पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपना वेतन नहीं लेतीं. सूती साड़ी और हवाई चप्पलों में सादगी का जीवन जीती हैं, जबकि उन का मंत्री पार्थ चटर्जी घोटालेबाज निकला. उस ने ‘शिक्षा घोटाले’ में हासिल किए नोटों के बंडल अपनी दोस्त हीरोइन अर्पिता मुखर्जी के हवाले कर दिए, जिन्हें वह छिपा नहीं पाई. ईडी ने जब इस का खुलासा किया तो…
पश्चिम बंगाल सरकार ने साल 2016 में स्कूल सेवा आयोग (एसएससी) को सरकार द्वारा संचालित और सहायता प्राप्त स्कूलों के लिए 13,000 क्लर्क और चपरासियों की भरती के लिए एक अधिसूचना जारी करने के आदेश दिए थे. राज्य में करोड़ों बेरोजगार युवाओं के लिए यह ऊंट के मुंह में जीरा जैसी ही थी. नतीजा इस सरकारी नौकरी को पाने की चाहत में बेरोजगार पैरवी और पहुंच के तार पकड़ने लगे.
स्कूलों में क्लर्क और चपरासी की नौकरी पाने के लिए लाखों उम्मीदवारों ने आवेदन किया था. उन्हें प्रतियोगी परीक्षा और इंटरव्यू के जरिए नियुक्त किया जाना चाहिए था. उस वक्त ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस की सरकार में पार्थ चटर्जी शिक्षा मंत्री थे.
एक तरफ शिक्षा विभाग द्वारा भरती के लिए प्रतितियोगिता परीक्षा की तैयारी चल रही थी तो दूसरी तरफ बिचौलिए किस्म के लोगों ने पद की बोली लगा दी थी और वे शहरों और कस्बे में फैल गए थे.
ऐसे ही एक व्यक्ति एक उम्मीदवार को ले कर सेटिंग कराने के लिए आसनसोल के एक होटल पहुंचा. वहां उस ने उस युवक की मुलाकात एक दलाल से कराई.
मुलाकात के दौरान दलाल ने उम्मीदवार से पूछा, ‘‘तुमी बंगाली?’’
‘‘ना ना, बंगाली नय. आमी बिहारी!’’ उस के साथ आया व्यक्ति बोला.
‘‘नन बंगाली ऐटा नौकरी ना होवे.’’ सिगरेट जलाते हुए दलाल इनकार करने के अंदाज में बोला.
‘‘टका देबो ना! आधार कार्ड एखना होबे.’’ उम्मीदवार के साथ आए व्यक्ति ने कहा.
‘‘क्लर्क आ चपरासी?’’ दलाल ने पूछा.
‘‘चपरासी,’’ साथ आया व्यक्ति बोला.
तब दलाल ने सकारात्मक गरदन हिलाते हुए सिगरेट के पैकेट का ऊपरी हिस्सा फाड़ा. छोटे से टुकड़े पर लिखने के लिए वह बैड पर ही पेन तलाशने लगा. तब तक उम्मीदवार के साथ आए व्यक्ति ने ही अपना बालपेन जेब से निकाल कर उस की तरफ बढ़ा दिया.
‘‘होशियार होबे.’’ दलाल मुसकराता हुआ बोला और उस का पेन ले कर लिखने लगा. कुछ सेकेंड बाद सिगरेट पैकेट की छोटी परची पेन के साथ उसे पकड़ा दी. परची पर लिखा अमाउंट देख कर उम्मीदवार चौंकता हुआ बोला, ‘‘5 लाख! बहुत होबे.’’
‘‘बहुत ना होबे! मिनिस्टर लेबे…ओकरा असिस्टेंट लेबे…! एतना से अधिक बंट जाबे.’’ दलाल अपने हाथ की 4 अंगुलियां दिखाते हुए बोला.
‘‘ठीक आचे… एकारा एडमिट कार्ड आ एडवांस! बाकी कल देबो.’’ साथ आए व्यक्ति ने बैग से फाइल निकाली. उस में से एक पेपर निकाल कर गौर से देखा, फिर पेन से एक जगह पर निशान लगा कर दलाल को पकड़ा दिया. उस के बाद उस ने साथ आए उम्मीदवार की तरफ इशारा किया तो उस युवक ने पैंट की भीतरी जेब से 2-2 हजार के कुछ नोट निकाल कर उस की तरफ बढ़ाते हुए बोला, ‘‘50 हजार होबे, बाकी कल ऐही टाइम.’’
नौकरी के नाम पर बटोरे पैसे
इस तरह पश्चिम बंगाल के शिक्षा विभाग में नौन टीचिंग स्टाफ के लिए एक सौदा तय हो गया था. उस उम्मीदार को नौकरी मिली या नहीं, यह पता नहीं चला, कारण उस जैसे पूरे पश्चिम बंगाल में हजारों की संख्या में उम्मीदवारों ने पैसा दे कर अपनी नौकरी पक्की करवाई थी.
किंतु इतना जरूर था कि विभाग में नियुक्ति की प्रक्रिया समय पर पूरी कर ली गई. इस का फायदा तृणमूल कांग्रेस को राज्य में विधानसभा चुनाव 2021 में मिला. इस चुनाव में भाजपा ने बहुत कोशिश की, मगर तृणमूल कांगे्रस को पछाड़ नहीं पाई.
इस के बाद भाजपा के निशाने पर ममता बनर्जी के विधायक से ले कर मंत्री तक आ गए थे. वे उन की खामियां निकालने के साथसाथ उन के द्वारा पिछली सरकार में हुई अनियमितताओं और भ्रष्टाचार की पोल खोलने में जुट गए.
जल्द ही ममता सरकार के चहेते मंत्री पार्थ चटर्जी निशाने पर आ गए. उन के खिलाफ कई शिकायतें दर्ज हुईं. यहां तक कि मामला अदालत तक पहुंच गया.
अदालत ने 2 मामलों में सुनवाई की. एक मामला एसएससी घोटाले से जुड़ा था, जबकि दूसरा मामला पश्चिम बंगाल माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (डब्ल्यूबीबीएसई) द्वारा कथित तौर पर कम से कम 25 व्यक्तियों की नियुक्तियों का था. साल 2019 में ये नियुक्तियां तब की गई थीं, जब इस से जुड़े लोगों के पैनल की समय सीमा खत्म हो गई थी.
दरअसल, नवंबर 2021 में कोलकाता हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी, जिस में इन नियुक्तियों को ‘अवैध’ कहते हुए व्यवस्था में भ्रष्टाचार बताया गया था. इस के बाद हाईकोर्ट ने एसएससी और पश्चिम बंगाल बोर्ड (डब्ल्यूबीबीएसई) से हलफनामे मांगे थे और मामले की सुनवाई आगे बढ़ा दी थी. इस का जवाब देते हुए दोनों संस्थाओं ने
खुली अदालत में एकदूसरे के विपरीत तथ्य पेश किए थे. एसएससी ने अपने हलफनामे में दावा किया था कि उस ने अपनी ओर से किसी कर्मचारी की नियुक्ति की सिफारिश के लिए चिट्ठी नहीं जारी की, जबकि डब्ल्यूबीबीएसई ने कहा कि उसे एक पेन ड्राइव में डेटा मिला था. इसी के तहत इन लोगों की नियमानुसार नियुक्ति हुई थी.
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं ने यह भी दावा किया कि एसएससी पैनल का कार्यकाल खत्म होने के बाद बंगाल बोर्ड में 25 नहीं, बल्कि 500 से ज्यादा लोगों को नियुक्त कर दिया गया. इन में से ज्यादातर अब राज्य सरकार से वेतन ले रहे हैं.
सुनवाई के दौरान इस मामले में जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय की बेंच ने सीबीआई जांच का आदेश दे दिया. दूसरी तरफ डिवीजन बेंच ने उन के आदेश पर 2 हफ्ते की रोक लगा दी. यह भी कुछ कम चौंकाने वाली बात नहीं थी. हालांकि बाद में जस्टिस गंगोपाध्याय ने भारत के चीफ जस्टिस और कलकत्ता हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश का ध्यान इस ओर खींचा.
उस के बाद ही जस्टिस गंगोपाध्याय ने सीबीआई को आदेश दिया कि वह डब्ल्यूबीबीएसई के पूर्व सलाहकार शांति प्रसाद सिन्हा और 4 अन्य लोगों से नियुक्ति में गड़बड़ी के लिए पूछताछ करे.
इस तरह से शिक्षा विभाग की संस्थानों से जुडे़ मामले में सीबीआई जांच शुरुआत हो गई. वैसे जांच शुरू होने से पहले अदालती आदेशों को लागू करने को ले कर भी नाटकीय घटनाएं हुईं. जहां सिन्हा से सीबीआई ने पूछताछ की, वहीं इस मामले में बाकी लोग डिवीजन बेंच जा पहुंच थे.
जस्टिस हरीश टंडन और रबींद्रनाथ सामंत की बेंच ने निजी कारणों से याचिकाकर्ताओं की अपील पर सुनवाई से इनकार कर दिया था. इस के बाद जस्टिस टी.एस. शिवगनानम और सब्यसाची भट्टाचार्य की डिवीजन बेंच ने भी अपील पर सुनवाई से इनकार कर दिया था.
बाद में यह याचिका जस्टिस सोमेन सेन और जस्टिस ए.के. मुखर्जी की बेंच को सौंपी गई थी. हैरानी की बात यह हुई कि इस बेंच ने भी याचिकाओं को सुनने से मना कर दिया. चौथी बार ए याचिकाएं जस्टिस जौयमाल्या बागची और बिवस पटनायक की डिवीजन बेंच के सामने आई जरूर, लेकिन इस बेंच ने भी मामले पर सुनवाई नहीं की.
दोनों जजों ने चीफ जस्टिस से केस को किसी और बेंच को सौंपने के लिए कहा. आखिरकार पांचवीं बार में जस्टिस सुब्रत तालुकदार और जस्टिस कृष्ण राव की बेंच ने सुनवाई के लिए हामी भरी और इस मामले पर सुनवाई आगे बढ़ी. तब मामला केंद्र के प्रवर्तन निदेशालय यानी इनफोर्समेंट डायरेक्टोरेट (ईडी) तक जा पहुंचा. ईडी ने इस मामले में मई 2022 में जांच शुरू कर दी, लेकिन 22 जुलाई को इस के द्वारा ममता बनर्जी सरकार के मंत्री पार्थ चटर्जी के ठिकानों समेत 14 जगहों पर छापेमारी की गई.
उस छापेमारी के दौरान ईडी को अर्पिता मुखर्जी की प्रौपर्टी के दस्तावेज मिले थे. इस बारे में जब पार्थ चटर्जी से अर्पिता के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कुछ भी बताने से इनकार कर दिया. ईडी को उस के बारे में सिर्फ इतना मालूम हो पाया कि वह एक औसत दरजे की हीरोइन है. उस ने कुछ बंगला फिल्मों और सीरियलों में काम किया है. साथ ही राजनीतिक पहुंच भी रखती है.
इस के बाद ईडी ने जांच का दायरा बढ़ा दिया और हीरोइन अर्पिता मुखर्जी के फ्लैट पर छापेमारी की. उस का फ्लैट पार्थ के निवास के करीब ही था. यह छापेमारी चौंकाने वाली थी.
एजेंसी को अर्पिता के फ्लैट से करीब 21 करोड़ रुपए कैश, 60 लाख की विदेशी करेंसी, 20 फोन और अन्य दस्तावेज मिले. 2 हजार और 500 रुपए के नोट अनाज के ढेर की तरह कमरे में पड़े थे. उन्हें सहेजने और गिनने में ईडी के अधिकारियों के पसीने छूट गए.
उस के बाद मीडिया में जैसे ही यह खबर फैली, इसे ले कर चौतरफा चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया. अंगुली ममता बनर्जी पर उठी और उन की सरकार में कैबिनेट मंत्री पार्थ चटर्जी पर ईडी ने शिकंजा कस लिया. इस घोटाले के प्रभाव का असर यह हुआ कि पार्थ को तत्काल पश्चिम बंगाल सरकार में वाणिज्य और उद्योग विभाग के वर्तमान मंत्री पद से हटा दिया गया.
ईडी ने कई विधायकों पर कसा शिकंजा
वे राज्य के पूर्व शिक्षा मंत्री भी थे और जांच उन के कार्यकाल के दौरान हुए घोटाले से ही जुड़ी थी. यही नहीं, उन के पास तृणमूल कांग्रेस के पश्चिम बंगाल के महासचिव का राजनीतिक पद भी था.
ईडी द्वारा अर्पिता के दूसरे ठिकानों पर छापेमारी की गई, जिस में उन के घर से 27.9 करोड़ रुपए कैश मिला. इस तरह कथा लिखे जाने तक अर्पिता के ठिकानों से ईडी द्वारा 53 करोड़ से अधिक का काला धन बरामद किया जा चुका था. वहां से मिले दस्तावेजों और डायरी से कई दूसरे विधायक भी संदेह के घेरे में आ गए थे.
फिर क्या था, ईडी ने इस मामले में पार्थ चटर्जी, अर्पिता मुखर्जी के अलावा तृणमूल कांग्रेस के विधायक माणिक भट्टाचार्य और मंत्री परेश अधिकारी से भी पूछताछ की. इतना ही नहीं, अधिकारी की बेटी अंकिता अधिकारी की टीचर की नौकरी भी चली गई. आरोप लगा कि अंकिता अधिकारी को नियमों को ताक पर रख कर नौकरी दी गई थी.
पार्थ चटर्जी और अर्पिता मुखर्जी जिस मामले में फंसे हैं, वह पश्चिम बंगाल का एक बड़ा शिक्षा भरती घोटाला है. वह मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के काफी करीबी नेता माने जाते हैं. वह तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर 2001, 2006, 2011, 2016 और 2021 में लगातार 5 बार विधायक चुने जा चुके हैं. पार्थ चटर्जी का जन्म 6 अक्तूबर, 1952 को कोलकाता में हुआ था. उन्होंने रामकृष्ण मिशन विद्यालय, नरेंद्रपुर से प्रारंभिक शिक्षा हासिल की थी. उस के बाद उन्होंने आशुतोष कालेज से अर्थशास्त्र की पढ़ाई पूरी की. बाद में उन्होंने एमबीए की डिग्री हासिल की और मल्टीनेशनल कंपनी ‘द एंड्रयू यूल ग्रुप’ में बतौर ह्यूमन रिसोर्स मैनेजर काम किया.
पार्थ चटर्जी का राजनीतिक करियर 2001 में चमका. इसी साल वह बेहाला (पश्चिम) विधानसभा सीट से पहली बार विधायक चुने गए. 2006 में उन्होंने दोबारा जीत हासिल की. जिस के बाद उन्हें पश्चिम बंगाल विधानसभा में विपक्ष का नेता चुना गया.
लगातार चमकती गई किस्मत
2011 में उन्होंने लगातार तीसरी बार जीत पाई. उसी साल वह मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की सरकार में कैबिनेट मंत्री भी बने. तब उन्हें वाणिज्य और उद्योग, सार्वजनिक उद्यम, सूचना प्रौद्योगिकी और इलेक्ट्रौनिक्स तथा संसदीय मामलों के विभाग दिए गए थे.
इस के बाद 2016 और 2021 में भी बेहाला (पश्चिम) की जनता ने उन्हें विधायक चुना. दोनों बार वह मंत्री बनाए गए. साल 2016 के विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करने के बाद उन्हें उच्च शिक्षा और स्कूल शिक्षा विभाग का मंत्रालय सौंपा गया, जबकि 2021 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में लगातार 5वीं बार जीतने के बाद उन्हें दोबारा वाणिज्य और उद्योग, सूचना प्रौद्योगिकी और इलेक्ट्रौनिक्स के विभाग मिले.
पश्चिम बंगाल शिक्षा विभाग के भरती घोटाले में पार्थ चटर्जी को हिरासत लिए जाने के बाद अब उन का नया ठिकाना कोलकाता की प्रेसिडेंसी जेल और पहचान कैदी नंबर 943799 की है. हालांकि उन्हें वहां कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.
पैर में सूजन की समस्या बढ़ गई है और डाक्टरों की निगरानी में हैं. उन्हें सोने और खानेपीने तक में परेशानियों से जूझना पड़ रहा है. बताते हैं कि थुलथुली देह की वजह से पार्थ का जमीन पर बैठना मुश्किल होता है. जबकि जेल की कोठरी में, बिस्तर तो दूर की बात, एक कुरसी तक नहीं दी गई है.
इस घोटाले में हीरोइन अर्पिता का नाम भी आया है, जो पार्थ की करीबी रही हैं. ईडी के मुताबिक अर्पिता मुखर्जी से भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) के 31 पौलिसी के बौंड मिले हैं, जिन का सालाना प्रीमियम 50,000 रुपए है. ज्यादातर पौलिसी चल रही हैं और इन में से अधिकतर में नौमिनी पार्थ चटर्जी हैं.
ईडी अब इस पैसे के स्रोत की जांच कर रही है. किस खाते से प्रीमियम जमा किया गया था. ईडी ने इस की जांच शुरू कर दी है. बीमा प्रीमियम का भुगतान किस ने किया? ईडी एलआईसी अधिकारियों से इस पैसे का स्रोत जानने के लिए कहेगा. इस के अलावा ईडी के अधिकारियों को 50 संदिग्ध बैंक अकाउंट की जानकारी भी मिली है.
अर्पिता को इस मामले में कैश क्वीन कहा जा रहा है, जो पार्थ को 10 साल से जानती हैं. दोनों ने साथ मिल कर प्रौपर्टी के तौर पर एक फार्महाउस खरीदा है, जिस की नेम प्लेट पर नाम ‘अ-पा’ लिखा गया था.
अर्पिता शिक्षा घोटाले में अब बुरी तरह से फंस चुकी हैं. उन के खिलाफ ईडी जांच में कैश के साथसाथ 6580 ग्राम सोना भी जब्त किया गया.
अर्पिता मुखर्जी का जन्म कोलकाता के उत्तरी उपनगर बेलघोरिया के एक मध्यवर्गीय परिवार में हुआ था. कालेज के दिनों में वह मौडलिंग किया करती थीं. उसी दौरान
उन्हें बंगाली फिल्मों में छोटेमोटे रोल मिल गए थे. हालांकि साल 2008 में फिल्म ‘पार्टनर’ से बंगाली फिल्म में मुख्य भूमिका निभाने का मौका मिला था. उस के अगले साल उन्होंने 2009 में बंगाली सुपरस्टार प्रोसेनजीत चटर्जी के साथ ‘मामाभागने’ नाम की फिल्म में भी काम किया था.
बंगाली के अलावा उन्होंने कई भूमिकाएं उडि़या फिल्मों में भी निभाईं. लग्जरी लाइफस्टाइल जीने वाली अर्पिता एक हीरोइन के रूप में 2008 से 2014 तक सक्रिय रहीं. उन्होंने झाड़ग्राम के एक बिजनेसमैन से शादी कर ली थी.
हालांकि कुछ महीने बाद ही वह पति से अलग हो गईं और कोलकाता आ कर फिल्मों में काम करने लगी थीं. इसी दौरान उन की दोस्ती पार्थ चटर्जी से हो गई.
ईडी को इस बात का यकीन है कि उन के यहां से जो नकदी बरामद हुई है, वह पार्थ चटर्जी की ही होगी. लेकिन कथा लिखे जाने तक उन्होंने अधिकारियों को यह बात नहीं बताई थी कि यह रकम उन के घर कहां से आई.