अंशिका एक एनर्जी बेस्ड कंपनी में इंजीनियर के पद पर कार्य करती थी. वह बेहद सुल झी व विनम्र स्वभाव की लड़की थी. अपने साथियों की वह जहां तक संभव हो सकता था, मदद करती थी. धीरेधीरे उस के बौस विभाग के सब छोटेबड़े काम के लिए उसे ही याद करने लगे. अंशिका अपनी मेहनत के बल पर अपने कर्मक्षेत्र में आगे बढ़ रही थी. वहीं दूसरी ओर उसी दफ्तर में रुचि मेहनत के बजाय ग्रहनक्षत्रों में उल झी हुई थी. रुचि दफ्तर की हर समस्या का समाधान व्रतों और अंगूठियों में खोजती थी.
कोई भी नया प्रोजैक्ट अगर रुचि को मिलता तो वह अपने पंडितजी से पूछे बिना हां नहीं कहती थी.
रुचि अपनी इन बेवकूफियों के कारण दफ्तर में तरक्की नहीं कर पाई और उस के लिए भी उस ने अपने ऊपर चल रही शनि की साढ़ेसाती को जिम्मेदार ठहराया. काश, कोई होता जो रुचि को बता पाता कि समय अच्छा या बुरा ग्रहनक्षत्रों से नहीं, हमारे कर्मों से बनता है.
उधर ज्योति जो एक प्राइवेट स्कूल में टीचर थी अपने गुरुजी की इतनी बड़ी भक्त थी कि उन की हर बात को वह पत्थर की लकीर मानती थी. ज्योति को लगता था कि उन की हर बात को मान कर उस की नौकरी तो बची ही रहेगी, उसे पदोन्नति भी मिल जाएगी.
स्कूल के काम पर ध्यान न दे कर उस ने बस पूजापाठ पर ध्यान दिया और नतीजा यह निकला कि लापरवाही के कारण ज्योति को नौकरी से हाथ धोना पड़ा.
ऊपर दिए उदाहरण रियल लाइफ से ही लिए गए हैं. जब एक युवा उत्साह के साथ दफ्तर में प्रवेश करता है तो अकसर वह दफ्तर की राजनीति का शिकार हो जाता है. इस राजनीति के कारण वह अकसर तनाव में रहने लगता है. इस तनाव से निबटने के 2 उपाय हैं, पहला आप समस्या को देखें और उस का समाधान ढूंढ़ने का प्रयास करें और दूसरा जो अकसर लोग करते हैं वह है पंडितों के सहारे समाधान ढूंढ़ना. इस के लिए वह हवन, कीर्तन, तंत्रमंत्र में हजारों खर्च कर देता है. मगर थोड़ा सा ठंडे दिमाग से बैठ कर उस का समाधान ढूंढ़ने की कोशिश नहीं करेगा.
मेहनत का कोई तोड़ नहीं : दफ्तर में ऐसे बहुत से घाघ कर्मचारी होंगे जो हमेशा काम न करने के बहाने बनाने में एक्सपर्ट होते हैं. इन लोगों के घर में हमेशा एक न एक मुसीबत खड़ी रहती है. ये लोग टैक्नोलौजी से नावाकिफ होते हैं पर सारे सोशल मीडिया प्लेटफौर्म्स से वाकिफ होते हैं. दफ्तर में मेहनत करने वालों की ही साख होती है. मेहनत का कोई विकल्प नहीं होता. कामचोर लोग कुछ दिन मजे कर सकते हैं मगर आगे बढ़ने के लिए मेहनत करना जरूरी है.
नो शौर्टकट : अगर आप दफ्तर के किसी काम से वाकिफ नहीं हैं तो अपने जूनियर या सीनियर से मदद लेने से हिचकिचाएं मत. बहुत बार देखने में आता है कि अगर काम में कोई परेशानी होती है तो अपने सहकर्मियों से मदद लेने के बजाय व्रत या अंगूठी पहनने लगते हैं. उन्हें लगता है कि ऐसा करने से उन की समस्या हल हो जाएगी. याद रखिए सफलता का कोई शौर्टकट नहीं होता. आप जितना काम करेंगे उतना ही आप का आत्मविश्वास बढ़ेगा.
काम बनता है कर्मों से : समीर अपने कम्फर्ट जोन से बाहर आ कर कभी कोई भी काम नहीं करता था पर जैसे ही किसी को प्रमोशन मिलता था, समीर हमेशा यह बोल कर पल्ला झाड़ देता था कि यह सब किस्मत का खेल है.
समीर जैसे लोगों को इस बात का बिल्कुल पता नहीं कि किस्मत हमारी हाथों की लकीरों से नहीं, बल्कि हमारे कामों से बनती है. किस्मत खुद कुछ नहीं है. हम जैसा काम करते हैं वैसा ही फल हमें मिलता है चाहे वह औफिस हो या जिंदगी.
प्रोफैशनल बनें: यह आज के समय में सब से अधिक जरूरी है. आप विनम्रता और दृढ़ता दोनों को साथ ले कर चलेंगे तो आप को किसी भी पूजापाठ की जरूरत नहीं पड़ेगी. प्रोफैशनलिज्म ही वह मंत्र है जो आप की सफलता के लिए जरूरी है.
ब्रेक ले कर काम करें : एक बार हम नौकरी करना आरंभ करते हैं तो अपने शौक को पीछे छोड़ देते हैं जो सही नहीं है. यह आप के शौक ही तो हैं जो आप को जिंदा रखते हैं. आप के शौक आप को असीम खुशी और ऊर्जा से भर देंगे जो आप को आप के दफ्तर के काम को और बेहतर ढंग से करने में मदद करेंगे.
तनाव को मत होने दें हावी : कोई भी नया काम आते ही तनावग्रस्त होने के बजाय आप उस काम को सम झने की कोशिश करें. तनाव को दूर करने का एक ही उपाय है, आप उस काम को करें जो आप को तनाव देता है. शायद कुछ मुश्किल होगी, मगर एक बार आप ने यह कर लिया तो आप का आत्मविश्वास बढ़ जाएगा. आप अपनेआप को स्वावलंबी महसूस करेंगे.
जिंदगी में जब भी कोई मुश्किल आए तो मंदिर या मसजिद में मदद ढूंढ़ने के बजाय एक बार खुद से मदद मांगिए. खुद को यह विश्वास दिलाएं कि आप को अपनी मदद खुद ही करनी है.
ग्रह, नक्षत्र, अच्छा या बुरा समय उन ही लोगों का होता है जो खुद पर विश्वास नहीं रखते हैं. हर मुश्किल का डट कर मुकाबला करें. ये मुश्किलें आप को परेशान करने नहीं, बल्कि आप को मजबूत बनाने आई हैं.