झारखंड के जिला सिंहभूम में एक तहसील है घाटशिला. इस तहसील का उपनगर मउभंडार ङ्क्षहदुस्तान कौपर लिमिटेड की वजह से प्रसिद्ध है. मउभंडार में जहां कौपर फैक्ट्री है, वहां पास में ही कौपर कालोनी है, जो वर्कर्स के लिए बनाई गई है. इस कालोनी से थोड़ा हट कर मउभंडार वक्र्स हौस्पिटल है, जो स्थानीय लोगों के लिए बनाया गया है.

सन 1979 में इस हौस्पिटल में एक डाक्टर तैनात था प्रभाकरण. उस की पत्नी डा. शांति भी उसी अस्पताल में तैनात थीं. इस डाक्टर दंपति को अस्पताल के प्रांगण में ही रहने के लिए बंगला मिला हुआ था. डाक्टर प्रभाकरण शक्लसूरत और व्यवहार से जितना असभ्य, बदमिजाज और क्रूर लगता था, डा. शांति अपने नाम के अनुरूप उतनी ही शांत स्वभाव की थीं. डा. प्रभाकरण और डा. शांति के 2 बच्चे थे, एक बेटा एक बेटी. दोनों बच्चे मोसाबनी कौनवेंट स्कूल में पढ़ रहे थे.

डा. प्रभाकरण असभ्य और बदमिजाज ही नहीं बल्कि दिलफेंक भी था. अस्पताल की किसी डाक्टर अथवा नर्स के साथ उस का चक्कर चलता रहता था. कई बार तो उस की प्रेम कहानियों की चर्चा अस्पताल से बाहर कालोनी तक पहुंच जाती थीं. यही वजह थी कि डा. शांति को पति की इन गलत हरकतों की वजह से कालोनी के लोगों की चुभती नजरों का सामना करना पड़ता था.

कई बार तो क्लब वगैरह में मुंहफट अफसर कह भी देते थे, ‘‘भाभीजी, डाक्टर साहब को नकेल डाल कर रखिए. इतनी काबिल और खूबसूरत पत्नी के होते हुए भी पता नहीं किसकिस नाले का पानी पीते रहते हैं.’’ डा. शांति अपमान का घूंट पीने के अलावा कुछ नहीं कर पाती थीं. अस्पताल की सभी लेडी डाक्टर और नर्सें एक जैसी नहीं थीं. कई बार डा. प्रभाकरण को किसी लेडी डाक्टर या नर्स के हाथों अपमानित भी होना पड़ता था. चीफ मैडिकल औफिसर डा. पुरुकायस्थ ने प्रभाकरण को कई बार समझाया भी था लेकिन इस का उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा.

कड़वे मीठे अनुभवों के बीच जैसेतैसे जिंदगी गुजर रही थी, तभी डा. शांति के जीवन में तूफान बन कर आई हेमा. हेमा डा. प्रभाकरण की दूर के रिश्ते की बहन की बेटी थी और उस की नियुक्ति बतौर नर्स टाटा मेन हौस्पिटल टाटानगर में हुई थी. पूर्व में हेमा डा. प्रभाकरण से शादी के सपने देखा करती थी. दोनों के रिश्ते की बात भी चली थी, लेकिन प्रभाकरण ने हेमा का रिश्ता ठुकरा कर डा. शांति से प्रेम विवाह कर लिया था. उस समय हेमा बहुत रोई थी, उस की मां और बहन ने भी खूब हंगामा किया था.

मउभंडार हौस्पिटल से प्रतिदिन 2-3 मरीजों को एंबुलेंस से 30-35 किलोमीटर दूर टाटा हौस्पिटल टाटानगर भेजा जाता था. इस की वजह यह थी कि मउभंडार अस्पताल में पर्याप्त सुविधाएं नहीं थीं, गंभीर मरीजों को टाटा हौस्पिटल भेजना पड़ता था. हेमा टाटानगर स्थित टाटा हौस्पिटल के हौस्टल में रहती थी. शनिवार को वह अस्पताल की एंबुलेंस से मउभंडार आ जाती थी और सोमवार सुबह एंबुलेंस से ही टाटानगर लौट जाती थी. मउभंडार में वह डा. प्रभाकरण के बंगले पर ही ठहरती थी.

डा. प्रभाकरण रंगीनमिजाज आदमी था, डा. शांति की गैरमौजूदगी का लाभ उठा कर उस ने हेमा से संबंध बना लिए थे. जब डा. शांति घर में नहीं होती थी तो प्रभाकरण और हेमा इस का जम कर लाभ उठाते थे. डा. शांति को अपने घर में हेमा की मौजूदगी अच्छी नहीं लगती थी. इस की वजह यह कि उन्हें पति की फितरत अच्छी तरह मालूम थी. लेकिन वह चाह कर भी इसलिए कुछ नहीं कर पाती थीं क्योंकि हेमा उन के ससुराल पक्ष से थी. जिस दिन हेमा मउभंडार आई होती थी, उस दिन डा. प्रभाकरण नाइट ड्यूटी पर रहता था. काम सिखाने का बहाना कर के वह हेमा को भी साथ रखता था.

जब हेमा और प्रभाकरण की कहानियां सार्वजनिक होने लगीं तो डा. शांति हेमा के मउभंडार आने पर आपत्ति करने लगीं. लेकिन प्रभाकरण पर हेमा के मादक और मांसल शरीर का नशा छाया हुआ था. हेमा को ले कर डा. प्रभाकरण और डा. शांति के बीच अकसर झगड़े और हाथापाई होती थी, जिस की आवाजें बंगले के बाहर तक सुनाई देती थीं. सर्वेंट क्वार्टर में रहने वाले नौकरचाकर भी बंगले की कहानी खूब चटकारे ले कर सुनाते थे. यह अलग बात है कि उन सब की सहानुभूति डा. शांति के साथ रहती थी. जैसेतैसे दिन गुजर रहे थे कि एक दिन खबर आई कि डा. शांति का ट्रांसफर खेतड़ी कौपर प्रोजेक्ट में हो गया है. चूंकि कालोनी छोटी थी इसलिए इस बात को फैलने में देर नहीं लगी. महीने भर के अंदर ही डा. शांति अपने दोनों बच्चों के साथ खेतड़ी चली गईं और वहां पर वक्र्स हौस्पिटल जौइन कर लिया. इस के पीछे डा. पुरुकायस्थ का हाथ था. दरअसल ऐसा कर के उन्होंने अपनी मानवता का भरपूर परिचय दिया था.

लेकिन डा. शांति के जाने के बाद प्रभाकरण ने अपनी पत्नी के डा. पुरुकायस्थ के साथ झूठेअवैध संबंध की कहानी सुनानी शुरू कर दी. जबकि पत्नी और बच्चों के जाने के बाद वह खुद और भी ज्यादा धूर्त हो गया था. अब उसे कोई रोकनेटोकने वाला नहीं था. हेमा का टाटा अस्पताल से मउभंडार आनाजाना पूर्ववत चलता रहा. हेमा की पोङ्क्षस्टग मउभंडार वक्र्स हौस्पिटल में हो जाए इस के लिए प्रभाकरण कलकत्ता औफिस में हर तरह से जुगाड़ बैठा रहा था. इसलिए अब हेमा ज्यादा दिन मउभंडार में ही रहा करती थी. शांति के चले जाने के बाद प्रभाकरण और हेमा ने निर्लज्जता की सारी सीमाओं को पार कर दिया था. टाटा अस्पताल का हौस्टल छोड़ कर वह मउभंडार में ही रहने लगी थी. ड्यूटी के लिए अब वह मउभंडार से ही हौस्पिटल की एंबुलेंस से टाटानगर आनाजाना करने लगी थी. डा. शांति के जाने, हेमा और प्रभाकरण के साथसाथ रहने की बातें धीरेधीरे पुरानी पडऩे लगी थीं.

प्रभाकरण और हेमा जल्दी ही केरल जा कर शादी करेंगे. इस के लिए प्रभाकरण ने डा. शांति को तलाक का नोटिस भेजा है, जैसी बातें लोगों को अकसर सुनने को मिलती रहती थीं. लेकिन कालोनी वालों को यह सब सुननेजानने में अब कोई दिलचस्पी नहीं थी. इसी बीच अफवाह फैली कि अब डा. प्रभाकरण की नजर डा. शांति की जगह पर आई डा. मधु करकेट्टा पर है. उसे रिझाने के लिए वह उस के आगेपीछे घूम रहा है. प्रभाकरण संथाली सौंदर्य डा. मधु करकेट्टा का उपासक बन गया है, यह जानकारी मिलते ही हेमा किसी घायल नागिन की तरह फुफकार उठी. आए दिन दोनों के चीखनेचिल्लाने की आवाजें हौस्पिटल परिसर में गूंजने लगीं. ऐसी बातों को फैलाने में सर्वेंट क्वार्टर में रहने वाले ही हवा देते थे. मउभंडार हौस्पिटल में हेमा की नियुक्ति होना निश्चित हो गया था कि अचानक हेमा केरल चली गई. उसे केरल के किसी हौस्पिटल में अच्छी नौकरी मिल गई थी. यह बात प्रभाकरण ने लोगों को खुद बताई थी. हेमा के जाने के ठीक एक महीने बाद उस के पिता और भाई उसे समझाबुझा कर केरल ले जाने के लिए मउभंडार आए. लेकिन हेमा वहां नहीं थी. जब प्रभाकरण ने उन्हें बताया कि हेमा एक महीने पहले ही वहां से चली गई है तो उन्हें आश्चर्य हुआ. हेमा केरल पहुंची ही नहीं थी.

वहां उसे कोई नौकरी मिलने वगैरह की कोई बात भी उन के सामने नहीं आई थी. उस ने केरल आने की खबर भी नहीं दी थी. सोचने वाली बात यह थी कि हेमा केरल नहीं गई तो कहां गई? अगर प्रभाकरण ने उसे केरल जाने वाली ट्रेन में बैठाया तो फिर वह रास्ते में गायब कैसे हो गई, जैसे कितने ही सवाल मुंह बाए खड़े थे. प्रभाकरण की झूठीसच्ची बातों ने उसे शक के घेरे में डाल दिया था. फिर भी उन दोनों ने 2 दिनों तक हौस्पिटल के डाक्टर, नर्स से ले कर सारे कर्मचारियों से हेमा के बारे में पूछताछ की. लेकिन सब का एक ही जवाब था कि पिछले एक महीने से उसे किसी ने नहीं देखा. हर ओर से निराश हो कर वे दोनों टाटा मेन हौस्पिटल जमशेदपुर भी गए, पर हेमा का कुछ पता नहीं लग सका. वे लोग दुखी और निराश हो कर लौट तो गए, लेकिन 2 हफ्ते बाद ही केरल पुलिस हेमा के लापता होने के संदर्भ में पूछताछ करने के लिए मउभंडार आ पहुंची.

लेकिन डा. प्रभाकरण डा. करकेट्टा के साथ दीर्घा बीच गया हुआ था. जब 2 दिन तक प्रभाकरण नहीं लौटा तो पुलिस टीम दीर्घा पहुंची और प्रभाकरण को ढूंढ़ निकाला. पूछताछ के दौरान वह एक ही बात दोहराता रहा कि हेमा को उस ने केरल जाने वाली गाड़ी में चढ़ा दिया था. हेमा कहां गई उसे कुछ नहीं पता. निराश हो कर पुलिस वापस तो लौट गई लेकिन अभी प्रभाकरण की मुश्किलें कम नहीं हुई थीं. उस साल इतनी बारिश हुई थी कि स्वर्णरेखा नदी का उफान बहुत ही उन्मादी और भयानक हो गया था.

इतना भयानक कि नदी का पानी कौपर फैक्टरी के गेट तक आ पहुंचा था. ऐसा लग रहा था कि पूरी कालोनी ही जल निमग्न हो जाएगी. बहुत सारे बहे हुए मृत जानवरों की लाशें बह कर आ गई थीं और कालोनी में दुर्गंध पैदा कर रही थीं. प्रभाकरण के घर से भी बहुत बदबू आ रही थी. इसी बीच केरला पुलिस सादे कपड़ों में फिर से मउभंडार आ पहुंची. उस ने हौस्पिटल में ही प्रभाकरण को जा घेरा. सब की मौजूदगी में जब प्रभाकरण के बंगले को तलाशी के लिए खोला गया तो मारे दुर्गंध के लोगों को नाक पर रूमाल रखने पड़े. जिस कमरे से भयानक दुर्गंध आ रही थी, उस में टीन का एक बक्सा रखा हुआ था. पानी उस बक्से में से बह कर बाहर आंगन में आ कर नाली में मिल रहा था. पुलिस ने जैसे ही बक्से को खोला, वहां खड़े लोगों की रूह कांप उठी. बक्से में टुकड़ों में कटी हेमा की लाश नमक और एसिड में रखी हुई थी. थोड़ा हिलाते ही उस के चेहरे से मांस अलग हो गया. उस भयानक दृश्य को देखने के लिए हजारों की भीड़ एकत्र हो गई. सारे सबूतों के साथ पुलिस प्रभाकरण को ले कर जमशेदपुर के टाटा पुलिस स्टेशन ले गई. जहां उस ने अपना गुनाह कबूल लिया. उस ने जो बताया वह क्रूरता की पराकाष्ठा तो थी ही साथ ही मउभंडार वक्र्स हौस्पिटल के मैनेजमैंट की लापरवाही का भी शर्मनाक नमूना था.

हेमा के दर्दनाक अंत की कहानी सुन कर सभी हतप्रभ रह गए. प्रभाकरण से हेमा गर्भवती हो गई थी. वह प्रभाकरण पर जल्द से जल्द शादी कर लेने के लिए प्रभाकरण पर दबाव डाल रही थी. जबकि उस की बातों पर गौर करने के बजाय प्रभाकरण डा. करकेट्टा के साथ रंगरेलियां मना रहा था. एक दिन हेमा टाटा हौस्पिटल से जल्दी घर लौट आई. घर में प्रभाकरण के साथ डा. मधु करकेट्टा को देख कर वह क्रोध में चिल्लाने लगी. उस ने डा. करकेट्टा को धक्का देते हुए गेट से बाहर कर दिया और प्रभाकरण को खुले शब्दों में चेतावनी दी, ‘‘मुझे शांति मत समझना जो तुम्हारी रंगरेलियों की वजह से बुजदिल की तरह मुंह छिपा कर कहीं चली जाऊंगी. केरल से मां और नानी को बुला कर पूरे मउभंडार के लोगों के सामने तुम्हारी उस अय्याशी के परिणाम के बारे में बताऊंगी जो मेरे पेट में पल रहा है.

वैसे तुम्हारी रंगीनमिजाजी की बात सभी जानते हैं. उस चुड़ैल डाक्टरनी का तो मैं गला दबा कर खून पी जाऊंगी. तुम ने जल्द से जल्द शादी नहीं की तो मैं पुलिस के पास जा कर तुम्हारी करतूत के बारे में बताऊंगी.’’ उस वक्त उस की चीखें बाहर तक सुनाई पड़ रही थीं. हेमा की धमकियों से प्रभाकरण को बहुत गुस्सा आया. फिर भी उस ने सौरी कहते हुए हेमा से क्षमा मांग ली और जल्दी ही शादी करने की बात कह कर उसे आश्वस्त कर दिया. इस घटना के 2 हफ्ते बाद ही एक रात उस ने हेमा को कोल्डङ्क्षड्रक में नींद की दवा डाल कर पिला दी और उसी रात उस ने गला दबा कर उस की हत्या कर दी. प्रभाकरण के अमानवीय कृत्य का अंत यहीं तक नहीं हुआ. उस ने आपरेशन थिएटर से तेज धार वाले औजार ला कर हेमा की लाश के टुकड़े किए और एक बड़े बक्से में रख कर नमक और एसिड डाल दिया. इस काम में डा. करकेट्टा ने उस का साथ दिया. प्रभाकरण अगर चाहता तो हेमा की लाश के टुकड़ों को एकएक कर के बड़ी आसानी से फैक्टरी गेट तक उफनती हुई स्वर्णरेखा नदी के पानी में फेंक सकता था, जो उस के बंगले से सौ कदम दूरी पर ही था. लेकिन घर में इतने दुस्साहसी काम को अंजाम देने वाला प्रभाकरण ऐसा करने की हिम्मत नहीं जुटा सका.

पहाड़ी नदी की उफनती धारा ने हाथियों तक को बहा दिया था. कहते हैं कि गुनाह सिर चढ़ कर बोलता है, शायद इसी डर से प्रभाकरण ऐसा नहीं कर सका या फिर उचित समय का इंतजार करता रहा जो कभी नहीं आया. अपने बंगले में वह यदाकदा ही जाता था. ज्यादा समय वह हौस्पिटल में ही गुजारता था. वहीं की कैंटीन में वह खातापीता था. प्रभाकरण के बंगले की नाली से बदबूदार पानी निकलने पर भी कोई सोच तक नहीं सका कि घर के अंदर लाश के टुकड़े सड़ रहे हैं. क्योंकि ऐसी किसी को उम्मीद नहीं थी. पुलिस ने हेमा के पिता और भाई को टाटानगर बुलवाया और पूरी घटना से अवगत कराते हुए उन्हें हेमा की लाश के टुकड़े सौंप दिए. रोतेबिलखते हुए उन्होंने अपने केरल समाज के अनुसार हेमा की अंत्येष्टि टाटानगर में ही कर दी. हेमा को रिश्तों में बेवफाई की कीमत अपनी जान दे कर चुकानी पड़ी थी.

सच ही कहते हैं स्त्रियां ही स्त्रियों की दुश्मन होती है. शांति एवं उस के बच्चों का अधिकार छीनने की कीमत हेमा को अपनी जान दे कर चुकानी पड़ी थी. जहां मर्द की अय्याशी ढकीछिपी रह जाती है वहीं स्त्री की कोख उस के गुनाह से सारे परदे उठा देती है. यही सब से बड़ा अंतर है स्त्रीपुरुष के दुष्कर्म करने में. पुलिस कस्टडी में प्रभाकरण को केरल ले जाया गया, वहां उसे उम्रकैद की सजा सुनाई गई. डा. करकेट्टा को डा. पुरुकायस्थ और हौस्पिटल मैनेजमैंट ने किसी तरह पैरवी कर के बचा लिया था.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...