धर्म के एजेंडे में कभी महिलाएं नहीं रहतीं. धर्म हमेशा से ही महिलाओं का शोषण करता रहा है, उन पर पबदियां लगाता है. लिहाजा, बीमारू राज्यों ने अपने शहरों का विकास महिलाओं की नजर से न कर के पंडेपुजारियों की नजर से किया है. यहां महिलाओं की लाइफस्टाइल को बदलने का दबाव पड़ता है. अब हालत यह है कि लड़कियां इन राज्यों में शादी करने से बच रही हैं.

करीब 37 साल पहले 1986 में देश में बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश की पहचान बीमारू राज्यों के रूप में की गई थी. ‘बीमारू’ शब्द इन राज्यों के इंग्लिश नाम के पहले अक्षर से ही लिया गया है. जैसे बिहार ‘बी’, मध्य प्रदेश ‘मा’, राजस्थान ‘र’ और उत्तर प्रदेश ‘ऊ’ लिया गया है. बीते सालों में गंगा-यमुना नदियों में बहुत सारा पानी बह गया. साल 2000 में विकास के नाम पर इन राज्यों का विभाजन किया गया. बिहार से अलग हो कर झारखंड, मध्य प्रदेश से अलग हो कर छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश से अलग हो कर उत्तराखंड अलग राज्य बने. इन राज्यों को बने भी 23 साल बीत गए लेकिन यहां केवल मुख्यमंत्री बदलते रहे, राज्य के हालात नहीं बदले.

बीमारू राज्यों की संख्या 4 से बढ़ कर 7 हो गई. इन प्रदेशों के विकास में जो पैसा लगना चाहिए था उस से नेताओं और अफसरों ने अपनी जेबें भरी, अपने और अपनी आने वाली कई पीढ़ियों के लिए रिश्वतखोरी कर के पैसे जमा किए. बिजनैस और जमीन पर इन का कब्जा हो गया, जिससे शहरों में रहने वाले आम लोगों के जीवन में कोई सुधार नहीं आया. शहरों में जाति और धर्म के दबदबे ने लाइफस्टाइल पर अपना प्रभाव डाला. यहां के रहने वालों की सोच नहीं बदली है. ये अभी भी दकियानूसी और रूढ़िवादी सोच में जकड़े हुए हैं जिस की वजह से बड़े शहरों की लड़कियां इन राज्यों में शादी नहीं करना चाहतीं.

सरकारों ने राज्यों के विकास की जगह केवल मंदिरों का प्रचार किया. प्रशासन ने संविधान की जगह ‘मोरल पुलिसिंग’ को बढ़ावा दिया. धर्म की बेड़ियों में जकड़े ये राज्य खुल कर जीने की आजादी नहीं देते हैं. दिल्ली की रहने वाली लड़की प्रीति अपनी दोस्त नेहा के साथ अयोध्या घूमने गई थी. इस दौरान वह सरयू नदी में नहाने गई. प्रीति ने पूरा बदन ढका काले रंग का कुरता और सलवार पहना हुआ था. उस ने सरयू में कई डुबकियां लगाईं. सरयू में नहाते हुए उस ने पुल के पास अपना एक वीडियो मोबाइल पर शूट कराया.

उस ने बाद में यह वीडियो अपने इंस्टाग्राम पर पोस्ट किया. जिस के बाद अयोध्या के रहने वालों ने प्रशासन से मांग करनी शुरू की कि इस तरह के वीडियो से अयोध्या की छवि खराब हो रही है. कट्टरवादी लोगों ने लड़की को गालियां देनी शुरू कीं. घबरा कर प्रीति ने अपना इंस्टाग्राम बंद कर दिया. यह अकेली घटना नहीं है. सरकार उत्तराखंड में पर्यटन को बढ़ावा दे कर वहां का विकास करना चाहती है. लेकिन पर्यटकों के साथ क्या हो रहा यह नहीं देख रही?

केदारनाथ मंदिर के सामने एक लड़का और लड़की ने पहले एकदूसरे को प्रपोज किया, बाद में अंगूठी पहना कर सगाई की रस्म अदा करते एक वीडियो बना लिया. पीले कपड़ों में दोनों किसी भी तरह से गलत नहीं लग रहे थे. यह वीडियो भी वायरल हो गई. इस के बाद मंदिर प्रशासन जाग गया, उसे लगा कि यह धार्मिक भावनाओें को भड़काने वाला काम है. उस ने एक आदेश जारी कर दिया कि अब इस तरह के वीडियो यहां नहीं बनाए जा सकते. बनाने वालों के खिलाफ कड़े कदम उठाए जाएंगे. हरिद्वार में गंगा नदी नहाने गए कुछ युवकों को यह कह कर वहां के पंडों ने मारपीट कर भगा दिया कि वे वहां नहाने वाली महिलाओें के वीडियो बनाते हैं.

इन राज्यों में ‘मोरल पुलिसिंग’ के तमाम उदाहरण मिल जाएंगे. लखनऊ में इमामबाड़ा यानी भूलभुलैया घूमने गए ‘कपल’ को बिना गाइड अंदर जाने की अनुमति नहीं है. साथ ही साथ, सिर ढके और सलीकेदार कपड़े पहने ही जा सकती हैं. तर्क यह दिया जाता है कि भूलभुलैया केवल पर्यटन स्थल नहीं, पूजा स्थल भी है. शादी के बाद ज्यादातर कपल्स शहर घूमने जाते हैं वहां इस तरह का प्रतिबंध उन को अच्छा नहीं लगता. लिहाजा, वे ऐसे शहरों में शादी करने से परहेज करने लगते हैं.

समय के साथ और गहरी होती गई कट्टरता

पढ़ाईलिखाई और शिक्षा के बाद जहां बड़े शहरों में उदारवादी सोच बढ़ी, वहीं बीमारू राज्यों में समय के साथ ही साथ जाति और धर्म की दीवारें और भी गहरी होती गईं. इस की वजह राजनीति है. यहां चुनाव जीतने के लिए धर्म और जाति का सहारा लिया जाता है. इस कारण लोगों के दिमाग में वही भरा हुआ है. कट्टर रीतिरिवाजों के कारण लड़कियां यहां शादी करने से कतराती हैं.

पटना की रहने वाली सुप्रिया की शादी हाजीपुर में हो रही थी. उस समय उस की उम्र 20 साल की थी. इसी बीच उस के लिए एक रिश्ता मुंबई से आ गया. हाजीपुर में रहने वाला लड़का अपना बिजनैस करता था. उस की आर्थिक हालत काफी मजबूत थी. गाड़ी, बंगला सबकुछ उस के पास था. इस के बाद भी सुप्रिया का मन उस से शादी करने का नहीं हो रहा था. उस के सामने जैसे ही मुंबई में रहने वाले लड़के के साथ शादी की बात चली, वह तैयार हो गई. असल में सुप्रिया बचपन से ही मुंबई में रहने वाले लड़के के साथ शादी के सपने देखती थी. बड़े शहरों में शादी को ले कर लड़कियों के जिस तरह के सपने होते हैं, सुप्रिया भी वैसे ही सपने देखती थी.

घर, परिवार और रिश्तेदारों ने समझाया कि मुंबई वाला लड़का छोटी नौकरी करता है. उस के बदले हाजीपुर वाला लड़का ज्यादा पैसे वाला है. सुप्रिया पढ़ीलिखी लड़की थी. वह अपने पैरों पर खड़ी हो कर खुद का नाम पैदा करना चाहती थी. उसे लग रहा था कि मुंबई रह कर वह अपने सपने पूरे कर सकती है. हाजीपुर में रह कर उसे अपने मनपंसद काम करने को नहीं मिलेगा. इतनी पढ़ाईलिखाई के बाद भी उस की जिंदगी चैकाचूल्हा तक सिमट कर रह जाएगी. उस ने अपने परिवार वालों से मुंबई वाले लड़के के साथ शादी की रजामंदी दी. सुप्रिया के परिवार वाले अच्छे थे. उन्होंने अपनी बेटी की बात मानी, उस की भावनाओं का खयाल रखा.

शादी के बाद मुंबई जा कर सुप्रिया ने खुद भी नौकरी शुरू की. घर चलाने में पति की मदद की. इस के अलावा वह ऐक्टिंग करती थी. उस ने कई टीवी सीरियल किए. शादी के 5 साल बाद उस की पहचान बन गई. वह अपने पति और परिवार के साथ जब पटना आती है तो लोग उस से मिलने व देखने आते हैं. सुप्रिया कहती है, ‘पैसे से बड़ी बात अपनी आजादी होती है. जीवन में अपने मनमुताबिक करने को मिल जाए, तो सब से बड़ी मुराद मिल जाती है. खुले विचारों के साथी, घर, परिवार और माहौल का मिलना मुश्किल होता है. जीवन केवल चैकाचूल्हा के लिए नहीं होता है.’

सुरक्षित माहौल देने में नाकाम रही सरकारें

पटना और मुंबई की आपस में तुलना करना बेमानी बात है. जिस समय लालू प्रसाद यादव वहां के मुख्यमंत्री बने तो वहां पर जातिवाद चरम पर था. दलित, पिछड़ी जाति को खुल कर रहने और अपनी बात कहने का हक नहीं था. 5 दिसंबर, 1994 को मुजफ्फरपुर में तत्कालीन डीएम जी कष्णैया की हत्या भीड़ ने पीटपीट कर कर दी. जातिवाद खत्म करतेकरते लालू प्रसाद यादव ने जंगल राज स्थापित कर दिया. लालू के बाद सुशासन की बात करने वाले नीतीश कुमार केवल अपनी कुरसी बचाने में लगे रहे. उन को देश ‘पलटू कुमार’ के नाम जानता है.

पटना बिहार की राजधानी है. इस के बाद भी यहां के हालात बदतर हैं. यहां अभी तक एक भी फाइवस्टार होटल नहीं है. होटल मौर्या फोरस्टार होटल है. इस के अलावा होटल पलाश है जो मौर्या के बाद बना. पटना में छोटेबड़े 10-12 मौल और मल्टीप्लैक्स सिनेमाहौल हैं. यहां पर 5-6 सिंगल स्क्रीन सिनेमाहौल हैं. ट्रासपोर्ट के रूप में यहां ओला और उबर की सुविधाएं शुरू हो गई हैं लेकिन अभी भी अकेली महिला के लिए रात के सफर में खतरे हैं. नई शादीशुदा लड़की तो सजधज कर किसी हालत में जाने का साहस नहीं कर सकती. जबकि, दिल्ली, मुंबई जैसे शहरों में ये दिक्कतें नहीं हैं.

दिल्ली में रहने वाली शिवानी सौफ्टवेयर इंजीनियर है. परिवार वालों ने उस की शादी रांची के रहने वाले लड़के से तय कर दी. लड़के के परिवार वाले उसे देखने दिल्ली आए. शादी की सारी बातों के बीच लड़की वालों ने शर्त रख दी कि शादी के बाद शिवानी को अपनी प्राइवेट नौकरी छोड़नी पड़ेगी क्योंकि घरवाले यह नहीं चाहते हैं कि लड़का शिवानी के साथ दिल्ली आ कर रहे. लड़के वालों की नजर में प्राइवेट नौकरी का कोई महत्त्व नहीं था. शिवानी को लगा कि अगर उस की शादी इस लड़के से हो गई तो उस की पूरी पढ़ाई बेकार चली जाएगी. रांची और आसपास के शहरों में उस के लायक कोई नौकरी भी नहीं थी. दूसरे, उस की ससुराल वाले यह पंसद भी नहीं करते हैं कि शादी के बाद शिवानी नौकरी करे. ऐसे में यह शादी नहीं हो सकी.

रांची झारखंड की राजधानी है. यह एक हिल स्टेशन भी है. यहां एक एयरपोर्ट है. आनेजाने का सब से अच्छा साधन सड़कमार्ग को ही माना जाता है. पटना की ही तरह रांची में भी फाइवस्टार होटल नहीं है. यहां कैपिटल हिल, सरोवर पोर्टिको, चाणक्या बीएनआर जैसे फोरस्टार होटल हैं. रांची का सब से बड़ा मौल बिग बाजार है. ऐसे में दिल्ली की रहने वाली लड़की कैसे रांची जैसे शहर में शादी करने के लिए राजी हो सकती है. हिल स्टेशन घूमने के लिए अच्छे होते हैं, वहां बसना कोई पंसद नहीं करता है.

धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा

बीमारू राज्यों में धर्म की राजनीति को चमकाने के लिए पूरा फोकस धार्मिक पर्यटन पर रहता है. धर्मस्थलों पर किसी तरह की आजादी नहीं रहती है. नए कपल्स जब घूमने जाते हैं तो वे अपनी आजादी चाहते हैं जिस से वे मनपंसद के कपड़े पहन सकें. एकदूसरे के साथ खुल कर बात प्यारमोहब्बत कर सकें. इस की यहां आजादी नहीं होती. उत्तर प्रदेश के बड़े शहरों जैसे प्रयागराज, वाराणसी, लखनऊ, आगरा और बरेली में फाइवस्टार होटल और रिसोर्ट हैं.

प्रयागराज में एक फाइवस्टार होटल कान्हा श्याम है. यहां केवल कुंभ मेले और संगम स्नान के लिए लोग आते हैं. वाराणसी में ताज गैगेज, रेडीसन जैसे कई सेवन और फाइवस्टार होटल हैं. यहां पर्यटक काशी विश्वनाथ और गंगा दर्शन के लिए आते हैं. लखनऊ में ताज होटल, क्लार्क अवध होटल, रमाडा जैसे कई सेवन और फाइवस्टार होटल हैं. यहां घूमने लायक कोई ऐसी जगह नहीं है जिसे देखने कपल्स आएं. आगरा में भी ताज, रेडीसन और मैरिएट जैसे फाइवस्टार होटल हैं. यहां लोग ताजमहल देखने आते हैं लेकिन कुछ समय से चलरही ताजविरोधी मुहिम ने आगरा की छवि को धूमिल किया है.

असल में प्रदेश में सरकारों का ध्यान केवल मंदिरों के विकास पर रहा है. वे सरकारी गेस्ट हाउस और होटलों का रखरखाव भी सही तरह से नहीं कर पाईं. जिस के कारण गोमती होटल जैसे सरकारी होटल अव्यवस्था का शिकार हैं. इन शहरों में केवल मंदिर दर्शन के लिए ही लोग आते हैं. नए शादीशुदा कपल्स के लिए इन शहरों में घूमने लायक जगह नहीं है. एक आगरा ही ऐसा है जहां ताजमहल देखने लोग जाना चाहते हैं. कुछ समय से ताजमहल पर भी सवाल उठने लगे हैं. उसे मकबरा बता कर वहां कपल्स को जाने से मना किया जाता है.

मायावती ने अपने समय में जो मंदिर जैसे मूर्तियों वाले पार्क बनवाए उन पार्कों में मायावती ने अपनी मूर्ति के साथ ही साथ बाबासाहब भीमराव अम्बेडकर, कांशीराम और कई दलित महापुरुषों की मूर्तियां लगवाईं. इस से न लखनऊ, नोएडा जैसे शहरों का कोई भला हुआ और न यहां रहने वालों का. इन पार्कों में भी घूमने वालों को ध्यान रखना पड़ता है कि ये दलित स्वाभिमान से जुड़े पार्क हैं.

योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद तो प्रदेश में धर्म का बोलबाला हो गया है. सरकार का सारा ध्यान इस बात पर रहता है कि नमाज ठीक से पढ़ लें, कांवड़ यात्रा निकल जाए, मूर्तियों को नुकसान न पहुंचे. कहने के लिए लखनऊ बदल रहा है लेकिन मुंबई, दिल्ली की तरह ‘हौट पैंट’ पहने कोई लड़की अकेले ’ओला’ ‘ऊबर’ टैक्सी बुक कर के रात को अकेले सफर नहीं कर सकती. नई शादीशुदा लड़की जेवर पहन कर रात में सफर नहीं कर सकती. जब वह कोई शिकायत करती है तो पुलिस उस को ही सिखाती है कि रात को अकेले जाने की क्या जरूरत थी.

5 साल पहले एप्पल कंपनी के एरिया मैनेजर विवेक तिवारी अपनी एक सहयोगी को छोड़ने रात को उस के घर जा रहे थे. जनेश्वर पार्क के पास पुलिस ने उन से रुकने को कहा. उन लोगों ने गाड़ी रोकने में देर कर दी. इस के बाद पुलिस के एक सिपाही ने विवेक तिवारी को गोली मार दी. मामला सुर्ख़ियों में रहा. ऐसे शहर में रात में कपल्स कैसे निकल सकते हैं, यह सोचने वाली बात है.

योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद ‘बुलडोजर’ की वाहवाही की जा रही है. उस को कानून के विकल्प के रूप में देखा जा रहा है. इस के बाद भी लड़कियां सुरक्षित नहीं हैं. कालोनियों में सड़क चलती महिलाओं के गले से चेन लूट ली जाती है. यही नहीं, यहां पर धार्मिक नफरत फैलाने वाले मैसेज भी खूब चलते हैं. एक मैसेज में कहा गया कि वाराणसी में गंगा आरती करने वाले विभू उपाध्याय ने नीट की परीक्षा पास की. मीडिया में इस का जिक्र नहीं हुआ. यही अगर बुरका पहने कोई लड़की पास करती तो उस की बड़ी ‘तारीफ’ होती.

जातिधर्म के खाचें में जनता को बांट कर लोगों का ध्यान जरूरी मुददों से हटाने के लिए किया जाता है. इस के पीछे सरकार और उस के सहयोगी संगठनों का हाथ होता है. उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में सिद्धांत तिवारी नामक युवक ने वीडियो जारी करते मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से अपील की कि वह जब हनुमान चालीसा का पाठ करता है तो उस के घर के सामने मांस के टुकडे फेंकने की धमकी दी जाती है. इस के लिए तौफीक और सानू को जिम्मेदार बताया. पुलिस ने तौफीक और सानू सहित 12 अन्य लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर के छानबीन शुरू कर दी. जबकि, राजधानी लखनऊ में जब चेन छीनने की घटना होती है तो पुलिस मुकदमा भी दर्ज करने में आनाकानी करती.

बदल रही लड़कियों की सोच

आज के दौर में सोच बदल रही है. लड़का और लड़की के साथ मातापिता पढ़ाई और कैरियर में भेदभाव नहीं करते हैं. वे लड़की की शिक्षा पर उतना ही खर्च करते हैं जितना खर्च लड़के की शिक्षा पर करते हैं. अब पढ़ाई सस्ती नहीं रह गई है. ज्यादातर लड़कियां इजीनियरिंग और एमबीए करती हैं. कुछ सरकारी नौकरी में कंपीटिशन की तैयारी करती हैं. इसी दौर में उन की शादी का समय भी होता है. कुछ पढ़ाई कर के प्राइवेट नौकरी भी कर लेती हैं. ऐसे में अगर ससुराल के लोग खुले विचारों और सहयोगी स्वभाव के नहीं होते तो दिक्कत होने लगती है. छोटे शहरों के रहने वालों के मन में यह रहता है कि पढ़ीलिखी लड़की उन के दकियानूसी विचारों के हिसाब से नहीं चलेगी, लिहाजा वे उस से बचने का प्रयास करते हैं.

लड़कियां कोचिंग करने दिल्ली या कोटा जाना चाहती हैं. अगर इन को पढ़ाई के लिए कालेज चुनने की आजादी दी जाती है तो ये बेंगलुरु और दिल्ली के कालेज चुनती हैं. अपने शहर के कालेजों में जाना पंसद नहीं करतीं. उस की वजह यह है कि यहां के कालेजों में वह माहौल पढ़ाई का नहीं है जो बड़े शहरों के कालेजों में होता है. यह बात उन के मन में रहती है जिस से शादी के मसले पर भी वे यही फैसला लेती हैं. एक समय पर लखनऊ, इलाहाबाद और बनारस यूनिवसिटी के छात्र दीवाने होते थे, अब वहां वही जाते हैं जो बड़े शहरों में जा कर पढ़ नहीं सकते. सरकार यूनिवर्सिटी के माहौल को सही करने की जगह पर शहरों के नाम बदलने में लगी रही.

छोटे और बड़े शहरों में रहने वालों के बीच विचारों का बड़ा अंतर होता है. जिस तरह से पतिपत्नी बड़े शहरों में मिलजुल कर काम करते हैं, छोटे शहरों में सामान्य तौर पर ऐसा नहीं होता. दिल्ली, मुंबई में पतिपत्नी मिल कर अपनी छोटी सी दुकान चला सकते हैं, उस तरह से छोटे शहरों में मिलजुल कर काम नहीं कर सकते. पति अगर पत्नी को मानसम्मान और प्यार देने लगे तो उसे ‘जोरू का गुलाम’ कहा जाने लगता है. इस तरह की तमाम बंदिशें हैं जो बड़े शहरों की लड़कियों को छोटे शहरों में जाने से रोकती हैं.

मनचाही शादी के अधिकार कम

उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड और उत्तराखंड में लड़कियों को मनचाही शादी के सब से कम अधिकार दिए जाते हैं. कम उम्र में शादी का रिवाज इन्हीं प्रदेशों में सब से अधिक है. कन्याभ्रूण हत्या से ले कर औनर किलिंग तक की सब से अधिक घटनाएं यहीं घटती हैं. दहेज जैसी कुप्रथा यहां सदियों से चल रही है. लड़कियों की भ्रूणहत्या तो बाद की बात है, राजस्थान में तो पहले लड़कियों को पैदा होने के बाद मार दिया जाता था. बालिका वधू सब से अधिक राजस्थान में पाई जाती हैं. विधवा महिलाओं के साथ बेहद खराब सुलूक यहां पर किया जाता है. इन के चलते लड़कियां यहां शादी करने से बचती हैं.

अंतरधार्मिक शादियों को रोकने के लिए कई तरह के प्रतिबंध हैं. कुछ दिनों पहले जबलपुर की रहने वाली लड़की प्रतिभा ने गैरधर्म के लड़के के साथ शादी कर ली. लड़की के घर वाले इतने नाराज हुए कि उन्होंने लड़की को मरा हुआ मान कर उस का क्रियाकर्म, तेरहवीं कर दी. कार्ड छपवा कर इस की सूचना पूरे समाज को दे दी. इस तरह की घटना राजस्थान में भी प्रकाश में आई थी. इस तरह की शादियों को रोकने के लिए सरकार ने लव जिहाद कानून बनाया है. जबकि अदालतें लगातार अपने फैसलों में कह रही हैं कि किसी बालिग लड़की को अपने मनपसंद लड़के से शादी करने की आजादी है.

उत्तराखंड में रहने वाले भाजपा नेता यशपाल बेनाम की बेटी मोनिका की शादी मुसलिम धर्म के मोनिस के साथ तय हो गई. दोनों ही परिवार राजी थे. शादी के कार्ड भी छप गए. इस के बाद यह बात सोशल मीडिया पर वायरल हो गई. लोगों ने फिल्म ‘केरल फाइल्स’ के मुददे को ले कर यशपाल बेनाम की आलोचना शुरू कर दी. लिहाजा, परेशान हो कर यशपाल बेनाम को घोषणा करनी पड़ी कि यह शादी कैंसिल की जाती है. सरकारों ने वोट के लिए जाति और धर्म के नाम पर लोगों के मन में इतना जहर भर दिया है कि अब घर, परिवार इस से प्रभावित होने लगे हैं.

कटटरता के चलते विकास की दौड में पिछड़े

जहां देशभर के दूसरे राज्य अपने ढांचे को सुधारने का काम कर रहे हैं, वहीं बीमारू राज्यों के शहर अपने को धार्मिक कटटरता में उलझा रहे हैं. इस के पीछे भाजपाई सरकारों की रणनीति है. वे चाहती हैं कि इन मुददों में उलझ कर जनता विकास की बात न करे. वह शिक्षा और रोजगार की बातें न करे. इस का असर यह हो रहा है कि अब लड़कियां इन शहरों में शादी के लिए तैयार नहीं हो रहीं.

नेपाल जैसे छोटे राज्य ने अपने यहां विश्व स्तर के काठमांडू और पोखरा जैसे पर्यटन स्थल विकसित कर लिए है. बीमारू राज्यों का आधारभूत ढांचा बड़ा होने के बाद भी वे इस तरह का विकास नहीं कर पाए हैं. नेपाल भी धार्मिक राज्य है. वहां भी मंदिर हैं लेकिन वहां की लाइफस्टाइल अलग है. वहां कोई यह नहीं कहता कि पर्यटक किस तरह के कपड़े पहनें और किस तरह के नहीं. कोई भगवा गैंग वहां पर लोगों को रोकनेटोकने का काम नहीं करता है.

बीमारू राज्यों के पिछड़े शहर

मुंबई, दिल्ली, बेंगलूरु और चेन्नई जैसे शहरों में रहने वाली लड़कियों की शादी के लिए लड़का अगर पटना, भोपाल, रायपुर, रांची, लखनऊ, देहरादून और जयपुर जैसे शहरों का रहने वाला हो तो शादी के लिए हां करने से पहले लड़कियां कई बार सोचती हैं. वहीं अगर पटना, भोपाल, रायपुर, रांची, लखनऊ, देहरादून और जयपुर जैसे शहरों की लड़कियों से मुंबई, दिल्ली, बेंगलुरु और चेन्नई में शादी करने की बात होती है तो वे तुरंत हां कर देती हैं. इस की वजह यह है कि उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड और उत्तराखंड अभी भी लाइफस्टाइल के हिसाब से दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, बेंगलुरु से बहुत पीछे हैं.

इस की वजह यही है कि यहां कटटरता है. रीतिरिवाज ऐसे हैं जो जीने की आजादी नहीं देते. सासससुर पुरानी सोच के हैं. लड़कियां अपने घर के अंदर परिवार के बीच अभी भी घूघंट निकालने को मजबूर होती हैं. पति के साथ घूमने जाना हो तो सौ बार सोचना पड़ता है कि क्या पहनें, कैसे जाएं.

भारत के 10 सबसे अमीर शहरों में मुंबई, दिल्ली, बेंगलुरु, हैदराबाद, चेन्नई, कोलकाता, पुणे, अहमदाबाद, सूरत और विशाखपतनम का नाम आता है. यह गणना इन शहरों की जीडीपी, प्रति व्यक्ति आय, रोजगार के अवसर, आधारभूत सुविधाएं, लाइफस्टाइल और बिजनैस के माहौल के आधार पर की गई है. देश के टौप 10 शहरों में बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश का कोई भी शहर नहीं है. इस से पता चलता है कि लड़कियां क्यों इन प्रदेशों में शादियां नहीं करना चाहती हैं. इन प्रदेशों के कुछ शहरों को छोड़ दें तो बाकी की हालत बहुत ही खराब है. इन को रहने के हिसाब से अच्छा नहीं माना जाता है.

महिला अपराध में सब से आगे

राष्ट्रीय महिला आयोग ने महिला अत्याचार पर वर्ष 2021 में मिली शिकायतों की एक सूची जारी की. सूची में राज्य उत्तर प्रदेश सब से पहले नंबर पर निकला. आगे के नंबरों पर राजस्थान, बिहार और मध्य प्रदेश के नाम भी दर्ज थे. राष्ट्रीय महिला आयोग की जारी रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2019 में 764 और 2020 में 907 मामले दर्ज हुए थे. ये 2021 खत्म होतेहोते बढ़ कर 1,130 तक पहुंच गए. राजस्थान में साल 2021 में महिला अत्याचार की कुल 1,130 शिकायतें मिलीं. 3 साल के भीतर ही आयोग को मिलने वाली शिकायतों में 47.90 फीसदी और एक साल में ही 24 फीसदी से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई है.

राष्ट्रीय महिला आयोग को वर्षभर में मिलने वाली शिकायतों के आधार पर जारी इस रिपोर्ट में राज्यवार घरेलू हिंसा, गरिमा हनन समेत कई तरह के मामले शामिल हैं. रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश 15,828 शिकायतों के साथ पहले नंबर पर था. राजस्थान से आयोग को मिली 1,130 शिकायतों में से सब से ज्यादा 338 गरिमा हनन की हैं. इस के बाद घरेलू हिंसा की कुल 217 शिकायतें हैं. इस के अलावा साइबर क्राइम, यौन उत्पीड़न, दहेज प्रताड़ना समेत कई अन्य मामलों को ले कर भी शिकायतें दर्ज कराई गई हैं.

टौप 8 राज्यों में बीमारू राज्यों में उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और मध्य प्रदेश के नाम शामिल हैं. अपराध के ये आंकड़े भी लड़कियों को डराते हैं जिस की वजह से वे यहां अपना घर बसाना पंसद नहीं करती हैं. रोजीरोजगार के बाद अपराध के मामलों में भी ये राज्य सब से खराब माने जाते हैं. अपराध के बाद यहां की पुलिस का व्यवहार बहुत खराब होता है. उत्तर प्रदेश का ‘हाथरस कांड’ इस का एक बड़ा उदाहरण है.

उत्पादन कम और जनसंख्या ज्यादा

नेताओं ने बीमारू राज्यों की प्रगति पर ध्यान नहीं दिया जिस की वजह से ये पिछड़ते चले गए. इन राज्यों में जनसंख्या का भार अधिक है. उत्तर प्रदेश से अलग हो कर अलग राज्य बनने के बाद उत्तराखंड की जो प्रगति दिख रही है वह धार्मिक पर्यटन की वजह से है. जिस से राज्य में खतरे भी बढ़े हैं. जोशीमठ जैसे शहर धंसने लगे हैं जिस से वहां के रहने वाले अपने घर छोड़ कर पलायन करने को मजबूर हैं.

छत्तीसगढ़ मानव विकास सूचकांक की मध्य श्रेणी में आता है. बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड पिछड़ रहे हैं. इन राज्यों की सब से बड़ी दिक्कत यहां की जनसंख्या है. जिस की वजह से ये राज्य जितना उत्पादन करते हैं उस से अधिक भोजन का उपभोग करते हैं. हरियाणा और पंजाब जैसे बहुत छोटे राज्य समृद्ध हैं क्योंकि वे उत्पादन अधिक करते हैं. वहां खेत हों या कारोबार, महिलापुरुष मिलजुल कर काम करते देखे जाते हैं. बिहार और उत्तर प्रदेश में ऐसे हालात नहीं हैं.

भारत के बीमारू राज्यों में प्रजनन दर सब से अधिक है. 2010 में बिहार में कुल प्रजनन दर 3.9, उत्तर प्रदेश में 3.5, मध्य प्रदेश में 3.2 और राजस्थान में 3.1 थी, जबकि पूरे भारत के लिए यह 2.5 थी. इस के कारण इन राज्यों में शेष भारत की तुलना में अधिक जनसंख्या वृद्धि हुई है. इस का असर यहां की शिक्षा पर भी पड़ता है. 2011 की जनगणना के अनुसार बीमारू राज्यों में साक्षरता दर बिहार 63.8 प्रतिशत, राजस्थान 67.1 प्रतिशत, झारखंड 67.6 प्रतिशत, मध्य प्रदेश 70.6 प्रतिशत और उत्तर प्रदेश 71.7 प्रतिशत हैं. जबकि, राष्ट्रीय औसत 74.04 प्रतिशत है. ये राज्य वर्तमान साक्षरता दर में राष्ट्रीय औसत से पीछे हैं.

भारत के 10 सब से गरीब राज्यों की सूची में छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के नाम शामिल हैं. छत्तीसगढ़ की जीडीपी 3.25 लाख करोड़ यानी 50 बिलियन डौलर है. यह राज्य साल 2000 से पहले मध्य प्रदेश का हिस्सा हुआ करता था. बाद में इसे अलग राज्य बना दिया गया. अब यह देश के सब से गरीब स्टेट की सूची में आता है. छत्तीसगढ़ की 37 प्रतिशत जनता गरीब है. हालांकि, यहां भारत का 15 प्रतिशत स्टील उत्पादन होता है. झारखंड की जीडीपी 2.82 लाख करोड़ रुपए यानी 43 बिलियन डौलर है. यह राज्य पहले बिहार का हिस्सा हुआ करता था. साल 2000 में इसे भी अलग राज्य बना दिया गया था. इस राज्य में गरीबी का स्तर करीब 36.96 प्रतिशत है.

बिहार की जीडीपी 5.15 लाख करोड़ यानी 80 बिलियन डौलर है. बिहार में काफी बेरोजगारी है, इस वजह से इस राज्य के लोग दूसरे राज्यों में काम करने जाते हैं. बिहार की आधी से अधिक आबादी गरीबीरेखा से नीचे जी रही है. यह राज्य भी कृषिप्रधान राज्य है और इस राज्य के ज्यादातर लोग कृषि से अपना जीवनयापन कर रहे हैं. इस राज्य का गरीबी स्तर 33.74 प्रतिशत के आसपास है.

मध्य प्रदेश की जीडीपी 8.26 लाख करोड़ रुपए यानी 126 बिलियन डौलर है. भारत के मध्य में बसा मध्य प्रदेश का गरीबी स्तर 31.65 प्रतिशत है. इस राज्य में सब से ज्यादा अनुसूचित जनजाति यानी एसटी के लोग रहते हैं. यह राज्य आदिवासी लोगों के लिए भी जाना जाता है. यहां के ज्यादातर लोग रोजीरोजगार के लिए वन संपदा पर आश्रित हैं.

उत्तर प्रदेश की जीडीपी 14.89 लाख करोड़ रुपए यानी 230 बिलियन डौलर है. यह देश का सब से बड़ा प्रदेश होने के साथ एक गरीब राज्य भी है. उत्तर प्रदेश के लोग भी बिहार के लोगों की तरह रोजगार के लिए भारत के दूसरे राज्यों पर निर्भर हैं. इस का नाम भारत के सब से गरीब राज्य में आता है. इस राज्य का गरीबी स्तर 29.43 प्रतिशत है.

सब से बड़ी राजनीतिक ताकत

आर्थिक सर्वेक्षण 2020-21 के अनुसार इन राज्यों में देश की करीब 37 प्रतिशत आबादी रहती है. भूगोल की नजर से देखें तो ये राज्य देश के 30 प्रतिशत जमीन पर कब्जा रखते हैं. प्रति व्यक्ति आय के हिसाब से देखें ये राज्य बहुत ही कमजोर हैं. आंकड़ों की बात करें तो अब ये राज्य खुद को बीमारू राज्य नहीं मानते हैं. राजस्थान अपने को पहले ही इस से बाहर मानता है. मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार भी इस को मानने को तैयार नहीं हैं. लेकिन प्रति व्यक्ति आय इन प्रदेशों की पोल खोल देती है.

भारत में प्रति व्यक्ति आय के पैमाने से देखें तो 2019-20 की गणना के हिसाब से उत्तराखंड की प्रति व्यक्ति आय 2 लाख 26 हजार 144 रुपए, राजस्थान की प्रति व्यक्ति आय 1 लाख 28 हजार 319 रुपए, मध्य प्रदेश 1 लाख 13 हजार 79 रुपए, छत्तीसगढ़ 1 लाख 5 हजार 281 रुपए, झारखंड 87 हजार 127 रुपए, उत्तर प्रदेश 74 हजार 141 रुपए और बिहार 50 हजार 735 रुपए है. प्रति व्यक्ति आय की गणना में सब से निचले पायदान पर झारखंड, उत्तर प्रदेश और बिहार राज्य आते हैं. सब से शिखर पर गोवा है जहां की प्रति व्यक्ति आय 5 लाख 20 हजार 31 रुपए है. भारत में औसत प्रति व्यक्ति आय 1 लाख 72 हजार रुपए है. उत्तराखंड को छोड़ कर बाकी बीमारू राज्य राष्ट्रीय औसत से भी कम हैं.

बीमारू राज्य राजनीतिक रूप से पावरफुल राज्य हैं. राजस्थान में लोकसभा की 25 और विधानसभा की 200 सीटें, छत्तीसगढ़ में लोकसभा की 11 और विधानसभा की 90 सीटें, मध्य प्रदेश में लोकसभा की 29 और विधानसभा की 230 सीटें, बिहार में लोकसभा की 40 और विधानसभा की 243 सीटें, झारखंड में लोकसभा की 14 और विधानसभा की 81 सीटें, उत्तर प्रदेश में लोकसभा की 80 और विधानसभा की 402 सीटें और उत्तराखंड में लोकसभा की 5 और विधानसभा 70 सीटें हैं.

इस तरह से देखें तो लोकसभा की कुल 205 सीटें इन 6 राज्यों में हैं, जिन को बीमारू राज्यों की श्रेणी में रखा गया था. जो यहां जीत हासिल करेगा उसे केंद्र में सरकार बनाने से कोई रोक नहीं सकता. उत्तर प्रदेश के बारे में कहा जाता है कि ‘दिल्ली की कुरसी का रास्ता यूपी से हो कर जाता है.’ इस की वजह यह है कि यहां लोकसभा की 80 सीटें हैं. 2014 और 2019 में भाजपा केंद्र में तब सरकार बना पाई जब उस ने उत्तर प्रदेश से क्रमशः 72 और 66 लोकसभा की सीटें जीती थीं.

मेहनत नहीं करना चाहते लोग

प्राकृतिक संसाधनों और राजनीतिक ताकत से भरपूर होने के बाद भी ये राज्य बीमारू क्यों हैं? जब इस प्रश्न का जवाब देखते हैं तो पता चलता है कि बीमारू राज्यों के लोग ‘अजगर करे न चाकरी पंक्षी करे न काम, दास मलूका कह गए सब के दाता राम’ की कहावत पर यकीन करते हैं. वे मेहनत की जगह पर भाग्य की लकीरों पर अधिक भरोसा करते हैं. इसी वजह से प्रकृति ने जो उपहार दिया वे उस का लाभ नहीं उठा पा रहे. किसी भी राज्य की प्रगति में वहां की जनता के साथ ही साथ सरकार का भी बड़ा हाथ होता है. राज्य की प्रगति का ढांचा और सुरक्षा का काम सरकार ही करती है.

पिछले 36 सालों से ये राज्य विकास पर ध्यान देने की जगह जाति और धर्म की राजनीति का शिकार हो गए. इन के मुकाबले दूसरे राज्यों, जैसे महाराष्ट्र ने फिल्म उद्योग को बढ़ावा दिया. कपास की खेती में कमाल का काम किया. गुजरात ने औद्योगिक प्रगति के साथ ही साथ दूध उत्पादन में सब से अहम भूमिका निभाई. पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों ने हरित क्रांति के मौडल को अपनाया और अपने को खुशहाल बनाया.

इन के मुकाबले उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड और उत्तराखंड जैसे राज्य राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाते रहे. धरनाप्रदर्शन, तोड़फोड़, रेल की पटरियों को उखाड़ने जैसे कामों में यहां के युवाओं की भूमिका सब से अधिक रहती है. इस के बाद उन की पंसद का काम धार्मिक आयोजन होता है. यहां के रहने वालों को रोजीरोजगार के मसले में बिजनैस करने की जगह पर नौकरी करना ज्यादा पंसद है. इस में भी सरकारी नौकरी के लिए सब से ज्यादा प्रयास होता है. इस की खास वजह यह होती है कि सरकारी नौकरी में कामचोरी करने का मौका मिलता है. साथ में, रिश्वतखोरी करने का मौका भी मिलता है. जो सरकारी नौकरी पाने में सफल नहीं होते वे राजनीति में अपना कैरियर बनाते हैं.

इन प्रदेशों का गरीब वर्ग नौकरी तो नहीं कर पाता पर वह मजदूरी करने के लिए विदेश ही नहीं, देश के कई प्रदेशों में प्रवासी मजदूर के रूप में काम करता है. अपने खेतों से अधिक इन को दूसरे के खेतों में काम करना अच्छा लगता है. पंजाब, हरियाणा के खेतों और मुंबई, सूरत की फैक्ट्रियों में सब से अधिक इन्हीं प्रदेशों के लोग काम करते हैं. मुंबई, दिल्ली की टैक्सी चलाने वाले इन्हीं प्रदेशों के लोग हैं. कोरोना के समय जब लौकडाउन लगा तो पता चला कि सब से अधिक प्रवासी मजदूर बिहार और उत्तर प्रदेश के ही हैं.

ऐसा नहीं कि इन प्रदेशों की जमीन उपजाऊ नहीं है. यह गंगा यमुना का मैदान है. हर तरह की खेती यहां हो सकती है. लेकिन यहां के रहने वाले जमीन बेच कर राजनीति करते हैं. सरकारी नौकरी हासिल करने की कोशिश करते हैं. ये खेत पर मेहनत नहीं करना चाहते. अपने खेतों को बंटाई पर दे देते है. उत्तर प्रदेश में खेती करने वालों में बाहरी लोग ही अधिक हैं. प्रदेश की तराई बेल्ट में बड़ी संख्या पंजाब से आए किसानों ने खेती की हालत बदल दी. इन किसानों ने जंगलों को काट कर खेत बना दिया. जहां कभी जलभराव होता था, फसल नहीं पैदा होती थी वहां पंजाब से आए किसानों ने गन्ना, गेहूं और धान की फसल लहलहा दी.

बीमारू राज्यों में 1990 के पहले यादव और कुर्मी 2 ऐसी जातियां थीं जो खेती के काम करती थीं. मंडल कमीशन लागू होने के बाद इन जातियों ने अपनी राजनीतिक ताकत तो पहचानी पर किसानी के गुण को खो दिया. चौधरी चरण सिंह, मुलायम सिंह यादव पहले किसान नेता के रूप में जाने जाते थे, बाद में इन की पहचान पिछड़े नेताओं में होने लगी. बिहार में भी इस तरह से बदलाव हुआ. राजनीतिक चेतना ने किसानी को खत्म करने का काम किया. जिस से इन राज्यों की माली हालत खराब हुई. राजनीतिक ताकत ने यहां के लोगों को भ्रष्टाचारी बना दिया. राजनीतिक अवसरवाद के लिए सब से अधिक दलबदल इन्हीं प्रदेशों के नेता करते हैं.

धर्म और जाति ने बिगाड़ा माहौल

एक दौर था कि राजनीति में उत्तर प्रदेश और बिहार का सब से बड़ा योगदान होता था. उत्तर प्रदेश सब से अधिक प्रधानमंत्री देने वाला प्रदेश है. 1990 तक केवल मोरारजी देसाई को छोड़ कर सारे प्रधानमंत्री उत्तर प्रदेश से थे. इन में जवाहरलाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, चौधरी चरण सिंह, राजीव गांधी, विश्वनाथ प्रताप सिंह, चंद्रशेखर उत्तर प्रदेश से ही रहे हैं. 1990 के बाद अटल बिहारी वाजपेई एक मात्र ऐसे नेता रहे जो उत्तर प्रदेश के थे. बाकी प्रधानमंत्रियों में नरसिम्हा राव, इंद्रकुमार गुजराल, देवगौडा, डाक्टर मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदी बाहरी प्रदेशों के रहने वाले थे. नरेंद्र मोदी गुजरात के रहने वाले हैं. वहां वे मुख्यमंत्री रहे. उत्तर प्रदेश के राजनीतिक महत्त्व को समझने के बाद नरेंद्र मोदी उत्तर प्रदेश से ही लोकसभा का चुनाव लड़े.

उत्तर प्रदेश में 1990 के बाद से जाति और धर्म की ऐसी हवा चली कि विकास की बातें बेमानी हो गईं. 1989 में मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू होने के बाद से जाति की राजनीति ने उत्तर प्रदेश के साथ ही साथ बिहार, मध्य प्रदेश और राजस्थान के सामाजिक परिवेश को बदल कर रख दिया. इस के जवाब के लिए अयोध्या में राममंदिर बनाने के लिए आंदोलन तेज हुआ. जिस की वजह से जाति और धर्म ने पूरे प्रदेश को जकड़ लिया. जिस से विकास के काम पर पूजापाठ हावी हो गई. इन का प्रभाव भी महिलाओं की निजी जिंदगी पर पड़ा. महिलाओं से यह आपेक्षा की जाने लगी की वे पूजापाठ करें, धार्मिक यात्राओं में सिर पर कलश ले कर पीली साड़ी पहन कर जूलूस में शामिल हों आदि.

कुरसी पर कायम लेकिन विकास नहीं

धर्म को चुनाव जीतने का जरिया बना दिया गया. इसी को आगे बढ़ाते हुए 2017 में मुख्यमंत्री की कुरसी पर योगी आदित्यनाथ को बैठा दिया गया, जिन की कोई प्रशासनिक योग्यता नहीं थी. धार्मिक पहचान होने के कारण उन को देश के सब से बड़े प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया गया. चुनाव जीतने के लिए हिंदूमुसलिम का धार्मिक धुव्रीकरण किया गया. जिस की वजह से प्रदेश का सांप्रदायिक माहौल खराब हुआ.

2017 से ले कर 2022 तक कई इंवैस्टर समिट के जरिए करोड़ों रुपए खर्च किए गए पर प्रदेश में उस हिसाब से उद्योगधंधों का माहौल नहीं बना. केवल उत्तर प्रदेश ही नहीं, उत्तराखंड, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड और बिहार ने अपनी विकास योजनाओं की जगह पर धर्म को महत्त्व देना शुरू किया. वे अपने प्रदेश में विकास के लिए धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा दे रहे हैं. इस में सभी प्रदेशों में होड़ लगी है.

बिहार में नीतीश कुमार लंबे समय से मुख्यमंत्री की कुरसी संभाले हुए हैं. वे अपना सारा प्रयास अपनी कुरसी बचाने के लिए ही इस्तेमाल करते हैं. कभी भाजपा के साथ जाते हैं, कभी लालू यादव की पार्टी राजद के साथ. ऐसे में उन को बिहार के लिए सोचने का समय ही नहीं मिलता. शुरुआती दौर में नीतीश कुमार को अपने अच्छे राजकाज के लिए ‘सुशासन बाबू’ के नाम से जाना जाता था. धीरेधीरे उन का नाम ‘सुशासन बाबू’ से ‘पलटू कुमार’ पड़ गया.

बीमारू राज्यों में शामिल मध्य प्रदेश में भी मुख्यमंत्री के रूप में शिवराज सिंह चौहान 4 बार सत्ता संभाल चुके हैं. इस राजनीतिक स्थिरता के बाद भी वे प्रदेश को कोई पहचान नहीं दिला पाए. जनता में पहले उन की पहचान ‘मामा’ के रूप में थी. जनता उन को मामा के नाम से पुकारती थी. योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद जब उन को ‘बुलडोजर बाबा’ कहा जाने लगा तो शिवराज सिंह चौहान ने भी अपनी पहचान बदलने का काम शुरू किया. इस के बाद उन को ‘बुलडोजर मामा’ कहा जाने लगा.

बड़े प्रदेशों की राह पर चलतेचलते उत्तराखंड, छत्तीसगढ़ और झारखंड भी केवल सत्ता पाने का जरिया बने रहे. उत्तराखंड में 22 साल में 11 मुख्यमंत्री आए और गए. यहां की धार्मिक पहचान को बनाने के लिए नेचर को खराब करने का काम किया गया. जिस की वजह से जोशी मठ जैसे शहरों पर संकट आ गया. वहां के रहने वालों को सब से अधिक परेशानियों का सामना करना पड़ा. यहां भी महिलाएं ही मुसीबत में फंसीं. घूमने के लिए भले ही उत्तराखंड अच्छा माना जाता हो पर यहां रहने के लिए लोग तैयार नहीं होते हैं. आज भी यहां के लोग नौकरी करने के लिए बाहरी शहरों में जाते हैं.

पहले उत्तराखंड को महिलाओं के लिए सुरक्षित माना जाता था. अब यहां नौकरी करने वाली लड़कियों के लिए खतरे बढ़ गए हैं. हरिद्वार के पास रिसोर्ट में काम करने वाली अंकिता की हत्या रसूखदार परिवार के लोगों ने कर दी. बहुत सारे प्रयासों के बाद भी अंकिता की हत्या का राज सामने नहीं आ सका. इस से अब बाहरी लड़कियां यहां नौकरी करने के लिए तैयार नहीं होती हैं. लड़कियों के लिए यह असुरक्षित माना जाता है. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के कार्यकाल में पहली बार उत्तराखंड में धार्मिक माहौल खराब हो रहा है. हिंदूमुसलिम आमनेसामने आ गए हैं.

राजस्थान में हर 5 साल पर सरकार बदलने का रिवाज है. जिस से एक बार भाजपा तो एक बार कांग्रेस सत्ता में आती है. अशोक गहलोत इस समय वहा के मुख्यमंत्री हैं. अशोक गहलोत और सचिन पायलेट के बीच अलग झगड़े हैं. राजस्थान के तमाम शहर ऐसे हैं जहां गरीबी बहुत है. लड़कियों के लिए पढ़ाई के अवसर नहीं हैं. गांवों में पीने के पानी का अभाव है. पानी लाने के लिए महिलाओें को कईकई किलोमीटर दूर जाना पड़ता है. इन खबरों को पढ़ कर बड़े शहरों की लड़कियों को छोड़िए, गांव की लड़कियां भी यहां शादी नहीं करना चाहती हैं.

बिहार से हो कर अलग राज्य बना झारखंड भी अपनी हालत सुधार नहीं पा रहा है. झारखंड जब नया राज्य बना था तो यह सोचा जा रहा था कि वहां के हालत सुधरेंगे. आदिवासी बाहुल्य इस राज्य में राजनीतिक भ्रष्टाचार और परिवारवाद चरम पर रहा है. अपने साथ बने राज्यों में सब से खराब हालत झारखंड की है. यहां के मुख्यमंत्री हेंमत सोरेन हैं. राज्य में महिलाओं की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ. महिलाओं को कभी डायन बता कर मार दिया जाता है तो कभी किसी और वजह से. यहां की राजधानी रांची है.

छत्तीगढ़ मध्य प्रदेश से अलग हो कर बना था. यह भी आदिवासी बाहुल्य प्रदेश है. नक्सली हिंसा बहुत होती है. यहां कांग्रेस के मुख्य मंत्री भूपेश बघेल हैं.

स्मार्ट सिटी योजना से कितने स्मार्ट होंगे शहर

2015 में केंद्र की मौजूदा मोदी सरकार ने स्मार्ट सिटी योजना बड़े जोरशोर से शुरू की थी. लोगों ने पहली बार यह नाम सुना था, सो, उत्सुकता भी बढ़ गई. इस का मुख्य उद्देश्य देश के 100 शहरों को स्मार्ट शहरों में बदलना था. अब इस योजना को इस साल 9 साल हो गए हैं. केंद्रीय शहरी एवं आवास मंत्रालय ने बता दिया है कि इस साल मार्च तक पहले 22 शहर अपनी सभी परियोजनाओं का काम पूरा कर लेंगे. बाकी 78 शहरों का काम भी 3 से 4 महीने में पूरा हो जाएगा. इस योजना पर खर्च के लिए 72,0 0,000 करोड़ रुपए दिए गए.

बीमारू राज्यों के जिन शहरों को स्मार्ट सिटी योजना में शामिल किया गया उन में मुजफ्फरपुर, भागलपुर, बिहारशरीफ, पटना, रायपुर, बिलासपुर, नया रायपुर, रांची, भोपाल, इंदौर, जबलपुर, ग्वालियर, सागर, सतना, उज्जैन, जयपुर, उदयपुर, कोटा, अजमेर, मुरादाबाद, अलीगढ़, सहारनपुर, बरेली, झांसी, कानपुर, प्रयागराज, लखनऊ, वाराणसी, गाजियाबाद, आगरा, रामपुर, देहरादून शामिल हैं.

स्मार्ट सिटी योजना 50-50 के मौडल पर बनी है. जिस का मतलब यह है कि केंद्र और राज्य सरकार मिल कर इस काम को करेंगे. केंद्र सरकार द्वारा हर शहर को औसतन 100 करोड़ वित्तीय सहायता देने की योजना है. इस में 50 करोड़ केंद्र तो वहीं बाकी 50 करोड़ राज्य सरकार या केंद्रशासित प्रदेश योगदान के रूप में देगा. नवंबर 2021 तक केंद्र ने 27,282 करोड़ रुपए जारी किए तो वहीं राज्यों ने केवल 20,124 करोड़ ही जारी किए.

इस योजना से शहरों को पर्याप्त पानी की आपूर्ति, निश्चित विद्युत आपूर्ति, ठोस वेस्ट मैनेजमैंट सहित स्वच्छता, कुशल शहरी गतिशीलता और सार्वजनिक परिवहन, किफायती आवास विशेष रूप से गरीबों के लिए, आईटी कनैक्टिविटी और डिजटिलीकरण, सुशासन विशेष रूप से ईगवर्नेंस और नागरिक भागीदारी, टिकाऊ पर्यावरण, नागरिकों की सुरक्षा और संरक्षा विशेष रूप से महिलाओं, बच्चों एवं बुजुर्गों की, स्वास्थ्य और शिक्षा पर जोर देना है.

अगर भारत के टौप 10 स्मार्ट सिटी की बात की जाए तो बीमारू राज्यों में से केवल एक जयपुर का नाम आता है. बाकी के शहर अभी बहुत पीछे हैं. केंद्र की स्मार्ट सिटी योजना नौ दिन चले अढाई कोस की कहावत को पूरा कर रही है. इस से इन शहरों को कोई लाभ होता नहीं दिखा है. बीमारू राज्यों और वहां की हालत को सुधारना है तो यहां रोजगार के अवसर बनाने होंगे जिस से यहां से पलायन रुक सके. लोग नौकरी के लिए बड़े शहरों की तरफ न देखें. शहर इस काबिल हो जाएं कि बड़े शहरों की लड़कियों को इन छोटे शहरों में शादी करने से कोई दिक्कत न हो.

केवल कागजों पर आंकड़े दिखा कर हर प्रदेश खुद को बीमारू राज्य मनाने से इनकार कर रहा है. क्या सही मानो में ये प्रदेश बदले हैं? इस का उत्तर न है क्योंकि यहां के रहने वालों के जीवनस्तर में कोई सुधार नहीं हुआ है. प्रति व्यक्ति आय के आंकड़े इस की गवाही देते हैं. और आंकड़े कभी झूठ नहीं बोलते. विकास की हर कसौटी पर ये प्रदेश विकसित प्रदेशों से बहुत पीछे हैं. केवल धार्मिक पर्यटन बढ़ाने से राज्य की हालत में सुधार नहीं होगा. सुधार के लिए बिजनैस और उद्योगधंधों को बढ़ावा देना होगा. जब तक इन राज्यों की दशा में सुधार नहीं होगा, लड़कियां बीमारू राज्यों में शादी करने के लिए तैयार नहीं होंगी.

बीमारू राज्यों में प्रति व्यक्ति आय (2019-20 की गणना)

उत्तराखंड: 2 लाख 26 हजार 144 रुपए

राजस्थान: 1 लाख 28 हजार 319 रुपए

मध्य प्रदेश: 1 लाख 13 हजार 79 रुपए

छत्तीसगढ़: 1 लाख 5 हजार 281 रुपए

झारखंड: 87 हजार 127 रुपए

उत्तर प्रदेश: 74 हजार 141 रुपए

बिहार: 50 हजार 735 रुपए

राजनीतिक रूप से पावरफुल बीमारू राज्य

प्रदेश –    लोकसभा सीट – विधानसभा सीट

राजस्थान      25              200

छत्तीसगढ़      11              90

मध्य प्रदेश      29              230

बिहार          40              243

झारखंड        14                81

उत्तर प्रदेश    80              402

उत्तराखंड      5                70

बाक्स: 3

बीमारू राज्यों की जीडीपी

प्रदेश –      जीडीपी –              गरीबी का अनुपात

छत्तीसगढ़    3.25 लाख करोड़ रुपए      36.96 प्रतिशत

बिहार      5.15 लाख करोड़ रुपए      33.74 प्रतिशत

झारखंड    2.36 लाख करोड़ रुपए            34.80 प्रतिशत

मध्य प्रदेश    8.26 लाख करोड़ रुपए      31.65 प्रतिशत

उत्तर प्रदेश  14.89 लाख करोड़ रुपए      29.43 प्रतिशत

उत्तराखंड  2.61 लाख करोड़ रुपए      30.60 प्रतिशत

राजस्थान  11.81 लाख करोड़ रुपए      32.40 प्रतिशत

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