मेरी सास पर नजर पड़ते ही हार्ट स्पैशलिस्ट डाक्टर पवन ने नाराजगी दर्शाने वाले बल अपने माथे में डाल लिए और पूछा, ‘‘तुम अपना वजन क्यों कम नहीं कर रही हो, आरती?’’

‘‘मैं कोशिश तो बहुत करती हूं, डाक्टर साहब पर वजन कम हो ही नहीं रहा है,’’ उन की नाराजगी को भांप कर सासूमां घबरा उठी थीं.

‘‘व्हाट ब्लडी कोशिश,’’ वे एकदम से भङक उठे, ‘‘जब हार्ट अटैक आ जाएगा या हाथपैर लकवे का शिकार हो जाएंगे, क्या तुम तब होश में आओगी…’’

‘‘आप को अगली बार शिकायत करने का मौका नहीं मिलेगा. मैं आज से ही शाम को भी घूमना शुरू कर दूंगी,’’ उन्हें खुश कररने को सासुमां उन की चमचागिरी करने पर उतर आईं.

‘‘इन को तलाभुना भी कम खाने को कहिए, डाक्टर साहब,’’ मेरी इस बात को सुन कर डाक्टर साहब ने मेरी सास को और मेरे सासससुर ने मुझे गुस्से से घूरा.

‘‘आलूगोभी का परांठा कल रात को खा लिया था. अब मन को पूरी तरह से मार लेना भी तो आसान नहीं है, डाक्टर साहब,’’ सासूमां ने बिगड़ी बात को संभालने की कोशिश करी.

‘‘परांठे के अलावा रसमलाई खाने की बात भी तो बताइए,’’ उन्हें डाक्टर साहब से डांट खाते देख कर मुझे मन ही मन मजा आ रहा था.

‘‘अरे, रसमलाई खाओगी तो बहुत जल्दी मर जाओगी, आरती. पता नहीं तुम मेरे पास इलाज कराने आती ही क्यों हो?’’ वे सासुमां का चैकअप करने के साथ लगातार उन्हें खूब डांट पिलाते रहे थे.

हमारे बाहर आने से पहले ही हमारी बगल से गुजर कर गांव की रहने वाली एक बुजुर्ग महिला अंदर घुस आई थी.

‘‘नमस्ते, मैडम. आज तो आप काफी ठीक दिख रही हैं,’’ डाक्टर पवन का उन्हें मिश्री घुली आवाज में संबोधित करना मुझे बहुत हैरान कर गया था.

‘‘क्या खाक ठीक हुई हूं. 1 पैसे का फायदा नहीं करा है तेरी दवा ने. देख डाक्टर, अगर तू मुझे ठीक नहीं कर सकता है तो साफसाफ कह…’’ इस के बाद दरवाजा बंद हो जाने के कारण मैं उस महिला की आगे की बात नहीं सुन पाई थी.

मैं ने कंपाउंडर से पूछा तो मालूम पड़ा कि वे लोकल एमएलए की माताजी हैं. बड़ा अजीब सा लगा था कि इतने बड़े स्पैशलिस्ट डाक्टर के साथ यह अनपढ़, गंवार बुढ़िया इतने गलत ढंग से पेश आने की हिम्मत सिर्फ इसलिए कर रही थी क्योंकि वह स्थानीय एमएलए की मां थी.

नर्सिंगहोम से बाहर निकलते ही मेरे सासससुर मुझ पर बरस पड़े,”हमारे साथ कहीं जाती हो तो अपनी जबान को कंट्रोल में रख कर चुप खड़ी रहा करो,’’ मेरे ससुरजी की आंखें गुस्से से लाल हो उठी थीं.

‘‘मैं ने डाक्टर साहब से जो कहा, वह मम्मी के भले को ध्यान में रख कर ही कहा था,’’ मैं ने लापरवाह लहजे में जवाब दिया.

‘‘हमारी चिंता मत कर क्योंकि हमारे सुखदुख में कभी काम आओगी, तुम से ऐसी उम्मीद हमें बिलकुल ही नहीं है,’’ अपनी सासुजी को बहुत चिढ़ा हुआ देख कर मैं मन ही मन मुसकरा उठी थी.

वैसे मैं सारे रास्ते उन दोनों से कुछ नहीं बोली क्योंकि अब बात बढ़ाना मेरे हित में नहीं होता. उन्हें घर छोड़ कर जब मैं औफिस पहुंची तो 12 बज चुके थे.

मैं अपनी सीट पर पहुंची तो गुस्से से भरी बैठी मेरी सहयोगी निशा मुझ से उलझ गई, ‘‘तू कोई न कोई बहाना बना कर हर दूसरे दिन लेट क्यों आती है? मैं अपना काम भी करूं और तेरा भी, यह कहां का इंसाफ हुआ.’’

‘‘झगड़ा शुरू करने से पहले जरा सांस तो ले लेने दे,’’ मैं ने उसे नाराजगी भरे अंदाज में उलटा घूरा तो वह एकदम से ढीली पड़ गई.

‘‘तू अपना काम पूरा नहीं करेगी तो मैं शोर तो मचाऊंगी ही.’’

‘‘तुझे जो शिकायत है, उसे बौस से कह. यों फालतू बोलबोल कर अगर तू मेरा दिमाग खराब करेगी, तो फिर मुझे बौस से तेरी शिकायत करनी पड़ेगी,’’ मैं ने सख्त स्वर में उसे चेतावनी दी तो वह मुंह फुला कर मजबूरन चुप हो गई.

औफिस में सब जानते हैं कि बौस मेरे जबरदस्त प्रशंसक हैं. मेरी शिकायत पर मोहित नाम के लङके को कुछ दिन पहले ही बौस ने नोटिस पकड़ा दिया था. इस कारण सारे सहयोगी मन ही मन मुझ से डरते हैं. मैं अगर सचमुच नाराज हो जाती हूं तो उन्हें अपनी जबानों को ताला लगा लेने में ही अपना हित नजर आता है.

आज कार मैं ले कर आई थी. सचिन और मुझे मेरे भतीजे राहुल के जन्मदिन की पार्टी में शामिल होने मेरे घर जाना था. मैं शाम को सचिन के औफिस के बाहर कार से पहुंच गई। सचिन अपने बौस कपूर साहब के साथ बाहर आए थे.

‘‘सौरी, मानसी. अपने भतीजे के जन्मदिन की पार्टी में तुम थोड़ा लेट पहुंच पाओगी,’’ कपूर साहब ने बिना सौरी महसूस करते हुए यह वाक्य बोला और पिछली सीट पर जम गए थे. ‘‘सर को उन की ससुराल छोड़ते हुए जाना है,’’ सचिन ने माफी मांगने वाले अंदाज में मुझे सफाई दी और मेरी बगल में आ बैठे.

‘‘रास्ते में मिठाई भी लेनी है. खाली हाथ ससुराल जाना ठीक नहीं लगता है, यह तुम भी याद रखो,’’ अपनी बात कह कर वह यों ठहाका मार कर हंसे मानो उन्होंने कोई बढ़िया मजाक किया हो.

कपूर साहब सारे रास्ते पीछे से सचिन को लैक्चर पिलाते रहे थे. वे उस से बहुत रूखे से अंदाज में बात करते पर मुझ से अगर कुछ कहना होता तो उन की आवाज शहद सी मीठी हो जाती थी.

रास्ते में एक दुकान से सचिन 1 किलोग्राम काजू की बरफी पैक करा कर ले आए. कुछ देर बाद हम ने कपूर साहब को उन के ससुर की कोठी के सामने उतार दिया था. ‘‘कल औफिस जल्दी आना,’’ सचिन को ऐसी हिदायत दे कर वे मुझ से फ्लर्ट करने वाले अंदाज में बोले, ‘‘मानसी, तुम्हें और ज्यादा मुसकराना चाहिए क्योंकि तुम्हारी स्माइल बहुत लवली है.’’

कार को आगे बढ़ाते ही सचिन गुस्से से फट पड़े, ‘‘साला लंपट. लाइन मारने का कोई मौका नहीं चूकता है. साले ने न मिठाई के पैसे दिए, न यहां इतनी दूर तक छोङने के लिए ‘थैंक यू’ बोला. क्या काजू की बरफी या पैट्रौल फ्री में आता है…’’

‘‘अब यों भिनभिन करते हुए पार्टी में जाओगे,’’ सिर में दर्द शुरू हो जाने के कारण मेरी आवाज चिड़चिड़ी हो उठी थी.

‘‘सौरी, यार. साले ने दिमाग खराब कर दिया. मैं कल से ही नई जगहों पर अप्लाई करना शुरू कर दूंगा.’’

‘‘तुम्हें इस से बढिया कंपनी आसानी से नहीं मिलेगी.’’

‘‘गले में पड़ा अच्छी कंपनी वाला यही फंदा तो नौकरी नहीं छोङने देता है. लेकिन मैं किसी दिन साले को ऐसी सुनाऊंगा कि याद रखेगा. कमीना औफिस में शेर बनता है और अपनी बीवी के सामने बकरी की तरह मिमियाने लगता है.’’

‘‘उस की यह बात तो सीखने जैसी है. मैं तो तुम से अपने मन का दुखदर्द कहना शुरू ही करती हूं तो तुम मुझे एकदम से झगङने को तैयार हो जाते हो. आज सुबह भी तुम्हारे औफिस जाने के बाद तुम्हारे मम्मीपापा ने मेरे साथ बहुत झगड़ा किया.’’

‘‘यार, इस वक्त घर की बातें शुरू कर के मेरा दिमाग मत खराब करो,’’ वह हमेशा की तरह एकदम से गुस्सा हो गए थे.

‘‘तुम से अपने दिल की बात शेयर नहीं करूंगी तो किस से करूंगी. मेरे साथ जो रातदिन की कलह होती है, उस ने मेरी जिंदगी को नर्क बना दिया है,’’ मैं रोआंसी हो उठी.

‘‘तुम उन के सामने उलटा बोल कर बात ज्यादा बिगाड़ देती हो.’’

‘‘सारा कुसूर मेरा ही है तो तुम मुझे अलग मकान में ले चलो.’’

‘‘मैं घर से अलग होने को कभी तैयार नहीं हो पाऊंगा. अब अगर फालतू बोलोगी तो मैं पार्टी में भी नहीं जाऊंगा,’’ उन की इस धमकी को सुन कर मैं चुप होने को मजबूर हो गई थी.

सचिन मुंह फुला कर मेरे पापा के घर में घुसे और वार्तालाप में हिस्सा लेने के बजाय टीवी खोल कर न्यूज देखने लगे.

मेरे मम्मीपापा और भैयाभाभी फौरन उन का खराब मूड ठीक करने की कोशिश में लग गए. मैं ने बहुत बार नोट किया है कि इन की खातिर करते हुए वे सब जितना ज्यादा झुकते हैं, सचिन उतना ही ज्यादा टेढ़ा व्यवहार उन के साथ करते हैं.

आज भी इन्हें घंटे भर से ज्यादा रोके रखने के लिए उन सब को इन की बहुत खुशामद करनी पड़ती थी. भैया लगातार पास बैठ कर इन की बातें ध्यान से सुनता रहा, तो ही इन का मूड ठीक रहा था.

हम रात को 11 बजे के करीब वापस लौटे तो हमें देखते ही मेरी सास ने हायतौबा मचा दी,”फोन पर याद कराने के बावजूद तू जल्दी नहीं आ सकता था. अब मेरी दवाई कैसे आएगी?’’ सासूमां हमारा अच्छाखासा मूड खराब करने को पहले से तुली बैठी थीं.

‘‘दवा लाने वाली बात मेरे ध्यान से उतर गई, मां. मैं कल सुबह ला दूंगा,’’ सचिन फौरन परेशान नजर आने लगे थे.

‘‘देख भई, अगर तू हमारे प्रति अपनी जिम्मेदारियां पूरी नहीं कर सकता है तो घर से अलग…’’

मैं ने ससुरजी को उन की धमकी पूरी नहीं करने दी और शांत स्वर में सचिन से कहा, ‘‘हीरादेवी अस्पताल के बाहर कैमिस्ट शौप सारी रात खुली रहती हैं. आप वहां से मम्मी की दवाई ले आओ.’’

‘‘मैं कल सुबह…’’

‘‘प्लीज, अभी चले जाओ,’’ मेरी बात सुन कर वे उलटे पैर दवा लाने चले गए थे.

आमतौर पर ऐसे मौकों पर हम सब के बीच झगड़ा बढ़ता ही चला जाता था. आज मेरे बदले व्यवहार से मेरे सासससुर इतने हैरान हुए कि उन की बोलती बंद हो गर्ई थी.

मैं ने दोनों को गुडनाइट विश किया और अपने कमरे में चली गई. वहां कपड़े बदलते हुए मैं लोगों के व्यवहार से जुड़े उस खास पहलू पर सोचविचार करने लगी जो कुछ देर पहले घर लौटते हुए ताजाताजा मेरी समझ में आया था। जिस के पास किसी को नुकसान पहुंचाने या तंग करने की पावर है, वह हमेशा उस का इस्तेमाल क्यों नहीं करेगा. ऐसी कई घटनाएं मुझे याद आईं जब सामने वाले इंसान को दबा या जलील कर के किसी ने मजा लिया या अपनी टैंशन को कम किया था.

मेरे सासससुर डाक्टर पवन के सामने मिमियाते हैं क्योंकि वे काबिल डाक्टर हैं और कम फीस ले कर उन की देखभाल कर रहे हैं. फिर कुदरत हाथ ही हाथ हिसाब बराबर करता है और एमएलए की अनपढ़ गंवार मां के सामने तेजतर्रार डाक्टर पवन भीगी दिल्ली बन जाते हैं.

मेरे बौस मेरे जबरदस्त प्रशंसक हैं और उन की शह पर मैं अपने सब सहयोगियों को डरादबा कर रखती हूं. मुझ से सीनियर लोग मेरे सामने जबान नहीं खाल सकते हैं क्योंकि मेरी शिकायत पर बौस उन्हें नौकरी से हरी झंडी दिखा सकते हैं.

दूसरी तरफ सचिन के बौस उसे यों डांटते हैंं मानो वे उन का घरेलू नौकर हों. यह कपूर साहब नाम का ऊंट पहाड़ के नीचे तब आता है जब उन की बीवी उन्हें सब के सामने बुरी तरह से इसलिए डांट देती हैं क्योंकि वह करोड़पति बाप की बेटी है. औफिस में शेर बनने वाले कपूर साहब चुपचाप उस की डांट सुनते हैं क्योंकि ससुराल से उन्हें माल जो बहुत मिलता है.

भावुक स्वभाव के सचिन घर से अलग नहीं होना हैं। वे जानते हैं कि किराए का मकान अफोर्ड करना मुश्किल है और उन की इसी कमजोरी का पूरा फायदा उठा मेरे सासससुर मौका मिलते ही हमें घर से अलग होने की धमकी देने से कभी नहीं चूकते हैं.

अपने मातापिता के हाथों अपमानित होने वाले मेरे साहब अपनी ससुराल में शेर बन जाते हैं क्योंकि मेरे मम्मीपापा व भैयाभाभी मुझे सुखी देखना चाहते हैं. कहीं हमारे बीच तलाक की नौबत न आ जाए, इस बात की कल्पना उन्हें इन के खराब व्यवहार के सामने भी मुसकराते रहने को मजबूर करती है.

मेरे मातापिता व भैयाभाभी से सीधे मुंह बात न करने वाले मेरे स्वामी अभी लौट कर आते ही मुझे अपनी बांहों में भरने को लायलित होंगे और तब मैं जो चाहूंगी वह कहूंगी और वे चुपचाप मेरी सारी शिकायतें सुनते हुए मेरी हां में हां मिलाएंगे.

मेरी समझ में तो यह बात आई है कि अगर सामने वाला किसी कारण से कमजोर या मजबूर है, तो ताकतवर उसे धड़ल्ले से खरीखोटी जरूर सुनाएगा. इस मामले में हर तरफ लेनदेन का सिद्धांत खूब काम कर रहा है. इधर किसी से कड़वीतीखी बातें सुनो और उधर किसी दूसरे को वैसी ही बातें सुना कर अपने मन ही भड़ास निकाल लो.

वैसे जिसे इस खेल को ढंग से खेलने का पूरा मजा लेना हो, उसे कुछ महत्त्वपूर्ण बातों का ध्यान जरूर रखना पड़ेगा. सासससुर की डांटफटकार से तंग आ कर घर से अलग होने की जिद पकङना बहू के हित में नहीं होगा. अगर बहू उचित मौके पर सासससुर को तंग कर के उन से बदला ले, तो उसे अपनी दुश्मनी मानना सासससुर की नादानी होगी.

बौस की डांट से चिढ़ कर किसी का नौकरी छोङने की सोचने लगना बेवकूफी है. दामाद का मुंह फुला कर घूमने को अपनी बेइज्जती समझना बेटी के मातापिता की नासमझी है. डाक्टर के डांटने के कारण उसे बदल डालना गलत व नुकसानदायक होगा. एमएलए की मां की तरह डाक्टर पवन को बेबात अपमानित करने वाले लोग भी तो इस दुनिया में मौजूद हैं.

मैं ने फैसला कर लिया है कि जब कहनेसुनने के मामले में हर सेर को सवा सेर मिलता ही मिलता है, तो सामने वाले के मुंह से निकले कड़वे शब्दों का बुरा मान कर अपना खून जलाने की मूर्खता मैं तो भविष्य में अब कभी नहीं करूंगी.

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