देशकी बड़ी बड़ी आईटी कंपनियां आजकल ऐक्सपैंशन प्लान नहीं बना रही हैं, वे आजकल वीडिंग आउट प्लान बना रही हैं. उम्मीद है कि इन्फोसिस, विप्रो, कोगनीजैंट जैसी कंपनियां 50 हजार से 1 लाख कर्मचारियों की तो छंटनी कर देंगी. एक तो पश्चिमी देशों में भी प्रगति की रफ्तार कम हो गई है और दूसरी तरफ अमेरिका के खप्ती राष्ट्रपति डौनल्ड ट्रंप अमेरिका फौर अमेरिकंस का राग अलाप रहे हैं. उन की देखादेखी दूसरे देश भी डिफैंसिव मोड में आ गए हैं और बाहरी युवाओं का रास्ता रोक रहे हैं और अपने देश का आईटी बिजनैस बाहर जाने पर पाबंदियां लगा रहे हैं.

भारतीय युवाओं के लिए यह बुरी खबर है क्योंकि सरकारी नौकरियों का तो वैसे ही अकाल है. निजी क्षेत्र में व्यापार व उद्योग बढ़ रहे हैं पर कम. ज्यादा तकलीफ यह है कि छोटे निजी हों या बड़े सरकारी रोजगार देने वाले, वे ट्रेनिंग देने के इच्छुक नहीं हैं और सीखेसिखाए लोगों को ही रखना चाहते हैं.

भारतीय युवा वैसे भी कम उत्साही हैं. हमारे यहां हरेक में भारी जंग लगा है. जातिगत अहंकार के कारण जो ज्यादा पढ़ेलिखे हैं वे हाथ का काम नहीं करना चाहते और जो मजबूरी में हाथ का काम करने को तैयार हैं वे नया जानने को उत्सुक नहीं हैं. ऐसे में पुरानी नौकरियां कम हो जाएं और नई नौकरियां न निकलें तो स्थिति गंभीर हो जाएगी.

यह दुनिया के कई देशों में हो रहा है जहां मौजमस्ती, ड्रग्स, नाचगाने, भक्ति, सैक्स का बोलबाला है. वहां लोग सोचते हैं कि काम अपनेआप टपकेगा. कोई नौकरी देगा, चाहे सरकार दे या देवीदेवता. वे खाने को, हल्ले को तैयार हैं, काम करने को नहीं.

देश के आईटी सैक्टर ने लाखों घर रोशन किए हैं. विदेश जाने के सपने ने बहुतों को कठिन मेहनत करने के लिए उत्साहित किया है. देश में भारी भरतियों ने कल के प्रति उत्साह जगाया. जगहजगह जो कोचिंग क्लासें खुलीं इस का सुबूत है कि देश का युवा कम से कम पढ़ने को तो उत्सुक हुआ था, पर अब जिस तरह की खबरें सुर्खियां बन रही हैं, देश का युवा निराशाजनक हालत में हैं.

उम्मीद करनी चाहिए कि यह पासिंग फेज है. दुनिया की सोच बदलेगी. जैसे फ्रांस में इमैनुअल मैक्रौन ने नई सोच दी है वैसी ही दूसरे देश देंगे और ट्रंप व थेरेसा मे (इंगलैंड की प्रधानमंत्री) जैसे संकीर्ण नेताओं को कल को इतिहास के कूड़ेदान में डाल दिया जाएगा. युवा भारत को हार मानने की जरूरत नहीं. हमारी जर्नी तो अभी शुरू हुई है.

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