पश्चिमी दिल्ली में मुंडका मैट्रो स्टेशन के पास स्थित एक तीनमंजिला कमर्शियल बिल्डिंग जब आग की लपटों में धूधू कर जलने लगी, उस समय उस में 250 से ज्यादा लोग थे. कुछ वहां मौजूद फैक्ट्री और वेयरहाउस में काम कर रहे थे तो अनेक लोग बिल्डिंग के एक हिस्से में चल रही मोटिवेशनल सेमिनार सुनने के लिए इकट्ठे हुए थे.

बिल्डिंग के रिहाइशी हिस्से में कइयों के परिजन थे, जिस में महिलाएं, बूढ़े और बच्चे थे. आग लगते ही पूरी बिल्डिंग में भगदड़ मच गई. मगर निकल भागने का रास्ता आग ने रोक रखा था. बिल्डिंग से निकलने वाला अकेला सीढ़ी का रास्ता भी आग की लपटों में घिरा हुआ था. उस के बीच से निकलना आग में कूदने के बराबर था. नीचे जेनरेटर रखा था, जो धूधू कर जल रहा था.

चारों तरफ गहरा काला धुआं भर चुका था, आग की भयावह लपटें, जल कर लाल भभूक होती दीवारें और उन के बीच जान बचाने के लिए इधरउधर भागते लोग, हृदयविदारक दृश्य था. भय, आंसू, प्रार्थना और चीखें पूरी बिल्डिंग को दहला रही थीं. अपनों के लिए दहाड़ें मारते लोग शीशे की खिड़कियों पर चिपके हुए थे कि कोई तो उन्हें वहां से निकाल ले.

दिल दहला देने वाला दृश्य था. कई कमरों में लोगों ने शीशे की खिड़कियां तोड़ दी थीं. 3 माले से लोग जान बचाने के लिए खिड़कियों से नीचे छलांग लगा रहे थे. जिन्हें रस्सी या कोई और चीज मिल गई थी, वे उस के सहारे उतरने की कोशिश कर रहे थे. बिल्डिंग के नीचे हजारों की संख्या में जमा हो चुके लोग अपने परिजनों के लिए दुआएं कर रहे थे. छटपटा रहे थे कि किस तरह उन्हें जीवित बाहर निकाला जाए.

कई लोग बदहवास से मोबाइल में रिश्तेदारों की तसवीर लोगों को दिखा रहे थे और पूछ रहे थे कि इन्हें देखा क्या, कैसे हैं ये? जिंदा तो हैं ना? नीचे आए या नहीं? किसी खिड़की पर दिख रहे हैं क्या?

30 गाडि़यां जुटी थीं आग बुझाने में

डर से कांपते लोग आग की लपटों में अपनों को खो देने के भय से फायर ब्रिगेड वालों के पैरों में गिरे जा रहे थे कि वे किसी तरह उन तक पहुंच कर उन को बचा लें. आग बुझाने के लिए 30 फायर ब्रिगेड की गाडि़यां और दमकल के सौ से ज्यादा कर्मचारी लगे थे. लगातार पानी की तेज बौछार बिल्डिंग पर मारी जा रही थी, लेकिन आग थी कि भड़कती जा रही थी, फैलती जा रही थी. जैसे सब को लील लेना चाहती हो.

दमकल कर्मचारियों की कोशिश थी कि किसी तरह सीढि़यों की आग पर काबू पाया जाए, ताकि बिल्डिंग के अंदर घुस कर सभी मंजिलों पर सर्च शुरू की जा सके. इस बीच बहुत सारे लोग जान बचाने के लिए खिड़कियों से नीचे कूदने लगे. इन में बड़ी संख्या युवतियों की भी थी. स्थानीय लोगों ने रस्सियां ला कर उन्हें क्रेन के जरिए खिड़कियों तक पहुंचाया, जिसे पकड़ कर लोग नीचे आने लगे.

कुछ लोगों को क्रेनों पर बिठा कर बाहर निकाला गया. कई तो घबराहट में ऐसे कूदे कि अपने हाथपैर तुड़वा बैठे. कई घंटों की मशक्कत के बाद फायर ब्रिगेड ने बिल्डिंग की सीढि़यों की आग पर काबू पाया, मगर धधकती दीवारों का ताप इतना ज्यादा था कि उन के बीच से निकल कर ऊपर जाना संभव नहीं हो पा रहा था. दमकलकर्मियों ने बाहर से सीढि़यां लगा कर अंदर प्रवेश किया.

सर्च शुरू हुई तो एक के बाद एक काले राख हुए शव निकलने लगे. अधिकतर शव इतने ज्यादा जल चुके थे कि उन की पहचान करना ही मुश्किल था. अफरातफरी के माहौल में मृतकों को निकाला जा रहा था. जिस की भी पहचान होती, उस के परिचित पछाड़ खाखा कर गिरने लगते थे.

बिल्डिंग में लगी आग ने कुल 27 जिंदगियां लील ली थीं और 2 दरजन से ज्यादा लोग बुरी तरह झुलस गए थे. यही नहीं, 29 से ज्यादा लोगों के बारे में कोई सुराग नहीं मिल रहा था, उन के परिजन बौखलाए हुए घटनास्थल से अस्पताल और मोर्चरी तक चक्कर काट रहे थे.

इस बिल्डिंग के एक औफिस में काम करने वाली पूजा ने ‘मनोहर कहानियां’ को बताया कि 13 मई को कंपनी के दफ्तर में कर्मचारियों की एक मोटिवेशनल सेमिनार था, जिस में कंपनी की दूसरी ब्रांचों में काम करने वाले लोग भी आए हुए थे. इस वजह से भीड़ ज्यादा थी. अभी सेमिनार चल ही रहा था कि अचानक आग लगने का शोर हुआ.

हम भाग कर बाहर आए तो देखा चारों तरफ आग की लपटें उठ रही हैं. काला धुआं तेजी से कमरों में भरने लगा. खिड़कियों पर पूरी तरह बंद शीशे थे, इसलिए धुंआ बाहर नहीं निकल रहा था. हमारी सांसें रुकने लगीं. कई लोग सीढि़यों की ओर लपके, मगर उलटे पांव वापस भागे क्योंकि सीढि़यों का रास्ता धुएं और आग से बंद हो चुका था. तब तक कुछ खिड़कियों के शीशे लोगों ने तोड़ डाले.

बाहर से कुछ रस्सियां फेंकी गईं, जिन को पकड़ कर बिल्डिंग से नीचे उतरने की कोशिश लोग करने लगे, मगर रस्सियां छोटी थीं. बहुत सारे लोग तो उन पर लटक कर नीचे जाने के बाद काफी ऊंचाई से कूद कर जान बचाते दिखे. मैं भी एक रस्सी से लटक गई. मगर बीच में ही मेरे हाथ से रस्सी छूट गई. नीचे खड़े लोगों ने मुझे जमीन पर गिरने से बचा लिया.

पूजा ने बताया, ‘मेरी भांजी दृष्टि भी इसी बिल्डिंग में काम करती है. मगर हादसे के बाद से उस का कुछ पता नहीं चल रहा है. मेरा पूरा परिवार अस्पताल और मोर्चरी में जगहजगह उसे तलाश रहा है. सेमिनार होने की वजह से अंदर लोगों की तादाद ज्यादा थी. उस मोटिवेशनल सेमिनार को सुनने के लिए काफी संख्या में युवा वहां पहुंचे थे.’

चश्मदीदों ने बताया कि हादसे के बाद दमकल की गाडि़यां भी मौके पर देरी से पहुंचीं. तब तक आग बहुत ज्यादा फैल चुकी थी. आग बुझाने के बाद सर्च औपरेशन देर रात तक जारी था. दूसरे दिन सुबह तक अंदर से लाशें निकलती रहीं.

दिल्ली पुलिस ने 60-70 लोगों को सुरक्षित बाहर निकालने की पुष्टि की है. एक महिला जान बचाने के लिए इमारत से बाहर कूद पड़ी, जिस से उस की मौत हो गई. देर रात तक उस महिला की पहचान नहीं हो पाई थी. उस की उम्र 40-45 साल थी. हादसे में जख्मी हुए 9 लोगों को संजय गांधी अस्पताल में इलाज के लिए भरती कराया गया.

आग से जान बचा कर निकले पंकज ने बताया कि इमारत चारों तरफ से शीशे से ढंकी हुई है और खिड़कियों में भी विंडो एसी लगे हुए थे. इसी वजह से धुआं अंदर ही अंदर और तेजी से फैलता चला गया. जब आग लगने का पता चला तो बाहर की तरफ से शीशे तोड़ कर और कुछ खिड़कियां खोल कर रास्ता बनाया गया और नीचे से सीढि़यां लगा कर और रस्से लटका कर लोगों को बाहर निकाला गया.

मुंडका में आसपास के प्रतिष्ठानों में काम करने वाले लोगों ने बताया कि इस बिल्डिंग में कोफ इंपेक्स प्राइवेट लिमिटेड नाम की कंपनी में सीसीटीवी कैमरे, राउटर पार्ट्स की असेंबलिंग इंपोर्ट कर के ट्रेडिंग की जाती है. कंपनी में करीब 100 कर्मचारी काम करते थे, जिन में 50 युवतियां थीं. बिल्डिंग की पहली मंजिल पर फैक्ट्री थी और दूसरे पर वेयरहाउस, जिस में कार्यरत अधिक संख्या युवतियों की थी.

अपनों को जलते देखा आग में

इसमाइल खान ने अपनी बहन को तब जिंदा देखा था, जब आग लगी थी. वह एक खिड़की के शीशे को पीट रही थी. इसमाइल दौड़ाभागा उसे बचाने की कोशिश में जुट गया.

इसमाइल ने बताया कि मैं ने उस से शाम 5 बजे बात की, उस समय फायर ब्रिगेड की गाडि़यां ट्रैफिक जाम में फंसी थीं. मैं ने उसे उस की दोस्त के साथ खिड़की पर खड़े देखा था और बारबार उस से नीचे कूदने को कहा, लेकिन वह हिम्मत नहीं जुटा सकी. फिर मैं ने बिल्डिंग फांद कर उस तक पहुंचने की कोशिश की, लेकिन मैं बुरी तरह घायल हो गया.

हम ने हाल ही में अपने पिता को खोया था और लगा कि अगर बहन को कुछ हो गया तो मेरा तो जीना मुश्किल हो जाएगा. मैं सच में उसे बचाना चाहता था. मगर मैं उसे बचा नहीं पाया. इसमाइल बहन को याद करके बुरी तरह फफक पड़ा.

एक अन्य व्यक्ति जो पास ही खड़ा था, उस ने बताया हम अपनी साली को ढूंढने के लिए एक से दूसरे अस्पतालों के बीच भागदौड़ करते रहे. किसी ने उस के बारे में कुछ नहीं बताया.

पुलिस वालों ने भी हाथ खड़े कर दिए. उन्होंने किसी तरह की सूचना देने से इनकार कर दिया. पुलिस वालों ने कहा कि अब एक ही रास्ता बचा है कि मृतकों की पहचान की जाए. जो शव अंदर से निकाले गए हैं वो इतनी बुरी तरह जल चुके हैं कि किसी को देख कर पहचानना बहुत मुश्किल है. अब हमें डीएनए रिपोर्ट आने तक इंतजार करना होगा.

सुनीता नाम की महिला अपनी एक रिश्तेदार सोनम को ढूंढ रही थी. उस ने कहा कि वह सुरक्षा व्यवस्था के कारण तुरंत बिल्डिंग के पास नहीं पहुंच सकी थी. उसे पता ही नहीं चल रहा है कि सोनम निकल पाई या नहीं.

कई दूसरे लोगों ने आरोप लगाया कि वे अपने परिजनों के बारे में पुलिस वालों से पूछते रहे, लेकिन उन्हें कुछ जवाब नहीं मिला. मौके पर सब सन्न थे, किसी के पास कोई जवाब ही नहीं था.

पश्चिमी दिल्ली के संजय गांधी मेमोरियल अस्पताल के बाहर लोगों की भीड़ जमा थी. भीड़ के बीच एक युवा बमुश्किल अपने आंसुओं को रोके गुमसुम खड़ा था. उस से पूछने पर अपने आप को संभालते और आंसू पोछते हुए कहा, ‘मेरी गर्लफ्रैंड भी आग में फंसी थी. उस ने मुझे वीडियो काल किया. मैं उस की हिम्मत बढ़ा रहा था. धीरेधीरे धुआं बढ़ता जा रहा था और फिर काल कट गई.’ उस युवक की गर्लफ्रैंड अब लापता है.

संजय गांधी अस्पताल के बाहर कई ऐसे परिवार थे, जिन के अपने आग की घटना के बाद से लापता थे. 14 साल की मोनी अपनी बहन पूजा को खोजते हुए अस्पताल पहुंची थी.

19 साल की उस की बहन उसी सीसीटीवी कंपनी के औफिस में नौकरी करती थी, जिस में आग लगी. मोनी ने बताया कि हमें न्यूज से आग लगने का पता चला और हम दौड़ते हुए यहां आए. हमें नहीं पता कि हमारी बहन कहां है, प्रशासन ने बस इतना ही कहा है कि संजय गांधी अस्पताल में पता करो.

मोटिवेशनल स्पीकर कैलाश ज्ञानी और उन के बेटे ने गंवाई जान

मुंडका अग्निकांड में मोटिवेशनल स्पीकर कैलाश ज्ञानी और उन का बेटा अमित ज्ञानी भी नहीं रहे. जब आग लगी, तब कैलाश ज्ञानी की स्पीच चल रही थी. इसे अटेंड करने के लिए काफी संख्या में कर्मचारी पहुंचे थे. ये कर्मचारी सीसीटीवी कैमरे और राउटर बनाने वाली कंपनी के थे.  इस कंपनी के मालिक हरीश गोयल और वरुण गोयल हैं, जिन्हें पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है.

आग लगने पर बाहर निकलने का रास्ता न मिल पाने के कारण कैलाश ज्ञानी और उन का बेटा अन्य लोगों के साथ वहां फंस गए और दोनों की जान चली गई.

कैलाश ज्ञानी लंबे समय से सफलता और मैनेजमेंट पर सेमिनार करते आ रहे थे. उन की स्पीच यूट्यूब और फेसबुक पर खूब हैं और लोगों द्वारा बहुत पसंद किए जाते हैं. मगर मुंडका का सेमिनार उन का आखिरी सेमिनार साबित हुआ.

बबलू की हिम्मत और होशियारी ने बचाई 30 लोगों की जान

मुंडका की इमारत में जब आग लगी तो कुछ दूर बैठे बबलू की नजर इस बिल्डिंग पर पड़ी. उन्होंने इस बड़ी मुसीबत को पलक झपकते भांप लिया. उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर जिले से ताल्लुक रखने वाले बबलू मुसीबत में फंसे लोगों के लिए देवदूत बन कर आए.

पेशे से कबाड़ी का काम करने वाले बबलू ने बिना वक्त गंवाए भागते हुए अपनी कबाड़ की दुकान से 12-15 गद्दे और रस्सी निकाली. कुछ लोगों को मदद के लिए पुकारा और गद्दे और रस्सियां उठा कर भागते हुए बिल्डिंग के पास पहुंचे.

उन्होंने शीशे की खिड़कियों के नीचे गली में एक के ऊपर एक कई गद्दे बिछा दिए. पास रखी रस्सी को ऊपर की तरफ फेंका और लोगों से इसे पकड़ कर नीचे आने के लिए चिल्लाने लगे.

लोगों ने हिम्मत दिखाई और बबलू की फेंकी रस्सी के सहारे नीचे उतरने लगे. वे भीषण लपटों के बीच लोगों को रस्सी पकड़ कर नीचे कूदने की अपील कर रहे थे. कुछ लोग रस्सी पकड़ कर सीधे नीचे उतर रहे थे, जबकि कुछ लोग छलांग लगा कर सीधे गद्दों पर गिरे और बच गए.

कुछ लोग रस्सी से उतरने की कोशिश में घबरा कर गिरे और उन्हें बचाने के दौरान बबलू को खुद कई जगह चोटें आईं. लेकिन वह कहते हैं कि यह चोट कुछ भी नहीं है. मुझे दुख है कि अगर फायर ब्रिगेड की टीम जल्दी पहुंच जाती तो और काफी लोगों को बचाया जा सकता था, क्योंकि शुरू में आग ने भयानक रूप नहीं लिया था. बबलू ने 1-2 नहीं, बल्कि 30 से अधिक लोगों को बाहर निकाला. उन्होंने तब तक दम नहीं लिया, जब तक कि इस आग में उन की रस्सी पूरी तरह से जल नहीं गई. बबलू इस अग्निकांड के न सिर्फ एक चश्मदीद हैं, बल्कि एक रीयल लाइफ हीरो हैं.

हादसा तो तय था, पहले भी लग चुकी थी आग

मुंडका के स्थानीय लोगों का कहना है कि वहां हादसा होना तय था. यहां कई बिल्डिंग्स अवैध रूप से बनी हुई हैं, जिन्हें देख कर ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि कभी भी कोई बड़ा हादसा हो सकता है. यहां कई बार आग लगने की छोटीछोटी घटनाएं हुई हैं, लेकिन तब हंगामा नहीं बरपा और बात को दबा दिया गया.

उन का कहना है कि अधिकारियों और बिल्डरों के बीच ऐसा नेक्सस है कि सुरक्षा नियमों को ताक पर रख कर बिल्डिंग बनाने की अनुमति मिल जाती है.

दिल्ली में ऐसी अनेक फैक्ट्रियां मिल जाएंगी, जहां ऐसे इंतजाम ही नहीं है कि अगर आग लग जाए तो बाहर निकलने का कोई वैकल्पिक रास्ता हो. फैक्ट्रियां ही नहीं, दिल्ली में बड़ी संख्या में ऐसे बिल्डर फ्लैट हैं, जहां 4 मंजिला इमारत में उसी जगह बिजली के मीटर लगाए गए हैं, जहां से लोग ऊपर की मंजिलों पर आतेजाते हैं.

कई ऐसे फ्लैटस में हादसे भी हो चुके हैं, जिन में मीटरों में ही आग लगने से ऊपर धुआं भर गया और लोग सीढि़यों से नीचे आ ही नहीं सके. लेकिन इन हादसों के बावजूद अब तक बिल्डर फ्लैट्स में इस चलन को समाप्त करने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया गया है.

आग लगने की घटनाओं की एक बड़ी वजह ये है कि जब इमारतें बनती हैं, उस वक्त अग्निशमन उपायों पर विचार ही नहीं किया जाता है. दिल्ली में हजारों की संख्या में ऐसी फैक्ट्रियां हैं, जिन में न तो अग्निशमन के लिए पर्याप्त इंतजाम हैं और न ही बिल्डिंग का नक्शा बनाते वक्त ऐसी व्यवस्था की गई कि आग लगने पर लोगों के बाहर निकलने का कोई अन्य रास्ता हो.

100 दमकल कर्मियों ने रात भर चलाया राहत अभियान

दिल्ली फायर सर्विस के डायरेक्टर अतुल गर्ग के मुताबिक, मुंडका की आग पर काबू पाने के लिए 30 से ज्यादा दमकल वाहन और 100 से ज्यादा कर्मचारी मौके पर भेजे गए थे.

उधर, राष्टीय आपदा प्रबंधन बल (एनडीआरएफ) की भी एक टीम देर रात मौके पर पहुंच गई थी और उस ने भी राहत कार्यों को अंजाम दिया. बाद में कूलिंग औपरेशन भी शुरू किया गया. एक विशेष सूचना केंद्र बना दिया गया, ताकि लोगों को उन के परिजनों, रिश्तेदारों, दोस्तों के बारे में जानकारी दी जा सके.

अतुल गर्ग का कहना है कि बिल्डिंग में शायद ज्वलनशील पदार्थ इकट्ठा किए गए थे. इस कारण आग तेजी से फैल गई. अधिकांश शव पूरी तरह जले हुए थे. इस के अलावा बिल्डिंग से निकासी का सिर्फ एक ही रास्ता था सीढ़ी का, जिस के नीचे जेनरेटर रखा था.

आग शायद जेनरेटर से ही लगी थी और सीढि़यों के जरिए पहले माले तक पहुंची, जहां कुछ ज्वलनशील पदार्थों के संपर्क में आते ही भड़क गई. इस इमारत का फायर एनओसी नहीं था और आग बुझाने का कोई उपकरण भी नहीं था. इमारत में प्लास्टिक का सामान और सीसीटीवी बनाने का सामान भरा हुआ था, इसलिए आग एक मंजिल से दूसरी पर बहुत तेजी से फैल गई.

पुलिस ने काररवाई करते हुए कंपनी के मालिकों हरीश गोयल और वरुण गोयल को गिरफ्तार कर लिया और इमारत की मालिक सुशीला लाकड़ा, उस के बेटे मनीष लाकड़ा, मनीष की पत्नी सुमित्रा लाकड़ा के खिलाफ भादंवि की धारा 308, 304, 120बी और 34 के तहत मामला दर्ज कर लिया. फैक्ट्री मालिक पीतमपुरा निवासी हैं.

मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दोषियों पर कड़ी काररवाई का दिया भरोसा

मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उपमुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया ने घटना के दूसरे दिन घटनास्थल का निरीक्षण किया, जहां गुजरी शाम हुए अग्निकांड में 27 लोगों के शव निकाले गए थे. केजरीवाल ने हादसे में मारे गए लोगों के परिवार वालों को 10-10 लाख रुपए और घायलों को 50-50 हजार रुपए मुआवजे के तौर पर देने का ऐलान किया.

केजरीवाल ने कहा है कि किसी भी दोषी को बख्शा नहीं जाएगा. मामले को गंभीरता से लेते हुए एक हेल्प डेस्क भी बनाई गई और बिल्डिंग में कार्यरत सभी कर्मचारियों के परिजनों से संपर्क किया जा रहा है. इस के साथ उन्होंने इस मामले पर कड़ी काररवाई की बात कहते हुए मजिस्ट्रैट से जांच कराने के आदेश भी दे दिए.

वहीं राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी आग लगने से हुई लोगों की मौत पर शोक जताया है.

प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष से इस हादसे में जान गंवाने वालों के आश्रितों को 2-2 लाख रुपए तथा घायलों को 50-50 हजार रुपए की राशि दिए जाने का भी ऐलान हुआ.

राजधानी में आग लगने की घटनाओं का पुराना इतिहास है

मुंडका की घटना ने 13 जून, 1997 को दिल्ली के ग्रीन पार्क स्थित उपहार सिनेमा हाल अग्निकांड और झांसी रोड स्थित अनाज मंडी में आग लगने की घटनाओं की याद ताजा कर दी है.

अनाज मंडी में 3 साल पहले 8 दिसंबर, 2019 को आग लगी थी, जिस में 45 लोगों की झुलसने और दम घुटने से मौत हो गई थी और दरजनों लोग जख्मी हुए थे. घटना सुबह 5 बजे हुई थी, जब जाड़े की सर्द सुबह में लोग गहरी नींद में सो रहे थे.

यहां भी निकासी का एक संकरा सीढ़ी का रास्ता था और नीचे सामान पटा पड़ा था, जिस में आग लगने से निकासी का मार्ग अवरुद्ध हो गया था.

जिस बिल्डिंग में आग लगी थी, वहां खिड़कियों पर लोहे की ग्रिल लगी थीं, जिन्हें अंदर फंसे लोग तोड़ नहीं पाए और कमरों के अंदर ही जल कर खाक हो गए.

दक्षिण दिल्ली के ग्रीन पार्क में उपहार सिनेमा हाल में लगी भीषण आग में 59 लोगों की जान चली गई थी. इस भीषण अग्निकांड ने पूरे देश को हिला कर रख दिया था. सिनेमा हाल में लगी इस आग में 100 से अधिक लोग घायल हो गए थे.

जिस समय यह हादसा हुआ सिनेमाघर में बौर्डर फिल्म चल रही थी. इस के बाद भी आग लगने की अनेक घटनाएं हुईं, मगर दिल्ली सरकार ने कोई सबक नहीं लिया.

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