महाराष्ट्र में सत्ता के उथल-पुथल के साथ आज एक ही प्रश्न फिजा में अपनी गूंज अनुगूंज के साथ तैर रहा है कि आखिरकार बालासाहेब ठाकरे की बनाई गई शिवसेना का असली हकदार कौन है. देश का कानून, राजनीतिक पार्टियों का संविधान और निर्वाचन आयोग का ऊंट किस करवट बैठेगा. जैसा कि हम आप देख रहे हैं शिवसेना पर उद्धव ठाकरे का वर्चस्व है और मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने से पहले ही एकनाथ शिंदे शिवसेना बागी गुट यह ताल ठोक रहा है कि शिवसेना असल तो हम हैं.

आइए! आज हम इस महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा करते हैं और समझने का प्रयास करते हैं कि अखिर शिवसेना का भविष्य क्या होगा.

हिंदुत्ववादी और महाराष्ट्र की अस्मिता को लेकर के बाला साहब ठाकरे जो कि एक पत्रकार थे ने मुंबई में सातवें दशक में शिवसेना का गठन किया था और धीरे-धीरे शिवसेना ने अपना वजूद बनाया, सैकड़ों समर्थक बन गए.

परिणाम स्वरुप शिवसेना कल तक महाराष्ट्र में कम से कम भारतीय जनता पार्टी के लिए बड़ी भाई की भूमिका में हुआ करती थी.

मगर विगत दिनों दोनों पार्टियों के बीच जो तलवारें खिंची है उससे भाजपा और शिवसेना आमने-सामने हैं. कभी शिवसेना 21 हो जाती है तो कभी भारतीय जनता पार्टी.

उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री पद से अपदस्थ करके उन्हीं के बाएं हाथ एकनाथ शिंदे को शतरंज के चौपड़ पर आगे बढ़ाने वाली भारतीय जनता पार्टी ने एक तरह से बगावत करवा, शिवसेना के विधायकों को अपने प्रभाव में ले कर उद्धव ठाकरे और शिवसेना दोनों को ही खत्म करने का मानो एक प्लान बनाया है. अगर हम उसी तरीके से संपूर्ण घटनाक्रम पर दृष्टिपात करें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि जिस शिवसेना के कंधे पर चढ़कर भारतीय जनता पार्टी महाराष्ट्र में राजनीति की क, ख, ग किया करती  थी आज केंद्रीय सत्ता में बैठकर शिवसेना विशेष तौर पर उद्धव ठाकरे परिवार को राजनीति के हाशिए पर डालना चाहती है. जैसा कि बिहार में रामविलास पासवान के पुत्र चिराग पासवान के साथ किया गया , जैसा कि उड़ीसा में नवीन पटनायक के साथ भाजपा ने करने का प्रयास किया मगर वे सतर्क हो गए भाजपा से अपनी दूरी बना ली है.

क्या होगा उद्धव ठाकरे का!

महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव में सफलता प्राप्त करने के बाद भारतीय जनता पार्टी नेतृत्व करना चाहती थी मुख्यमंत्री चाहती थी, उद्धव ठाकरे इस नकार कर शरद पवार और कांग्रेस के सहयोग से मुख्यमंत्री  बन गए और  पूरे ढाई वर्षो तक सरकार चलाते रहे क्योंकि उनके साथ देश की राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले शरद पवार थे और कांग्रेस का साथ था. मगर जैसा कि संभावित था उद्धव ठाकरे की खामियों को मुद्दा बनाकर के भारतीय जनता पार्टी ने अपने अदृश्य हाथों से उन्हीं की गर्दन नापनी शुरू कर दी. वही नेता जो बाला साहब ठाकरे और उद्धव ठाकरे के सामने मुंह नहीं खोलते थे को ऐसा पाठ पढ़ाया कि वे बगावत करने पर उतारू हो गए.

आज हालात यह है कि उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री पद को छोड़कर अपने पुराने आवास वर्षा में चले गए हैं और महाराष्ट्र में भाजपा जो खेल करना चाहती थी वह हो चुका है. यानी शिवसेना के विधायकों को अपने पाले में कर के उन्हें आगे करके पीछे से गोली चला दी गई है.

किसका होगा शिवसेना पर कब्जा

राजनीतिक पार्टियों के संविधान के मुताबिक अगर हम इतिहास के घटनाक्रम को देखते हुए चर्चा करें तो यह कहा जा सकता है कि एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री की शपथ लेने की पहले ही शिवसेना पर अपना दावा चाहे बड़ी पुरजोर तरीके से कर रहे हों मगर हकीकत यह है कि किसी भी राजनीतिक दल के आलाकमान अर्थात राष्ट्रीय अध्यक्ष और उसकी कार्यकारिणी ही सर्वोच्च शक्ति अपने पास रखती है.

इसका सीधा सा अर्थ यह है कि विधायकों के बूते सत्ता का परिवर्तन तो किया जा सकता है मगर किसी भी पार्टी पर अपना अधिकार पार्टी से बाहर रह करके नहीं किया जा सकता. एकनाथ शिंदे और बागी विधायकों को शिव सेना ने पहले ही बाहर का दरवाजा दिखा दिया है ऐसे में शिवसेना राजनीतिक पार्टी पर कानूनी रूप से उद्धव ठाकरे का ही वर्चस्व रहेगा.
यहां हम पाठकों को बताते चलें कि भाजपा और एकनाथ शिंदे के सामने अब एक ही विकल्प बचता है वो कोई नई राजनीतिक पार्टी बना ले आखिरकार उन्हें यही करना होगा.

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