साल 1962 में प्रदर्शित कमाल अमरोही की फिल्म ‘पाकीजा’ में मशहूर शायर कैफ भोपाली ने मीना कुमारी और राजकुमार से यह गाना गवाया था,”चलो दिलदार चलो चांद के पार चलो… हम हैं तैयार चलो…”

जैसे ही चंद्रयान 3 ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंड किया तो साबित यह हुआ कि सपने देखते तो साहित्यकार हैं पर उन्हें सच कर दिखाने का माद्दा सिर्फ वैज्ञानिकों में ही होता है।

चांद पर जा कर हम ने अपनी श्रेष्ठता, योग्यता और प्रतिभा साबित भी कर दी है जिस पर दीवाली जैसी आतिशबाजी स्वाभाविक बात थी। हर किसी ने इस कामयाबी को अपने लिहाज से भुनाया जिस से लगा कि इस जश्न के पीछे भी पूर्वाग्रह है. हम एकदूसरे को बधाई नहीं दे रहे बल्कि एकदूसरे को नीचा दिखाने की मानसिकता प्रदर्शित कर रहे हैं.

वैज्ञानिक उपलब्धियों का श्रेय लेने की होड़ तो कुछ इस तरह थी मानो किसी हाटबाजार में टमाटर लुट रहे हों। इस की शुरुआत 20 अगस्त से ही शुरू हो गई थी। देशभर के मंदिरों में पूजापाठ, यज्ञ और हवनों का दौर था। कई जगह तो शिव के अभिषेक भी हुए जिन के गले में चंद्रमा टाई की तरह लटका रहता है। फिर 21, 22 और 23 अगस्त आतेआते तो लोग पगला उठे। हर जगह से आह्वान होने लगा कि चलो फलां मंदिर में चंद्रयान 3 की सफल लैंडिंग के लिए विशेष अनुष्ठान और कर्मकांड किए जा रहे हैं। कई भक्तों ने तो कांवड़ यात्राएं तक आयोजित कर डालीं।

चंद्रमा हमारे लिए आस्था का विषय रहा है। उस के नाम पर व्रत, तीज, त्योहार और दानदक्षिणा बेहद आम हैं। अब इस की पोल खुलने जा रही थी तो धर्म के दुकानदार घबरा उठे। लिहाजा, उन्होंने भजनकीर्तन कर यह जताने की कोशिशों में कोई कमी नहीं छोड़ी कि वैज्ञानिक तो निमित्त और माध्यम मात्र हैं। दरअसल, ईश्वर ऐसा चाहता है और बिना उस की परमिशन के चांद को छू पाना नामुमकिन है। यह और बात है कि चंद्रयान की सफलता के आयोजनों में भी दोनों हाथों से दक्षिणा बटोरी गई. भले ही सालों पहले कोई नील आर्मस्ट्रांग चांद पर उतरा था लेकिन अब हमारी बारी थी और बगैर हरि इच्छा के यह या कोई और मिशन कामयाब हो जाए ऐसा हम होने नहीं देंगे।

तो चंद्रयान 3 यों ही चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंड नहीं कर गया बल्कि इस के लिए भक्तों ने 72 घंटे बड़ी मेहनत की। देश के गलीमोहल्लों तक में लोग इकट्ठा थे। कुछ को तो यह भी नहीं मालूम था कि वे क्यों पूजापाठ का हिस्सा बने हैं। ये वे लोग हैं जो कहीं भी कभी भी उस मंदिर के प्रांगण में हाथ जोड़े जा खड़े होते हैं जहां से सुबहशाम आरती की आवाज आ रही होती है। इन्हें नहीं मालूम कि लैंडर और रोवर किस बला के नाम हैं। इन्हें यह जरूर मालूम है कि अक्षत कब चढ़ाए जाते हैं और स्वाहा कब बोला जाता है।

काशी, उज्जैन, मथुरा, वृंदावन, प्रयागराज, नासिक, हरिद्वार, ऋषिकेष सहित अयोध्या में भी स्पैशल अनुष्ठान हुए। वैज्ञानिकों की मेहनत पर भगवान पानी न फेर दे इस के लिए फायर ब्रैंड साध्वी ऋतंभरा ने मथुरा में कई बार हनुमान चालीसा का पाठ किया तो अयोध्या में तपस्वी छावनी के जगतगुरू आचार्य परमहंस के नेतृत्व में चारों वेदों की ऋचाओं का पाठ साधुसंतों ने किया। इस पर भी जी नहीं भरा तो महामंत्र और विजयमंत्र का भी पाठनवाचन किया गया।

छुटभैयों से ले कर ब्रैंडेड मंदिरों में हर कैटिगिरी के साधुसंतों ने ऐसा समां बांधा, इतना होहल्ला मचाया कि एक बार तो लगा कि कहीं सचमुच में भगवान खासतौर से कल्कि अवतार जिस की जयंती पिछले दिनों मनाई गई थी, धरती पर आ कर इन भक्तों के पांव यह कहते न पकड लें कि मुझे बख्शो मेरे बच्चो, चंद्रयान 3 सफल होगा इस का मैं वरदान देता हूं।

सारा श्रेय सनातनी ही ले जा रहे हैं, यह खयाल आते ही मुसलिम धर्मगुरू भी जंग के इस मैदान में कूद पड़े और जगहजगह मसजिदों में विशेष नमाज होने लगी। इस से आम मुसलमानों में भी जोश आया कि देश हमारा भी है और कहीं ऐसा न हो कि कल को हमें इस बिना पर भी न लताड़ा जाने लगे कि तुम ने तो चंद्रयान 3 की कामयाबी के लिए नमाज तक नहीं पढ़ी। इसलिए तुम देशभक्त नहीं हो। देखते ही देखते देशभर के लाखों मुसलमानों के हाथ ऊपर उठे और गंगाजमुनी तहजीब की मिसाल कायम हो गई। हालांकि इस ड्रामे का भी कोई मतलब नहीं था लेकिन इतना जरूर साबित हुआ कि कम से कम विज्ञान का कचरा करने के मुद्दे पर सभी धर्म एक हैं और सहमत हैं कि विज्ञान और तर्क हमारी रोजीरोटी को निगल जाएंगे इसलिए उसे पूजापाठ और नमाजोंदुआओं की चादर से इतना ढंक दो कि लोगों को सिर्फ अपनेअपने ऊपरवाले दिखें।

इसरो के वे नीचे वाले और उन की ये कोशिशें नही दिखें जिन से यह साबित होता है कि चंद्रमा कोई देवता नहीं बल्कि एक उपग्रह है जिस के दक्षिणी ध्रुव पर पानी और कैमिकल्स वगैरह हैं और जहां आइंदा कभी आदमी का रहना मुमकिन है।

एक दिन में ही पूजापाठ का यह रोग कोरोना वायरस से भी ज्यादा फैला। जैन मंदिरों में पूजापाठ हुआ, गुरुद्वारों में अरदास का दौर चला। केंद्रीय मंत्री हरदीप पूरी इस बाबत खासतौर से दिल्ली के गुरूद्वारे बंगला साहिब गए। और तो और रांची में आदिवासियों ने अपनी आराध्य सरना मां से प्रार्थना की। कुछ गिरिजाघरों में भी प्रार्थना की गई।

योगगुरू बाबा रामदेव ने भी बहती गंगा में हाथ धोते हरिद्वार में हवन कर डाला। अच्छा तो उन का यह बताना न रहा कि चंद्रमा पर इतनी दुर्लभ जड़ीबूटियां पाई जाती हैं जो संजीवनी से भी ज्यादा करामाती और कारगर होती हैं। जैसे ही चांद पर आवाजाही आम होगी तो वे और बालकृष्ण वहां जा कर इन्हें लाएंगे और पतंजलि चांद की जड़ीबूटियों से बने प्रोडक्ट लांच करेगी।

माहौल स्कूलकालेजों में भी गरमाया जहां शासन के आदेश पर छात्र और अध्यापक टीवी स्क्रीन के सामने बैठे समोसा कुतरते अगले आइटम का इंतजार कर रहे थे जो 23 अगस्त को ठीक 6 बज कर 4 मिनट के कुछ देर ही बाद नुमाया हुआ। यह देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी थे जिन के स्क्रीन पर प्रगट होते ही लगा कि प्रार्थनाएं, पूजापाठ और दुआएं जाया नहीं गई हैं। कम से कम नीचे वाले तो प्रगट हुए. मोदीजी ने संक्षिप्त और सारगर्भित संस्कृतनुमा भाषण दिया। तब वे दक्षिण अफ्रीका में सरकारी दौरे पर थे। लेकिन गौरतलब यह कि देश को और चंद्रयान को नहीं भूले थे।

उन्होंने लगभग वही कहा जो मथुरा में आसीन आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने चंद्रयान 3 की सफलता के बाद कहा था। जिस का सार यह है कि यह उपलब्धि वैश्विक अंतरिक्ष अनुसंधान के लिए भी मील का पत्थर है। इस का एक सार यह भी है कि हम ने विश्वगुरू बनने की तरफ एक कदम और बढ़ा दिया है। इसलिए भारत जो भी करता है पूरी दुनिया के लिए करता है। रही बात इसरो की तो उस के चीफ एस सोमनाथ तो पहले से ही वेदपुराणों में आस्था जताते रहे हैं कि नया कुछ नहीं है सबकुछ वेदों में पहले से ही लिखा है।

असल में हम विश्वगुरू तो तब से ही हैं जब विश्व नाम की कोई चीज अस्तित्व में ही नहीं थी। अफसोस तो इस बात का है कि हमारे ज्ञानविज्ञान को यूरोप और दूसरे विदेशियों ने चुराया। सोमनाथ की मानें तो दुनिया में जितने भी वैज्ञानिक आविष्कार हुए हैं वे हमारे वेदों और पूर्वजों की देन हैं। हम कभी उन्नत विज्ञान के मालिक हुआ करते थे।

इस बाबत वे गिना भी सकते हैं कि संजय ने धृतराष्ट्र को महाभारत का जो आखों देखा हाल सुनाया था वह दरअसल आज की तरह का आम वीडियो कौल था। लेकिन वे चाह कर भी यह नहीं बता सकते कि पौराणिक युग में खीर और कान के मैल से बच्चे कैसे पैदा हो जाते थे? किसी योद्धा का एक सिर कटता था तो दूसरा वह भी हुबहू कैसे आ जुड़ता था? किसी बच्चे की गरदन पर हाथी का सिर वह भी भारीभरकम सूंङ सहित कैसे जोड़ दिया जाता था?

ऐसे सवाल अंतहीन हैं जिन का चंद्रयान 3 की सफलता का श्रेय लेने वाले लीडर से इतना ताल्लुकभर है कि यह सब था लेकिन हम अज्ञानी वक्त रहते इसे न समझ पाए और न ही संभाल पाए। जाहिर है, सोमनाथ भी आस्था या किसी लालच, दबाव या विवशता के चलते वह भाषा बोल रहे हैं जो प्रमाण और परिणाम नहीं बल्कि मान्यताओं को थोपती है।

हम कथित तौर पर लुटे इसलिए कि हम आज भी जातपात, धर्म के पचड़े में पड़े हैं। यह मिशन इसरो टीम की मेहनत, प्रतिभा और कोशिशों से कामयाब नहीं हुआ बल्कि ईश्वर कृपा से हुआ है जिस के लिए खुद सोमनाथ जुलाई में खासतौर से तिरुपति के मंदिर में पूजापाठ कर के आए थे। हरि ने उन की सुन ली तो मुमकिन है कि वे जल्द ही मन्नत पूरी होने पर फिर तिरुपति जाएं और सूर्य मिशन की तैयारियों में जुट जाएं जिसे हनुमान ने फल समझ कर मुंह में ले लिया था। इस पर वे या कोई और यही कहेगा कि हनुमान का मुंह फायर प्रूफ था।

अब अहम सवाल यह कि हम बच्चों को क्या पढ़ाएं और युवाओं को क्या समझाएं यह कि एक तरफ तो चंद्रमा उपग्रह साबित हो चुका है और भारत ने उस के दक्षिणी ध्रुव पर दस्तक दे दी है। दूसरी तरह हमारे धर्मग्रंथ कहते हैं कि चंद्रमा ब्रह्मा के मानसपुत्रों में से एक अत्रि की संतान था जिस की शादी कर्दम मुनि की बेटी अनुसुईया से हुई थी। चंद्रमा इन्हीं दोनों का बेटा है। चंद्रमा की शादी दक्ष प्रजापति की 27 बेटियों से हुई थी जिन्हें नक्षत्र कहा और माना जाता है।

कुछ लोगों ने तो चंद्रमा पर जमीन बेचने और खरीदने का भी कारोबार शुरू कर दिया है। चंद्रयान 3 की कामयाबी के बाद तो लगता है कि चंद्रमा रियल एस्टेट का केंद्र बन कर रह जाएगा।

लेकिन 23 अगस्त को एक खास बात यह भी हुई है कि हमारी धार्मिक और पौराणिक मान्यताएं ध्वस्त हो गई हैं लेकिन इस से लोग तार्किक सोच पाएंगे ऐसा लग नहीं रहा। यह बात 1 नवंबर को करवाचौथ पर सिद्ध भी हो जाना है। इस दिन महिलाएं चंद्रमा का पूजापाठ करेंगी गणेश चतुर्थी पर लोग चंद्रमा को देखने से बचते हैं क्योंकि एक और किस्से के मुताबिक इस दिन चांद को जो देखता है उस पर चोरी का आरोप लगता है। ऐसे मौकों पर हंसीमजाक भी होगा जो 23 अगस्त से ही शुरू हो गया है।

एक वायरल मीम में कुछ महिलाएं बैठी बतिया रही हैं कि चंद्रमा पर अगर बस जाएंगे तो करवाचौथ पर पूजापाठ किस का करेंगे? एक और पोस्ट में उन प्रेमियों को नसीहत दी जा रही है जो माशूका के लिए चांदतारे तोड़ कर लाने का सनातनी पुरातनी वादा करते हैं। एक पोस्ट में कहा गया कि चंद्रयान से मैसेज आया है कि किसी की भी पत्नी या प्रेमिका की शक्ल चांद से नहीं मिलती है। अब तक सारे मर्द औरतों को वेबकूफ बनाते रहे थे।

लोगों ने चंद्रयान के रोमांचक क्षणों को जिया है तो बाद में उस पर स्वस्थ हंसीमजाक भी जम कर किया है लेकिन इस पर राजनीति भी जम कर हुई जिस की शुरुआत न्यूज चैनल्स पर बाइट्स दे रहे आम लोगों ने की कि यह तो मोदीजी का कमाल है। हम उन्हें बधाई देते हैं व उन का आभार व्यक्त करते हैं। मोदीजी के स्क्रीन पर अवतरित होने के बाद तो भक्त ऊपरवाले को भूल कर नीचेवाले इन भगवान का गुणगान करते दिखे. मानो मोदीजी न होते या न चाहते तो चंद्रयान अभियान परवान नहीं चढ़ पाता।

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने तो मोदीजी का आभार व्यक्त करते सभी अखबारों में एक पेज का सरकारी विज्ञापन भी छपवा दिया। चाटुकारिता, खुशामद और व्यक्तिपूजा की इस से बड़ी मिसाल शायद ही कहीं मिले। इस खेल में बेचारा इसरो औपचारिक बधाई का पात्र बन कर रह गया।

इस पर विपक्ष को मिर्ची लगनी स्वभाविक बात थी कि महज प्रधानमंत्री होने के नाते मोदीजी सारा श्रेय हकदार न होते हुए भी ले जा रहे हैं तो उन्होंने अपनी शुभकामनाओं में इसरो और वैज्ञानिकों को बधाई पर खासा जोर दिया कि कहीं सचमुच में लोग यह न मान बैठें कि यह मोदीजी का चमत्कार है। राहुल गांधी ने तो अपने संदेश में खासतौर से यह कहा कि अंतरिक्ष गतिविधियों ने 1962 में जोर पकड़ा था वे अब फलीभूत हो रही हैं। इस बहाने उन्होंने अपने पूर्वजों के योगदान को याद दिलाने की कोशिश की।

लेकिन नेहरू, इंदिरा और राजीव गांधी भगवा गैंग के लिए कोसने के किरदार भर हैं। उन्हें तभी याद किया जाता है जब किसी परेशानी का ठीकरा फोड़ना होता है। ऐसे में राहुल को यह उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि चंद्रयान की सफलता और इसरो के गठन का श्रेय उन के पुरखों को देने की जहमत कोई उठाएगा।

अब चांद पर बसने की सुगबुगाहट ने कईयों को रोमांचित कर दिया है। लोग मीना कुमारी और राजकुमार की तरह चांद पर बसने जाने को तैयार हैं क्योंकि वे धरती की आपाधापी, नफरत और रोजरोज दुश्वार होती जिंदगी से आजिज आ चुके हैं। लेकिन लोगों को यह नहीं भूलना चाहिए कि अगर आदमी चांद पर बसा तो वह धरती से धर्म और भगवान जरूर ले जाएगा और वहां भी मंदिरमसजिद और चर्च वगैरह बनाएगा। फिर शुरू होगा जातपात का फसाद, धार्मिक दुकानदारी और रंगभेद सहित अमीरीगरीबी का भी भेदभाव। आज जो कल्पना है वह साकार भी होती है यह बात कैफ भोपाली के सच होते शेर से भी साबित होती है लेकिन चांद पर आदमी की रिहायश पर कैसेकैसे गुल खिलेंगे यह तो आप के साथ मुझे भी इंतजार है।

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