भारत की हृदयस्थली मध्य प्रदेश अपने गौरवशाली इतिहास और आधुनिकता से ओतप्रोत है. विंध्य और सतपुड़ा पहाडि़यों से आच्छादित इस प्रदेश के वन्य प्राणी अभयारण्य और हिल स्टेशन सैलानियों को सुखद एहसास कराते हैं. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से संपन्न मध्य प्रदेश उत्कृष्ट वास्तुकला और गाथाओं की कहानी कहते दुर्गों, महलों, स्तूपों के कारण पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बन गया है.
यहां के आदिवासी समाज का सादा जीवन, अलौकिकता से परिपूर्ण संस्कृति और यहां का लगभग एकतिहाई वनों से भरा हुआ क्षेत्र प्रदेश को नया आयाम देते हैं. राज्य के मालवा, निमाड़, बघेलखंड, बुंदेलखंड अंचलों की स्थापत्य कला, सुंदर हथकरघे की वस्तुएं और अनुपम वन्यजीवन पर्यटकों को रोमांचकारी अनुभव प्रदान करते हैं. प्रदेश में बांधवगढ़, पन्ना, पेंच राष्ट्रीय उद्यानों के साथ ही ग्वालियर, खजुराहो, मांडू जैसे ऐतिहासिक पर्यटन स्थल मौजूद हैं.
पचमढ़ी
भारत के हृदयस्थल का सर्वाधिक हरियाली वाला पर्वतीय क्षेत्र है पचमढ़ी. यहां खिलखिलाते पहाड़, दूर तक फैली सतपुड़ा की पर्वतशृंखलाएं और चहकते ?ारने व चांदी के समान चमकते जलप्रपात स्थित हैं.
सतपुड़ा के अनमने, ऊंघते जंगलों में कलकल करती नदियों का संगीत और गर्जना के साथ गिरते जलप्रपातों का सुंदर समन्वय ही पचमढ़ी है. वैसे तो अपने शांत वातावरण के कारण यह वर्षभर पर्यटकों से भरा रहता है परंतु अब यह स्थान नवविवाहित जोड़ों की खास पसंद बनता जा रहा है. प्राकृतिक सौंदर्य के अलावा यहां पुरातात्त्विक वस्तुओं का खजाना भरा पड़ा है.
महादेव पहाडि़यों के शैलचित्र देखने वालों को आश्चर्यचकित कर देते हैं. इन में से ज्यादातर चित्रों का समय 500 से 800 ई. के मध्य माना गया है.
मध्य प्रदेश का इकलौता हिलस्टेशन होने की वजह से पचमढ़ी गरमियों में पर्यटकों से भरा रहता है. यहां के जंगलों में साल, सागौन, महुआ, आंवले और गूलर के वृक्षों की भरमार है. साथ ही यह वन्यक्षेत्र सांभर, लंगूर, गौर, रीछ, हिरण, चीतों का भी बसेरा है.
दर्शनीय स्थल
अप्सरा विहार : यह पिकनिक मनाने के लिए उपयुक्त स्थान है. यहां पानी का स्तर सब से कम है. लेकिन जहां पानी गिरता है वहां गहराई ज्यादा है. इसलिए पर्यटकों को खास ध्यान रखना चाहिए.
रजत प्रपात : 350 फुट ऊंची चट्टान से गिरते हुए ?ारने को देखना रोमांचकारी अनुभव होता है. अप्सरा विहार के पथरीले रास्तों से चल कर यहां पहुंचा जा सकता है. काफी ऊंचाई से गिरने के कारण इस प्रपात का पानी सूर्य की रोशनी में चांदी के समान चमकता है.
महादेव गुफा : 30 फुट लंबी इस गुफा में शीतल जल लगातार रिसता रहता है. गुफा के अंदर ही जल का ?ांड स्थित है. वर्ष 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के समय तात्याटोपे ने अपनी सेना का पुनर्गठन इसी स्थान पर किया था.
जटाशंकर गुफा : पचमढ़ी के बस स्टैंड से डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर ये गुफाएं प्रकृति की कारीगरी का नायाब नमूना हैं. यहां 2 चट्टानों के मध्य कुंड के अधर से लटकती चट्टान को देख कर हर कोई आश्चर्य से भर उठता है. यहां अकसर फिल्मों की शूटिंग होती रहती है.
चौरागढ़ व धूपगढ़ : ये पचमढ़ी की 2 अलगअलग पहाडि़यां हैं जहां से सूर्यास्त और सूर्योदय का अद्भुत नजारा दिखता है. धूपगढ़ पहाड़ी से भोर में सूर्योदय देखना अलग ही अनुभव है.
हांडी खोह : यह 300 फुट ऊंची सपाट ढाल है. इस की आकृति कुल मिला कर हांडी की तरह है, इसलिए इसे हांडी खोह कहा जाता है.
इन दर्शनीय स्थलों के अलावा भी पचमढ़ी में अन्य आकर्षण राजगिरी, लांजीगिरी, आइरीन सरोवर, सुंदर कुंड, पांडव गुफाएं, गुफा समूह, धुआंधार, भांतनीर (डोरोथी डीप) अस्तांचल, बीनावादक की गुफा, सरदार गुफा आदि भी हैं.
कैसे पहुंचें वायुमार्ग से : निकटवर्ती हवाई अड्डा भोपाल (210 किलोमीटर).
रेलमार्ग से : इलाहाबाद के रास्ते मुंबई-हावड़ा मेन लाइन पर, पिपरिया (47 किलोमीटर) सब से नजदीकी रेलवे स्टेशन.
सड़क मार्ग : जबलपुर, भोपाल, नागपुर, छिंदवाड़ा से पंचमढ़ी के लिए बस व टैक्सी सेवा मौजूद हैं.
कहां ठहरें मध्य प्रदेश पर्यटन के अमलतास, ग्लेनव्यू, हिलटौप बंगलो, रौक एंड मैनार, होटल हाईलैंड, पंचवटी, सतपुड़ा रिट्रीट चंपक बंगलो, वुडलैंड बंगलो में जा कर या पहले से आरक्षण करवा कर रुक सकते हैं.
अधिक जानकारी व आरक्षण के लिए मध्य प्रदेश पर्यटन की वैबसाइट 222.द्वश्चह्लशह्वह्म्द्बह्यद्व.ष्शद्व पर लौगऔन कर सकते हैं.
भोपाल
यह मध्य प्रदेश की राजधानी है. इस की स्थापना राजा भोज ने 11वीं शताब्दी में की थी. लखनऊ की तरह भोपाल में भी नवाबों का शासन रहा है जिन की शानोशौकत और नवाबियत की मिसालें आज भी पुराने भोपाल की इमारतों व महलों में दिखाई देती हैं.
भोपाल शहर 2 भागों में बंटा हुआ है. एक ओर महल, मसजिदें व विशाल दरवाजे हैं जो मुगलकालीन शासकों की रहीसी और वैभव की कहानी कहते हैं वहीं दूसरी ओर नया भोपाल बसा हुआ है जिस में सुंदर पार्क, चौड़ी सड़कें, जगमगाते मौल्स व बाजार की रंगीनियां हैं.
दर्शनीय स्थल
बड़ी झील : भोपाल शहर के बीचोंबीच या कहिए भोपाल शहर की शान यह ‘बड़ी झील’ भोपाल की पहचान के साथसाथ पूरे शहर के लिए पीने के पानी का इंतजाम करती है. इस झील का निर्माण राजा भोज ने करवाया था. भारत भवन के पास स्थित इस झील के किनारों पर अनेक रैस्टोरैंट और कैफेटेरिया स्थित हैं जहां शाम के समय लोगों का जमावड़ा लगा रहता है.
अब पर्यटन विकास निगम ने बड़ी झील पर क्रूज सेवा शुरू की है जिस पर बैठ कर पर्यटक लहरों के ऊपर कौफी का मजा ले सकते हैं, बोटिंग के शौकीनों के लिए पाल नौकाएं व छोटी बोट भी उपलब्ध हैं.
ताजउल मसजिद : इस विशाल मसजिद का निर्माण शाहजहां बेगम ने करवाया था. शाहजहां बेगम भोपाल की 8वीं बेगम थीं. उन की मत्यु के बाद मसजिद का निर्माण कार्य आज तक अधूरा ही पड़ा है. इस मसजिद की मुख्य विशेषताएं इस का शानदार मुख्य कक्ष, मेहराबदार छत, चौड़े छज्जे और संगमरमरी फर्श है. यहां हर 3 साल में इज्तिमा का मेला लगता है.
शौकत महल और सदर मंजिल : शहर के बीचोंबीच बसे इस महल की वास्तुकला देखने लायक है. पश्चिमी स्थापत्य शैली में बने इस महल में अनेक शैलियों का समावेश देखने को मिलता है.
भारत भवन : कला और संस्कृति को प्रोत्साहन देने के लिए भारत भवन की स्थापना की गई. यह प्रदर्शनियों, कलाओं और साहित्य का घर है. यह कला केंद्र पहाड़ी पर स्थित है और ?ाल के किनारे बना होने के कारण बहुत ही आकर्षक लगता है. यहां विशाल पुस्तकालय भी है जिस में भारत की लगभग सभी भाषाओं की 10 हजार से भी ज्यादा कविताओं की पुस्तकें हैं.
राज्य संग्रहालय : 16 प्रकार की कला वीथिकाओं में बंटे हुए इस संग्रहालय में राज्य की प्राचीन, पाषाण और लौह मूर्तियां, साहित्य और शिलालेखों का संग्रह मौजूद है.
वन विहार : बड़ी झील के पीछे 444 वर्ग हैक्टेयर क्षेत्र में यह संरक्षित वन स्थित है. यहां बिलकुल प्राकृतिक अवस्था में सभी वन्यजीव निवास करते हैं. विशाल घने पेड़ों से घिरे इस वन्यक्षेत्र में रीछ, हिरण, तेंदुए के अलावा पक्षियों की बहुत सारी प्रजातियां मौजूद हैं. इस सफारी पार्क में पिकनिक मनाने व कैंप की भी व्यवस्था है.
सैरसपाटा : बच्चों के लिए टौय ट्रेन, एडवैंचर के शौकीनों के लिए एडवैंचर जोन व खानेपीने का शौक रखने वालों के लिए सभी तरह के लजीज व्यंजनों के स्टौल, ये सब वह भी एक जगह पर. मध्य प्रदेश पर्यटन द्वारा विकसित किया गया यह स्थान भदभदा पुल के पास सैरसपाटा के नाम से जाना जाता है. इस का मुख्य आकर्षण सस्पैंशन केबल स्टे ब्रिज है जो रात के समय रोशनी से जगमगाता रहता है.
भोजेश्वर मंदिर : सम्राट भोज द्वारा भोपाल से 28 किलोमीटर की दूरी पर एक विशाल मंदिर की स्थापना की गई जिस का नाम राजा भोज के ही नाम पर भोजेश्वर रखा गया. यह विशाल मंदिर पाषाण कला का उत्कृष्ट नमूना है. वर्गाकार 3 भागों में बंटे इस मंदिर का मुख्य शिखर 4 मजबूत स्तंभों द्वारा सधा हुआ है. अष्टभुजाकार आकार का निचला भाग इस मंदिर की उत्कृष्ट वास्तुकला को प्रदर्शित करता है.
भीम बैठका : भोपाल से ही दक्षिण की ओर रायसेन जिले के भिमापुरा गांव में जंगलों से घिरे इस क्षेत्र में भीम बैठका गुफाएं स्थित हैं.
भोपाल से 40 किलोमीटर की दूरी पर इन गुफाओं तक पहुंचा जा सकता है. इन गुफाओं के अंदर प्रागैतिहासिक समय की चट्टानों पर की गई चित्रकारी आज भी खासी लुभावनी लगती है, इन सैकड़ों शैलचित्रों को देख कर आदिकाल के मानव की संस्कृति व दिनचर्या का अनुमान लगाना आसान हो जाता है.
यहां के शैलचित्रों को बनाने में लाल व सफेद रंगों का इस्तेमाल किया गया है. कहींकहीं पर हरे व पीले रंगों का भी उपयोग किया गया है. इन चित्रों में आखेट (शिकार), नृत्य संगीत, घोड़े व हाथी की सवारी, लड़ते हुए जानवर, मधुसंचय, देह शृंगार, मुखौटे व घरेलू जीवन को चित्रित किया गया है. इन सैलानियों की विविधता और प्राचीनता को देखते हुए यूनैस्को ने इसे वर्ल्ड हेरीटेज साइट में शामिल किया है. यह भोपाल से सिर्फ 40 किलोमीटर की दूरी पर है.
कैसे पहुंचें
भोपाल सड़क मार्ग, वायु मार्ग व रेल मार्ग द्वारा सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा है.
कहां ठहरें
द्य होटल पलाश रेजीडैंसी
द्य होटल लेकव्यू अशोक व अन्य कई होटल.
सांची
भोपाल से 48 किलोमीटर की दूरी पर शांति और अहिंसा के प्रतीकात्मक स्तूपों की नगरी सांची स्थित है. जब बौद्ध धर्म का स्वर्णकाल था तब सम्राट अशोक ने इस स्थल का निर्माण कराया था. यहां स्थित स्तूपों में से कई स्तूपों का निर्माण सम्र्राट अशोक ने कराया था. वर्तमान में केवल 3 स्तूपों को ही सुरक्षित अवस्था में देखा जा सकता है. ऊंचे गुंबद और तोरण द्वारों से घिरे हुए स्तूपों को 3 क्रमांकों में विभाजित किया गया है.
स्तूप क्रमांक 1 : गोलाकार गंबुद और 36.5 मीटर व्यास व 16.4 मीटर ऊंचाई वाले इस स्तूप को सब से प्राचीन स्तूप माना जाता है. इस का निर्माण सम्राट अशोक ने कराया था. इस स्तूप के चारों ओर गोलाकार रास्ता व 4 तोरण द्वार बनाए गए हैं जिन में बुद्ध के जन्म की और बाद की जातक कथाएं उत्कीर्ण हैं. भारतीय शिल्प की आरंभिक कला का उत्कृष्ट नमूना इन तोरण द्वारों में मिलता है.
स्तूप क्रमांक 2 : पहाड़ी के किनारे बने इस स्तूप की मुख्य विशेषता इस का पाषाण का कठघरा है. इस की दीवारों पर बुद्ध के जीवन पर आधारित चित्रों को उकेरा गया है. पाषाण कठघरे को बजाने पर मधुर ध्वनि निकलती है.
स्तूप क्रमांक 3 : बुद्ध के सब से पहले के 2 शिल्पों के अवशेष इस स्तूप में रखे गए हैं.
अशोक स्तंभ : यह बड़े स्तूप के दक्षिणी तोरण द्वार के पास स्थित है. सम्राट अशोक ने कुल 30 स्तंभ बनवाए थे जिन में से सिर्फ 10 ही सुरक्षित हैं.
संग्रहालय : सांची और उस के आसपास जो शिलालेख, वस्तुएं प्राप्त हुईं उन को एकत्रित कर के इस संग्रहालय में रखा गया है. सांची में इन स्तूपों के अलावा गुप्तकालीन मंदिर, महापात्र भी देखने लायक है.
कैसे पहुंचें
वायुमार्ग : निकटतम हवाई अड्डा भोपाल है जो तकरीबन 48 किलोमीटर दूर है.
रेलमार्ग : सांची मध्य रेलवे जंक्शन पर स्थित है. यहां से विदिशा 10 किलोमीटर दूर है.
सड़क मार्ग : भोपाल, इंदौर, झांसी, इटारसी से सीधी बस सेवा से जुड़ा हुआ है. यहां ठहरने के लिए मध्य प्रदेश पर्यटन के ‘गेट वे रिट्रीट’ के अलावा ‘हाइवे ट्रीट’ गेस्ट हाउस भी है.