एक देश एक चुनाव को ले कर जिस तरह नरेंद्र मोदी सरकार लालायित है वह अब केंद्र सरकार के गले की हड्डी बन गया है. आननफानन में केंद्र सरकार ने ‘एक देश एक चुनाव’ का राग अलापते हुए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के नेतृत्व में एक कमेटी का गठन कर दिया. मगर देश के विपक्ष से इस पर कोई चर्चा हो, यह आवश्यक नहीं समझा।

अगर मोदी सरकार यह मानती है कि देश में लोकतंत्र है तो विपक्ष के सभी नेताओं को, देश की सभी महत्त्वपूर्ण राजनीतिक पार्टियों को बुला कर बैठक कर के इस पर चर्चा करनी चाहिए थी.

इतनी अकड़ क्यों?

दरअसल, नरेंद्र मोदी यह भूल गए कि लोकतंत्र में सत्ता और विपक्ष मिल कर ही देश को एक दिशा दे सकते हैं. अकेले सत्ता चलाना लोकतांत्रिक नहीं कहा जा सकता और इस की आलोचना होगी और इसे देश स्वीकार नहीं कर सकता.

दरअसल, नरेंद्र मोदी सरकार हर चीज में जल्दी करना चाहती है। इस का महत्त्वपूर्ण कारण है मोदी सरकार में परिपक्वता की बड़ी कमी है, जिस कारण यह सरकार गलतियां करती चली जाती है और भुगतता है सारा देश.

चुनाव को लेकर एक बड़ी पहल

केंद्र सरकार ने लोकसभा, राज्य विधानसभाओं, नगर पालिकाओं और पंचायतों के चुनाव एकसाथ कराने के मुद्दे पर गौर करने और जल्द से जल्द सिफारिशें देने के लिए 2 सितंबर को अचानक 8 सदस्यीय उच्चस्तरीय समिति अधिसूचित कर दी. मगर इन सदस्यों से परामर्श तक नहीं किया गया.

यही कारण है कि अधीर रंजन चौधरी ने अपनी सदस्यता से 24 घंटे में ही इस्तीफा दे दिया. सरकार ने समिति की अध्यक्षता पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को दी और कहा कि इस में गृहमंत्री अमित शाह, लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी, राज्यसभा के पूर्व नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद और वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एनके सिंह सदस्य होंगे.

बढ़चढ़ कर कहा गया कि समिति तुरंत ही काम शुरू कर देगी और जल्द से जल्द सिफारिशें करेगी. इस में पूर्व लोकसभा महासचिव सुभाष सी कश्यप, वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे और पूर्व मुख्य सतर्कता आयुक्त संजय कोठारी भी सदस्य हैं. बताया गया कि कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल विशेष आमंत्रित सदस्य के रूप में समिति की बैठकों में हिस्सा लेंगे जबकि कानूनी मामलों के सचिव नितेन चंद्रा समिति के सचिव होंगे.

समिति संविधान, जन प्रतिनिधित्व अधिनियम और किसी भी अन्य कानून और नियमों की पड़ताल करेगी और उन विशिष्ट संशोधनों की सिफारिश करेगी, जिस की एकसाथ चुनाव कराने के उद्देश्य से आवश्यकता होगी. समिति यह भी पड़ताल करेगी और सिफारिश करेगी कि क्या संविधान में संशोधन के लिए राज्यों द्वारा अनुमोदन की आवश्यकता होगी?

सब से बड़ा मसला

समिति एकसाथ चुनाव की स्थिति में खंडित जनादेश, अविश्वास प्रस्ताव स्वीकार करने या दलबदल या ऐसी किसी अन्य घटना जैसे परिदृश्यों का विश्लेषण करेगी और संभावित समाधान भी सुझाएगी. समिति उन सभी व्यक्तियों, सुझावों और संवाद को सुनेगी और उन पर विचार करेगी जो उस की राय में उस के काम को सुविधाजनक बना सकते हैं और उसे अपनी सिफारिशों को अंतिम रूप देने में सक्षम बना सकते हैं.

मगर यह भी सच है कि देश के विपक्ष के बड़े नेताओं, जिन के पास लंबा अनुभव है, जैसे शरद पवार, लालू प्रसाद यादव, ममता बनर्जी, नीतीश कुमार, मल्लिकार्जुन खङगे जैसे नेताओं से इस मसले पर कोई चर्चा सरकार नहीं करना चाहती और एक तरह से इकतरफा एक देश एक चुनाव का फारमूला लागू करना चाहती है.

सब से बड़ा मसला यह है कि पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को उन की सेवानिवृत्ति के बाद केंद्र सरकार ने यह दायित्व सौंपा है और एक तरह से एक नई परिपाटी शुरू कर के उन की गरिमा को क्षति पहुंचाने का काम किया है. अगर नरेंद्र मोदी इस संदर्भ में गंभीर हैं तो उन्हें अपने स्वयं यानि प्रधानमंत्री के नेतृत्व में एक कमेटी बना कर के इस काम को आगे बढ़ाना चाहिए था.

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