उत्तर प्रदेश के जिला बिजनौर के थाना रेहड़ के अंतर्गत एक गांव है लालबाग. गुरदास इसी गांव में अपने परिवार के साथ रहते थे. पतिपत्नी और 2 बच्चे, यही उन का छोटा सा घरसंसार था. खेतीबाड़ी काफी थी, जिस से उन के परिवार की गाड़ी बड़े आराम से चल रही थी.

उन के यहां ऐशोआराम की हर चीज मौजूद थी. परिवार को खुश रखने के लिए वह कड़ी मेहनत करते थे. गुरदास के दोनों बच्चों में अमिता सब से बड़ी थी. वह पिता की आंखों का तारा थी तो बेटा बुढ़ापे की लाठी. अपने बच्चों पर वह बहुत गर्व करते थे.

बेटी के प्रति अटूट ममता को देख कर कभीकभी पत्नी सुखविंदर कौर पति से दिल्लगी कर बैठती थी कि बेटी तो पराई अमानत होती है. बेटी जब अपनी ससुराल चली जाएगी, तब उस के बिना कैसे रहोगे?

इस पर गुरदास पत्नी को टका सा जवाब दे देते, ‘‘तब की तब देखी जाएगी. नहीं होगा तो दामाद को घरजंवाई बना कर अपने पास रख लेंगे. तब तो मेरी बेटी मेरी आंखों के सामने रहेगी. आखिरकार दामाद भी तो बेटे जैसा होता है. जैसे मेरा एक बेटा वैसे दामाद दूसरा बेटा.’’

पति का टका सा जवाब सुन कर सुखविंदर कौर खामोश हो जाती.

21 दिसंबर, 2017 की बात है. गुरदास किसी काम से सुबहसुबह ही निकल गए थे. सुबह के 9-10 बजे के करीब अमिता मां से कुछ देर में वापस लौट कर आने की बात कह कर कहीं चली गई. घर से निकलते वक्त उस ने मां को ये नहीं बताया कि वह कहां और किस काम से जा रही है. बस इतना ही कहा कि थोड़ी देर में वापस लौट आऊंगी.

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