देश की 50 वें मुख्य न्यायाधीश उच्चतम न्यायालय, धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ अपने आप में अलग इसलिए है कि आपने ऐसे ऐसे अनेक फैसले लिए हैं जिससे यह कहा जा सकता है कि आप सच्चे अर्थों में भारत के आम लोगों के जनमानस की आवाज बन कर देश के मुख्य न्यायाधीश की कुर्सी पर विराजमान हुए है. अपने ही पिता के लगभग 50 साल पहले दिए गए फैसले को बदलने और महिलाओं के अधिकार को लेकर के हौसले को देने के साथ-साथ हाल ही में दिल्ली में ट्विन टावर को गिराए जाने का फैसला भी आप ही के नाम दर्ज है. आज जो भारत की परिस्थितियां हैं निसंदेह वह और भी ज्यादा चुनौतीपूर्ण है और देश की उच्चतम न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश के रूप में देश आपकी और बड़ी ही आशाओं के साथ देख रहा है.
न्यायमूर्ति धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ ने 9 नवंबर को देश के 50वें प्रधान न्यायाधीश के रूप में शपथ ली है राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति भवन के दरबार हाल में आयोजित एक समारोह 10 बजे उन्हें प्रधान न्यायाधीश की शपथ दिलाई . जैसा कि इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम की गरिमा के अनुरूप इस अवसर पर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण सहित अन्य लोग मौजूद थे.

प्रधान याधीश के रूप में न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ का कार्यकाल 10 नवंबर, 2024 तक रहेगा. न्यायमूर्ति लगभग 2 वर्ष तक देश के प्रधान न्यायाधीश के रूप में आगामी समय में अपनी सेवाएं देंगे. आपके संपूर्ण कार्य व्यवहार को देखकर आशा की जा सकती आने वाले समय में बहुतेरे फैसले ऐसे होंगे जो देश को लोकतंत्र को और भी ज्यादा मजबूत बनाएंगे आम लोगों अधिकारों की रक्षा करेंगे.

शपथ ग्रहण करने के तुरंत बाद न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा- “शब्दों से नहीं, काम करके दिखाएंगे. आम आदमी के लिए काम करेंगे. बड़ा मौका है, बड़ी जिम्मेदारी है. आम आदमी की सेवा करना मेरी प्राथमिकता है. आगे आप देखते जाइए, हम चाहे तकनीकी रिफार्म हो, रजिस्ट्री रिफार्म हो, ज्यूडिशियल रिफार्म हो, उसमें नागरिक को प्राथमिकता देंगे.”

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने शपथ ग्रहण करने के बाद सुप्रीम कोर्ट परिसर में लगी महात्मा गांधी की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया.न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि आप धैर्य से सुनवाई करते हैं. देश ने देखा कि किस तरह कुछ दिन पहले न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने लगातार दस घंटे तक सुनवाई की थी. और बात नहीं किया कहा था कि काम ही तो ईश्वर की पूजा है जिससे आपके संपूर्ण दर्शन को समझा जा सकता है.
कानून और न्याय प्रणाली की अलग समझ की वजह से यहां आपको यह जानना बहुत जरूरी है कि न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने दो बार अपने पिता पूर्व प्रधान न्यायाधीश यशवंत विष्णु चंद्रचूड़ के फैसलों को भी पलटा है. जिसमें सबसे महत्वपूर्ण है इंदिरा गांधी के शासन काल में जब इमरजेंसी लगाई गई थी तो आम लोगों के मौलिक अधिकारों को स्थगित कर दिया गया था जिस पर उनके पिता ने मुहर लगाई थी मगर जब समय आया तो आपने अपने पिता के फैसले को पलट दिया और यह फैसला दिया कि किसी भी हालत में संविधान द्वारा दिए गए निजता के मौलिक अधिकार को स्थगित नहीं किया जा सकता.

इसी तरह गर्भपात को लेकर के आपका फैसला क्रांतिकारी माना जा रहा है जो पहले के फैसलों और पूर्व कानून के वितरित है. इस संदर्भ में अपने निर्णय में उन्होंने अविवाहित महिलाओं के 24 हफ्ते तक के गर्भपात की मांग के अधिकारों को बरकरार रखने वाला दिया था. वे उस संविधान पीठ का भी हिस्सा रहे, जिसने सहमति से समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया और अनुच्छेद 21 के तहत निजता को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी है. वे सबरीमाला मंदिर में प्रवेश करने के लिए सभी उम्र की महिलाओं के अधिकार को बरकरार रखने वाले फैसले का हिस्सा भी रहे.

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