चीन ने 30 देशों के प्रमुखों और लगभग 100 देशों के प्रतिनिधियों को जमा कर के वन बैल्ट वन रोड का जो सपना परोसा है वह सदियों की कूटनीति में अनूठा है और एशिया के देश का दुनिया की अर्थव्यवस्था के केंद्र में आ जाना है. एशिया के सब से बड़े देश चीन ने पिछले 40 सालों में अभूतपूर्व उन्नति की है और अब वह अपने लिए बाजार ढूंढ़ रहा है और अपना प्रभुत्व जमाना चाह रहा है.
वन बैल्ट वन रोड से चीन, रूस, मंगोलिया, पाकिस्तान, यूरोप के अधिकांश देशों को सड़कमार्ग, रेलमार्ग से जोड़ा जाएगा और जलमार्ग से अफ्रीका तक पहुंच होगी. आजकल इन देशों के संबंध अपने पड़ोसियों तक से अच्छे नहीं हैं क्योंकि न रेलें हैं न सड़कें हैं जो एकदूसरे को जोड़ती हैं. जहां रास्ते हैं वहां भी सीमा पर फौजों और कस्टम वालों ने दीवारें खड़ी कर रखी हैं.
प्राचीन रेशम मार्ग, जिस के माध्यम से चीन का रेशम यूरोप जाता था और वहां का सोनाचांदी वापस आता था, अब पुनर्जीवित किया जा रहा है. रूस, टर्की, पाकिस्तान, मंगोलिया तो इस सपने से बहुत खुश हैं क्योंकि उन्हें चीनी सामान और सस्ता मिलेगा और वे अपना कच्चा माल चीनी कारखानों तक पहुंचा सकेंगे.
1940-45 में जिस संयुक्त राष्ट्र संघ की कल्पना विश्व युद्ध के दौरान की गई थी उस में केवल कागजी घोड़े दौड़े थे. आज संयुक्त राष्ट्र संघ यानी यूनाइटेड नेशंस का दुनियाभर में प्रभाव है. पर जमीन पर कहीं यूनाइटेड नेशंस नहीं दिखता. चीन का वन बैल्ट वन रोड सपना अगर साकार हुआ तो दिखेगा. दुनिया के100 से ज्यादा देशों में सड़कें, गैस या तेल के पाइप, बंदरगाह, रेललाइनें दिखेंगी. यह केवल कौन्फ्रैंसरूमों का सपना नहीं है, जमीनी है.
इन मार्गों के किनारेकिनारे सैकड़ों नए शहर बसेंगे, कारखाने बनेंगे जो कच्चा माल खपाएंगे, तैयार माल इधरउधर भेजा जाएगा. अमेरिका के घटते विश्वव्यापी प्र्रभाव को भरने को चीन इतनी तेजी से आएगा, इस की उम्मीद न थी.
भारत को इस से अलग रहना पड़ा है क्योंकि चीनपाकिस्तान मार्ग उस इलाके से जा रहा है जिसे भारत अपना मान रहा है. भारत को यह भी लग रहा है कि चीन पाकिस्तान, नेपाल व म्यांमार के सहारे उसे घेर रहा है. भारत ने श्रीलंका व बंगलादेश को कोशिश कर के रोका है पर वे ज्यादा दिन रुकेंगे, ऐसा नहीं लगता क्योंकि अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जरमनी आदि भी उस के खिलाफ नहीं हैं और वे, चीन के इस सपने में अपने बेरोजगारों के लिए नए अवसर देख रहे हैं. एशिया के अंदरूनी देशों में बड़े बाजार हैं, जो आज कटे हुए हैं. वे अमीर देशों से जुड़ना चाह रहे हैं.
भारत के पास ईरान, इराक, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, नेपाल, बंगलादेश, म्यांमार, थाईलैंड, इंडोनेशिया, कंबोडिया, वियतनाम, मलयेशिया को जोड़ने का अवसर है पर हमारे नेता इतने अंतर्मुखी हैं कि उन्हें पूजापाठों से ही फुरसत नहीं है. उन्होंने चीन का जो विरोध किया, वह जरूरी है, पर पर्याय भी बनाना था जो बना नहीं सके.
चीन प्रति व्यक्ति आय में हर साल 500-600 अमेरिकी डौलर जोड़ रहा है, उस के नेता इस प्रगति का लाभ दूसरों से शेयर भी कर रहे हैं. भारत तो योग के निर्यात को सफल मान कर धन्य होता दिख रहा है. जिस भारत ने कभी बौद्ध धर्म के सहारे पूरे एशिया पर धाक जमाई थी उस का धर्म ही आज सब से बड़ी जंजीर बना हुआ है.
धार्मिक कारणों से ही भारत को पाकिस्तान से बैर रखना पड़ रहा है और इसी वजह से वन बैल्ट वन रोड प्रयास सिर्फ चीन का रह गया वरना यह सिल्क रोड और स्पाइस रूट सामूहिक रूप से भारत व चीन का हो सकता था और ये दोनों एशियाई देश दुनियाभर पर वैसे राज कर सकते थे जैसे इंगलैंड व अमेरिका ने किया था.