आजादी के लिए जरूरी है कि वे आत्मनिभर बनें, अपने फैसले लेने में जरा भी न ?ि?ाकें या न डरें, घर में बंधी न रहें, खुद को आर्थिक रूप से मजबूत बनाएं. एक जमाने में लड़कियों को घर की चारदीवारी में संपूर्ण जिंदगी खपा देनी पड़ती थी. ऐसी लड़कियां गुड्डेगुडि़यों के खेल से ले कर शादीविवाह के तमाम तरह के खेल खेला करती थीं जो होने वाले वैवाहिक जीवन की तैयारी के रूप में सम?ा जाता था. वे घर के अंदर ही रह कर साजसिंगार और अपने रंगरूप संवारने में ही ज्यादा ध्यान देती थीं. कुछ संपन्न घर की लड़कियां फैशन में पारंगत होने की भरपूर कोशिश भी करती थीं ताकि वे ससुराल जा कर पतियों और पतियों के परिवार को रि?ा सकें.
घर में उन की दादी, मां, चाची, भाभी और बूआ सब एक ही हिदायत देती रहती थीं कि यह सब सीखना जरूरी है क्योंकि तुम्हें दूसरों के घर जाना है. ससुराल के घरआंगन को संवारना है. यही सबकुछ सीखते हुए बचपन कब गुजर जाता था, पता नहीं चलता था और जवानी की दहलीज पर पहुंचने से पहले ही दूसरे घर में ब्याह दिए जाने की तैयारी जोरशोर से शुरू होने लगती थी या ब्याह दी जाती थी. तब उन्हें दूसरे घरपरिवार में एडजस्ट होने की जद्दोजेहद का सामना करना पड़ता था. अकसर लड़कियां नए और अनजान घर में घबराने भी लगती थीं. लेकिन देखतेदेखते वे कई बच्चों की मां बन जाती थीं और अपनी खुद की जिंदगी भूल जाती थीं. वे बच्चे पैदा करने की मशीन सी बन जाती थीं और धीरेधीरे उस घर, परिवार और अपने बच्चों की एकमात्र आया बन कर रह जाती थीं. इस प्रकार उन्हें लंबे संघर्षों से गुजरना पड़ता था. जिन लड़कियों का आत्मविश्वास थोड़ा मजबूत होता था वे संघर्ष कर खुद को एडजस्ट कर लेती थीं. वे अपनी जिंदगी जैसेतैसे गुजार देती थीं.
जो अपनेआप को उस माहौल में एडजस्ट नहीं कर पाती थीं उन लड़कियों की जिंदगी ससुराल में नर्क बन जाती थी. समाज की यह परंपरा लगभग अभी भी कमोबेश नहीं बदली है. समाज में आज भी औरतों की स्थिति पहले जैसी ही है. आज आदमी के जीवन में तमाम तरह की सुविधाएं भले ही आ गई हों लेकिन पुरुषवादी समाज की सोच आज भी नहीं बदली है. आज भी वह लगभग जस की तस बनी है. द्य बिहार के औरंगाबाद जिले की रहने वाली पिंकी कुमारी साधारणतया बीए कर चुकी थी. तभी उस की शादी कर दी गई थी. वह देखने में काफी खूबसूरत थी. उस के मातापिता काफी संपन्न परिवार के हैं. उन के घर में पैसे की कमी नहीं है. उस के मातापिता ने काफी दहेज दे कर उस का विवाह नौकरी वाले लड़के से किया था. अब 2 साल के अंदर ही पतिपत्नी के बीच अनबन होने लगी है.
?ागड़े की वजह से पिंकी को अपनी ससुराल छोड़ना पड़ा और अपनी सुरक्षा के लिए उसे मायके में आ कर रहना पड़ रहा है. अब पतिपत्नी के बीच मुकदमे चल रहे हैं. लेकिन कुछ महीने बाद ही पिंकी को महसूस होने लगा कि वह शायद अपने पिता के घर में बो?ा बनी हुई है. इसलिए वह अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती है. इस के लिए वह काफी हिम्मत जुटा कर फिर से अधूरी पढ़ाई पूरी कर रही है. उस का मानना है कि लड़कियों के लिए खूबसूरत और कमसिन जवानी ज्यादा दिन तक माने नहीं रखती है. आर्थिक रूप से मजबूत होना लड़कियों के लिए बेहद जरूरी है. अत्याचार की शिकार औरतें रोहतास जिले की रहने वाली अपर्णा राजस्थान के कोटा में रह कर मैडिकल शिक्षा की तैयारी कर रही है. उस का कहना है, ‘‘अब समय बदल गया है. अब लड़कियां क्रीम, पाउडर और फैशन के पीछे ज्यादा ध्यान नहीं देती हैं और जो सिर्फ इस ओर ही ध्यान दे रही हैं वे आज भी कहीं न कहीं पिछड़ रही हैं.
आज भी उन की जिंदगी वैसे ही गुजर रही है जैसे कल गुजर रही थी. आज भी वे अपने पतियों के अत्याचार की शिकार हो रही हैं. कहीं दहेज के लिए सताई जा रही हैं तो कहीं औरतों को पहले की तरह ही चारदीवारी में बंद कर जुल्म किया जा रहा है और पुरुषों द्वारा पहले की तरह ही आज भी औरतों को शिकार बनाया जा रहा है.’’ वह मुसकराते हुए आगे कहती है, ‘‘अगर खुद को मजबूत और शक्तिशाली बनाना है तो अपने खूबसूरत ड्रीम को ग्रो करिए, फिर उसे पूरी लगन व मेहनत से पूरा करिए. खुद की अलग पहचान बनाइए. आप की सुंदरता अपनेआप बढ़ जाएगी.
आप को क्रीम, पाउडर तो क्षणिक संतुष्टि दे सकते हैं लेकिन अपने भविष्य को सुरक्षित करना चाहती हैं तो अपना ड्रीम पहले पूरा कीजिए.’’ अब गांव की मध्यवर्गीय परिवारों की लड़कियां मुंह अंधेरे में साइकिल चला कर या औटोरिकशा से विभिन्न कोचिंग संस्थानों में पहुंच रही हैं. यह इस बात का सुबूत है कि अब लड़कियां क्रीम के पीछे नहीं, ड्रीम के पीछे भाग रही हैं. दूरदराज के गांवों से चल कर वे छोटेछोटे शहरों व कसबों के कोचिंग संस्थानों में भीड़ लगा रही हैं. अब छोटे शहरों और कसबों की लड़कियों का रहनसहन महानगरों की लड़कियों की तरह रफ एंड टफ हो चुका है. वे भी जींस के ऊपर टीशर्ट, टौप या कुरती डाल कर उतना ही आत्मविश्वास का अनुभव करती हैं जितना एक लड़का करता है. अब वे सब लड़कों की तरह ही क्विज टैस्ट, वादविवाद आदि में हिस्सा लेना पसंद करती हैं.
वे भी फर्राटेदार इंग्लिश बोलना चाहती हैं. वे भी विभिन्न प्रकार की नौकरी के लिए फौर्म भरना पसंद करती हैं, तभी तो फौर्म बिकने वाली दुकानों पर सब से ज्यादा ये लड़कियां उत्साहित दिखती हैं. यही कारण है कि अब लड़कियां नौकरी के लिए पहले की अपेक्षा ज्यादा मारामारी करने लगी हैं. इस का सब से बड़ा कारण समाज में बदलाव आना माना जा रहा है. आज सम?ादार परिवार पढ़ीलिखी बहू को तरजीह देने लगा है. दूसरी बात यह है कि पढ़ीलिखी और नौकरीपेशा लड़कियां ससुराल में अपने पतियों पर निर्भर नहीं रहना चाहती हैं. वे स्वतंत्र रहना चाहती हैं. वे खुद के लिए भी जीना चाहती हैं और यह तभी संभव है जब वे आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनेंगी, आर्थिक रूप से सक्षम होंगी. आज पढ़ीलिखी और सम?ादार लड़कियां यह जरूर सम?ा चुकी हैं कि पढ़नेलिखने से ही उन के सपने पूरे होंगे. आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होने पर योग्य विवाह में भी ज्यादा परेशानी नहीं होती है.
वहीं ससुराल में भी उचित सम्मान मिलता है. वरना वे पहले की तरह ही दुत्कारी जाती रहेंगी. उन पर पहले की तरह अत्याचार होता रहेगा और वे आज भी बेचारी कहलाती रहेंगी. आर्थिक रूप से सक्षम लड़कियां अपने जीवनसाथी के चयन का निर्णय मातापिता पर निर्भर न हो कर स्वयं भी ले रही हैं. कई बार जातबिरादरी से इतर भी जीवनसाथी बना कर अपना जीवन सुखमय बिता रही हैं. जहां कल तक लड़कियों के लिए शादीब्याह पहली प्राथमिकता के रूप में देखा जाता था, अब उन की पहली प्राथमिकता कैरियर बनाना हो गया है. कई बार कैरियर बनाने के चक्कर में शादीब्याह की उम्र भले ही बीती जा रही है लेकिन तो भी उन के लिए ज्यादा फर्क नहीं पड़ रहा है.
आज पढ़ीलिखी लड़कियां अपने पतियों के नाम से नहीं, खुद के नाम से पहचानी जाती हैं. तभी तो लड़कियां ओलिंपिक से ले कर अंतरिक्ष में भी अपनी जगह बनाने में कामयाब हो रही हैं. वे आज कई मोरचों पर अपनी जगह बनाने में सफल हो रही हैं. आज लड़कियां राजनीति से ले कर सेना तक में अपनी जगह बनाने में सफल हो रही हैं. द्य भारतीय महिला हौकी खिलाडि़यों ने टोक्यो ओलिंपिक में बेहतर प्रदर्शन किया. यह उन की बेहतर मेहनत का नतीजा है. महिला हौकी टीम की रानी रामपाल हरियाणा के शाहबाद की रहने वाली एक गरीब परिवार से ताल्लुक रखती हैं. उन के पिता तांगा चलाते हैं. उन की मां एक गृहिणी है. उन का एक भाई किसी दूसरों के किराने की दुकान पर सहायक के रूप में काम करता है जबकि एक भाई बढ़ईगीरी करता है. ऐसे में वह काफी मेहनत कर इस मुकाम तक पहुंची हैं. द्य महिला हौकी टीम की राष्ट्रीय खिलाड़ी सुशीला चानू मणिपुर के इंफाल की रहने वाली हैं. उन के पिता ट्रक ड्राइविंग का काम करते हैं. उन की मां घर के खर्चे के लिए चाय की दुकान चलाती थीं.
हालांकि उन के हालात सुधरने के बाद मां की चाय की दुकान अब बंद हो चुकी है. उन का शुरुआती रु?ान फुटबौल के प्रति था. बाद में उन्होंने काफी मेहनत कर हौकी खेलना शुरू किया. द्य टोक्यो ओलिंपिक के सैमीफाइनल में भारत के हारने के बाद ऊंची जाति वालों ने उत्तराखंड के होशंगाबाद की रहने वाली अनुसूचित जाति की वंदना कटारिया के घर के आगे पटाखे फोड़ कर जश्न मनाया, साथ ही उन्होंने यह टिप्पणी भी की कि यह खिलाड़ी छोटी जाति से होने के कारण टोक्यो ओलिंपिक के फाइनल में जगह नहीं बना सकी. इन लड़कियों को समाज से, गरीबी से, दकियानूसी परंपरा और व्यवस्था से काफी संघर्ष करना पड़ा है तब जा कर ये सफलता का स्वाद चख पाई हैं. द्य हरियाणा के किसान परिवार में जन्मी गुरजीत कौर का शुरू में हौकी खेल से दूरदूर का भी वास्ता नहीं था.
लेकिन एक बार वह हौकी खेल देख कर इतना प्रभावित हुई कि हौकी खेलने का मन बना लिया. वर्षों तक खेल के मैदान में पसीना बहाने के बाद टोक्यो ओलिंपिक में आस्ट्रेलिया के खिलाफ गोल कर सैमीफाइनल में जगह बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. द्य ?ारखंड राज्य की रहने वाली 19 वर्षीया सलीमा टेटे बेहद ही गरीब परिवार से ताल्लुक रखती हैं. अभाव और गरीबी के कारण उन्हें खेतों में मजदूरी तक करनी पड़ी थी. उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया था कि उन्होंने टोक्यो ओलिंपिक में खेलने से मात्र कुछ साल पहले स्पोर्ट्स शूज पहली बार पहने थे. वे शुरुआती दिनों में पैसे के अभाव में बिना जूते के ही खेल प्रैक्टिस करती थीं. द्य दीपा ग्रेस एक्का का जन्म ओडिशा राज्य के सुंदरगढ़ जिले के लुलकीदिही गांव के एक साधारण आदिवासी परिवार में हुआ. यह अलग बात है कि वह अपने टैलेंट की बदौलत हौकी टीम में नहीं चुनी गई थी बल्कि वह कदकाठी के कारण हौकी टीम में जगह बनाने में कामयाब हो पाई थी. पहले वह गोलकीपर बनना चाहती थी लेकिन बाद में डिफैंडर के तौर पर खेलने लगी. उसे दूसरी बार टोक्यो ओलिंपिक में खेलने का मौका मिला और इस बार वह टीम के सैमीफाइनल तक पहुंचने में सफल हो पाई. द्य भारतीय महिला हौकी टीम की मजबूत खिलाड़ी शर्मिला देवी का जन्म हरियाणा राज्य के हिसार के कैमरी गांव के एक साधारण किसान परिवार में हुआ. उस में जोश,
हौसला और जनून कूटकूट कर भरा है. वह मैदान में करिश्माई अंदाज में खेलने वाली कम उम्र की श्रेष्ठ खिलाड़ी बन गई है. वह भारतीय टीम में जगह पा कर बेहद खुश थी. द्य ओडिशा के जिला राजगांगपूर के एक गांव जोरुमाल की रहने वाली नमिता टोप्पो छोटे से गांव से निकल कर अपने देश की महिला हौकी टीम की तरफ से टोक्यो ओलिंपिक में खेल कर सब के दिल में जगह बना चुकी है. वह जैसे ही खेल समाप्ति के बाद अपने छोटे से गांव में लौटी, पूरे इलाके के लोग उस के स्वागत में उमड़ पड़े थे. द्य ?ारखंड राज्य की महिला हौकी खिलाड़ी निक्की प्रधान के पिता सोमा प्रधान बिहार पुलिस में हैं और उन की मां जीतन देवी गृहिणी हैं. जब वह टोक्यो ओलिंपिक खेल के समय सुर्खियों में आई, तब उस के गांव के लोगों ने जाना कि वह एक हौकी की खिलाड़ी है. आज उस की वजह से अनेक लड़कियां हौकी खेल में जाना चाहती हैं. द्य हरियाणा में जन्मी नेहा गोयल का सफर काफी संघर्षपूर्ण रहा है. उन के पिता शराबी थे. उन दिनों उन का परिवार आर्थिक रूप से काफी कमजोर था. उन की सहेली ने यह बताया था कि अगर तुम हौकी खेलोगी तो तुम्हें अच्छे जूतेकपड़े पहनने को मिलेंगे. बस,
इसी लालच के कारण वे हौकी खेलने लगी थीं. उन के पिता की 2017 में मृत्यु हो जाने के बाद मां को किसी फैक्ट्री में भी काम करना पड़ा था. कई लोगों ने उन की मां को सम?ाया था कि यह लड़की है, इसे खेलनेकूदने से मना करे पर मां ने ऐसा नहीं किया. इन साधारण दिखने वाली लड़कियों को देख कर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि ये लड़कियां समाज की परंपराओं से लड़ कर आगे बढ़ीं. अगर ये भी आम लड़कियों की तरह क्रीमपाउडर के पीछे रहतीं तो शायद इतने बड़े मुकाम पर नहीं पहुंच पातीं. ये सभी साधारण दिखने वाली लड़कियां क्रीम के पीछे नहीं, बल्कि एक हसीन ड्रीम के पीछे भागीं. तभी ये अपने जीवन में खूबसूरत मुकाम हासिल कर पाई हैं.