प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी एक मौन रहने वाले प्रधानमंत्री नहीं माने जाते, हम सभी जानते हैं कि नरेंद्र मोदी एक बातें करने वाले प्रधानमंत्री हैं. वह नित्य किसी न किसी से बातें करते हैं उनकी छवि एक अच्छा बोलने वाले राजनेता की है प्रधानमंत्री के रूप में भी वे बड़ी अच्छी अच्छी बातें करते हैं चाहे वह मन की बात हो या फिर अन्य कोई मंच कहने से नहीं चूकते यह अच्छी बातें हैं. मगर इन्हें व्यक्तिगत जीवन में उतारना भी उतना ही जरूरी है जितना आम जनता अर्थात देशवासियों के लिए प्रेरक वक्तव्य.
मगर पता नहीं क्यों नरेंद्र मोदी की बातें तो कुछ और होती हैं और आचरण कुछ और होता है यह जहां देश के लिए कठिन स्थिति पैदा करता है वही नरेंद्र मोदी की विराट छवि पर एक दाग जैसा है. हम बात करें प्रधानमंत्री कार्यालय में बनाया गए केयर्स फंड की तो इस पर अनेक सवाल उठते रहे हैं और यह अपेक्षा की गई थी कि जो कुछ भी होगा वह देश के सामने होगा यानी पारदर्शी होगा. मगर प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी इस फंड की जानकारी देश की जनता को देने के इच्छुक नहीं है.इस आलेख के माध्यम से हम आपसे भी जानना चाहते हैं कि क्या प्रधानमंत्री का यह कदम उचित है. हमारा सीधा सा सवाल यह है कि जब प्रधानमंत्री देश के हैं, पैसे देश के हैं तो फिर आप जिन्हें देंगे उसे बताने में गुरेज क्यों है ? जब आप दुनिया भर से पारदर्शिता चाहते हैं जब आप देश की जनता के हर दस्तावेज को खुली किताब रखना चाहते हैं तो फिर आपकी छोटी सी छोटी बात या निर्णय देश के सामने क्यों नहीं आना चाहिए.
कृपया इस सवाल का जवाब आपको देना चाहिए.
दरअसल, यह विवाद लंबे समय से चल रहा है और अब अंततः देश की सुप्रीम अदालत में पहुंच चुका है जहां से नोटिस के बाद प्रधानमंत्री कार्यालय ने एक बार फिर दोहराया है कि यह सब नियम कायदों से बाहर है .
कहा जा रहा है ‘ पीएम केयर्स फंड’ एक सरकारी कोष नहीं है.इसमें दिया गया दान भारत की संचित निधि है और संविधान तथा सूचना का अधिकार (आरटीआइ) अधिनियम के तहत इसकी जो स्थिति हो, तीसरे पक्ष की जानकारी का खुलासा नहीं किया जा सकता है. 31 जनवरी 2023 को को न्यायालय को यह जानकारी दी गई. कार्यालय (पीएमओ) में एक अवर सचिव ने एक हलफनामे में कहा है कि यह एक परमार्थ ट्रस्ट की तरह काम करता है और इसकी लेखा परीक्षण एक लेखा परीक्षक से किया जाता है। यह आडिटर एक चार्टर्ड अकाउंटेंट ‘ होता है, जिसे भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक द्वारा तैयार पैनल से चुना जाता है. हलफनामे में तर्क दिया गया है कि संविधान और आरटीआई अधिनियम के तहत आपात स्थितियों में प्रधानमंत्री नागरिक सहायता और राहत कोष’ यानी ‘पीएम केयर्स फंड’ की जो भी स्थिति हो, लेकिन तीसरे पक्ष की जानकारी का खुलासा करने की अनुमति नहीं है.
यह हलफनामा एक याचिका के जवाब में दायर किया गया था, जिसमें संविधान के तहत ‘पीएम केयर्स फंड’ को ‘राज्य’ (स्टेट) घोषित करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था, ताकि इसके कामकाज में पारदर्शिता सुनिश्चित की जा सके.
याचिकाकर्ता ने आरटीआई अधिनियम के तहत ‘पीएम केयर्स फंड’ को ‘सार्वजनिक प्राधिकार’ घोषित करने के लिए एक अन्य याचिका भी दायर की है, जिसकी सुनवाई इस याचिका के साथ हो रही है. मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने याचिकाकर्ता सम्यक गंगवाल की दलीलों को सुना और सालिसिटर जनरल तुषार मेहता के कार्यालय से कहा कि वह मामले में बहस करने के लिए उनकी उपलब्धता के बारे में अदालत को सूचित करें.
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यह एक गलत नजीर होगी ____
अब यह तो समझने वाली बात है कि यह सब जो घटनाक्रम सामने आ रहा है वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संज्ञान में है और सब उनके व्यक्तिगत निर्देश पर हो रहा है प्रधानमंत्री मोदी यह नहीं कह सकते कि पीएमओ यह सब अपने मन से करेगा, वह तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इच्छा और भावना के अनुरूप प्रदर्शन कर रहा है. ऐसे में हम यह कह सकते हैं कि अगर न्यायालय में प्रधानमंत्री कार्यालय की बात को न्यायालय में मुहर भी लग जाती है तो यह आगे नासूर बन जाएगा क्योंकि आने वाले समय में यह गतिविधि चलती रहेगी और इससे जहां देश के सूचना अधिकार, पारदर्शिता जैसे प्रश्न दरकिनार हो जाएंगे वहीं एक गलत परिपाटी भी शुरू हो जाएगी. यहां यह भी हम पाठकों को बताते चलें कि नरेंद्र दामोदरदास मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद पूर्व के प्रधानमंत्री फंड को खत्म करके नए नाम से इसे बना दिया गया और नये नियम कायदे लाए गए हैं अब कोई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से यह भी पूछे कि जब पहले प्रधानमंत्री फंड की रिकार्ड देश के समक्ष उपलब्ध किए जाते थे तो अब ऐसा क्या नया कुछ हो गया है कि आप पारदर्शिता से मुंह छुपा रहें हैं.