अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने 13 दिसंबर को समलैंगिक और इंटररैशियल मैरिज को सुरक्षा देने वाले कानून पर हस्ताक्षर कर दिए हैं. इस हस्ताक्षर के बाद 1996 का मैरिज एक्ट निरस्त हो गया जो एक पुरुष और एक महिला के बीच विवाह को परिभाषित करता था.

हालांकि अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में ओबेर्गफेल बनाम होजेस के फैसले में देशभर में समलैंगिक विवाह को वैध कर दिया था लेकिन जून में अदालत के डौब्स बनाम जैक्सन के फैसले ने संघीय स्तर पर गर्भपात के अधिकार को पलटते हुए अन्य अधिकारों के लिए संघीय सुरक्षा के बारे में चिंता जताई थी. एक तरफ जहां अमेरिकी संसद ने समलैंगिकों और अलगअलग नस्लों के बीच होने वाली शादियों की हिफाजत के लिए ऐतिहासिक विधेयक पास किया, वहीं इंडोनेशिया की संसद ने नए कानून के जरिए प्रीमैरिटल सैक्स और लिवइन रिलेशनशिप को आपराधिक करार दे दिया है.

इन सब के बीच भारत में समलैंगिक शादियों को मान्यता देने का मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. ज्ञात हो कि सुप्रीम कोर्ट ने 6 सितंबर, 2018 को एक अहम फैसला सुनाते हुए समलैंगिकता को अवैध बताने वाली भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 377 को रद्द कर दिया था. तब अदालत ने कहा था कि अब से सहमति से 2 वयस्कों के बीच बने समलैंगिक यौन संबंध अपराध के दायरे से बाहर होंगे. हालांकि, उस फैसले में समलैंगिकों की शादी का जिक्र नहीं था.

समलैंगिक विवाह को मान्यता दिलाने के लिए एलजीबीटी समुदाय का कोर्ट में संघर्ष जारी है. बता दें कि देश की मोदी सरकार समलैंगिक विवाह के पक्ष में नहीं है. दिल्ली हाईकोर्ट में अपने हलफनामे में सरकार द्वारा तर्क दिया गया कि संसद ने देश में विवाह कानूनों को केवल एक पुरुष और एक महिला के मिलन को स्वीकार करने के लिए तैयार किया है. इस में किसी भी हस्तक्षेप से देश में व्यक्तिगत कानूनों के नाजुक संतुलन के साथ तबाही मच जाएगी.

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