24 जून की सुबह ‘वैगनर ग्रुप’ के कमांडरों ने 25 हजार सैनिकों के काफिले के साथ मास्को की तरफ कूच कर दिया. टैंको और बख्तरबंद वाहनों पर सवार इन सैनिकों को देख कर लगा जैसे मास्को पर कोई दुश्मन चढ़ाई कर रहा हो. इस ग्रुप के प्रमुख प्रिगोजिन ने मास्को से 200 किलोमीटर दूर इस विद्रोही काफिले को रोक दिया. इस को देख पूरी दुनिया को लगा कि रूस में सैनिक विद्रोह हो जाएगा. रूस में राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने इन हालात को जल्द संभाल लिया लेकिन जिस तरह के हालात हैं उस से लगता नहीं की यह आग पूरी तरह बुझ गई है. पुतिन ने सपने में भी ऐसे विद्रोह की कल्पना न की होगी.

वैगनर ग्रुप ने पूरी दुनिया को यह समझाने का काम किया है कि वह अपनों के खिलाफ भी वही व्यवहार कर सकता है जो विरोधियों के खिलाफ सत्ताधारी करते हैं. इस की असल वजह यह है कि वैगनर ग्रुप भगोड़ों का एक ग्रुप है जो अपने घरपरिवार और करीबियों से दूर हैं. उन के अंदर भावनाएं नहीं हैं. उन को केवल पैसे चाहिए जिस से वे ऐयाशी कर सकें. पैसों के लिए वे किसी के भी खिलाफ हथियार उठाने से नहीं चूकते. वैगनर ग्रुप जैसे ग्रुपों को तैयार करने से पहले सौ बार सोचने की जरूरत है वरना किसी की भी हालत रूस के राष्ट्रपति पुतिन जैसी हो सकती है.

रूस में राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के सहयोग से बने ‘वैगनर ग्रुप’ ने उन के ही खिलाफ विद्रोह कर दिया. इस से पूरी दुनिया के तानाशाहों को संदेश मिला है कि भाड़े के गैंग, चाहे भगवा हों या रशिया, अपनों को कभी भी दगा दे सकते हैं. पुतिन के खिलाफ 20 साल में यह सब से बड़ी चुनौती है. इस से पूरी दुनिया में उन की साख गिरी है. एक बहुत पुरानी कहावत है, ‘सांप को कितना भी दूध पिला लो वह मौका पाते ही डंसने का काम करेगा जरूर.’ प्राइवेट सेना, निजी आर्मी, कट्टरवादी समर्थक भी ऐसे ही मुसीबत खड़ी करने का काम कर सकते हैं.

रूस की प्राइवेट आर्मी कहे जाने वाले वैगनर ग्रुप ने विद्रोह कर दिया. रोस्तोव और वोरोनेझ शहरों पर कब्जा करने के बाद वैगनर ग्रुप का इरादा मास्को पर कब्जे का था. यह रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को चुनौती देने वाला कदम ही नहीं था बल्कि इस से पुतिन की छवि खराब भी हुई. वे कमजोर दिखने लगे हैं. पूरी दुनिया में यह सवाल पूछा जा रहा था कि एक प्राइवेट आर्मी के खिलाफ पुतिन इतना कमजोर कैसे पड़ रहे हैं.

वैगनर ग्रुप के चीफ और पुतिन के साथी रहे येवगेनी प्रिगोजिन ने कहा कि वे रूस के सैन्य नेतृत्व को उखाड़ कर ही दम लेंगे. इस के चलते मास्को में ‘नौन वर्किंग डे’ घोषित कर दिया गया. नागरिकों से कहा गया कि जहां तक संभव हो, वे यात्रा न करें. रूस में वैगनर ग्रुप के सैनिक ने नागरिकों को हिरासत में लिया तो इस को देख पड़ोसी देश भी घबरा गए. फ्रांस ने सभी तरह की उड़ानों को रूस की यात्रा न करने की सलाह दी. लिथुआनिया और पोलैंड ने अपनी सीमा पर सुरक्षा और कड़ी कर दी.

वैगनर ग्रुप के चीफ येवगेनी प्रिगोजिन ने कहा, ‘हम देशभक्त हैं. राष्ट्रपति गलती कर रहे हैं. यह कोई सैन्य तख्तापलट नहीं था. यह न्याय के लिए मार्च था. हमारे लड़ाके सरैंडर नहीं करेंगे क्योंकि हम नहीं चाहते कि देश भ्रष्टाचार, धोखे और नौकरशाही के चंगुल में फंसा रहे.’ प्रिगोजिन कुछ भी कहें पर पूरी दुनिया और खुद रूसी राष्ट्रपति पुतिन यह मानने को तैयार नहीं हैं कि बात इतनी सरल थी. वे इसे विदेशी ताकतों के बहकावे में आ कर किया गया विद्रोह मान रहे हैं.

रूस की इस हालत पर यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की ने कहा, ‘जो कोई बुराई का रास्ता चुनता है वह खुद को नष्ट कर लेता है. रूस अपने सैनिकों को यूक्रेन में जितने लंबे समय तक रखेगा उसे उतना ही दर्द होगा.’

यूक्रेन के खिलाफ प्राइवेट आर्मी का प्रयोग यह बताता है कि रूस की सेना उस खतरनाक तरह से यूक्रेन में युद्ध करने के लिए मानसिक रूप से सक्षम नहीं थी जिस तरह से प्राइवेट आर्मी युद्ध कर सकती थी.

यही कारण है कि यूक्रेन में लड़ाई के संचालन को ले कर प्राइवेट आर्मी और रूसी सेना के बीच मतभेद था. यूक्रेन भी रूस का हिस्सा रहा है. ऐसे में रूसी सेना की रणनीति कुछ और थी और वैगनर ग्रुप इसे किसी और ही तरह से लड़ना चाहता था. वैगनर ग्रुप के इस कदम को बगावत कहें या कुछ और, बहरहाल इस ने रूस की सेना के खिलाफ मोरचा खोल दिया.

यूक्रेन की लड़ाई किस तरह से लड़ी जाए, इस,को ले,कर वैगनर ग्रुप और सेना के बीच एक राय नहीं बन रही थी. इस बगावत के पीछे केवल यही कारण नहीं है. प्राइवेट आर्मी की बगावत पुतिन के लिए अच्छी बात नहीं है. वैगनर ग्रुप का मानना है कि अगर उस की योजना के हिसाब से लड़ाई लड़ी गई होती तो यूक्रेन युद्ध इतना लंबा न खिंचता. सेना नियम और अनुशासन के हिसाब से लड़ाई लड़ती है और वैगनर ग्रुप जैसों का काम मरना और मारना होता है.

वैगनर ग्रुप ने रूसी जेलों में बंद सजायाफ्ता कैदियों को माफी दिलवाने का वादा कर के यूक्रेन के भीतर जाने के लिए राजी किया था. वैगनर ग्रुप के चीफ येवगेनी प्रिगोजिन का आरोप है कि रूसी रक्षा मंत्री सजेंई षोएगू और सेना प्रमुख वेलेरी जिरासोमोव ने लड़ाई के दौरान वैगनर के जवानों को वक्त पर गोलाबारूद और अन्य जरूरी रसद नहीं पहुंचाई जिस से 10 हजार वैगनर सैनिकों की मौत हो गई. प्रिगोजिन ने वैगनर और सरकारी सेना के सैनिकों के बीच भेदभाव का भी आरोप लगाया.

क्या है ‘वैगनर ग्रुप’?

रूस में प्राइवेट आर्मी का विद्रोह सुन कर हर कोई यह जानना चाहता है कि यह ‘वैगनर ग्रुप’ क्या है? यह एक प्राइवेट मिलिट्री ग्रुप है. वैगनर की प्राइवेट सेना में करीब 50 हजार सैनिक है. इन में से 25 हजार सैनिक यूक्रेन से लड़ने के लिए भेज दिए गए थे. इस ग्रुप के वर्तमान प्रमुख येवगेनी प्रिगोजिन डकैती के आरोप में 12 साल जेल में रहे हैं. इस के बाद उन्होंने सेंट पीटर्सबर्ग में एक कौफी रैस्तरां खोला था. रूसी राष्ट्रपति पुतिन उस समय वहां के डिप्टी मेयर होते थे. वे वहां अकसर आतेजाते रहते थे. वहीं से दोनों की जानपहचान हुई. पुतिन के कहने पर ही प्रिगोजिन ने मीडिया बिजनैस में भी हाथ डाला. इस के बाद एक सुरक्षा कंपनी भी खोली, जिस ने देशविदेश में अपना विस्तार किया.

वैगनर ग्रुप के सैनिकों और एजेंटो का प्रयोग पुतिन ने प्राइवेट सेना की तरह से किया. यह ग्रुप रूसी सरकार के कंधे से कंधा मिला कर काम करने लगा. आरोप यह है कि रूसी सरकार के पूरी दुनिया में चलने वाले अभियानों में गुप्त रूप से लड़ाई लड़ने वालों में वैगनर ग्रुप सब से आगे रहता था. अक्टूबर 2015 से लेकर 2018 तक वैगनर ग्रुप ने सीरिया में रूसी सेना और बशर अल असद की सरकार के साथ मिल कर लड़ाई लड़ी.

दिमित्री उत्कींन ने 2014 में वैगनर ग्रुप की शुरुआत की थी. तब से वे इस के साथ जुड़े हैं. दिमित्री उत्कींन ने 1993 से ले कर 2013 तक रूसी सेना में नौकरी की. इस समय वैगनर ग्रुप की कमान येवगेनी प्रिगोजिन के हाथ में है. वैगनर ग्रुप पर लीबिया, माली सहित पूरे अफ्रीका में मानवाधिकारों के उल्लंघन का आरोप लगा है.

यूक्रेन युद्ध में भी इस की भूमिका अपराध करने वाली रही है. इस ने कीव नागरिकों को मारने का काम किया. जरमन खुफिया विभाग ने कहा कि इन सैनिकों ने मार्च 2022 में बुचा में नागरिकों का संहार किया. 2020 में इन भाड़े के सैनिकों पर लीबिया में बारूदी सुरंगों के विस्फोट का आरोप लगा है.

वैगनर ग्रुप ने 2022 में बड़े पैमाने पर लड़ाकों की भरती करने के लिए शुरुआत की. 80 फीसदी लड़के जेल से भरती किए गए. रूसी शहरों में पोस्टर लगा कर खुलेआम भरती की गई थी. अब इन पोस्टरों को वंहा से हटाया गया है. वैगनर ग्रुप के विद्रोह को ले कर यह सवाल बारबार उठ रहा है कि इस को मदद कहां से मिल रही है. कुछ लोगों की राय यह है कि इस को रूस के बाहर के देशों से मदद मिल रही है. दूसरी राय यह है कि रूसी आर्मी चीफ और डिफैंस मिनिस्टर से नाराज खेमा सहयोग कर रहा है.

वैगनर ग्रुप के प्रमुख येवगेनी प्रिगोजिन के अपने कोई राजनीतिक विचार नहीं हैं. वे अधिक पढ़ेलिखे भी नहीं हैं. लिहाजा, उन के सोचने का नजरिया नेता की तरह का नहीं, एक भगोड़े सैनिक की तरह का है जो केवल मरनेमारने पर यकीन रखता है. जिस रूसी राष्ट्रपति ने उन को सहयोग किया, उसी के खिलाफ उन्होंने बगावत कर दी.

20 साल के राज में पुतिन पर उठ रहे सवाल

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के लिए यह बड़ा संकट है. पुतिन ने निजी महत्त्वाकांक्षाओं को रूसी राष्ट्र के हितों को महत्त्व दिया. वैसे पुतिन ने वैगनर ग्रुप से उपजे सकंट को हल कर लिया है. इस मसले को हल करने का काम बेलारूस के राष्ट्रपति अलेक्जेंडर लुकाशेंको ने किया.

वैगनर ग्रुप के साथ बातचीत कर के विद्रोह को फिलहाल रुकवा दिया गया है. अलेक्जेंडर लुकाशेंको रूसी राष्ट्रपति पुतिन के पुराने दोस्त हैं. पुतिन के लिए परेशानी की बात यह है कि उन को अब कमजोर समझा जाएगा. 70 साल के पुतिन के लिए यह सब से कठिन दौर है. पुतिन के आलोचक यह मानते हैं कि यह उन के अंत की शुरुआत है.

हालफिलहाल भले ही पुतिन खामोश हो गए हों पर वे इस का बदला ले सकते हैं. पुतिन विद्रोह करने वालों को माफ नहीं करेंगे. वे और अधिक तानाशाह हो सकते हैं. पुतिन की निगाहें एक बार फिर से 2024 के चुनाव जीतने पर हैं. जिस तरह से पुतिन के सहयोग से बने वैगनर ग्रुप उन के ही खिलाफ विद्रोह कर बैठा, उस के बाद यह कहा जा सकता है कि यह ग्रुप अपनों को भी दगा दे सकता है. वैगनर ग्रुप ने पूरी दुनिया के कट्टरपंथियों को सबक सिखाया है कि ऐसे ग्रुप वाले उन के खिलाफ भी बगावत कर सकते हैं जो उन की मदद करते हैं.

और देश भी सर्तक रहें

वैगनर ग्रुप जैसे समर्थक दूसरे नेता और देशों में भी हैं. ऐसे में ही एक बड़ा नाम ‘तालिबानी’ है. अफगानिस्तान और पासपड़ोस के देशों में सब से बड़ी आशांति का कारण तालिबानी ही हैं. वे अपने मनमाने कानून को लागू करने के लिए आंतक पैदा करते हैं. भारत में भी ऐसे कट्टरवादी दल हैं. 2014 में जब नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बने तो कट्टरपंथियों ने ‘गौ हत्या’ रोकने के नाम पर जिस तरह से मौब लिचिंग शुरू की उस ने देश और प्रधानमंत्री की छवि को न केवल खराब किया बल्कि समाज में अलगाव की नींव खींच दी.

विश्व हिंदू परिषद और हिंदू युवा वाहिनी, रामसेना जैसे संगठन भी समयसमय पर सरकार के सामने असहज हालात पैदा करते रहते हैं. गाय को ले कर जब पूरे देश में खूब विवाद होने लगे तो प्रधानमंत्री को अपने भाषण में इस की आलोचना करनी पड़ी.

मणिपुर में हिंसा का दौर भी ऐसे की कट्टरपंथियों का चल रहा है. कट्टरपंथियों का काम सरकार चलाना नहीं होता. लिहाजा, वे हर जगह अपनी मनमानी करने का प्रयास करते हैं. उन के उद्देश्य और काम करने का तरीका अलगअलग हो सकता है. अपने कामों से वे अपने ही लोगों के लिए परेशानी का सबब बनते हैं.

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