क्रिकेट के भगवान के खिताब से नवाज दिये गए सचिन तेंदुलकर की बायोपिक ए बिलियन ड्रीम्स उम्मीद के मुताबिक न तो पसंद की गई और न ही सचिन के नाम के हिसाब से बॉक्स ऑफिस पर पैसा इकट्ठा कर पाई, तो इसकी एक बड़ी वजह फिल्म का डाक्यूमेंटरी होना है जिसमें रोमांस नाम का वह तत्व नहीं है जिसके लिए दर्शक थियेटर तक जाता है.

फिल्म इंडस्ट्री में फर्स्ट डे कलेक्शन की अपनी अलग अहमियत होती है जिसे देख फिल्मी दुनिया के अर्थ पंडित भविष्यवाणी करते हैं कि फिल्म कितना कारोबार करेगी. फ़र्स्ट डे कलेक्शन के पैमाने पर देखें तो महेंद्र सिंह धोनी की बायोपिक धोनी – द अनटोल्ड स्टोरी ने रिकार्ड 21.30 करोड़ रुपयों की कमाई की थी, जबकि मशहूर धावक मिल्खा सिंह की ज़िंदगी पर बनी फिल्म भाग मिल्खा भाग ने 8.65 करोड़ रुपये की ओपनिंग दी थी, इस लिहाज से सचिन के सपने बिखरे ही कहे जाएंगे, बावजूद इस सच के कि महज 30 करोड़ की लागत से बनी ए बिलियन ड्रीम्स,  निर्माता रवि भगचदका को मालामाल तो कर जाएगी, क्योंकि यह सचिन की बायोपिक है जिसे देखने ही टिकट रख दिया जाये तो लोग पैसा देंगे.

यही वो फर्क है जो बताता है कि फिल्म और सेलिब्रिटी में क्या फर्क होता है और दर्शक फिल्म में क्या चाहता है. सचिन की जिंदगी यानि कहानी में बहुत ज्यादा पेंचों खम नहीं हैं, हर कोई जानता है कि वह गली में क्रिकेट खेलने वाला मध्यमवर्गीय लड़का था, जो चमत्कारिक ढंग से क्रिकेट का भगवान बन गया.  निसंदेह उसमें प्रतिभा थी, पर तकनीक के मामले में वह अपने साथी विनोद कांबली के सामने ही कहीं नहीं ठहरता था, फिर भी वह चल निकला तो इसमें प्रतिभा से ज्यादा किस्मत और रिकार्डों के लिए खेलने की चालाकी थी. क्रिकेट के कारोबारी  दांव पेंचों से परे देखें तो धोनी ए अनटोल्ड स्टोरी के चलने की एक अहम वजह उसमें दो नायिकाओं का होना भी थी जिसमें एक की असमय मौत हो जाती है.  यह मौत  नायक को जिंदगी भर सालती भी रहती है. पुराने जमाने के इस विरह जिसे आजकल तड़प कहा जाता है को अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत ने पर्दे पर बेहद सहज तरीके से जिया था. दर्शक चाहता है कि उसके आदर्श नायक की ज़िंदगी में ऐसा कुछ भी हो जो उसकी या उसके आसपास किसी की जिंदगी से मेल खाता हुआ हो और अगर वह सफल या असफल रोमांस हो तो बायोपिक में जान आ जाती है.

भाग मिल्खा भाग में सिर्फ दौड़ नहीं थी, बल्कि खेलों की दुनिया का एक कड़वा सच भी था कि कैसे खेल अधिकारी व संगठन मनमानी करते हैं और खेल के अलावा प्यार में भी असफल एक युवा धावक की मानसिकता क्या होती है. मिल्खा सिंह आज भी मानते हैं कि पहला प्यार तो पहला प्यार होता है कोई उसे भूल नहीं सकता. अभिनेता फरहान खान ने एक धावक के कम बल्कि एक मायूस प्रेमी के किरदार को ज्यादा जिया था जिसके लिए वे खासे सराहे भी गए थे.

सचिन ए बिलियन ड्रीम्स में यह सब (जिसे मसाला कहने में कोई झिझक नहीं होना चाहिए)  नहीं है, इसलिए दर्शक और समीक्षक उसे बोर भी करार दे रहे हैं. कहने का मतलब यह नहीं कि सचिन को रोमांस करते दिखाया जाना चाहिए था, बल्कि यह है कि बिना रोमांस बाली बायोपिक अगर  बनाई जाएगी तो वह ज्यादा चलेगी नहीं, क्योंकि उसमे दर्शक खुद को कहीं फिट नहीं (कर) पाता. आज अगर विराट कोहली की बायोपिक बनाई जाये, तो वह तय है सचिन तो दूर धोनी और मिल्खा को भी पछाड़ देगी, क्योंकि उसमें एक अलग किस्म का रोमांस होगा.

क्रिकेट कैसे खेलें जैसी किसी किताब का चित्रण करना जोखिम भरा काम है, जो सचिन ने अपनी लोकप्रियता को देखते उठा लिया तो कोई गुनाह नहीं कर डाला पर अभी तक का अनुभव यह भी बताता है कि बायोपिक की लोकप्रियता की एक मांग यह भी होती है कि मुख्य किरदार कोई और निभाए जिससे देखने वालों को लगे कि वे जीवनी नहीं बल्कि फिल्म देख रहे हैं, जो मनोरंजन की उनकी भूख शांत कर रही है और इस फिल्म के निर्देशक व लेखक जेम्स अर्सकिन भारतीय दर्शक की इस परम्परागत नब्ज को टटोलने में मात तो खा गए हैं. अब यह भी किस्मत की बात है कि फिल्म सिर्फ सचिन तेंदुलकर को देखने देखी जा रही है.         

 

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