हैरान थे कि दिनदहाड़े घर में अन्य लोगों के होते हुए यह सब कैसे हो गया और किसी को पता तक नहीं चला. किसी ने मृतका सुनीता के पति राजकुमार गुप्ता को फोन कर के इस घटना के बारे में बता दिया था.

आते ही राजकुमार गुप्ता पड़ोसियों की मदद से पत्नी सुनीता को इस उम्मीद से मोहल्ले के ही शांति मिशन हौस्पिटल ले गए कि शायद उन में अभी जान शेष हो. लेकिन अस्पताल के डाक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया.

घटना की सूचना पुलिस को भी दे दी गई थी. लेकिन घंटा भर गुजर जाने के बाद भी पुलिस घटनास्थल पर नहीं पहुंची. मजबूरन राजकुमार गुप्ता को थाना नौबस्ता जा कर हत्या और लूट की जानकारी देनी पड़ी. इस के बाद थानाप्रभारी आलोक यादव अधिकारियों को घटना की सूचना दे कर पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर जा पहुंचे. उन के पहुंचने के थोड़ी देर बाद ही एसएसपी यशस्वी यादव तथा अन्य अधिकारी भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

मामला पेचीदा और रहस्यमय लग रहा था, इसलिए सुबूत जुटाने के लिए फोरेंसिक टीम को भी बुला लिया गया था. फोरेंसिक टीम ने अपना काम कर लिया तो अधिकारियों ने कमरे में जा कर लाश का निरीक्षण शुरू किया.

कमरे में रखी लोहे की अलमारी खुली पड़ी थी. उस में रखे गहनों के डिब्बे और सामान इधरउधर बिखरा पड़ा था. गहने और अलमारी में रखी रकम गायब थी. घटनास्थल और शव का निरीक्षण करने के बाद पुलिस ने पंचनामा तैयार कर शव को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. इस के बाद पूछताछ शुरू हुई.

पुलिस को जब पता चला कि घटना के समय मकान के पीछे वाले कमरे में मृतका की बहू रश्मि और भतीजी रक्षा लैपटौप पर शादी की वीडियो देख रही थीं तो यह बात पुलिस के गले नहीं उतरी क्योंकि आगे वाले कमरे में लूट और हत्या हो गई और पीछे के कमरे में मौजूद इन दोनों महिलाओं को इस की भनक तक नहीं लगी थी.

पुलिस ने दोनों से काफी पूछताछ की. इस की एक वजह यह भी थी कि बहू अभी नवविवाहिता थी. पुलिस को शक था कि कहीं उसी ने अपने किसी प्रेमी से ऐसा न कराया हो? काफी पूछताछ के बाद भी जब पुलिस का शक दूर नहीं हुआ तो पुलिस ने सच्चाई का पता लगाने के लिए एक युक्ति अपनाई.

शक की गुंजाइश न रहे, इस के लिए पुलिस अधिकारियों ने फोरेंसिक टीम की मदद से लूट और हत्या का नाटक करने का विचार किया. नाटक कर के पुलिस ने यह जानने की कोशिश की कि घटना के समय मृतका सुनीता बाहर वाले कमरे में चिल्लाई होगी तो उन की चीख या आवाज पीछे के कमरे में बैठी रश्मि और रक्षा को सुनाई दी होगी या नहीं.

कई बार पुलिस ने लूट और हत्या का नाटक कर के देखा, सचमुच आगे वाले कमरे की आवाजें पीछे वाले कमरे में नहीं पहुंच रही थीं. इस से पुलिस को लगा कि इस मामले में मृतका की नवविवाहिता बहू रश्मि का कोई दोष नहीं है. लेकिन भतीजी रक्षा जिस तरह घबराई हुई थी और नजरें चुरा रही थी, उस से वह पुलिस की नजरों में चढ़ गई. पुलिस का ध्यान उस पर जम गया. शक के आधार पर पुलिस ने उस का लैपटौप और मोबाइल कब्जे में ले लिया.

पुलिस ने थाने आ कर राजकुमार गुप्ता द्वारा दी गई तहरीर के आधार पर उन के घर हुई लूट और पत्नी सुनीता की हत्या का मुकदमा अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज कर के जांच शुरू कर दी. विवेचना में क्या हुआ, यह जानने से पहले आइए थोड़ा राजकुमार गुप्ता के बारे में जान लेते हैं.

राजकुमार गुप्ता 2 भाई हैं. बड़े भाई रामप्रसाद कानपुर के ही थाना विधनू के मोहल्ला न्यू आजादनगर में रहते हैं. उन की परचून की दुकान है. उन के परिवार में पत्नी के अलावा बेटी रक्षा और बेटा मनीष है. जबकि राजकुमार अपने परिवार के साथ कानपुर के थाना नौबस्ता के मोहल्ला पशुपतिनगर में रहते हैं.

उन के परिवार में पत्नी सुनीता और एक बेटा तथा एक बेटी थी. बेटी की शादी उन्होंने पहले ही कर दी थी.  अब वह एक बेटे की मां है. राजकुमार का तंबाकू का बिजनैस है.

सब कुछ ठीकठाक चल रहा था, लेकिन 2-3 महीने से न जाने कौन राजकुमार को परेशान कर रहा था. बारबार फोन कर के वह उन से मोटी रकम की मांग कर रहा था. 5 दिसंबर को उन के एकलौते बेटे हिमांशु की शादी थी. हिमांशु राजकुमार का एकलौता बेटा था. उन के पास किसी चीज की कमी नहीं थी, इसलिए वह बेटे की शादी खूब धूमधाम से करना चाहते थे.

शादी की तारीख नजदीक आते ही राजकुमार के नजदीकी रिश्तेदार आने लगे थे. उन की बेटी शिवांगी भी अपने डेढ़ वर्षीय बेटे शुभम के साथ भाई की शादी में शामिल होने के लिए आ गई थी. 3 दिसंबर की शाम 6 बजे अचानक शिवांगी का बेटा शुभम घर के बाहर से गायब हो गया. बच्चे के इस तरह गायब होने से घर में हड़कंप मच गया. क्या किया जाए, लोग इस बात पर विचार कर ही रहे थे कि राजकुमार के मोबाइल फोन पर किसी ने शुभम के अपहरण की बात कह कर 15 लाख रुपए की फिरौती मांगी. शुभम के अपहरण की बात सुन कर घर में रोनापीटना मच गया.

अपहर्त्ता ने राजकुमार गुप्ता को पुलिस में न जाने की हिदायत दी थी. लेकिन कुछ लोगों के कहने पर वह अपने रिश्तेदारों के साथ थाना नौबस्ता जा पहुंचे. उन्होंने थानाप्रभारी को वह मोबाइल नंबर, जिस से फिरौती के लिए फोन आया था, दे कर बच्चे को अपहर्त्ताओं से मुक्त कराने की गुजारिश करने लगे.

वे लोग पुलिस से बच्चे को मुक्त कराने की गुजारिश कर ही रहे थे कि तभी उन्हें घर से फोन कर के बताया गया कि एक आदमी बच्चे को मोटरसाइकिल से घर के सामने छोड़ गया है. बच्चा सकुशल मिल गया तो थाना नौबस्ता पुलिस ने इस मामले में कोई काररवाई नहीं की. जबकि उसे उस मोबाइल नंबर के बारे में पता करना चाहिए था. बहरहाल, भले ही बच्चा वापस आ गया था, लेकिन राजकुमार और उस के घर वाले इस घटना से परेशान थे.

5 दिसंबर को राजकुमार के बेटे हिमांशु की शादी थी. शादी से एक दिन पहले किसी ने राजकुमार गुप्ता को फोन कर के कहा कि वह 15 लाख रुपए की व्यवस्था कर के बताए गए स्थान पर पहुंचा दें वरना शादी से पहले उन के बेटे हिमांशु की हत्या कर दी जाएगी.

एकलौते बेटे के साथ कहीं कुछ अनहोनी न घट जाए, इस के मद्देनजर राजकुमार गुप्ता ने एक बार फिर थाना नौबस्ता जा कर पुलिस को 15 लाख की अवैध वसूली वाले फोन के बारे में बताया और अपने बेटे की सुरक्षा का आग्रह किया. लेकिन थाना नौबस्ता पुलिस ने राजकुमार की न तो रिपोर्ट दर्ज की और न उन के द्वारा बताए फोन नंबरों के बारे में कोई जांच की.

6 दिसंबर को हिमांशु का विवाह ठीकठाक संपन्न हो गया और बहू घर आ गई. खुशी के माहौल में राजकुमार गुप्ता पूर्व की घटनाओं को भूल कर अपने कामकाज में लग गए.

रोज की तरह 4 जनवरी को भी राजकुमार गुप्ता अपनी दुकान पर चले गए. घर में पत्नी सुनीता और बहू रश्मि रह गईं. मकान के पीछे वाले एक कमरे में राजकुमार की विधवा भाभी जगतदुलारी अपने बेटे सत्यम के साथ रहती थीं. एक बजे के करीब भाई रामप्रसाद की बेटी रक्षा आ गई. आगे वाले कमरे में सुनीता आराम कर रही थीं, इसलिए उन से दुआसलाम कर के वह हिमांशु की पत्नी रश्मि के पास चली गई. वहां वह लैपटौप पर उस की शादी की वीडियो देखने लगी.

5 बजे के आसपास रक्षा अपने घर जाने के लिए जब बाहर वाले कमरे से हो कर गुजर रही थी तो अपनी चाची सुनीता को बेड पर घायल पड़ी देख चीख पड़ी. उसी की चीख से इस घटना के बारे में पता चला.

पुलिस को पक्का यकीन था कि इस वारदात में घर के किसी आदमी का हाथ है. ऐसे में पुलिस की निगाह बारबार रक्षा गुप्ता पर जा कर टिक रही थी. लेकिन बिना सुबूत के उस पर हाथ नहीं डाला जा सकता था. इसलिए पुलिस सुबूत जुटाने लगी.

मामला गंभीर था, इसलिए एसएसपी यशस्वी यादव ने इस मामले के खुलासे के लिए एसपी (ग्रामीण) डा. अनिल मिश्रा, सीओ रोहित मिश्रा, क्राइम ब्रांच प्रभारी संजय मिश्रा और थाना नौबस्ता के थानाप्रभारी आलोक कुमार के नेतृत्व में 4 टीमें बनाईं.

मोबाइल फोन अपराधियों तक पहुंचने में काफी मददगार साबित होता है, इसलिए पुलिस की इन टीमों ने मोबाइल फोन के जरिए हत्यारों तक पहुंचने की योजना बनाई. पुलिस ने मृतका सुनीता, रश्मि और रक्षा के मोबाइल फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई. इन का अध्ययन करने के बाद पुलिस ने उन मोबाइल नंबरों को सर्विलांस पर लगा दिया, जिन पर उसे संदेह हुआ.

रक्षा के नंबर की काल डिटेल्स में पुलिस को एक नंबर ऐसा मिला, जिस पर घटना के बाद तक उस का संपर्क बना रहा था. लेकिन उस के बाद वह मोबाइल नंबर बंद हो गया था. इस बात से पुलिस को रक्षा गुप्ता पर शक और बढ़ गया.

पुलिस ने इसी शक के आधार  पर घटना के समय से 2 घंटे पहले और 2 घंटे बाद का पशुपतिनगर क्षेत्र के सभी मोबाइल टावरों का पूरा विवरण निकलवाया. इस का फिल्टरेशन किया गया तो रक्षा की उस नंबर से घटना के पहले और बाद में बातचीत होने की पुष्टि तो हुई ही, उस नंबर की उपस्थिति भी पशुपतिनगर की पाई गई.

जांच में यह भी पता चला कि दोनों ने एकदूसरे को एसएमएस भी किए थे. इस के बाद पुलिस ने उस नंबर के बारे में पता किया तो जानकारी मिली कि वह नंबर सत्येंद्र यादव का था, जो रक्षा के ही मोहल्ले का रहने वाला था.

पुलिस को जब पता चला कि घटना के पहले और बाद में रक्षा और सत्येंद्र ने एकदूसरे को मैसेज किए थे तो पुलिस ने रक्षा के मोबाइल का इनबौक्स देखा. लेकिन उस में कोई मैसेज नहीं था. इस का मतलब उस ने मैसेज डिलीट कर दिए थे.

पुलिस ने बहाने से सत्येंद्र का मोबाइल फोन ले कर उसे भी चेक किया. उस ने भी सारे मैसेज डिलीट कर दिए थे. शायद उन्हें यह पता नहीं था कि पुलिस चाहे तो उन मैसेजों को रिकवर करा सकती है. पुलिस को लगा कि अगर मैसेज रिकवर हो जाएं तो इस लूट और हत्या का खुलासा हो सकता है.

और सचमुच ऐसा ही हुआ. मैसेज रिकवर होते ही राजकुमार के घर हुई लूट और हत्या का खुलासा हो गया. पता चला कि रक्षा ने ही मैसेज द्वारा चाचा के घर की जानकारी दे कर अपने प्रेमी सत्येंद्र यादव से यह लूटपाट कराई थी. पुलिस ने जो मैसेज रिकवर कराए, वे इस प्रकार थे :

घटना से थोड़ी देर पहले रक्षा ने सत्येंद्र को मैसेज किया था, ‘चाची घर पर हैं, अभी मत आना.’

जवाब में सत्येंद्र ने मैसेज किया था, ‘चाची हैं तो क्या हुआ, मैं आ रहा हूं.’

इस के बाद सत्येंद्र ने अगला मैसेज भेज कर रक्षा से पूछा, ‘मैं तुम्हारी चाची के घर के पास पहुंच गया हूं. गेट खुला है या नहीं?’

रक्षा ने जवाब दिया था, ‘गेट बंद है, लेकिन अंदर से लौक नहीं है.’

‘मैं घर के अंदर आ गया हूं. तुम अपनी भाभी को संभालना.’ सत्येंद्र ने मैसेज भेजा.

‘ठीक है, गुडलक. ओके.’ रक्षा ने जवाब दिया.

इस के बाद सत्येंद्र ने 5 बजे के करीब रक्षा को मैसेज भेजा, ‘काम हो गया है, मैं जा रहा हूं.’

रक्षा ने जवाब दिया, ‘ओके.’

पुलिस जांच शुरू हुई तो रक्षा ने सत्येंद्र को मैसेज भेजा, ‘कहीं हम फंस न जाएं?’

‘सोने वाला जाग कर गवाही नहीं देगा, परेशान मत हो.’ सत्येंद्र ने उसे तसल्ली दी थी.

रक्षा का आखिरी मैसेज था, ‘नौबस्ता पुलिस के साथ क्राइम ब्रांच की टीम भी आई थी. एक मोटा दरोगा मुझे घूर रहा था. लगता है, उसे कुछ शक हो गया है.’

सुरक्षा की दृष्टि से सत्येंद्र और रक्षा ने फोन से बातचीत बंद कर दी थी. दोनों एकदूसरे को केवल एसएमएस कर रहे थे. सत्येंद्र ने रक्षा के आखिरी मैसेज के जवाब में कहा था, ‘तुम मोबाइल के इनबौक्स से सारे मैसेज डिलीट कर दो. उस के बाद कुछ नहीं होगा. मैं भी पुलिस के बारे में पता करता रहूंगा.’

इस के बाद पुलिस के लिए संदेह की कोई गुंजाइश नहीं रह गई थी. उसे अकाट्य सुबूत मिल गए थे. पुलिस 6 जनवरी, 2014 को रक्षा को उस के घर से हिरासत में ले कर थाना नौबस्ता ले आई. पुलिस ने उस से पूछताछ शुरू की तो काफी देर तक वह इस मामले में अपना और सत्येंद्र का हाथ होने से इनकार करती रही. लेकिन जब पुलिस ने उस के द्वारा डिलीट किए गए मैसेजों को लैपटौप की स्क्रीन पर दिखाना शुरू किया तो उस की आंखें फटी की फटी रह गईं.

अब रक्षा के पास सच उगलवाने के अलावा कोई चारा नहीं बचा था. उस ने अपनी चाची सुनीता की हत्या और लूट में सहयोग का अपना जुर्म स्वीकार करते हुए पुलिस को सत्येंद्र से प्यार होने से ले कर इस अपराध में शामिल होने तक की पूरी कहानी सुना दी.

रक्षा के पिता रामप्रसाद की छोटी सी परचून की दुकान थी. उस दुकान से सिर्फ गुजरबसर हो पाती थी. घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी. इस के बावजूद उस के पिताजी उसे पढ़ाना चाहते थे. वह महिला महाविद्यालय किदवईनगर से बीए कर रही थी. वह पढ़ने में ठीक थी. 2 साल पहले कोयलानगर की रहने वाली एक सहेली के यहां उस की मुलाकात सत्येंद्र यादव से हुई तो वह उस के प्रेम में पड़ गई.

सत्येंद्र यादव भी कोयलानगर के ही रहने वाले अमर सिंह का बेटा था. वह रक्षा की सहेली के यहां अकसर आताजाता रहता था. इसी वजह से रक्षा से उस की मुलाकात होने लगी थी. इन्हीं मुलाकातों में दोनों में आंखमिचौली शुरू हुई तो रक्षा बहकने लगी.

आगे चल कर रक्षा और सत्येंद्र के बीच ऐसा आकर्षण बढ़ा कि बिना मिले उन का मन ही नहीं लगता था. दोनों मोबाइल पर भी लंबीलंबी बातें करते थे. इस तरह जब दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा तो इस के चर्चे मोहल्ले में होने लगे.

रक्षा और सत्येंद्र यादव के प्यार की चर्चा रामप्रसाद के कानों में पड़ी तो वह हैरान रह गए. कालेज से लौटने पर उन्होंने बेटी से सत्येंद्र के बारे में पूछा तो उस ने बिना किसी झिझक के सत्येंद्र से चल रहे अपने प्यार की बात स्वीकार कर ली. साथ ही उस ने यह भी कहा कि वे दोनों एकदूसरे को जीजान से चाहते हैं और जल्दी ही शादी कर लेंगे

रक्षा की बात सुन कर रामप्रसाद हक्केबक्के रह गए. उन्होंने उसी दिन अपने छोटे भाई राजकुमार के घर जा कर रक्षा और सत्येंद्र के बारे में बता कर कहा कि रक्षा कह रही है कि वह सत्येंद्र से शादी करेगी. अगर उस ने ऐसा किया तो घरपरिवार की इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी.

तब राजकुमार और सुनीता ने गैरजाति के लड़के से शादी का विरोध करते हुए कहा, ‘‘अब घरपरिवार की इज्जत बचाने का एक ही रास्ता है कि जल्द से जल्द रक्षा की शादी कर दी जाए.’’

‘‘लेकिन मेरे पास अभी इतने पैसे नहीं हैं कि मैं इतनी जल्दी उस की शादी कर सकूं.’’ रामप्रसाद ने अपनी आर्थिक तंगी बता कर हाथ खड़े किए तो सुनीता ने लखनऊ के एक लड़के का पता दे कर कहा, ‘‘आप वहां जा कर शादी तय कीजिए. शादी तो करनी ही है. हम लोग हर तरह से इस शादी में आप की मदद करेंगे.’’

रामप्रसाद लखनऊ पहुंचे और सुनीता द्वारा बताए लड़के को देखा. लड़का भी ठीक था और घरपरिवार भी. इसलिए शादी तय कर दी. चौथे दिन तिलक चढ़ा कर विवाह की तारीख भी तय कर दी गई. जब इस बात की जानकारी रक्षा को हुई तो वह बौखला उठी. उस ने रामप्रसाद से एक बार फिर सत्येंद्र से शादी की जिद की. लेकिन रामप्रसाद ने गैरजाति के लड़के से उस का विवाह करने से साफ मना कर दिया.

रक्षा सत्येंद्र के वियोग में छटपटा रही थी. उस ने उस के साथ जीनेमरने की कसमें खाई थीं, इसलिए किसी भी सूरत में वह उस से शादी करना चाहती थी. जब कोई राह नजर नहीं आई तो उस ने सत्येंद्र के साथ भाग कर शादी करने की योजना बनाई. लेकिन भाग कर किसी अनजान शहर में रहनेखाने के लिए काफी रुपयों की जरूरत थी. इतने रुपए न सत्येंद्र के पास थे, न रक्षा के पास. रुपए कहां से आएं, दोनों इस बात पर विचार करने लगे.

अचानक रक्षा के दिमाग में आया कि उस के चाचा राजकुमार गुप्ता के पास बहुत पैसा है. वह हमेशा घर पर 20-25 लाख रुपए रखे रहते हैं. अगर किसी तरह वे रुपए उस के हाथ लग जाएं तो वह आराम से सत्येंद्र के साथ भाग कर अपनी अलग दुनिया बसा सकती है. रक्षा ने जब इस बात पर सत्येंद्र से सुझाव मांगा तो उस ने भी हामी भर दी. इस के बाद दोनों किसी भी तरह राजकुमार के घर से रुपए उड़ाने की कोशिश करने लगे.

जैसेजैसे विवाह की तारीख (24 फरवरी, 2014) नजदीक आती जा रही थी, रक्षा की बेचैनी बढ़ती जा रही थी. वह किसी भी हाल में सत्येंद्र से जुदा नहीं होना चाहती थी. यही वजह थी कि सत्येंद्र को पाने के लिए वह किसी भी हद तक जाने को तैयार थी.

उस ने चाचा के घर से लाखों रुपए उड़ाने की जो योजना बना रखी थी, उस के लिए मौका नहीं मिल रहा था. वह चाहती थी कि किसी तरह का खूनखराबा भी न हो और चाचा के घर रखे रुपए भी मिल जाएं. इस के लिए वह लगातार चाचा के घर पर नजर रख रही थी.

राजकुमार अपने एकलौते बेटे हिमांशु की शादी में लगे थे. शादी में शामिल होने के लिए उन की बेटी शिवांगी अपने डेढ़ वर्षीय बेटे शुभम के साथ मायके आई तो मौका देख कर रक्षा ने उस के बेटे का सत्येंद्र द्वारा अपहरण करा दिया और 15 लाख रुपए की फिरौती भी मांगी. लेकिन जब राजकुमार पुलिस के पास पहुंच गए तो डर कर रक्षा ने सत्येंद्र को फोन कर के बच्चे को वापस छोड़ने को कहा. अपहरण के लगभग डेढ़ घंटे बाद सत्येंद्र मोटरसाइकिल से शुभम को गली में छोड़ गया.

इस तरह रक्षा और सत्येंद्र की यह योजना असफल हो गई. इस के बाद रक्षा के इशारे पर सत्येंद्र ने राजकुमार को फोन कर के हिमांशु की हत्या करने की धमकी दे कर 15 लाख रुपए मांगे. लेकिन इस में भी सफलता नहीं मिली. हिमांशु की शादी हो जाने के बाद राजकुमार रक्षा की शादी की तैयारी करने लगे. रक्षा की फोन पर सत्येंद्र से बात होती ही रहती थी. वह उस से जल्दी कुछ करने को कहती रहती थी, क्योंकि वह उस से किसी भी हाल में जुदा नहीं होना चाहती थी.

जैसेजैसे दिन गुजर रहे थे, दोनों की पीड़ा और तनाव बढ़ता जा रहा था. इस स्थिति में जब रक्षा और सत्येंद्र को लगा कि वे राजकुमार के घर रखी नकदी नहीं उड़ा सकते तो उन्होंने लूट की योजना बना डाली.

उसी योजना के मुताबिक रक्षा उस दिन अपना लैपटौप ले कर दोपहर एक बजे अपने चाचा राजकुमार के घर जा पहुंची. उस ने अंदर वाले कमरे में हिमांशु की पत्नी रश्मि को उस के विवाह की वीडियो दिखाने के बहाने उलझा लिया तो सत्येंद्र ने मैसेज भेज कर उसे बता दिया कि वह घर के बाहर आ गया है.

मैसेज देख कर रक्षा ने लैपटौप की आवाज तेज कर दी. जब काम हो जाने का सत्येंद्र का मैसेज आया तो रक्षा 5 बजे के आसपास अपने घर जाने के लिए चाची वाले कमरे से निकली. वहां उन की लाश देख कर वह चीख पड़ी. उस पर किसी को शक न हो, इसलिए उस ने दौड़दौड़ कर यह बात सभी को बताई. रक्षा से पूछताछ के बाद पुलिस ने उस के प्रेमी सत्येंद्र को गिरफ्तार कर लिया.

पूछताछ में सत्येंद्र ने बताया कि उस ने यह लूट और हत्या अपने दोस्त विवेक और मनोज के साथ मिल कर की थी. पुलिस ने तुरंत विवेक और मनोज के घर छापा मारा. विवेक तो पुलिस के हाथ लग गया, लेकिन मनोज फरार होने में कामयाब हो गया था.

पूछताछ में रक्षा के प्रेमी सत्येंद्र यादव ने पुलिस को बताया कि वह कोयलानगर के शिवपुरम के रहने वाले अमर सिंह यादव का बेटा है. उस के पिता पीएसी में सिपाही हैं, जो इस समय इलाहाबाद में तैनात हैं. उस का बड़ा भाई जितेंद्र आर्डिनेंस फैक्ट्री में नौकरी करता है. जबकि वह बीएससी कर के नौकरी की तलाश में था. उस ने पुलिस भरती की परीक्षा भी दे रखी थी. उसे उसी परीक्षा के परिणाम का इंतजार था. लेकिन उस के पहले ही उस ने अपनी प्रेमिका रक्षा के लिए अपना भविष्य ही नहीं, जिंदगी भी दांव पर लगा दी.

सत्येंद्र ने पुलिस को बताया था कि वह सिर्फ लूट के लिए आया था. इस के लिए उस ने पहले विवेक और मनोज को भेजा था. दोनों ने अंदर जाते ही धक्का मार कर सुनीता को गिरा दिया और उन के मुंह में कपड़ा ठूंस दिया, जिस से वह चिल्ला न सकें. उन के हाथों को बांध कर उन्होंने उन्हें वैसे ही छोड़ दिया. लेकिन उन्होंने उसे देख लिया तो अपने बचाव के लिए उसे सुनीता की हत्या करनी पड़ी. क्योंकि वह उसे पहचानती थीं, उस ने उन के मुंह पर तकिया रख कर उन्हें मार दिया था.

इंटरमीडिएट में पढ़ रहा विवेक भी कोयलानगर का रहने वाला था. वह सत्येंद्र का गहरा दोस्त था. सत्येंद्र के कहने पर वह पैसों के लालच में उस के साथ लूट की इस योजना में शामिल हो गया था.

पूछताछ के बाद पुलिस ने सत्येंद्र और विवेक की निशानदेही पर 10 हजार नकद, करीब 10 लाख के गहने और सुनीता का मोबाइल फोन बरामद कर लिया. माल बरामद होने के बाद पुलिस ने 7 जनवरी को दोनों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक मनोज पकड़ा नहीं जा सका था.

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