Hindi Satire: फीता कटा, फ्लैशगनें चमकीं, तालियां बजीं. मेजबान ने स्वामीजी के चरण छुए और आशीर्वाद प्राप्त किया. बाद में उन्हें ले कर आभूषणों का अपना आलीशान शोरूम दिखाने लगा.आजकल यह दृश्य आम हो गया है.

अब दुकानों, शोरूमों का उद्घाटन करने के लिए झक सफेद कपड़ों वाले नेता जी या मंत्री जी की जरूरत नहीं रह गई है बल्कि यह काम गेरुए वस्त्रों में लिपटा साधु करता है. दुनिया भर को मोह-माया से दूर रहने के कड़वे उपदेश पिलाने वाले बाबा इन दिनों दुकानों, पार्लरों के फीते काट रहे हैं. हंस-हंस कर फोटो खिंचवा रहे हैं. धनिकों को साधु रखने का शौक होता है.

जैसे चौकीदार रखा, रसोइया रखा, माली रखा उसी तर्ज पर एक स्वामी भी रख लिया. बस, उसे डांटते नहीं हैं, उस पर हुक्म नहीं चलाते. उधर दुनियादारी को त्याग चुका साधु भी इन दुनियादारों के यहां पड़ा रहता है. उन के खर्चे से सैर-सपाटे करता रहता है. आखिर अनमोल प्रवचनों का पारिश्रमिक तो उसे वसूलना ही है. साधु कभी भी गरीबों के यहां निवास नहीं करते. इस की वजह वे बताते हैं कि गरीबों पर आर्थिक बोझ न पड़े इसलिए. पर वे तो साधारण आर्थिक स्थिति वालों के यहां भी नहीं रुकते.

दरअसल, साधारण आदमी उन की फाइव स्टार सेवा नहीं कर सकता. साधुओं का यह माया प्रेम नहीं तो और क्या है?‘‘भक्त का अनुरोध मानना ही पड़ता है,’’ साधुओं का जवाब होता है, ‘‘वह दिन-रात हमारी सेवा करता है, हमारी सुखसुविधा का ख्याल रखता है. क्या हम उस के लिए एक फीता नहीं काट सकते? हमारा काम ही आशीर्वाद देना है.’’‘‘पर आप तो जनता से मोह-माया से मुक्त होने का आह्वान करते हैं.’’‘‘करते हैं ना. तब भी करते हैं जब किसी शोरूम का उद्घाटन करने जाते हैं.’’‘

‘जो भक्त माया इकट्ठी करने में लगा हो उसे आप अपरिग्रह का उपदेश क्यों नहीं देते?’’‘‘देते हैं. जब उस के पास उस की आवश्यकताओं से अधिक धन हो जाए तभी वह अपरिग्रह की ओर मुड़ेगा. हर एक की तृप्ति का स्तर अलग-अलग होता है. जब उस की इच्छाएं तृप्त हो जाएंगी तो वह अपनी सारी दौलत रास्ते में लुटा देगा.’’‘‘और आप की तरह दीक्षा ले लेगा. पर संन्यास लेने से पहले इस तरह का वैभव प्रदर्शन करने के बजाय क्या वह इस धन से कोई स्कूल या अस्पताल नहीं बनवा सकता?’’

साधु के पास इस का जवाब कभी नहीं होता है. जो लोग भूखे को रोटी देने के बजाय कुत्ते को देते हैं वे संन्यास लेने से पहले लोगों को अपने लुटाए हुए हीरे-जवाहरातों पर कुत्तों की तरह टूटते देखकर फूले नहीं समाते. यह मानवता का अपमान नहीं तो क्या है?जब चातुर्मास का मौसम आता है तो मोह-माया से मुक्त ये साधु बैंड-बाजे सहित मोह-माया की दुनिया में आते हैं और तड़क-भड़क भरे हॉल में अपने भक्तों से सांसारिक बंधनों से मुक्त होने का आह्वान करते हैं.

क्या इन बैरागियों को इतना भी नहीं मालूम कि जिन भक्तों को उनके प्रवचनों से लाभ उठाना होगा, वे खुद चल कर उन के आश्रम में आएंगे? हां, इन्हें इतना तो मालूम है कि न तो इन के उपदेशों में ताकत है और न ही इन के भक्त इतने बेवकूफ हैं कि अपनी मोटी कमाई छोड़ कर इन के नीरस प्रवचन सुनें, इसलिए कुआं खुद ही सांसारिक सुखों से तर गले वालों के पास चला आता है. भक्त लोग भी इन के भाषण सिनेमा या नाटक देखने की तर्ज पर सुनने चले आते हैं.  ऐसे ही मोह-माया के संसार में घुसने को छटपटा रहे एक साधु से मैं ने बातचीत की. मैं ने उसे सिर्फ नमस्कार किया, चरण नहीं छुए.

मैं ने देखा कि उस के चेहरे पर नाराजगी के भाव थे. उस के चेले-चपाटे भी खुश नहीं दिखे बातचीत के दौरान मैं ने उस से पूछ ही लिया, ‘‘आप मेरे अभिवादन के तरीके से खुश नजर नहीं आए?’’‘‘हां, बड़े-बड़े उद्योगपति, राजनेता मेरे पैर छूते हैं और तुम ने ऐसे नमस्कार किया जैसे किसी दोस्त को हैलो-हाय कर रहे हो. यह तो भारतीय परंपरा नहीं है किसी आदरणीय व्यक्ति का अभिवादन करने की.’’‘‘आप तो संन्यासी हैं. आप ने सांसारिक विकृतियों पर विजय पाई है.

आप को क्रोध क्यों आया?’’ मैं ने तड़ाक से सवाल किया जिसे सुन कर उन के चेलों ने मुझे बदतमीज, पापी कहा.‘‘आप जब अपने शिष्यों को क्रोध पर विजय प्राप्त करना नहीं सिखा सके तो दुनिया को क्या सिखा पाएंगे?’’‘‘बदतमीज, इतने बड़े स्वामी जी से बोलने का यह कोई तरीका है? जानता नहीं, बड़े-बड़े लोग इन के पैर छूते हैं?’’ एक शिष्य भड़का.‘‘यानी इन्हें घमंड है कि बड़े-बड़े लोग इन के पैर छूते हैं. इसे ही शायद मद कहते हैं.’’

‘‘पापी, जानता नहीं कि ये सांसारिक मोहमाया से परे हैं? हजारों लोग इन के चरणों में चांदी, सोना, हीरे चढ़ाते हैं, देखा नहीं? चलो हटो, दूसरों को आने दो,’’ और भक्तों ने मुझे चढ़ावे में आया धन बताया.‘‘नहीं, आप के ये स्वामीजी मद, लोभ और क्रोध से मुक्त नहीं हुए हैं. बार-बार ये समाज में लौटते हैं. इस का मतलब यह है कि ये मोह से मुक्त नहीं हुए हैं. क्या जरूरत है इन्हें समाज में आने की, जिसे इन्होंने त्याग दिया है?’’

‘‘आप यहां से चले जाइए वरना किसी ने कुछ कर दिया तो हम जिम्मेदार नहीं होंगे,’’ मुझे चेतावनी दी गई.मैं कहना चाहता था कि जब आप क्रोध, लोभ, मद और मोह से मुक्त नहीं हैं तो काम से भी मुक्त नहीं होंगे. फिर यह साधु का मेकअप क्यों? पर मुझे धक्के मार कर निकाल दिया गया. मेरा विश्वास है कि सब से ज्यादा सांसारिक सुखों में लीन ये साधु स्वामी ही हैं. बिना कुछ किए, सिर्फ गैर व्यावहारिक भाषण झड़ कर ये ऐशो-आराम से रहते हैं. इन के आश्रम सभी सुख सुविधाओं से युक्त रहते हैं.

भोग और संभोग की पूरी व्यवस्था रहती है. इसीलिए तो जिन-जिन आश्रमों पर पुलिस के छापे पड़े हैं, आपत्तिजनक सामग्री बरामद हुई है. एक साधु के आश्रम में शराब, ब्लू फिल्में और लड़कियां मिलने का क्या मतलब है? ये पाखंडी लोग दुनिया की कठिनाइयों से नहीं लड़ सकते और समाज से पलायन कर जाते हैं. पर एकांत में सांसारिक सुख और भी याद आते हैं इसलिए किसी न किसी बहाने ये समाज में लौटते हैं. कभी चातुर्मास के बहाने या किसी दुकान का उद्घाटन करने या किसी भक्त के विवाह में आशीर्वाद देने के बहाने. इन के आश्रम अपराधियों के क्लब होते हैं.

राजनेता, तस्कर, मिलावट- बाज, काला बाजारिए, सट्टेबाज इन के यहां आपस में मिलते हैं और अपने भावी कार्यक्रम तय करते हैं. क्या जरूरत है किसी मंत्री को इन के आश्रम में जाने की और इन का आशीर्वाद पाने की? आम आदमी को तो ये साधु कभी आश्रम में बुला कर आशीर्वाद नहीं देते. इन के आश्रम सिर्फ पूंजीपतियों, राजनेताओं के लिए ही खुले होते हैं.

आम आदमी को ये सिर्फ दर्शन देते हैं. इन के आश्रम में सिर्फ पूंजीपतियों की एयरकंडीशंड कारें तैनात रहती हैं. ये पाखंडी स्वामी यों तो समाज सुधार का ढिंढोरा पीटते रहते हैं पर आज तक कोई साधु किसी समस्याग्रस्त झोपड़पट्टी में नहीं गया है, बाढ़ पीड़ित क्षेत्र में नहीं गया है, महामारी प्रभावित क्षेत्र में कदम तक नहीं रखा है. और तो और इन्होंने कभी किसी मलिन बस्ती में अपना प्रवचन भी नहीं दिया है क्योंकि वहां ग्लैमर नहीं है, प्रसिद्धि नहीं है, माल नहीं है, माया नहीं है जिस के लिए ये मरे जाते हैं. Hindi Satire.

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