इकलौते बच्चे मांबाप के समस्त प्यार और आशाओं का केंद्र होते हैं. उन्हें लाड़चाव और अटैंशन कुछ ज्यादा ही मिलता है. इस फेर में कई इकलौते बच्चे अपनेआप को स्पैशल समझानेमानने लगते हैं. वे चाहते हैं कि ऐसा ट्रीटमैंट उन्हें औरों से भी मिले. इसी लाड़चाव के वे इतने आदी हो जाते हैं कि बहुत बार वे दूसरों की इच्छाओं, प्रायोरिटी और पसंद का खयाल ही नहीं रखते.

आस्था अकसर परेशान रहती है. कारण, जिस चीज को जहां रखती है वह वहां मिलती ही नहीं है. चीज को ढूंढ़ना उसे समय खोना लगता है. दरअसल, आस्था बहुत ही व्यवस्थित है. उस का ज्यादातर समय घर को व्यवस्थित करने में ही बीत जाता है. मांबाप का इकलौता लड़का अमन जब से आस्था का पति बना है तब से आस्था उस की बेतरतीबी का शिकार है. शादी से पहले अमन की मां अमन का सारा सामान व्यवस्थित करती थी, अब वह यही उम्मीद अपनी पत्नी से करता है. उसे लगता है कि पत्नी उस का ध्यान नहीं रखती. उसे उस से प्यार नहीं है.

उधर आस्था कहती है कि पति का इतना ध्यान रखने पर भी उसे पति की जलीकटी सुननी पड़ती है. कोई दूसरा कब तक किसी का ध्यान रख सकता है. यह काम तो आदत का हिस्सा होना चाहिए. ये हर चीज को पूछते हैं कि कहां रखी है? क्या दूसरों के पास और कोई काम नहीं है? ऐसा काम ही क्यों करें, जिस से दूसरों का समय बरबाद हो. नई डिश बनाने, नए सिरे से घर सजाने आदि क्रिएटिव कामों में समय देने में मजा भी आता है.

अमन मातापिता को कोसता है कि उन्होंने उस के लिए बेकार की लड़की ढूंढ़ी है. वह सारा दिन बोलतीबतियाती रहती है. किसी गंभीर काम में उस की रुचि नहीं. न उसे कंप्यूटर चलाना आता है और न ही सैलफोन. यह नहीं कि मेरा दिमाग खराब करने के बजाय इन चीजों को चलाना सीखे. दरअसल, अमन मातापिता का इकलौता है. उसे ज्यादा समय चुपचाप काम करते हुए गुजारने की आदत है. वह हर चीज को सीखता है और यही उम्मीद औरों से भी करता है. ‘वर्क ह्वाइल वर्क प्ले ह्वाइल प्ले’ वाली अपनी थ्योरी की औरों में कमी पा कर वह बिफर उठता है. उस का कहना है कि अगर कोई कुछ करना या सीखना न चाहे तो न सही, पर कम से कम उसे तो डिस्टर्ब न करे.

मिलता है खूब लाड़प्यार

बहुत बार? इकलौते बच्चों को मांबाप इतना नरिश कर देते हैं कि वे कठिन परिस्थितियों को संभालने की क्षमता खो देते हैं. वे पूरी तरह हर चीज का समाधान किसी पर निर्भर हो कर खोजते हैं. बहुत बार शादी के बाद ऐसे लोग बस यही चाहते हैं कि सभी उन्हें पसंद करें. उन की ही पूछ हो पर ऐसा जरूरी नहीं.

एक पत्नी का कहना है, ‘‘वे अपने मांबाप के इकलौते हैं, पर ससुराल में 3 जमाई हैं. वहां सब को बराबर लेनदेन और प्यार मिलता है. यह इन्हें पसंद नहीं आता. ये ध्यानाकर्षण के लिए अलगअलग तरीके अपनाते हैं. फिर भी जब इन की अपेक्षा पूर्ण नहीं होती तो मेरे पीहर वालों को स्वार्थी और न जाने क्याक्या कह कर मु?ो परेशान करते रहते हैं.’’

मांबाप इकलौते बच्चे को जरूरत से ज्यादा प्यारदुलार दे कर बिगाड़ देते हैं. उन्हें यह भी सोचना चाहिए कि हर जगह वे उस का साथ नहीं दे सकते. ऐसे ही एक लाड़ले को होस्टल से रेस्टिकेट कर दिया गया. वह जूनियरों से शार्गिदों के स्टाइल में काम लेता था. उसे अपने हाथों से कुछ भी करने की आदत नहीं थी. उस के इस आचरण को रैगिंग मान कर कार्यवाही की गई.

यह लाड़प्यार नकारात्मक के बजाय सकारात्मक भी तो बनाया जा सकता है. इकलौते बच्चे भी जिम्मेदारी अच्छी निभाते हैं. सौरभ इकलौता है. वह मांबाप के सारे जरूरी काम निबटा कर टूर पर जाता है. वहां से भी सुध लेता रहता है. वह इसे अपनी प्रमुख जिम्मेदारी मानता है. शादी के बाद उस का यह जिम्मेदारी भरा व्यवहार उस की पत्नी ने भी अपनाया.

इकलौते बच्चों के साथ सब से बड़ी समस्या उन के बिगड़ने की आती है. अकसर इकलौते बच्चे बिगड़ैल और जिद्दी भी होते हैं. अगर बड़े हो कर ये गलत संगत जैसे जुआ, नशे के चंगुल में फंस गए तो अपनी शादीशुदा जिंदगी को भी तहसनहस कर देते हैं.

शादी की तैयारी जरूरी

यों तो शादी की तैयारी हर व्यक्ति के लिए आवश्यक है पर इकलौते के लिए कुछ ज्यादा ही जरूरी है. उसे शेयर करने की आदत डालनी पड़ सकती है. शादी के बाद मांबाप से ले कर कमरा आदि सब शेयर करना पड़ सकता है, सजीवनिर्जीव सभी चीजें. समय देने की आदत विकसित करना भी आवश्यक है. कुछ को यह पार्टनर का हस्तक्षेप तथा दखलंदाजी लगती है. इस से वे चिड़चिड़े रहते हैं. जीवनसाथी से आदतों के बारे में चर्चा कर ली जाए तो तालमेल बैठाने में सुविधा रहती है.

एक इकलौता युवक कहता है, ‘‘मैं ने शादी से पूर्व पूरी टे्रनिंग ली. सुनाने के बजाय सुनने की आदत डाली. मेरे एक मित्र ने सलाह दी थी कि यार तेरे मांबाप तेरी बातें सुनते हैं, खुश होते हैं, अब तेरी आदत सिर्फ सुनाने की है कोई और कुछ बोले तो तू इधरउधर ?ांकता है. दोस्तों ने तो तुझेल लिया पर बीवी बख्शने वाली नहीं है. तब मैं ने अपना काम करने की आदत डाली ताकि बीवी का मन जीत सकूं.’’

एक युवती कहती है, ‘‘मैं ने मांबाप को सम?ाया कि वे मेरे बिना रहने की आदत डालें वरना गृहस्थी चौपट हो जाएगी. लड़का घरजमाई बन कर रहने से इनकार कर चुका है.’’

घर वालों का सहयोग

एक अन्य युवती ने विद्रोह किया. उस के मांबाप उस के इकलौते होने का हवाला दे कर अपनी पसंद की जगह शादी का दबाव डाल रहे थे. तब उस ने कोर्ट मैरिज कर ली. वह इसे मांबाप का इमोशनल ब्लैकमेल करना कहती है.

पहले छोटीछोटी इच्छाओं का ध्यान रख कर अब इतनी बड़ी इच्छा की कुरबानी आखिर मातापिता क्यों चाहते हैं?

लाड़प्यार का मतलब किसी को अपनी इच्छा के आगे झाकाना नहीं है और न ही इच्छा की कुरबानी को प्यार की परीक्षा मानना चाहिए.

एक इकलौता युवक मांबाप को पे्रम विवाह हेतु मना नहीं पाया. दोनों पक्ष अपनेअपने हठ पर अड़े रहे. अब युवक की उम्र काफी हो चुकी है. मांबाप माने नहीं. अब उन्हें वंश आगे न बढ़ने का मलाल है.

शादी की तैयारी में घर वालों का सहयोग भी मिल जाए तो अच्छा है. एक दंपती ने भारीभरकम जेवर ज्यों के त्यों बहू को देने चाहे. लेकिन डिजाइन बहू को पसंद न आए. सास उन जेवरों को तुड़वाना नहीं चाहती थी. तब पति ने पत्नी की पसंद के नए जेवर बनवाए और पत्नी व मां दोनों का मन रख लिया.

एक इकलौती बहू कहती है, ‘‘मेरी सास शुरूशुरू में जब यह कहती थीं कि यह खा लो वह खा लो, तो मु?ो यह बहुत अखरता था. पर अब लगता है यह सब तो उन का बरसों से संजोया अरमान है. मेरे बच्चों पर भी वे अपनी जान लुटाती हैं. अब मैं सास की बहुत बातों को सही मानती हूं जैसे ‘मेरे बेटे का हम जैसा ध्यान कोई नहीं रख सकता’, ‘इतना तो उस की बीवी भी उसे नहीं जानती’, ‘उस के पापा को उस के मूड का पता है आदि’.

इकलौते शादी से पूर्व सब कुछ मांबाप

या फिर दोस्तों से शेयर करते हैं, लेकिन शादी के बाद जीवनसाथी को बाधक न सम?ों. थोड़ा ध्यान दे कर जीवन जीने पर लगता है कि जीवन की किसी बड़ी कमी को पूरा कर लिया गया है.

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